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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया संवत्सर प्रारंभ होता है। नये साल का यह पहला दिन भारत के इतिहास की बहुत महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा है। शक व हूण विदेशी आक्रांताओं से भारतभूमि को मुक्त कराने वाले विक्रमादित्य के नाम से यह संवत् अब ज्यादा प्रचलित है। विभिन्न प्रदेशों में इसके विभिन्न नाम हैं। 8 अप्रैल, शुक्रवार को सूर्योदय के समय से नववर्ष विक्रम संवत् 2073 प्रारम्भ होगा। हार्दिक मंगल कामनायें।
वर्ष प्रतिपदा का यह दिन इतिहास की बहुत-सी शुभ घटनाओं का साक्षी है, यह भी एक सुखद संयोग है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक आद्य-सरसंघचालक परम पूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का यह जन्मदिन है। भारत की आजादी के आंदोलन ने जिन तप:पूत प्रतिभाओं का उन्नयन किया, डॉ़ हेडगेवार उनमें से एक थे। तत्कालीन सभी प्रकार के आंदोलनों का प्रत्यक्ष अनुभव लेकर डॉ़ साहब ने अंतत: रा़ स्व़ संघ को अपने लक्ष्य प्राप्ति का साधन बनाया। इस महत्वपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाने के लिये उन्होंने एक अद्भुत आध्यात्मिक प्रतिभा श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को खोज निकाला तथा उनके हाथ में संगठन की बागडोर सौंपकर 1940 में महाप्रस्थान कर गये। रा.स्व.संघ के द्वितीय सरसंघचालक परमपूजनीय श्री गुरुजी (माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर) के बारे में बाबू जय प्रकाश नारायण का यह वाक्य बहुत सार्थक है कि ''श्री गुरुजी आध्यात्मिक विभूति थे।'' यह एक बड़ा बोध है कि हम भारतीय हैं, हमारी हजारों वर्ष पुरानी परंपरा है। भारत का निर्माण भारतीयता के आधार पर ही होगा। श्री गुरुजी जिस ध्येय को समर्पित थे, उसके लिये सम्पूरक सभी आवश्यक कार्यों को उन्होंने कुशलता से किया। इसी ध्येय के अनुकूल राजनीतिक दल के निर्माण का प्रस्ताव जब डॉ़ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने श्री गुरुजी के समक्ष रखा, उन्होंने पं़ दीनदयाल उपाध्याय को चुना और मुखर्जी को दे दिया। कानपुर के प्रथम अधिवेशन में दीनदयाल जी के कर्तृत्व को देखकर डॉ़ मुखर्जी ने कहा, ''यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं।''
भारत प्रकाशन परिवार ने तय किया कि विक्रम संवत् 2073 वर्ष प्रतिपदा का जाए विशेषांक पं़ दीनदयाल उपाध्याय को ही समर्पित किया जाये क्योंकि यह वर्ष दीनदयाल जी का सौवां वर्ष है, 25 सितम्बर, 2016 उनका शताब्दी वर्ष है। राष्ट्रवादी विचार परिवार के लिये यह वर्ष बहुत महत्वपूर्ण है। यह श्री नानाजी देशमुख एवं मा़ बाला साहब देवरस का भी शताब्दी वर्ष है। विशुद्घ भारतीय राष्ट्रवाद के गहन चिंतन के हमें यह वर्ष अनेक अवसर देगा।
पाञ्चजन्य के विशेषांकों की एक गौरवशाली परंपरा है। पं़ दीनदयाल उपाध्याय पर केंद्रित स्मृति विशेषांक आप लोगों के हाथ में है। दीनदयाल जी भारतीय 'चिति' के प्रवक्ता थे तथा 'विराट' के संगठक थे। वे राजनीति में संस्कृति के राजदूत थे। वे आदर्शवादी राजनेता एवं व्यावहारिक राज-ऋषि थे। यह अंक उनसे साक्षात्कार का एक लघु-प्रयत्न है। सुधी लेखकों से प्राप्त सामग्री यथोचित है, वह जिज्ञासाओं को शांत भी करती है तथा उत्प्रेरित भी। दीनदयाल जी को जितना जाना गया है, उतना पहचाना नहीं गया है। शायद आने वाली पीढि़यां उन्हें पहचानें। वे अपने काल से बहुत आगे थे, इसलिए वे आने वाली पीढि़यों के लिये शायद प्रासंगिक होंगे।
विभिन्न शीर्षकों से संयोजित यह अंक एक श्रद्घाञ्जलि भी है तथा एक सम्प्रेरणा भी। भारत प्रकाशन परिवार विशेषकर सम्पादक त्रय श्री जगदीश उपासने (समूह-सम्पादक) श्री हितेश शंकर (सम्पादक पाञ्चजन्य) श्री प्रफुल्ल केतकर (सम्पादक-ऑर्गेनाइजर) का मैं बहुत बहुत आभारी हूं, मुझे भी इस सद्प्रयत्न का साझीदार बनाया गया। सभी का अभिवादन। शुभम्।
डॉ़ महेश चन्द्र शर्मा
अतिथि संपादक
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