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बाल चौपाल/क्रांति-गाथा
पाञ्चजन्य ने सन् 1968 में क्रांतिकारियों पर केन्द्रित चार विशेषांकों की शृंखला प्रकाशित की थी। दिवंगत श्री वचनेश त्रिपाठी के संपादन में निकले इन अंकों में देशभर के क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाएं थीं। पाञ्चजन्य पाठकों के लिए इन क्रांतिकारियों की शौर्यगाथाओं को नियमित रूप से प्रकाशित करेगा ताकि लोग इनके बारे में जान सकें। प्रस्तुत है 22 जनवरी 1968 के अंक में प्रकाशित चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह के साथी रहे श्री सदाशिवराव मलकापुरकर का संस्मरण
मास्टर रुद्रनारायण सिंह का जन्म शाहजहांपुर में सन् 1896 में हुआ। इनके पिता का नाम श्री नागेश्वर प्रसाद था। सन् 1920-21 के राष्ट्रीय आंदोलन के समय श्री रुद्रनारायण सिंह अपने वृद्ध पितामह के साथ झांसी आ गये और सरस्वती पाठशाला (राष्ट्रीय पाठशाला) में ड्राइंग मास्टर नियुक्त किये गये। वे उसी दिन से हम सबों के 'मास्टर साहब' हो गये। मास्टर साहब का शरीर सुंदर, सुडौल और शक्तिशाली था। स्वभाव इस प्रकार का था कि बालकों में बालक बनकर जब-तब दौड़ें, लंबी ऊंची कूद, पंजा-कलाई लड़ाना आदि सब प्रकार के खेलों में भाग लेते थे। खेलों का संचालन स्वयं ही करते थे। परिणामस्वरूप मास्टर साहब हम बालकों के लिए एक आदर्श हो गये।
क्रांतिकारी बनाने का उद्देश्य
खेल-कूद ही नहीं वरन् मास्टर साहब अपने घर चित्रकला, मूर्तिकला, फोटोग्राफी का कार्य करते और उन्होंने एक पैरेलेल बार भी लगा रखा था, जहां हम विद्यार्थियों को इनकी शिक्षा देते। शरीर तथा स्वास्थ्य निर्माण हेतु उपरोक्त बाह्य साधनों के पीछे उनका उद्देश्य था स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए सैनिक तैयार करना। अतएव उनका उपदेश राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रहता। सन् 1920-21 में सरस्वती पाठशाला राष्ट्रीय आंदोलन का केन्द्र था। पाठशाला के अधिकांश अध्यापकों के साथ मास्टर साहब को भी जेल जाना पड़ा। इसी आंदोलन के समय हम लोग (श्री वैशम्पायन, भगवानदास माहौर और मैं) मास्टर साहब के विद्यार्थी थे, जो स्वभावत: इनकी ओर आकृष्ट होकर क्रांतिदल में सम्मिलित हो गये। महात्मा गांधी द्वारा आंदोलन स्थगित करने पर उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी दल संगठित किया गया। उसकी ओर से श्री शचीन्द्रनाथ बख्शी झांसी में संगठनकर्ता नियुक्त हुए। अमर सेनानी श्री चंद्रशेखर आजाद उसी समय यहां आये। मास्टर साहब के द्वारा ही श्री बख्शी झांसी में क्रांतिकारी संगठन बनाने में सफल हुए।
आजाद के संरक्षक
मास्टर साहब पक्के कांग्रेसी राष्ट्रीय कार्यकर्ता थे किन्तु भीतर-भीतर देश के लिए मर मिटने वाले पक्के क्रांतिकारियों को तैयार करते रहे। काकोरी केस से संबंधित सभी क्रांतिकारी पकड़े गये सिवाय अमर सेनानी श्री चंद्रशेखर आजाद के, जिन्हें मास्टर साहब ने ओरछा के निकट साधु के छद्मवेष में छिपाकर रखा। इसके बाद झांसी में एक मोटर ड्राइवर श्री रामानंद के पास रखा। उनके परिचित ठाकुर नाहरसिंह दतिया तथा खनियाधाना नरेश श्री खलकसिंह जूदेव के भी आजाद अतिथि रहे, जहां मास्टर साहब के प्रबंध से क्रांतिकारियों को बंदूक चलाने की शिक्षा दी गई।
वे बहुगुणी थे। मास्टर साहब का बनाया हुआ युद्धरत रानी लक्ष्मीबाई का सुंदर मौल चित्र अभी उनके घर लगा है। झांसी में खंडेरा दरवाजे के बाहर, दौड़ते हुए घोड़े पर सवार रानी लक्ष्मीबाई का पुतला उन्हीं की कृति है। वीरता का भाव लिए ऐसा सुंदर चित्र अन्यत्र देखने में नहीं आता। गांधीजी की सीमेंट-कंक्रीट से बनी हुई तीन फुट ऊंची मूर्ति का सांचा भी उन्हीं का बनाया है। आज हमें जगह-जगह श्री चंद्रशेखर आजाद का चित्र दिखाई देता है जो मास्टर साहब की ही देन है। मुझे अच्छी तरह मालूम है कि इस फोटू को निकालने के लिए उन्हें आजाद को महीनों तक समझाना पड़ा। यदि मास्टर साहब को फोटू लेने में सफलता न मिलती तो आज आजाद का कोई चित्र न होता।
जब आजाद स्वयं उनके घर में सगे छोटे भाई बनकर छिपे होते तो बाहर मास्टर साहब खुफिया विभाग के इंस्पेक्टर से गरमागरम बात करते रहते- कहते, मिलने तो दो आजाद को, फौरन पकड़ा दूंगा- बोलो, इनाम कितना मिलेगा?
विनोदप्रिय
वे स्वभाव से बड़े विनोदी थे। अपने वार्तालाप से सदा दूसरों को हंसाया करते थे। मार्ग में जाते हुए चिंतित मनुष्य को छेड़कर प्रसन्न कर देते। कविता-शायरी में भी प्रवीण थे। और वह सब होती केवल मनोरंजनार्थ- उनके विचार में वह कविता या शायरी क्या, जिससे लोग हंसते नहीं। उदाहरण के लिए एक काले कलूटे कंजूस सेठ का वर्णन करते हुए उसकी तोंद की प्रशंसा में उन्होंने एक बार निम्न शब्द कहे- कभी तोंद से नहीं सेठजी आगे बढ़ने पाते थे। लाख बढ़ें पर गज भर उससे पीछे ही रह जाते थे।
मास्टर साहब गुणाकर थे। उनकी सबसे बड़ी देन है, श्री शचीन्द्रनाथ बख्शी द्वारा झांसी में क्रांतिकारी संगठन तैयार करना तथा वीर सेनानी श्री चंद्रशेखर आजाद को सुरक्षित रखना, जिन्हें पकड़ने के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर भी न पकड़ सका। झांसी नगर में कई महान पुरुष हो गये हैं। उनमें एक स्थान हमारे पूज्य मास्टर साहब श्री रुद्रनारायण सिंह का है। उनके पिता तथा पितामह को मैंने देखा है जो लगभग 90 वर्ष की आयु तक जीवित रहे। परंतु शोक है कि मास्टर साहब का कैंसर के कारण 62 वर्ष की अवस्था (10 मई 1958) में स्वर्गवास हो गया। उनका व्यक्तित्व निराला ही रहा। मरते दम तक विनोदप्रियता उन्हें घेरे रही। आज भी कभी-कभी, मेरे कान में उनकी आवाज सुनाई पड़ती है- ''सद्दू, पंजा लड़ाओगे?''
सदाशिवराव मलकापुरकर
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