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अंक संदर्भ- 6 मार्च, 2016
आवरण कथा 'अराजक दावेदारी' से स्पष्ट होता है कि कैसे आरक्षण की आग ने सामाजिक सद्भावना में दरार पैदा करने का काम किया है। हरियाणा में जाट समुदाय द्वारा आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा, आगजनी का ऐसा दौर चला जिसने हरियाणा को दशकों पीछे धकेल दिया। हजारों करोड़ का नुक्सान हुआ। दंगाइयों ने दुकानों को जला दिया, रेलवे पटरियों को उखाड़ दिया, कई दिन हरियाणा बंद रहा, आवाजाही ठप रही। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह हिंसा करने वालों को चिह्नित करे और मामले की पूरी तरह तहकीकात कराए और उन लोगों को ढूंढकर निकाले जिनकी शह पर प्रदेश में आगजनी की गई। सरकार यह भी देखें कि आगे से राज्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो और हरियाणा फिर से विकास के पथ पर अग्रसर हो सके।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म हरियाणा वही प्रदेश है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया। इस प्रदेश में आरक्षण के नाम पर जो महाभारत हुआ वह संभवत: इस प्रदेश का सर्वाधिक निराशाजनक कालखंड है। पिछली कांग्रेस सरकार ने जाट समुदाय को आरक्षण का आश्वासन देकर लोगों को भ्रम में रखा। परिणाम सामने है हरियाणा में आंदोलनकारियों ने 50 हजार करोड़ रू. का नुक्सान कर डाला। बेहतर होगा कि आरक्षण के स्थान पर योग्यता और प्रतिस्पर्धा के बल पर सरकारी नौकरी पाई जाए। हरियाणा में सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए सभी लोग आगे आएं और सभी राजनैतिक दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की बजाए इस मामले को सुलझाने का तरीका निकालें।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग, प. निमाड़ (म.प्र.)
ङ्म अब समय आ गया है जब आरक्षण व्यवस्था पर पुनर्विचार करना होगा। आरक्षण से लाभान्वित होकर आर्थिक तौर पर सशक्त हो चुके समुदाय को इस व्यवस्था से बाहर कर देना चाहिए। आरक्षण लेने सभी वर्गों में जिनका अभी उत्थान नहीं हो पाया है, सिर्फ उन्हें ही आरक्षण देना चाहिए। आरक्षण लेकर बड़े अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर बन चुके लोगों व आयकर देने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। वे पिछड़े थे लेकिन अब जबकि वे सशक्त हो चुके हैं तो पिछड़े कहां रह गए? आरक्षण की ओछी राजनीति करने वाले नेताओं को अब सही जवाब देने का वक्त आ गया है। आरक्षण का आधार यदि जातिगत न होकर आर्थिक हो तो समाज के हर वर्ग को फायदा होगा। जो लोग आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं सिर्फ उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिले। सिर्फ यही व्यवस्था इस समस्या का आधार हो सकती है न कि जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था।
—कुलदीप चंदेल, बिलासपुर (हि.प्र.)
ङ्म देश में पटेल, गुर्जर, जाट व कापू समुदाय की वकालत करने वाले कुछ नेता आरक्षण की हिंसक प्रतियोगिता को बढ़ाना देने में जुटे हुए हैं। आरक्षण का लाभ 'कब तक और किसे' जब तक इसकी सही तरह से व्याख्या करके ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक इसी तरह आरक्षण के नाम पर राजनीति होती रहेगी। आरक्षण के लाभ का उपयोग हिन्दू समुदाय को मजबूत बनाने के उद्देश्य से होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। आरक्षण की आड़ में राजनीति कर जातिगत विषमता को बढ़ावा दिया जा रहा है। आरक्षण की आग द्वारा समाज को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काकर राजनीति करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है। समाज को चाहिए कि वह ऐसे लोगों को अपना समर्थन न दे जो आरक्षण के नाम पर उन्हें बांटने की कोशिश करते हैं।
—हरिओम जोशी, चतुर्वेदीनगर भिण्ड (म. प्र.)
ङ्म भारत के अनेक राज्यों में आरक्षण के नाम पर राजनीति की जा रही है। कहीं पटेल, कहीं कापू तो कहीं जाट आरक्षण के नाम पर की जाने वाले आगजनी से राष्ट्र का ही नुक्सान हो रहा है। हरियाणा में जो हुआ, उसे किसी सूरत भी में सही नहीं ठहराया जा सकता। कुछ नेता जो सिर्फ सत्ता चाहते हैं, उन्हें आगजनी से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनका एकमात्र उद्देश्य अपना वोट बैंक मजबूत करना है, लेकिन आगजनी व तोड़फोड़ से होने वाले नुक्सान का खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ता है। लोगों को यह समझना चाहिए कि जिस सार्वजनिक संपत्ति को वे नुकसान पहुंचा रहे हैं वह उनकी ही है। सरकार को चाहिए वह कोई ऐसी ठोस नीति बनाए ताकि कोई फिर से जातिगत आरक्षण के नाम पर राजनीति न कर सके।
—डॉ. जसवन्त सिंह, कटवारिया सराय, नई दिल्ली
ङ्म संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को समान आजादी दी है। हर स्तर पर समस्याओं के समाधान के लिए लोकतांत्रिक संस्थाएं विद्यमान हैं। बावजूद इसके कुछ लोगों के भड़कावे में आकर जातिगत हिंसा की जाती है। वोट बैंक की घटिया राजनीति के कारण आज समाज जातियों में बंटा हुआ है। जाति आधारित आरक्षण ने इस सब में सबसे ज्यादा घी डालने का काम किया है। आरक्षण जाति आधार के बजाए आर्थिक आधार पर किया जाए तो बेहतर है। आरक्षण नीति की समीक्षा किए जाने की जरूरत है। सरकार को आरक्षण के संबंध में ठोस योजना बनाकर ऐसा कदम उठाना चाहिए ताकि समाज के किसी भी पक्ष को इससे हताशा न हो।
—राम प्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
ङ्म जाट आरक्षण पर 'अराजक दावेदारी' विषय पढ़ा। यह चिंताजनक विषय है। आज जबकि हरियाणा ने प्रौद्योगिकी एवं तकनीक के क्षेत्र में काफी आगे तक का सफर तय कर लिया है, ऐसे में जाट आरक्षण के नाम पर हुई आजगनी ने प्रदेश को दशकों पीछे धकेल दिया है। समाज में जातिगत वैमनस्य की दरारें और ज्यादा गहरी हो गई हैं। इतना सब होने के बाद भी कुछ कथित नेता राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे। वे इस मुद्दे को और संवेदनशील बनाकर राजनीति करने के नए-नए मौके तलाश रहे हैं। समाज के सभी वर्गों को ऐसी ओछी मानसिकता वाले नेताओं की घटिया राजनीति को, उनकी चालों को समझना होगा ताकि प्रदेश में फिर से ऐसी स्थिति पैदा न हो।
—भेरूलाल भोई, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)
ङ्म 'जेएनयू में क्या सुधार होना चाहिए', इस संबंध में पढ़ा। पिछले दिनों जेएनयू में देशविरोधी नारे लगाए गए। एक आतंकी को महान बताने की चेष्टा की गई। जेएनयू में जो हुआ उसे देखकर हर सच्चे भारतीय के मन में पीड़ा जरूर हुई होगी। मुझे लगता है, जेएनयू के पाठ्यक्रम में भारत के महापुरुषों का गौरवमय इतिहास पढ़ाए जाने की आवश्यकता है। यदि वहां के शिक्षक स्वयं ही राष्ट्रविरोधी विचारधारा में रचे बसे हैं तो छात्रों द्वारा इस प्रकार का प्रदर्शन करना कोई हैरानी की बात नहीं है। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया का जेल से छूटने के बाद इस तरह स्वागत किया गया मानो वह कोई बहुत महान कार्य करके लौटा है। ऐसे नेता जो जेएनयू प्रकरण को अभिव्यक्ति की आजादी बता रहे हैं उन्हें अपनी घटिया सोच को बदलने व देश के संविधान को फिर से पढ़ने की जरूरत है। देश के लोगों के लिए राष्ट्रवाद आस्था का विषय है। इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। जेएनयू व देश के किसी विवि. में फिर ऐसा न हो, इसके लिए ठोस रणनीति बनाने की जरूरत है।
—इन्दु मोहन शर्मा, राजसमंद (राजस्थान)
राष्ट्रवाद की परिभाषा परिवर्तनशील नहीं हो सकती। राष्ट्र के विरुद्ध किसी भी तरह की बयानबाजी, भड़काऊ भाषण राष्ट्रद्रोह ही है, लेकिन कुछ कथित बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को फिर से संविधान का अध्ययन करने की जरूरत है। इस तरह के बयानों का समर्थन करने वाले नेता व बुद्धिजीवी राष्ट्र की नींव को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। वे हमारे युवाओं के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। युवाओं को ऐसे लोगों की मंशा समझने की जरूरत है, इसलिए उन्हें चाहिए कि वे ऐसे कथित बुद्धिजीवियों के बहकावे में आकर कोई ऐसा कार्य न करें जो कि राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता हो। युवाओ को वर्तमान व भविष्य में सोच-समझकर कदम उठाने चाहिए।
—ठाकुर सूर्य प्रताप सिंह, कांडरवासा (म.प्र.)
जातिगत भेदभाव खत्म होना जरूरी
कोई भी घटना अचानक नहीं होती। उसके होने की आधारशिला बहुत पहले ही रखी जा चुकी होती है। हमारे मुंह से भी कोई बात अचानक नहीं निकलती। वह हमारे मन में चल रहे विचारों के अनुसार ही बाहर आती है। दरअसल हरियाणा में कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 2004 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद एक वक्तव्य दिया था कि वे जाट पहले हैं और मुख्यमंत्री बाद में। उन्होंने अपने इस कथन को मन, वचन और कर्म से निभाया भी। जाट समुदाय में इतना जातिवाद कभी नहीं था जितना भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आने के बाद पैदा हुआ। इन सब बातों से हटकर मनोहर लाल खट्टर सरकार ने लगातार प्रदेश हित में काम करना शुरू किया तो जाट समुदाय भी सरकार की प्रशंसा करने लगा लेकिन कुछ लोगों को यह चुभने लगा। उन्होंने लोगों को भड़काने का काम शुरू कर दिया। सार्वजनिक मंचों से बेतुकी बातें कही गईं। आरक्षण की आड़ में कई आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग भी सक्रिय हो गए। हरियाणा में जो कुछ हुआ, इसके लिए राजनीति का गिरता स्तर जिम्मेदार है। साथ ही वे लोग भी जो सिर्फ किसी भी तरीके से अपना वोट बैंक बढ़ाना चाहते हैं। चाहे जनता का कितना भी नुक्सान हो जाए, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। हरियाणा हो या फिर अन्य कोई प्रदेश, ऐसा कहीं नहीं होना चाहिए। भविष्य में ऐसा न हो इसके लिए समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा और जातिवाद के नाम पर लोगों को बांटने वालों का बहिष्कार करना होगा, ताकि समाज से जातिगत भेदभाव पूरी तरह खत्म हो सके और समरसता, बराबरी एवं भाईचारा चारों ओर फैल सके।
—अश्वनी हिन्दू, काठ मण्डी, महम जिला रोहतक, हरियाणा-124112
वेश बदला कार्य नहीं
संघ कार्य बदला नहीं, बदला थोड़ा वेश
आगे कदम बढ़ाएंगे, लिये नया परिवेश।
लिये नया परिवेश, नगर गांव पंचायत
भगवा झंडा फहरेगा हर घाटी पर्वत।
कह 'प्रशांत' जो जीवित है वह ही बदलेगा
मुर्दे का क्या, पड़ा-पड़ा केवल अकड़ेगा॥
—प्रशांत
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