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विज्ञान में आज के युवाओं के लिए ढेरों अवसर हैं, क्योंकि आने वाले समय में सभी देशों की सरकारें 'ईको फे्रंडली' तकनीक को अनिवार्य करने की योजना बना रही हैं। देश के प्रमुख औद्योगिक घराने इस क्षेत्र में भारी निवेश कर रहे हैं, जिससे रोजगार के नए अवसर खुले हैं
पिछले कुछ दशकों से औद्योगिक वृद्धि के कारण जो विकास हो रहा है, उससे पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हुआ है। सड़कें चौड़ी करने के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों को काटना, वनों का सफाया करना, शहरों में बढ़ते वाहनों से उपजता प्रदूषण व घर-घर लगे एसी व फ्रिज से निकलने वाली गैस ने हमारे पर्यावरण को विषाक्त बना दिया है। इसके चलते शहरों की आबोहवा में जहर घुल चुका है। इसका असर मानव पर पड़ रहा है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए विश्व के अधिकतर देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने को लेकर बेहद चिंतित हैं। इसी चिंता ने युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर खोले हैं। आज सरकारी एवं निजी क्षेत्र पर्यावरण संरक्षण से संबंधित रोजगार बढ़ा रहे हैं और संबंधित पेशेवरों को वरीयता दे रहे हैं। तो वहीं आज के समय युुवाओं में यह पसंदीदा क्षेत्र भी माना जा रहा है, जहां युवा इन कोर्सों को करके अपने सपनों को उड़ान दे सकते हैं।
क्या है पाठ्यक्रम : वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय, पुणे विश्वविद्यालय, जेएनयू व आईआईटी जैसे संस्थानों में बैचलर, मास्टर्स, एमटेक, एमई और पीएचडी में ग्रीन कोर्स को शामिल किया गया है। आईआईएम अमदाबाद और लखनऊ में कार्बन फाइनेंस कोर्स पढ़ाया जाता है। आज के समय पर्यावरण संरक्षण के बारे में बढ़ती जागरूकता के चलते उन युवाओं की संख्या बढ़ी है, जो पेशेवर तौर पर इस क्षेत्र में उतर रहे हैं। ऐसे में देश के कई महत्वपूर्ण संस्थान इस क्षेत्र में कई तरह की डिग्री व डिप्लोमा कोर्स करवा रहे हैं। मौजूदा कोर्सों में पॉल्यूशन कंट्रोल, एन्वायरनमेंटल मैनेजमेंट, ह्यूमन इकोलॉजी, इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन में बैचलर और मास्टर डिग्री के कोर्स खासकर हैं।
नौकरी के क्षेत्र : इस क्षेत्र का दायरा बहुत बढ़ चुका है। सरकार से लेकर निजी क्षेत्र और औद्योगिक जगत ने भी इसे गंभीरता से लिया है। ऐसे मे इस क्षेत्र में करियर की अच्छी गुंजाइश है। भारत सरकार के वन्य व पर्यावरण, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन, अरबन प्लानिंग, इंडस्ट्री, वाटर रिसोर्स व एग्रीकल्चर जैसे कई विभाग हैं जो योग्य व कुशल युवाओं को काम का अवसर देते हैं।
एन्वायरनमेंट जर्नलिज्म : पर्यावरण के गंभीर विषय व आए दिन बड़े घटनाक्रम के चलते मीडिया संस्थानों ने बाकायदा पर्यावरण से संबंधित अलग से बीट बना दी है। इस क्षेत्र में पर्यावरण पर सरकारी और औद्योगिक क्षेत्र की पर्यावरण नीतियों व उनके पड़ने वाले आर्थिक प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। इससे जुड़े पत्रकार देश-दुनिया को वन्यजीव, पारिस्थतिकी तंत्र में आ रहे बदलावों से रूबरू कराते हैं। मीडिया संस्थान इन पत्रकारों को अच्छी सेलरी भी देते हैं।
एन्वायरनमेंट लॉ : देश में पर्यावरण के गिरते स्तर और उपजी परेशानियों के चलते सरकार ने पर्यावरण संबंधित कुछ चीजों को कानून का दर्जा दिया है। ये कानून इन्वायरनमेंट लॉ के अंतर्गत आते हैं। यहां पर कानून के जानकार और विद्यार्थियों के लिए अच्छे अवसर हैं।
भविष्य में संभावनाएं : युनाइटेड नेशंस एन्वायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) रिपोर्ट, 2008 के मुताबिक साल 2025 तक भारत में बायोगैस के क्षेत्र में ही अकेले 9 लाख नई नौकरियां होंगी और अकेले एन्वायरनमेंटल उत्पाद और उससे जुड़ी चीजों का वैश्विक बाजार करीब 2.74 लाख करोड़ डॉलर का होगा। एक आकलन के मुताबिक अगले दो साल में भारत में करीब 10 लाख ग्रीन जॉब पैदा होंगे।
संस्थान
ल्ल दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, दिल्ली
ल्ल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बंगलुरू
ल्ल टेरी विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
ल्ल नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट, भोपाल
ल्ल गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय, हरियाणा
ल्ल मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, चेन्नई
ल्ल इंदिरा गांधी सेंटर फार एन्वायरनमेंट, ह्यूमन इकोलॉजी पॉल्यूशन, जयपुर
ल्ल जीबी पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड ल्ल
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