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यदि हमने गुजरात में गोधरा कांड के बाद कार्रवाई नहीं की होती तो गुजरात जल्द ही दूसरा कश्मीर बन जाता।'' ये शब्द गुजरात पुलिस से सेवानिवृत्त हो चुके डीआईजी डी.जी. वनजारा के हैं। उनका कहना है, ''राष्ट्रहित हमेशा राजनीति से ऊपर होता है और राजनैतिक फायदे के लिए किसी को उसे नुकसान नहीं पहुचाना चाहिए।''
इशरतजहां मामले में वर्षों तक राजनीति का शिकार होते रहे वनजारा अमेरिका की जेल में बंद आतंकी डेविड हेडली द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुंबई न्यायालय में इशरत को आतंकी बताए जाने से मिली राहत के बाद फिर से सुर्खियों में हैं। इशरतजहां के एनकाउंटर को लेकर उन्हें तब की केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों का वर्षों सामना करना पड़ा। हेडली ने मुंबई न्यायालय में दिए अपने बयान में स्वीकार किया कि इशरत उन तीन आतंकियों में शामिल थी जो डीआईजी वनजारा की टीम के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए। इशरत के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद देश के कथित सेकुलरों ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेकर खूब हो हल्ला मचाया और मुठभेड़ में मारे गए लोगों को निर्दोष साबित करने में जुटे रहे। तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा गठित एसआईटी ने वनजारा को गिरफ्तार कर लिया। न्यायालय में मामला चलने के दौरान आठ वर्षों तक उन्हें जेल में रहना पड़ा। पिछले दिनों उन्हें गुजरात से दूर रहने की शर्त पर जमानत दी गई। उन्होंने कहा, ''हेडली की गवाही ने हमारी बात को सच साबित कर दिया है, यह राहत की बात है।'' हेडली की गवाही ने आईएसआई और पाकिस्तान के आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने की बात को न्यायालय के रिकॉर्ड में ला दिया है। हेडली 26/11 के हमले से पहले कई बार मुंबई आया और आईएसआई के निर्देश पर रेकी कर उसने लश्कर के आतंकियों के लिए नक्शा तैयार किया। वनजारा कहते हैं, ''इशरत को लश्करे-तैयबा ने प्रशिक्षण दिया था और जब वह मुठभेड़ में मारी गई तब वह आतंकी मिशन पर थी और उसे लगातार लश्कर से निर्देश मिल रहे थे। गुजरात पुलिस ने कुछ गलत नहीं किया। जो भी कार्रवाई की गई वह कानूनी थी और जनता की सुरक्षा के लिहाज से बिल्कुल सही थी। हेडली ने जो कहा उससे राहत मिली है। हमें और भारत के अन्य सुरक्षा प्रतिष्ठानों को लंबे समय से इस बारे में जानकारी थी, लेकिन न्यायालय के समक्ष हेडली की गवाही ने सारे तथ्यों को न्यायालय के रिकॉर्ड पर ला दिया है।'' यह पूछने पर कि जब कोई इशरत का समर्थन करता है तो वे क्या महूसस करते हैं, वनजारा ने कहा, ''यह बेहद दु:ख की बात है कि कुछ लोग केवल राजनैतिक फायदे के लिए आतंकियों का समर्थन करते नजर आते हैं। किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए राष्ट्रविरोधी काम करे।''
उन्होंने कहा, ''लोगों के जान माल और उनकी आजादी की रक्षा करना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है। यह सरकार और हमारे नेताओं की नाकामी है कि कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी के तौर पर रहने को विवश हैं। 1989 में कश्मीर में जब आतंकवाद चरम पर था तो बहुत से कश्मीरी पंडितों को मार दिया गया। उनकी जमीनें कब्जा ली गईं। उस समय सरकार की तरफ से कड़ी कार्रवाई न होने पर आतंकियों को लगा कि वे जो चाहे कर सकते हैं। गुजरात एक सीमावर्ती राज्य है, आतंकी गुजरात में भी ऐसा करने के मंसूबे पाल रहे थे। यदि हमने उस समय कड़ी कार्रवाई नहीं की होती तो गोधरा के बाद गुजरात भी कश्मीर बन गया होता। हमने केवल अपना संवैधानिक कर्तव्य ही पूरा किया।''
अध्ययनशील व्यक्ति हैं वनजारा
पिछड़े समुदाय से आने वाले वनजारा बेहद शांतचित्त व अध्ययनशील व्यक्ति हैं। उन्होंने गुजराती में कविता की तीन पुस्तकें, रण टंकार, सिंह गर्जना और विजयपथ लिखी हैं। उनकी चौथी पुस्तक जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। जेल में रहने के दौरान भी उन्होंने अपना समय बर्बाद नहीं किया बल्कि लगातार अध्ययन में जुटे रहे। उन्होंने जेल में रहते हुए नैतिक शिक्षा व अध्यात्म में एमएससी की डिग्री ली। जब भी कोई उनसे मिलता था तो वे कहते थे कि दलगत राजनीति को अलग रखकर केवल राष्ट्रहित के मुद्दों पर ही बात की
जानी चाहिए। राजेश प्रभु सालगांवकर
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