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भारतीय क्रिकेटर एक समय पूरे जीवन खेलकर भी इतना नहीं कमा पाते थे कि अपने जीवन को आसानी से जी सकें। वैसे तो क्रिकेट में 1990 के दशक से पैसा आना शुरू हो गया था। लेकिन एक दशक पहले आइपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) के आने के बाद तो क्रिकेट पर पैसों की ऐसी बरसात हुई है कि जिनको लंबी-चौड़ी रकम मिल रही है, उन्हें भी हैरत हो रही है। आज स्थिति यह है कि जिस खिलाड़ी ने कॅरियर की पहली सीढ़ी चढ़ना शुरू किया है, वह करोड़पति बन रहा है। आइपीएल के नवें सत्र की नीलामी ने तो कमाल ही कर दिया, कई युवा रातोरात करोड़पति बन गए। इनमें पवन नेगी, नाथू सिंह, दीपक हुडा, ऋषभ पंत, करुनल पंड्या और मुरुगन अश्विन के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। इन खिलाडि़यों ने आरोन फिंच और बोलैंड जैसे मंजे हुए क्रिकेटरों को भी पीछे छोड़ दिया। इन युवा करोड़पतियों में सबसे आगे पवन नेगी हैं। उन्हें दिल्ली डेयर डेविल्स ने 8.5 करोड़ रु. में खरीदा है और वह नीलामी में भारतीय खिलाडि़यों में सबसे ज्यादा धनराशि पाने वाले क्रिकेटर रहे।
क्या आइपीएल ने अच्छे खिलाड़ी निकाले हैं; यह बहस का मुद्दा हो सकता है पर उसने क्रिकेटरों को मालामाल कर दिया है, इससे शायद ही कोई असहमत हो। आइपीएल के करोड़पति युवा खिलाडि़यों की सूची में हर सत्र के साथ इजाफा हो रहा है। मजेदार बात यह है कि कई दिग्गज खिलाड़ी उतनी रकम हासिल नहीं कर पाते, जितनी कई बार एक युवा खिलाड़ी को मिल जाती है। इसकी वजह शायद आइपीएल का फार्मेट है। इस फार्मेट के हिसाब से हर फ्रेंचाइजी की मैच में खेलने वाली अंतिम एकादश में अधिकतम चार विदेशी खिलाड़ी और तीन अंडर-22 खिलाड़ी खिलाना जरूरी होता है, इसलिए टीमें अंडर-22 खिलाडि़यों को लेती हैं। असल में आइपीएल है ही युवाओं और कुछ अलग या विशेष करने वाले खिलाडि़यों का खेल। इसलिए टीमें ज्यादातर अंडर-19 खिलाडि़यों को लेने का प्रयास करती हैं, जिससे वह
उन्हें कम से कम दो-तीन साल खिला
सकें। इस वजह से ही काफी युवा खिलाड़ी सामने आ रहे हैं।
निस्संदेह, आइपीएल को देश में सर्वाधिक करोड़पति क्रिकेटर देने का गौरव हासिल है। पर क्या यह करोड़ों रुपए पाने वाले क्रिकेटर भारतीय टीम में खेलते नजर आते हैं; कहा नहीं जा सकता । पिछले साल ही केसी करियप्पा को कोलकाता नाइट राइडर्स ने 2.6 करोड़ रु. में खरीदा था। लेकिन वह 2015 के सत्र में कोई करिश्मा नहीं दिखा सके और केकेआर ने इस साल उन्हें रिलीज कर दिया। वह इस बार भी बिक तो गए हैं पर मात्र 80 लाख रु. में। उन्हें किंग्स इलेवन पंजाब ने खरीदा है।
आइपीएल नीलामी में कई बार ऐसा महसूस होता है कि फ्रेंचाइजी टीमें खिलाड़ी पर दांव उसकी गुणवत्ता के हिसाब से नहीं लगा रही हैं। पर वह किसी खिलाड़ी पर रकम इस हिसाब से लगाती हैं कि उनकी उपयोगिता टीम में कितनी है। पूर्व टेस्ट क्रिकेटर अशोक मल्होत्रा कहते हैं, ''आइपीएल में ज्यादातर ऑलराउंड क्षमता वाले या फिर कुछ हटकर एक्शन रखने वाले गेंदबाजों को लेने में वरीयता दी जाती है। ज्यादातर फ्रेंचाइजियों की नजर युवाओं पर होती है। इसी कारण रणजी में ढेरों रन बनाने वाले या फिर थोक में विकेट लेने वालों की तरफ फ्रेंचाइजियों की निगाह नहीं जाती। यही वजह है कि इस रणजी सीजन में शानदार प्रदर्शन करने वाले असम के पेस गेंदबाज कृष्णादास को लेने में किसी फ्रेंचाइजी ने दिलचस्पी ही नहीं दिखाई, वहीं नाथू सिंह को करोड़ों रु. दे दिए गए।''
इस सत्र की आइपीएल नीलामी में करोड़पति बने युवा खिलाडि़यों के बारे में जानना दिलचस्प होगा:-
पवन नेगी
किसी खिलाड़ी की तकदीर रातोरात कैसे बदलती है, नेगी इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। दो दिनों में ही वह करोड़पति क्रिकेटर बनने के साथ टीम इंडिया में भी शामिल हो गए। उन्हें भारत में अगले माह होने वाले टी-20 विश्व कप और इस माह के आखिर में होने वाले एशिया कप के लिए टीम में चुन लिया गया। नेगी मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं और उनके परिजन अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। लेकिन नेगी दिल्ली में सादिकनगर में रहकर ही पले-बढ़े हैं। उनकी शिक्षा डीपीएस मथुरा रोड में हुई। नेगी आइपीएल से 2011 से जुड़े हुए हैं। वह पहले दो साल दिल्ली डेयर डेविल्स और 2014 और 15 में चेन्नै सुपरकिंग्स से जुड़े रहे हैं। लेकिन इन चार सालों में वह ज्यादातर बेंच की शोभा बढ़ाते रहे और उन्हें सिर्फ तीन ही मैच खेलने का मौका मिल सका। 2014 की चैंपियंस लीग के फाइनल में कोलकाता नाइट राइडर्स के पांच विकेट निकालने से वह पहली बार सुर्खियों में आए। उन्होंने इस साल विजय हजारे ट्रॉफी के नौ मैचों में 173 रन बनाने के अलावा 16 विकेट लिए। पवन को इस नीलामी में मिली कीमत को उचित मानने में कठिनाई हो सकती है पर हर फ्रेंचाइजी की खिलाड़ी को जोड़ने की अपनी योजना होती है। असल में चेन्नै सुपरकिंग्स टीम का हिस्सा रहने की वजह से राइजिंग पुणे सुपरजायंट्स के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच स्टीफन फ्लेमिंग दोनों ही की नेगी को लेने में दिलचस्पी थी। उन्होंने पहले ही 30 लाख रु. बेस प्राइस वाले इस क्रिकेटर को 8 करोड़ रु. तक देने का इरादा बना लिया था। दिल्ली डेयर डेविल्स की भी उनमें दिलचस्पी होने की वजह से ही बोली 8.5 करोड़ रु. तक पहुंच गई। दिल्ली डेयर डेविल्स के सीईओ हेमंत दुआ कहते हैं, ''हां, यह बड़ी राशि है। पुणे भी उसे हर हाल में खरीदना चाहती थी, इससे उसकी क्षमता का पता चलता है। स्टीफन फ्लेमिंग चेन्नै में उसके कोच रह चुके हैं, जानते हैं कि वह क्या कर सकता है।''
नाथू सिंह
मुंबई इंडियंस द्वारा 3.2 करोड़ रु. में खरीदे गए नाथू सिंह की कहानी तो और भी दिलचस्प है। चार साल पहले एक फैक्टरी कर्मचारी भरत सिंह एक साहूकार के पास 10,000 रु. उधार लेने गए ताकि वह राजस्थान में किसी क्रिकेट अकादमी में अपने बेटे नाथू सिंह को डाल सकें। अब बेटे ने पिता को करोड़पति बना दिया है। नाथू सिंह पिछले अक्तूबर में ही राजस्थान रणजी टीम में शामिल हुए और दिल्ली के विरुद्ध मैच में उन्होंने सात विकेट निकालकर सभी को अपनी प्रतिभा से परिचित करा दिया। वह असल में नियमित तौर पर 140 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार निकालते हैं। अपनी इस गति से दिल्ली के निकाले सात विकेट में से कप्तान गौतम गंभीर का विकेट भी शामिल था। गंभीर द्वारा की गई तारीफ की वजह से ही उन्हें दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध बोर्ड अध्यक्ष एकादश में चुना गया और यही मौका था, जब टीमों की निगाह उनके ऊपर गई। तीन साल पहले तक नाथू सिंह गली-मोहल्ला क्रिकेट में साफ्ट बॉल से गेंदबाजी किया करते थे, तब एक खिलाड़ी ने कहा कि 'भैया आप बहुत तेज गेंद करते हैं, इसलिए क्रिकेट खेलें तो कोई आपको नहीं खेल पाएगा।' इस पर नाथू सिंह को सुराणा अकादमी में भर्ती कराने के लिए उनके पिता ने 10,000 रु. उधार लिए। पर दो माह में ही प्रशिक्षकों ने उनमें चमक देखी और राजस्थान अंडर-19 टीम में उनका चयन कर लिया गया। नाथू सिंह के पिता ने अकादमी की फीस तो भर दी, पर किट और जूते के लिए पैसे नहीं थे। शुरुआत में नाथू ने सीनियर खिलाडि़यों द्वारा छोड़े जूते पहने और फिर सीनियर खिलाडि़यों ने उसकी हरसंभव मदद की। बाद में एमआरएफ पेस अकादमी में जाने पर ग्लेन मैकग्रा ने उनके कौशल को मांजकर उन्हें शानदार गेंदबाज बना दिया और वह भारतीय टीम के भविष्य के तेज गेंदबाज माने जा रहे हैं।
ऋषभ पंत
ऋषभ पंत जोरदार खिलाड़ी हैं और उन्होंने पिछले दिनों ही अंडर-19 विश्व कप में सबसे तेज अर्द्धशतक जमाया और जिस दिन वे इस टूर्नामेंट में भारत के लिए पहला शतक बनाने वाले खिलाड़ी बने, उसके कुछ ही घंटे बाद उन्हें दिल्ली डेयर डेविल्स ने 1.9 करोड़ रु. में खरीद लिया। ऋषभ ने पिछले साल अक्तूबर में ही अपने रणजी करियर की शुरुआत की है और इतने कम समय में वह करोड़पति बन गए हैं। वह भी मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। रुड़की जैसे छोटे शहर में रहने की वजह से उनके पिता भी उन्हें डॉक्टर-इंजीनियर बनाना चाहते थे। पर बेटे के क्रिकेटर बनने की चाहत रखने पर वह जयपुर रहने चले गए ताकि उसे क्रिकेट की सुविधाएं मिल सकें। लेकिन अंडर-14 तक की क्रिकेट खेलने के बाद उन्हें लगा कि यहां बात बनने वाली नहीं है तो वह दिल्ली में तारक सिन्हा की अकादमी में आ गए। यहां आते ही उनकी प्रतिभा को सही दिशा मिली और इसका परिणाम सभी के सामने है। ऋषभ असल में ओपनिंग करने के साथ विकेटकीपिंग भी करते हैं और इसीलिए एडम गिलक्रिस्ट उनके आदर्श हैं। ऋषभ सहवाग की तरह खुलकर खेलने में विश्वास रखते हैं और यह बात वह अंडर-19 विश्व कप में नेपाल के खिलाफ 14 गेंद में अर्धशतक लगाकर साबित कर चुके हैं। इस नए करोड़पति क्रिकेटर का सपना देश के लिए खेलना है।
मुरुगन अश्विन
तमिलनाडु के लेग स्पिनर मुरुगन अश्विन ने इस साल सैयद मुश्ताक अली टी-20 टूर्नामेंट में छह मैचों में 5.52 के न्यूनतम रेट से 10 विकेट निकाले थे। इस प्रदर्शन के बाद वह जानते थे कि कोई न कोई फ्रेंचाइजी टीम इस आइपीएल सत्र में उन्हें लेगी जरूर पर उन्हें 4.5 करोड़ रु. में खरीदा जाएगा, यह बात उन्होंने सपने में भी नहीं सोची थी। एम. अश्विन को राइजिंग पुणे सुपरजायंट्स ने खरीदा है। एम. अश्विन का वैसे तो रविचंद्रन अश्विन से कोई ताल्लुक नहीं है। बस इतना जरूर है कि दोनों तमिलनाडु के हैं और दोनों ही शिवसुब्रमण्य नाडार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से ग्रेजुएट हैं। मुरुगन अश्विन उच्च मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, इस कारण उन्हें किसी खास कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। उनके पिता इला मुरुगन एचसीएल टेक्नोलॉजीज में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट होने के साथ-साथ लंबे समय से लेखन से भी जुड़े रहे हैं। अश्विन बचपन से ही क्रिकेट खेलने के शौकीन थे। इसलिए मां ने दर्जनभर गेंदें लाकर दे दीं। वह घर में खेलकर सामान तोड़ने लगे। अश्विन के एक चाचा ने लड़के में प्रतिभा देखकर उसे प्रोफेशनल कोचिंग दिलाने की सलाह दी। इस पर पिता वाइएमसीए के कोच सुरेश कुमार के पास ले गए। कोच पहले उसे लेने में झिझके फिर ज्यादा जोर देने पर ले लिया। अश्विन ने यहां क्रिकेट सीखने के बाद इंडिया पिस्टंस में नौ साल क्रिकेट खेली। वह पिछले साल तमिलनाडु टीम में शामिल हुए. वह आइपीएल नीलामी में अपने चयन को इस साल विजय हजारे ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन को कारण मानते हैं।
करुनल पंड्या
करुनल पंड्या इस सीजन के एक और करोड़पति क्रिकेटर हैं। उन्हें मुंबई इंडियंस ने दो करोड़ रु. में खरीदा है। भारतीय टीम में हाल ही में स्थान बनाने वाले हार्दिक पंड्या के वह छोटे भाई हैं। करुनल बताते हैं, ''मुंबई इंडियंस के राहुल सांघवी और किरण मोरे तथा दिल्ली डेयर डेविल्स के प्रवीण आमरे लगातार मेरी प्रगति की जानकारी लेते रहते थे। इसका मतलब है कि मैं उनकी योजना का हिस्सा था।'' करुनल ने भी भाई हार्दिक की तरह बचपन मुश्किलों में गुजारा है। असल में उनके पिता घर में कमाने वाले इकलौते थे। उनको दिल का दौरा पड़ने पर काम बंद होने से कमाई बंद हो गई। इन दिनों ही दोनों भाई वडोदरा में स्टेडियम में एक साथ अभ्यास करते थे। वह नाश्ते के लिए एक मैगी का पैकेट ले आते थे और स्टेडियम के माली से पानी गर्म कराकर उसमें मैगी बनाकर गुजारा किया करते थे। हार्दिक को खेलने के लिए थोड़े पैसे मिलने लगे थे पर दोनों भाई इतना उधार कर लेते थे कि वह रकम उसे चुकाने में खर्च हो जाती थी।
दीपक हुडा
दीपक हुडा 2014 और 2015 में राजस्थान रॉयल्स के लिए खेल चुके हैं पर ज्यादा मौके नहीं मिलने पर इस बार उनका बेसप्राइस 10 लाख रु. ही रखा गया था। हैदराबाद सनराइजर्स ने 4.2 करोड़ रु. में खरीदकर उनकी किस्मत चमका दी है। वैसे तो दीपक ने 2014 में अंडर-19 विश्व कप खेलने के दौरान ही अपनी बिग हिटर की छवि बना ली थी। वह ऑफ ब्रेक गेंदबाजी करने के अलावा खुलकर बल्लेबाजी करने में विश्वास रखते हैं। दीपक कहते हैं, ''आइपीएल नीलामी में मुझ पर बोली लगी, इस बात की खुशी है। मुझे कितने पैसे मिले यह मेरे लिए मायने नहीं रखता।'' दीपक की यह सोच ही उन्हें अन्य खिलाडि़यों से अलग करती है और उन्हें शिखर तक पहुंचा सकती है। दीपक रोहतक के रहने वाले हैं। वह असल में एक कबड्डी खिलाड़ी के बेटे हैं और पिता का कुछ सालों पहले वडोदरा तबादला हो जाने पर वह भी वडोदरा आ गए और इस रणजी टीम से ही पिछले सीजन में कॅरियर की शुरुआत करके 557 रन बनाकर अपनी धाक जमा दी। असल में बिग हिटर वाली क्षमता ने ही उन्हें करोड़पति बनाया है।
आइपीएल वास्तव में क्रिकेट का कम पैसों का खेल अधिक बन गया है। यहां नौसिखिए खिलाड़ी करोड़ों रु. में 'बिक' जाते हैं और बड़े, नामवर खिलाड़ी पीछे रह जाते हैं। इस फटाफट खेल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नए लेकिन महंगे खिलाडि़यों के एक शॉट, एक कैच या विपक्षी को सिर्फ एक बार बोल्ड करने पर स्टेडियमों को उत्साह से गूंजा देने वाले दर्शक बाहर निकलते हुए यह परवाह नहीं करते कि इनमें से कौन खिलाड़ी लंबे, कसौटी भरे अंतरराष्ट्रीय मैचों की दहलीज तक पहुंचेगा और 'सभ्य लोगों के खेल' में अपना नाम दर्ज कराने में समर्थ होगा। दर्शकों के लिए तो स्टेडियम में उनका वह क्षण ही सब कुछ है! -मनोज चतुर्वेदी
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