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एनडीएमसी ने अपने क्षेत्र में पार्कों को सजाने के लिए ललित कला अकादमी के साथ मिलकर देशभर के नामी शिल्पकारों को शिल्प कृतियां रचने के लिए बुलाया; उनकी बनाई इन प्रस्तर रचनाओं से सजेगी नई दिल्ली
दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित बिरला मंदिर के सामने स्थित एक बड़े से पार्क में कुछ लोग छैनी हथौड़े लिए बड़े-बड़े पत्थरों को तराश रहे हैं। नजदीक जाने पर पता लगता है कि वे शिल्पकार हैं जो उन बेजान पत्थरों में अपनी कला से जान डालने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल देश के कुछ प्रसिद्ध शिल्पकार एनडीएमसी (नई दिल्ली म्युनिसपल कॉरपोरेशन)और ललित कला अकादमी के प्रोजेक्ट के तहत कलाकृतियां तराश रहे हैं जो विभिन्न पार्कों में स्थापित की जाएंगी।
ललित कला अकादमी के सहायक सचिव विनोद अग्रवाल बताते हैं कि जनवरी में ललित कला अकादमी के साथ एनडीएमसी के अधिकारियों की बैठक हुई थी, जिसमें एनडीएमसी के पार्कों में कलाकृतियां लगाने की बात तय हुई थी। इसके लिए जो अकादमी ने देशभर के नौ शिल्पकारों को चुना शिल्पकला के क्षेत्र में देश में बड़ा नाम हैं। इसके लिए राजस्थान से संगमरमर पत्थर खरीदा गया और सभी कलाकारों से उनकी कल्पना के अनुसार अच्छी कलाकृतियां बनाने को कहा गया।
गुजरात के बरौदा के विनोद ए पटेल, गणेश गोहानी, दीपक रसायली, दीपक के खत्री, ओडिसा स्थित केआइआइटी यूनिवसिर्टी के स्कूल ऑफ फाइन आर्ट के डायरेक्टर अद्वैत गणनायक, हैदराबाद स्थित जवाहरलाल नेहरू आर्केटेक्चर एंड फाइन आर्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर श्री निवास रेड्डी, बेंगलुरू के एस गोपीनाथ, राजस्थान के भूपतराम डूडी व भूपेश कवाडिया को ये कलाकृतियां बनाने के लिए न्यौता गया। इन शिल्पकारों ने 25 दिन के अथक परिश्रम के बाद इन कलाकृतियों को बनाया। इन कलाकारों की कलाकृतियां सामान्य मूर्तियों जैसी कतई नहीं थीं लेकिन शिल्पकारोें ने इन पत्थरों में अपनी कल्पनाओं को जिस तरह उकेरा, उसमें अध्यात्म, कला, विज्ञान सब कुछ है।
मशहूर शिल्पकार अद्वैत गणनायक ने अपनी कलाकृति को 'नॉलेज ट्री' नाम दिया है। उन्होंने बताया कि ''लाखों वर्षों में पानी की धार से जब पत्थर कटता है तो वह एक तरफ से चिकना हो जाता है। इस दौरान वह कई युग देखता है। यदि आप पत्थर के साथ बातें नहीं करेंगे तो उसके साथ जुड़ नहीं सकते। मेरी यह कलाकृति प्रकृति के बदलते स्वरूप को दिखाती है।'' शिल्पकार श्रीनिवास रेड्डी ने अपनी कलाकृति को यात्रा नाम दिया है। वे बताते हैं ''हमारी आकाशगंगा बहुत बड़ी है, अनंत है। अपनी कलाकृति में मैने इस यात्रा को दिखाने का प्रयास किया है। यह एक रथ है जो यात्रा कर रहा है। इसमें भारतीयता का दर्शन है। एक शिल्पकार जब कलाकृति बनाता है तो कभी यह पहले से नहीं सोचता कि वह कैसी बनेगी। वह बस अपना काम करता है।''
शिल्पकार विनोद पटेल बताते हैं कि ''उनकी कलाकृति शक्ति को लेकर है। इसे शब्दों में बताना मुश्किल है इसलिए इसका नाम उन्होंने 'अनटाइटल' रखा है। एनर्जी को कभी रोका नहीं जा सकता बस उसे परिवर्तित किया जा सकता है। मेरी कलाकृति यही दर्शाती है।'' दीपक रसायली कहते हैं ''हर व्यक्ति के जीवन में खुशी और गम हमेशा आते रहते हैं। मेरी कलाकृति 'माउंटेन एंड क्लाउड' इसी को दर्शाती है। जैसे बादल हल्का होने के कारण पर्वत के ऊपर उड़ जाता है। उसी तरह दुख भी एक समय के बाद कम हो जाता है और व्यक्ति उसे भूल जाता है।'' भूपत कहते हैं ''हर व्यक्ति का देखने का अपना एक अलग नजरिया होता है। हरेक व्यक्ति एक बार आईने के सामने जरूर जाता है जिसमें वह अपना अक्स देखता है। मेरी कलाकृति 'दा मिरर' इसी दर्शन पर आधारित है। ''
भूपेश कावडि़या कहते हैं, ''जब मैं दिल्ली आया तो यह सोचकर नहीं आया था कि क्या बनाऊंगा। यहां आया, दिल्ली को देखा और सोचा कि क्यों न पत्थरों में पुरानी दिल्ली को उकेरा जाए। दिल्ली की पुरानी इमारतों में होने वाली कारीगरी मैंने अपनी कलाकृति में उकेरी है। इसलिए इसे नाम भी 'दिल्ली' दिया है।'' देश के नामी शिल्पकारों की बनाई इन कलाकृतियों को अभी कहां लगाया जाना है यह तय नहीं हुआ है लेकिन इन कलाकृतियों को ध्यान से देखने पर दिल्ली दर्शन करने वाले लोगों को इनमें आध्यात्मिक दर्शन जरूर नजर आएगा।
आदित्य भारद्वाज
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