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बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आकर्षक पैकेज ठुकराकर एमएनएनआईटी इलाहाबाद और कुछ आईआईटी के प्रतिभाशाली इंजीनियर इसकी तुलना में कम पैकेज वाली सरकारी क्षेत्र की रक्षा परियोजनाओं को चुन रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नव उद्यमियों को प्रोत्साहन और स्टार्टअप्स जैसे अभियानों ने इस मानसिकता को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है
प्रमोद कुमार
मोतीलाल नेहरू नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद में इलेक्ट्रॉनिक शाखा के टॉपर्स में से एक 22 वर्षीय अभय सिंह सीमांत किसान परिवार से हैं। वे उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के तिरमासाहुन गांव के हैं। जब अभय छठी कक्षा में पढ़ रहे थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनकी मां श्रीमती विद्यांती सिंह, जो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं, अपने बेटे को बड़े वेतन वाली नौकरी दिलाने की आकांक्षा रखती थीं। अपनी मां के सपनों को साकार करने के लिए अभय सिंह ने तीन वर्ष पूर्व एमएनएनआईटी में प्रवेश लिया। मेधावी छात्र होने के नाते अच्छे अंक पाकर अभय को आसानी से किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी की कमी नहीं थी, लेकिन उन्होंने केवल प्रतिष्ठित रक्षा परियोजनाओं के क्षेत्र में ही कोशिश की और वे तुरंत चुने
भी गए।
ऐसा ही एक दूसरा उदाहरण विशाल अजमेरा का है जिसका परिवार मूल रूप से जयपुर का रहने वाला है, लेकिन उनका जन्म एवं लालन-पालन शिलांग, मेघालय में हुआ। उन्होंने तीन साल पहले एमएनएनआईटी की मैकेनिकल शाखा में प्रवेश लिया। वे अपनी शाखा के टॉपर्स में से एक हैं। जिस रक्षा परियोजना को अभय ने चुना है विशाल ने भी उसे ही चुना है। वे कहते हैं, ''शुरू से ही मेरा सपना था कि मैं भारतीय वायुसेना से जुड़ूं, इसलिए मैंने उसी की तैयारी की। मेरी कभी भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुड़ने की इच्छा
नहीं रही।''
अभय और विशाल अकेले ऐसे नवोदित इंजीनियर नहीं हैं, बल्कि एमएनएनआईटी इलाहाबाद में और भी कई छात्र हैं जिन्होंने शुरू में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में 11 से 12 लाख रु. प्रतिवर्ष के पैकेज को चुना, लेकिन बाद में कम पैकेज पर वे कुछ रक्षा परियोजनाओं से जुड़ गए। युवा पीढ़ी की सोच में आया यह परिवर्तन क्या एक बडे बदलाव का संकेत है? एमएनएनआईटी, इलाहाबाद में इलेक्ट्रॉनिक शाखा के छात्र और प्लेसमेंट कोऑर्डिनेटर सिद्धांत वाजपेयी कहते हैं, ''हमारे चारों ओर मौजूद परिवेश निश्चित रूप से हमारी सोच को प्रभावित करता है। जब से केन्द्र में सत्ता और नेतृत्व बदला है तब से एक सकारात्मक माहौल सब तरफ दिखाई दे रहा है। छात्र भी महसूस करते हैं कि उन्हें अपनी बुद्धि और ऊर्जा को देश के लिए लगाना चाहिए न कि किसी विदेशी कंपनी के लिए। केवल रक्षा परियोजनाओं में ही नहीं, बल्कि कई छात्रों ने भारतीय वैज्ञानिक उपक्रमों जैसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) आदि के बारे में भी गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया है। हाल ही में बीएआरसी की टीम हमारे परिसर में आई तो छात्रों ने इसमें काफी रुचि दिखाई।''
एक समय था जब युवा बड़े पैकेज की चाहत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए लालायित रहते थे, लेकिन अब उन्होंने अपने देश की परियोजनाओं को वरीयता देनी शुरू कर दी है। स्टार्टअप्स और उद्यमिता प्रोत्साहन ने उन्हें एक नई दृष्टि प्रदान की है और उनमें एक नई आशा भी जगाई है। एमएनएनआईटी के ही प्रोडक्शन एण्ड इण्डस्ट्रियल इंजीनियरिंग शाखा के छात्र आदित्य अग्रवाल, जो अपने विभाग के प्लेसमेंट कोऑर्डिनेटर भी हैं, कहते हैं, ''आज देश में ऐसा माहौल दिखाई पड़ता है जो किसी भी नवयुवक अथवा नवयुवती के विचारों और सुझावों को क्रियान्वित करने में समर्थ है। इसलिए जो युवा नौकरी मांगता फिरता था वह अब स्वयं को 'नौकरी देने वाला' बनाना चाहता है।'' आर. एण्ड डी. क्षेत्र पर और अधिक ध्यान देने की बात करते हुए आदित्य कहते हैं, ''देश में बड़ी संख्या में ऐसे प्रतिभाशाली छात्र हैं जो रक्षा क्षेत्र से जुड़ना चाहते हैं लेकिन इन क्षेत्रों में संभावनाएं बहुत कम हैं इसलिए चाहते हुए भी वे यहां अवसर नहीं पा सकते। इसी तरह कई ऐसे छात्र हैं जो देश में आर एण्ड डी परियोजनाओं से जुड़ना चाहते हैं लेकिन वहां भी बहुत थोड़ी मात्रा में अवसर हैं। आज भारत कई देशों से आण्विक ईंधन प्राप्त करता है लेकिन थोरियम अनुसंधान को प्रोत्साहन देने पर ज्यादा ध्यान नहीं देता, जो हमारे देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और यूरेनियम का एक अच्छा विकल्प भी हैं।''
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विषय में बदलती यह मानसिकता केवल एमएनएनआईटी तक ही सीमित नहीं हंै। आईआईटी कानपुर के चार टॉपर्स-तीन छात्रों और एक छात्रा को दिसम्बर 2015 में बहुराष्ट्रीय कंपनियों से प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपये के पैकेज का प्रस्ताव मिला। बताया जाता है कि उनमें से दो कम वेतन पर कहीं और चले गए और शेष दो ने उच्च शिक्षा जारी रखने का विकल्प चुना। आईआईटी कानपुर में प्लेसमेंट सेल के चेयरमैन प्रो. दीपू फिलिप के अनुसार एक छात्रा और एक छात्र ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि वे उनके स्वभाव से मेल नहीं खाते और वे अपनी नौकरी से प्रोफेशनल संतुष्टि चाहते हैं। उनमें से दो अन्य ने एक छोटी कंपनी में 50 लाख रुपए प्रतिवर्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
एक और मजेदार प्रसंग है- मूल रूप से चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लेकिन बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित 24 साल के डॉ. रोमन सैनी ने आईएएस की नौकरी छोड़कर अभावग्रस्त बच्चों के लिए मुफ्त ई-ट्यूटर का कार्य शुरू कर दिया। अब वे 'अनएकेडेमी' के माध्यम से यूट्यूब पर डॉक्टर, सिविल सर्वेंट, कम्प्यूटर प्रोग्रामर्स और यहां तक कि विदेशी भाषा में विशेषज्ञता की चाह रखने वाले छात्रों के लिए लेक्चर अपलोड करते हैं। उनके 'अनएकेडेमी' से जुड़े 10 अभ्यर्थियों ने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और 1.1 करोड़ से भी ज्यादा अभ्यर्थी उनके वीडियो को देखते हैं। उनके 'अनएकेडेमी' मंच के 20,000 ट्विटर फॉलोअर और 64,000 फेसबुक लाइक करने वाले हैं। वे कहते हैं, ''मेरा जोर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने पर है।''
एमएनएनआईटी इलाहाबाद में प्रशिक्षण एवं प्लेसमेंट विभाग के प्रभारी प्रो. राजीव त्रिपाठी उद्यमिता के प्रति छात्रों की बदलती मानसिकता का विश्लेषण करते हुए कहते हैं, ''छात्र दूसरे और तीसरे सेमेस्टर से ही उद्यमिता और स्टार्टअप्स के विषय में सोचना शुरू कर देते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हमने संस्थान में एक 'इंटरप्रीन्योरशिप सेल' स्थापित किया है। उन्हें प्रेरित करने के लिए हम प्रतिवर्ष इंटरप्रीन्योरशिप समिट का भी आयोजन करते हैं। पहले के सफल छात्रों को भी उसमें आमंत्रित किया जाता है, जहां वे छात्रों के साथ अपने अनुभव साझा करते हैं। ऐसी ही एक समिट हाल ही में एमएनएनआईटी परिसर में 29 से 31 जनवरी तक आयोजित की गई। इससे छात्रों में उद्यमिता के प्रति आकर्षण बढ़ा है।''
लेकिन प्रो. त्रिपाठी ऊर्जा और ढांचागत क्षेत्र में रोजगार के घटते अवसरों से भी चिंतित हैं। ''प्लेसमेंट के दौरान हमने पाया है कि ढांचागत क्षेत्र में ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं। यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है कि सिविल इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रीकल के छात्रों का प्लेसमेंट किस प्रकार करवाया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने परिसर में आना बंद कर दिया क्योंकि अब वे केवल गेट स्कोर वालों को ही प्राथमिकता देते हैं। लेकिन इसके साथ ही परिसर में इन शाखाओं में निजी क्षेत्र की कंपनियों ने भी प्लेसमेंट के लिए आना बंद कर दिया है। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि एक ओर तो हम ढांचागत और ऊर्जा क्षेत्र में विकास की बात करते हैं और दूसरी ओर इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम दिखाई
पड़ते हैं।''
आईएएस कोचिंग के प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान 'कैरियर प्लस' के निदेशक अनुज अग्रवाल पूरे माहौल पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, ''नीति निर्माताओं और संस्थानों दोनों की मानसिकता में बदलाव दिखाई दे रहा है। स्टार्टअप्स, इंटरप्रीन्योरशिप, इनोवेशन और आर एण्ड डी के माध्यम से सरकार ने इसके पक्ष में माहौल उपलब्ध करवाया है, जो पूर्ववती सरकारों में नदारद था। यदि यह रुझान दो-तीन साल और जारी रहा तो निश्चित रूप से देश में एक बड़ा परिवर्तन दिखायी देगा। लेकिन इसमें कई व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं। इस बदले हुए परिदृश्य में कई छात्र भारतीय कंपनियों अथवा सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों में काम करना चाहते हैं लेकिन इसमें रोजगार की संभावनाएं बहुत सीमित हैं। सरकार को चाहिए कि वह सरकारी क्षेत्र में रोजगार के और अधिक अवसर बढ़ाए।''
एमएनएनआईटी अथवा एनआईटी कानपुर के ये रुझान बदलाव के साक्षी हैं। बेशक इन्हें अभी पूरे देश पर लागू नहीं किया जा सकता लेकिन यह सच है कि देश में बदलाव का माहौल है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्टार्टअप्स को इसी प्रकार प्रोत्साहित किया जाता रहा तो अच्छे दिन अब दूर नहीं हैं।
''मैं देश के लिए काम करना चाहता हूं''
एमएनएनआईटी इलाहाबाद की इलेक्ट्रॉनिक शाखा के टॉपर्स में से एक अभय सिंह ऐसे छात्र हैं जिन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लुभावने प्रस्ताव ठुकराकर अपने देश के एक प्रतिरक्षा उपक्रम को चुना। पाञ्चजन्य से बातचीत में उन्होंने बताया कि अब देश में स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। सरकार ने नीतियों और अनुदान नियमों में लचीलेपन के साथ कुछ सकारात्मक बदलाव किए हैं। इस बदलाव के सुखद परिणाम कुछ समय बाद दिखाई पड़ेंगे।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रस्ताव ठुकराकर रक्षा उपक्रम से जुड़ने का विकल्प आपके मन में क्यों आया?
इसका प्रमुख कारण यह है कि मैं अपने ज्ञान और कौशल के माध्यम से देश की सेवा करना चाहता था। रक्षा क्षेत्र के प्रति आकर्षण इसलिए भी था क्योंकि यह हमें ्रसमय के साथ चलने, अच्छी तरह सीखने और जानने के अनुभव उपलब्ध कराता है। नौकरी के साथ यह भी जरूरी है कि काम करने वाली कार्यशक्ति को प्रतियोगी माहौल के साथ चलने का वातावरण भी उपलब्ध हो। मेरे मामले में अंत:प्रेरणा प्रमुख थी, जिसने मुझे देश सेवा के लिए प्रेरित किया। वह प्रेरणा थी- सीखने के साथ देश सेवा का भाव। इसलिए मेरे लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बजाय रक्षा उपक्रमों का चयन ज्यादा सही था।
आप देश के लिए क्या करना
चाहते हैं?
मैं एक ऐसे परिवार से संबंध रखता हूं जहां माना जाता है कि व्यक्ति समाज और संस्कृति से प्रत्येक चीज सीखता है और आखिर में सेवा के माध्यम से समाज को उसके दाय का भुगतान करता है। इसलिए मैं भी अपने देश के लिए कार्य करना चाहता हूं चाहे यह किसी भी रूप में संभव हो। ऐसा करके मैं अपने देश के विकास में एक छोटा- सा योगदान करना चाहता हूं।
अक्सर कहा जाता है कि भारतीय कंपनियां अथवा सरकारी उपक्रम बेहतर कार्य स्थिति और नवोन्मेश का सकारात्मक वातावरण उपलब्ध कराने में असमर्थ रहते हैं। क्या आज आपको इस माहौल में कुछ बदलाव महसूस होता है?
निश्चित रूप से सरकारी क्षेत्र में अब सरकार द्वारा कई नीतियों और अनुदान नियमों में लचीलापन और बदलाव लाने से बहुत कुछ बदल रहा है। निकट भविष्य में ये सब चीजें पूरे परिदृश्य को बदलती हुई दिखाई देंगी। यदि हम रक्षा क्षेत्र की बात करें तो पिछले सात-आठ वर्षों में लगभग 250 अरब रुपये का निवेश हो चुका है। इसके बावजूद हमारी 60 प्रतिशत आवश्यकताएं आयात से पूरी की जाती हैं। लेकिन यदि संयुक्त उपक्रम लगाए जाएं और विदेशी निवेश उपलब्ध करवाए जाएं तो यह वर्तमान कार्य प्रणाली की स्थिति और ढांचागत तंत्र को और अधिक सशक्त एवं परिणामदायी बनाने में सफल सिद्ध होगा।
ल्ल आप उन प्रोफेशनल युवाओं को क्या सुझाव देंगे जो आज भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पीछे भाग रहे हैं?
देखिए, यह किसी भी व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। हम सभी जानते हैं कि आज प्रतिभा पलायन सबसे बड़ी समस्या है और इसके लिए जिम्मेदार बड़े कारकों में ढांचागत विकास और सुविधाओं का अभाव है। यही चीजें तय करती हैं कि व्यक्ति को नए विचार देने हैं अथवा एक सुविधापूर्ण जीवन शैली में जीना है। लेकिन अब वातावरण बदला है। देश के अंदर ही अनेक अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। एक व्यक्ति जो कार्य करने में विश्वास करता है, वह अब सरकारी क्षेत्र में भी इन सुविधाओं को आसानी से पा सकता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले बड़े पैकेज की तुलना में सरकारी क्षेत्र में भी वेतन सुविधा और रोजगार सुरक्षा तुलनात्मक रूप में कम नहीं है। इस सबके साथ अपने देश में ही काम करने के संतोष का भी अपना आनंद है।
रोजगार और उद्यमिता के विषय में छात्रों की मानसिकता में अब एक स्वप्रेरित बदलाव दिखाई पड़ रहा है। इस बदलाव को देखते हुए तथा उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए हम संस्थान में प्रति वर्ष इंटरप्रीन्योरशिप समिट आयोजित करते हैं।
-प्रो. राजीव त्रिपाठी
प्रभारी प्रशिक्षण व प्लेसमेंट, एमएनएनआईटी, इलाहाबाद
किसी भी युवा के दिमाग में उपज रहे नये विचार को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए आज देश में अनुकूल माहौल हैं। इसीलिए आज युवा नौकरी मांगने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले उद्यमी बनना चाहते हैं ।
-आदित्य अग्रवाल
छात्र, प्रोडक्शन एण्ड इंडस्ट्रियल ब्रांच
तथा रिप्लेसमेंट कोऑर्डिनेटर
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