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तो ये है आप की असलियत
आम आदमी पार्टी मुलम्मा उतर रहा है। लोग शुचिता के स्वयंभू झंडाबरदारों की सचाई जानकर हैरान हैं। तथ्यों को आरोप बताकर खारिज करने के पैतरे कितने और चलेंगे देखना दिलचस्प है
अरुण कुमार सिंह
इन दिनों दिल्ली में 'आम' राजनीति की परतें उघड़ रही हैं। ये परतें हैं भ्रष्टाचार के दोहरे मापदंडों की, षड्यंत्री राजनीति की, मुस्लित तुष्टीकरण की और काम की नहीं, सिर्फ टकराव मोल लेने की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले अपने जिन मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार को पाक -साफ बता रहे थे और उनकी गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे, अब उन्होंने ही उन्हें निलंबित कर दिया है। शायद केजरीवाल को लगने लगा है कि इस मामले में सीबीआई ठीक है। यदि ऐसा नहीं होता तो केजरीवाल का अडि़यल रवैया राजेन्द्र कुमार के निलंबन के आड़े आता।
केजरीवाल के मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार पर आरोप है कि उन्होंने 2006 में अपने कुछ चहेतों से 'एंडेवर' नाम से एक कंपनी बनवाकर उसे लाभ पहुंचाया। वे जिस भी विभाग में गए, वहां इस कंपनी को मनमाने ढंग से ठेके दिए गए। सीबीआई का मानना है कि इस कंपनी के कर्ता-धर्ता राजेन्द्र कुमार ही हैं। वहीं टैंकर घोटाले में फाइलों को बेवजह महीनों दबाने के आरोप में भी केजरीवाल और जल मंत्री कपिल मिश्र कठघरे में हैं। गोपाल राय के परिवहन मंत्री के पद से इस्तीफे को लेकर भी घोटाले की चर्चाएं गरम हैं। माना जा रहा है कि उन पर घोटाले के आरोप लगने के बाद ही उनसे इस्तीफा लिया गया है। लेकिन सरकार यही कह रही है कि उन्होंने अस्वस्थ रहने की वजह से इस्तीफा दिया है।
इन प्रकरणों से जनता का ध्यान हटाने के लिए केजरीवाल और उनके साथी वही पुरानी रट लगाए हैं कि प्रधानमंत्री दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रहे। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता इस मुद्दे पर कहते हैं, ''केजरीवाल और उनके साथी अपने कुकमार्ें को छिपाने के लिए हर मुद्दे का राजनीतिकरण करना चाहते हैं। इसलिए हर बात में वे लोग प्रधानमंत्री का नाम लेने लगते हैं। इससे उनके पाप नहीं छिप रहे हैं, उलटे जनता के सामने बेनकाब हो रहे हैं।''
इसके बचाव में केजरीवाल सरकार ने 7 जुलाई को दिल्ली के अनेक अखबारों में विज्ञापन देकर यह जताने की कोशिश की कि केन्द्र दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रहा है और अकारण अधिकारियों का तबादला दिल्ली से बाहर किया जा रहा है।
केजरीवाल और उनकी पार्टी आआपा की भद पंजाब में भी पिटी है। दिल्ली के महरौली से आआपा विधायक नरेश यादव पर आरोप है कि उन्होंने पंजाब के मुस्लिम-बहुल इलाके मलेरकोटला में कुरान का अपमान कराकर दंगा भड़काने की कोशिश की। 24 जून को मलेरकोटला में ईदगाह के पास कुरान के कुछ पन्ने मिले थे। इसके बाद वहां के मुसलमानों में गुस्सा पैदा हो गया था। इस मामले के मुख्य आरोपी विजय कुमार ने पुलिस को बताया है कि नरेश यादव ने उसे इस काम के लिए उकसाया था और एक करोड़ रुपए देने का वादा किया था।
वहीं आआपा के एक अन्य नेता आशीष खेतान पर भी गुरुग्रंथ साहेब के अपमान का आरोप लगा है। इस मामले में पंजाब में उनके विरुद्ध एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई है।
तुष्टीकरण के मामले में भी आआपा की गति दूसरे सेकुलर दलों से बहुत अधिक है। दिल्ली के लोग यह मानने लगे हैं कि जो केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन और अलग तरह की राजनीति करने का दावा करते थे, वे भी मुस्लिम तुष्टीकरण पर उतर आए हैं। 2 जुलाई को केजरीवाल ने नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् (एन.डी.एम.सी.)के कानूनी सलाहकार रहे एम.एम. खान और जांच एजेंसी एन.आई.ए. के अधिकारी रहे तंजील अहमद के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपए का मुआवजा दिया है। उल्लेखनीय है कि इन दोनों की हत्या कुछ दिन पहले की गई थी।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ओमवती कहती हैं,''किसी मुसलमान की हत्या पर केजरीवाल तुरंत हरकत में आ जाते हैं और उसके परिवार वालों को एक करोड़ रुपए तक का मुआवजा देते हैं, पर किसी हिन्दू की हत्या पर वे उसके परिवार वालों से मिलने की भी जहमत नहीं उठाते। अप्रैल में बंगलादेशी मुसलमानों ने विकासपुरी के कृष्णा पार्क में रहने वाले डॉ. पंकज नारंग की हत्या कर दी थी, लेकिन केजरीवाल ने उनके परिवार वालों से मिलकर उन्हंे सांत्वना भी नहीं दी।''
पूर्व केन्द्रीय कर्मचारी ओमप्रकाश त्रेहन कहते हैं,''केजरीवाल देश में एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनके पास कोई विभाग नहीं है। ये स्वभाव से ही काम करने वाले नहीं हैं। जब ये आयकर विभाग में थे तो छुट्टियां लेकर समय काटते रहे। उन्हीं दिनों इन्होंने गैर-सरकारी संगठन बनाकर विदेशी पैसे कमाए और तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। अब मुख्यमंत्री हैं, लेकिन कोई विभाग अपने पास नहीं रखा। इसे जिम्मेदारी से भागना ही कहेंगे।''
कुछ ऐसी ही राय गृहिणी ज्योति कुमारी की है। वह कहती हैं, ''केजरीवाल काम नहीं, केवल दिखावा करना चाहते हैं। इस दिखावे के पीछे उनकी मंशा है अपने को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बराबर में खड़ा करना। लेकिन उनकी मंशा शायद ही कभी पूरी होगी। लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। राजनीति में चतुराई ज्यादा दिन काम नहीं आती है। ''
किसी महिला से छेड़छाड़, फर्जी डिग्री, पद के दुरुपयोग, मारपीट जैसे आरोपों से आआपा के विधायक जेल जाएं, अथवा मजहबी किताब के अपमान में किसी विधायक पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही हो…इस सबसे ध्यान भटकाने के लिए आआपा के नेता केन्द्र सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाने लगते हैं।
दरअसल, केजरीवाल इन दिनों अपने उन 21 विधायकों को लेकर ज्यादा परेशान हैं, जिनकी सदस्यता खतरे में है। उम्मीद है कि एक महीने के अंदर इन विधायकों की सदस्यता निरस्त हो जाएगी। दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए केन्द्र सरकार नहीं, बल्कि खुद केजरीवाल जिम्मेदार हैं। ये वही केजरीवाल हैं, जो सरकार में आने से पहले कहते थे कि वे सरकार में आएंगे तो कोई भी सरकारी सुविधा नहीं लेंगे, यहां तक कि बंगला और गाड़ी भी नहीं। लेकिन सरकार में आते ही उन्होंने सबसे पहले सुविधाओं पर ही हाथ रखा। ये सुविधाएं उनके विधायक भी ले सकें, इसके लिए उन्होंने नियम के विरुद्ध जाकर 13 मार्च, 2015 को अपने 21 चहेते विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया।
इन पर दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील प्रशांत पटेल की नजर गई और उन्होंने 19 जून, 2015 को राष्ट्रपति के यहां एक याचिका लगाई और उनसे निवेदन किया कि इन विधायकों की सदस्यता निरस्त की जाए। पटेल ने अपनी याचिका में कहा है कि इन विधायकों को लाभ के पद पर बैठाने से संविधान के अनुच्छेद-102 और 191 एवं एन.सी.टी. एक्ट 1991 का सरासर हनन हुआ है। पटेल की याचिका की खबर उसी दिन मीडिया में आ गई। इसके बाद दिल्ली सरकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और इन विधायकों को बचाने के लिए आनन-फानन में 19 जून को ही मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर एक विधेयक लाया गया और 23 जून को इसे पारित कर दिया गया और इसे पीछे की तारीख यानी 14 फरवरी, 2015 से लागू करने की घोषणा की गई। इसके साथ ही इसे उप राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिया गया। चूंकि दिल्ली केन्द्र शासित राज्य है इसलिए यहां कोई भी विधेयक पारित करने से पहले केन्द्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है, लेकिन केजरीवाल सरकार ने ऐसा नहीं किया।
इसलिए उप राज्यपाल ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और अपनी राय राष्ट्रपति को भेज दी। नवंबर, 2015 में राष्ट्रपति ने इस विधेयक के संदर्भ में चुनाव आयोग से सलाह मांगी। आयोग की सलाह मिलने के बाद राष्ट्रपति ने 13 जून, 2016 को उस विधेयक को खारिज कर दिया। अब पूरा मामला चुनाव आयोग के पास है और आयोग 14 जुलाई को इस संबंध में अंतिम सुनवाई करने वाला है। प्रशांत पटेल कहते हैं, ''राष्ट्रपति के द्वारा विधेयक को ठुकरा देने के बाद कोई भी ताकत विधायकों को नहीं बचा सकती। राष्ट्रपति के निर्णय को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। चुनाव आयोग खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं कर सकता।''
21 विधायकों का क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि आआपा की असलियत सामने आ रही है। लेकिन राजनीतिक शुचिता के स्वयंभू झंडाबरदारों में इस सच का सामना करने का नैतिक साहस है या नहीं, देखना बाकी है।
राष्ट्रपति के द्वारा विधेयक को ठुकरा देने के बाद कोई भी ताकत आआपा के विधायकों को नहीं बचा सकती। राष्ट्रपति के निर्णय को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। चुनाव आयोग खानापूर्ति के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता।
—प्रशांत पटेल, वकील, दिल्ली उच्च न्यायालय
केजरीवाल और उनके साथी अपने कुकमार् को छिपाने के लिए हर मुद्दे का राजनीतिकरण करना चाहते हैं। इसलिए वे लोग हर बात में प्रधानमंत्री को घसीट रहे हैं। इससे उनके पाप नहीं छिप रहे हैं, उल्टे जनता के सामने बेनकाब हो रहे हैं।
—विजेन्द्र गुप्ता, विपक्ष के नेता, दिल्ली विधानसभा
केजरीवाल देश में एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनके पास कोई विभाग नहीं है। ये स्वभाव से ही काम करने वाले नहीं हैं। जब ये आयकर विभाग में थे तो छुट्टियां लेकर समय काटते रहे। अब मुख्यमंत्री हैं, लेकिन कोई विभाग अपने पास नहीं रखा है। इसे जिम्मेदारी से भागना ही कहेंगे। —ओमप्रकाश त्रेहन, पूर्व केन्द्रीय कर्मचारी
किसी मुसलमान की हत्या पर केजरीवाल तुरंत हरकत में आ जाते हैं और उसके परिवार वालों को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देते हैं, पर किसी हिन्दू की हत्या पर वे उसके परिवार वालों से मिलने की भी जहमत नहीं उठाते हैं। —डॉ. ओमवती, सामाजिक कार्यकर्ता
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