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पासपोर्ट आवेदन, आयकर भुगतान, रेल टिकट बुकिंग, भूमि संबंधी रिकॉर्ड के रखरखाव और बिल भुगतान व नगर-निगम कर भरने जैसे कार्यों के लिए जल्दी ही एक स्मार्टफोन एप इस्तेमाल किया जाएगा। नरेंद्र मोदी सरकार 'उमंग' नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन पर काम कर रही है, जिसकी मदद से कई केंद्रीय, राज्यस्तरीय और स्थानीय सरकारी सेवाओं का संचालन एक ही मंच से किया जा सकेगा। उमंग परियोजना के पूरा होने के बाद आमजनों के सरकार के साथ संबंधों का बिल्कुल ही नया रूप देखने को मिल सकेगा। फिलहाल सरकार एक ऐसी साझाीदार एजेंसी की तलाश में है जिसे इस तरह की जटिल एप विकसित करने और उसके रखरखाव से जुड़ा अनुभव हो। इस संबंध में प्रस्ताव दस्तावेज 'इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीईआईटीवाई)' की वेबसाइट पर अपलोड किया जा चुका है। इसमें सरकार के साथ उमंग परियोजना में साझीदार के तौर पर काम करने के लिए एजेंसियों को न्योता दिया गया है। 'उमंग' से अभिप्राय 'यूनिफाइड मोबाइल फॉर न्यू-एज गवर्नेंस' से है। प्रस्तावित दस्तावेज के अनुसार एप का पहला चरण 3 वर्ष में सामने आ जाएगा। लांच के पहले वर्ष एप 50 सेवाएं देगा और तीसरे वर्ष तक इसकी सेवाओं की संख्या 200 तक पहुंच जाएगी।
उमंग एप द्वारा अखिल-भारतीय स्तर पर प्रदान की जाने वाली सेवाएं इतनी व्यापक होंगी कि उसकी मदद से सरकारी विभागों के चक्कर लगाने वाले लोगों की समस्याओं का सहज ही अंत हो सकेगा। इतना ही नहीं, जो प्रयोक्त स्मार्टफोन इस्तेमाल नहीं करते वे भी उमंग का इस्तेमाल कर सकेंगे क्योंकि उसकी सेवाएं एसएमएस सुविधा के जरिए भी उपलब्ध होंगी। शुरुआती तौर पर यह सुविधा 13 भाषाओं में उपलब्ध होगी। इस एप में हस्तांतरण विवरण भी मौजूद रहेंगे जिन्हें जांच कर किसी गलती की सूरत में प्रयोक्ता अधिकारियों से संपर्क भी साध सकेंगे। साथ ही, इसमें उनकी मदद के लिए लाइव चैट सपोर्ट भी इसमें रहेगा।
डीआईईटीवाई की वेबसाइट पर मौजूद उमंग के प्रस्तावना दस्तावेज में स्पष्ट किया गया है कि उमंग एप आधार, पेजीओवी (सुरक्षित ऑनलाइन भुगतान) और डीआईजीआई लॉॅकर (सुरक्षित क्लाउड आधारित दस्तावेज प्रबंधन) के साथ संबद्ध रहेगा। लोग उमंग का इस्तेमाल किसी भी सरकारी सेवा प्राप्ति के लिए कर सकेंगे – इसके लिए आधार के जरिए अपनी पहचान साबित करना, पेजीओवी के जरिए भुगतान और डीआईजीआई लॉकर के माध्यम से जरूरी दस्तावेज डाउनलोड करने होंगे।
सरकार का मानना है कि उमंग जनता को सशक्त करने का कारगर उपाय है। संभवत: ऐसी परियोजना से ही लाखों भारतीयों की 'अच्छे दिन' की उम्मीद साकार होगी जो सरकारी निष्क्रियता, पारदर्शिता की कमी, लालफीताशाही और सरकारी दफ्तरों में फैले भ्रष्टाचार का आए दिन शिकार बनते हैं। उमंग के जरिए लोगों को किसी भी समय, कहीं भी और कभी भी व किसी भी मंच या उपकरण के जरिए सरकारी सेवाओं और उनसे जुड़ी सूचनाएं सुरक्षित और भरोसेमंद तरीके से प्राप्त हो सकेंगी।
उमंग परियोजना को राजग सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'डिजिटल इंडिया' के लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में पहला बड़ा कदम माना जा रहा है। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से अपने पहले भाषण में डिजिटल इंडिया का प्रस्ताव देश के सामने रखा था। अपने भाषण में मोदी ने कहा था, 'मैं डिजिटल इंडिया का सपना देखता हूं।' उन्होंने कहा था ''उनकी सरकार डिजिटल तकनीक के जरिए सूचना और सेवाओं को जनता की आसान पहुंच में लाने का हर संभव प्रयास करेगी।'' उनके शब्दों में, ''हम ई-गवर्नेंस के जरिए बेहतर गवर्नेंस देना चाहते हैं।''
डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के अंतर्गत लोगों को सूचना और सेवा प्रदान करने के लिए कई तरह की शुरुआत की गई हैं। डीआईजीआई लॉकर मंच के जरिए कागजी दस्तावेजों का कम से कम इस्तेमाल होता है। यह सेवा पहले ही शुरू कर दी गई है। प्रत्येक डीआईजीआई लॉकर अकाउंट को उसके आधार नंबर के साथ नत्थी किया जा चुका है। डीआईजीआई लॉकर मंच तब अधिक कारगर होगा जब सभी सरकारी विभाग और निजी क्षेत्र की एजेंसियां इसके साथ आ जुड़ेंगी और उसके बाद जरूरत के अनुसार डिजिटल दस्तावेजों का आसानी से आदान-प्रदान किया जा सकेगा।
ई-साइन या ई-हस्ताक्षर की भी शुरुआत की जा चुकी है। इसकी मदद से आधार कार्ड या रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर की मदद से प्रयोक्ता किसी भी दस्तावेज पर डिजिटल रूप में हस्ताक्षर कर सकता है। विभिन्न मंत्रालयों के बीच फाइलें भेजे जाने की कवायद से भी मुक्ति दिलाने वाली ई-केबिनेट परियोजना को भी एनआईसी विकसित कर रही है। इस पोर्टल से सभी मंत्रियों की फाइल नोटिंग की बजाए उनके जवाबों के ई-रिकॉर्ड रखे जाएंगे। ई-केबिनेट परियोजना के अमल में आने के बाद, फाइलें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की बजाय ऑनलाइन ही भेजी-मंगाई जाएंगी। इसके अलावा, माइजीओवी शुरुआत भी है जिसे 2014 में जोर-शोर से शुरू किया गया था। इसकी शुरुआत के दो हफ्ते बाद ही माइजीओवी के एक लाख प्रयोगकर्ता थे। मौजूदा दौर में इसका प्रयोग करने वालों की संख्या 19.4 लाख है। माइजीओवी एप के विकास के साथ प्रोग्राम की पहुंच में भी विस्तार हुआ है। एक और प्रोग्राम के जरिए नागरिक शासनप्रणाली का हिस्सा बन सकेंगे, वहीं यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इस पहल के जरिए लोगों की जीवनशैली में किस तरह का सुधार हो सकेगा। साधारण नागरिकों द्वारा प्रस्तावित कोई विचार कारगर ही रहे, यह जरूरी नहीं होता।
डिजिटल इंडिया की सफलता देश में डिजिटल आधारभूत ढांचे की गुणवत्ता और पहुंच पर निर्भर करेगी। अपने दस वर्ष के शासन काल में यूपीए सरकार ई-गवर्नेंस कार्यक्रमों के लिए किसी भी तरह का कारगर आधारभूत ढांचा तैयार करने में असफल रही। यूपीए सरकार के ई-गवर्नेंस मॉडल की समस्या यह थी कि उसने प्रत्येक कार्य सरकार के दम पर ही करना चाहा। डेटा सेंटर से लेकर ब्रॉडबेंड कनेक्टिविटी तक, आधारभूत ढांचे के हरेक अंश को सरकारी अधिकारी ही बना रहे थे और उसका रखरखाव कर रहे थे।
यूपीए के कार्यकाल में स्टेट डेटा सेंटर (एसडीसी) को भारी कीमत के आधार पर स्थापित किया गया था, लेकिन अधिकांश एसडीसी तकनीकी दिक्कतों से तंग रही, उनके उपकरण पुराने और अविश्वसनीय थे। इसलिए राज्यों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी के लिए स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (एसडब्ल्यूएएन या स्वान) को स्थापित किया गया। परंतु स्वान नेटवर्क हाई-स्पीड कनेक्टिविटी लाने में नाकामयाब रहे थे। उससे बेहतर कनेक्टिविटी साधारण डोंगल से मिल जाती है जिसकी कीमत 1000 रुपये से भी कम होती है। जबकि स्वान सिस्टम भारी कीमत खर्च कर स्थापित किया गया था। सभी पंचायतों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने के लिए यूपीए के समय एनओएफएन परियोजना भी लांच की गई थी, परंतु इसमें भी रुकावटें आती रहीं।
मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की सफलता का बड़ा दारोमदार निजी क्षेत्र के इसमें सहयोग पर भी निर्भर करेगा। डेटा सेंटर बनाना या ब्रॉडबेंड कनेक्टिविटी के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना सरकार का काम नहीं होता। इसके लिए कई प्रतिष्ठित कंपनियां हैं, जो केंद्र व राज्य सरकारी विभागों को बेहतर डेटा सेंटर सेवाएं दे सकती हैं। देश में ही मौजूद डेटा सेंटरों में स्टोर सरकारी डेटा की उचित सुरक्षा के लिए सरकार को कानून जरूर बनाने होंगे। इसलिए सभी जिलों में बेहतर ब्रॉडबेंड कनेक्टिविटी के लिए निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनियों पर भरोसा करना होगा।
यह अच्छी बात है कि मोदी सरकार डिजिटल इंडिया प्रोग्राम में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का इस्तेमाल करने की इच्छुक है। निजी क्षेत्र के आने से आईटी आधारभूत ढांचा या 'ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी' से जुड़ी परियोजनाएं जल्दी और बेहतर तरीके से लागू हो सकेंगी। उमंग जैसे एप के लिए 'कनेक्टिविटी, क्लाउड बेस्ड डेटा प्रोसेसिंग', साइबर सुरक्षा और भी काफी कुछ सुविधाओं की जरूरत रहेगी। अत: इस महत्वपूर्ण परियोजना की सफलता के लिए निजी क्षेत्र की सक्रिय सहभागिता जरूरी है। -अनूप वर्मा
(लेखक सूचना तकनीक के जानकार पत्रकार हैं)
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