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माओवादियों के एक अंदरूनी दस्तावेज के अनुसार, उनके दुनिया भर में 21 संगठनों के साथ वैचारिक संबंध हैं। ये संगठन पेरू से न्यूजीलैंड तक फैले हैं
पी़ वी़ रमन्ना
सीपीआई (माओवादी) या माओवादियों ने पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लूजी) के तौर पर अपने उदय के दिनों से ही विदेशों में आपसी और वैचारिक संबंध स्थापित कर लिए थे। प्रत्येक पहली मई को, वर्कर्स पार्टी ऑफ बेल्यिजम (डब्ल्यूपीबी/पीटीबी) ब्रूसेल्स में अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट सेमीनार का आयोजन करती है। माओवादी कभी इस सेमीनार में हिस्सा भी ले चुके हैं। दरअसल, माओवादी प्रतिनिधियों ने जर्मनी, नेपाल आदि अन्य देशों में भी ऐसी बैठकों में शिरकत की थी या उसके सह-आयोजक रहे थे। इसके अतिरिक्त, जाने-माने माओवादी विश्लेषक के़ श्रीनिवास रेड्डी ने एक बार बताया था कि डब्ल्यूपीबी के बर्ट दि बेल्डर ने 1996 में उत्तरी तेलंगाना की यात्रा की थी, जो माओवादियों का प्रमुख गुरिल्ला क्षेत्र था। उन्होंने यूरोपीय मीडिया में माओवादी मुहिम की प्रशंसा में लिखे लेखों में उसे 'उनके द्वारा देखे गए दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पीपुल्स मूवमेंट' की संज्ञा दी थी।
राज्यसभा में इस संबंध में एक प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने 14 मार्च, 2012 को कहा था, 'माओवादियों ने बेल्जियम एवं जर्मनी में सेमिनारों/वार्ताओं में शिरकत की थी।'19 अगस्त 2007 को गिरफ्तार किए गए सीपीआई (माओवादी) की महाराष्ट्र राज्य समिति के सदस्य वर्नन गोंजाल्वेस उर्फ प्रदीप उर्फ विक्रम ने अंतरराष्ट्रीय कम्युनिज्म सेमीनार में 1996 में 'आर्म्ड स्ट्रगल इन इंडिया' नाम से एक पत्र पढ़ा था। सीपीआई (माओवादी) के संबंध फिलिपींस, तुर्की आदि की माओवादी संस्थाओं से भी हैं। मंत्री ने राज्यसभा में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा था, 'सीपीआई (माओवादी) द्वारा राष्ट्र के खिलाफ कथित पीपुल्स वार को जर्मनी, फ्रांस, हॉलैंड, तुर्की, इटली आदि देशों के कई संगठनों का सहयोग प्राप्त है।'
आंध्र प्रदेश के एक वरिष्ठ गुप्तचर अधिकारी के अनुसार, सितंबर 2009 को नई दिल्ली से गिरफ्तार सीपीआई (माओवादी) के पोलित ब्यूरो के सदस्य कोबाड घंडी, जो इस समय तिहाड़ जेल में हैं, समविचारी संगठनों व व्यक्तियों से संबंध स्थापित करने के लिए 2005 में यूनाइटेड किंग्डम (यूके) और कनाडा की यात्राएं कर चुके हैं। उन्होंने पांच सप्ताह तक कनाडा के टोरंटो, वेंकूवर और एडमंटन की यात्राएं की थीं और यूके में एक सप्ताह के दौरान वह लंदन, बर्मिंघम और ब्रेडफोर्ड गए थे। उन्होंने इस दौरान 400 सीडी और माओवादी प्रचार वाली दो फिल्मों- 'ब्लेजिंग ट्रेल' और 'भूमकाल' एवं कुछ दस्तावेज भी वितरित किए थे। कोबाड सीपीआई (माओवादी) के सेंट्रल प्रोपेगेंडा ब्यूरो (सीपीबी) और उसकी संपादकीय समिति के प्रमुख भी रहे हैं। अपनी विदेश यात्राओं के दौरान कोबाड ने 2,06,000 रुपये का चंदा भी इकट्ठा किया था।
माओवादियों के एक अंदरूनी दस्तावेज के अनुसार, उनके दुनिया भर में 21 संगठनों के साथ वैचारिक संबंध हैं। ये संगठन पेरू से न्यूजीलैंड तक फैले हैं। इनमें से कुछ के नाम हैं: शाइनिंग पाथ (पेरू), रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी (संयुक्त राज्य अमेरिका), माओइस्ट कम्युनिस्ट पार्टी (इटली), मार्क्सस्टि-लेनिनिस्ट पार्टी (जर्मनी), रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी (कोलंबिया), टीकेपी-एमएल (तुर्की) एवं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ फिलिपींस।
यह समूह कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ माओइस्ट पार्टीज एंड ऑर्गेनाइजेशंस ऑफ साउथ एशिया (सीसीओएमपीओएसए) का भी सदस्य है। सीसीओएमपीओएसए की स्थापना 1 जुलाई 2001 को हुई थी और 21 जुलाई 2001 को एक प्रेस विज्ञप्ति द्वारा इसके गठन की घोषणा की गई थी। अभी तक सीसीओएमपीओएसए के पांच सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं, इनमें से अंतिम 2011 मार्च को आयोजित हुआ था। वस्तुत: पांचवें सम्मेलन के अंत में 23 मार्च 2011 को एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई थी। इस विज्ञप्ति पर नेपाली माओवादी और सीसीओएमपीओएसए की स्थायी समिति के संयोजक दिल बहादुर के हस्ताक्षर थे। विज्ञप्ति में कहा गया था, 'इस सम्मेलन का आयोजन तब किया गया है जब भारत की नई लोकतांत्रिक क्रांति के समक्ष भारत सरकार द्वारा 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि 'जनता के विरुद्घ युद्ध' को पछाड़ने वाली शुरुआती सफलताएं राजनीतिक एवं सैन्य तौर पर मिली हैं, जिसके बाद क्रांतिकारियों को बेहतर परिस्थितियां भी उपलब्ध हुई हैं, परंतु उनके समक्ष समस्याओं की गंभीरता जस की तस रही हैं।' नेपाली माओवादियों के अंतरराष्ट्रीय विभाग के प्रमुख चंद्र प्रसाद गजुरेल उर्फ गौरव एवं तुर्की की टीकेपी-एमए के ओकेन ने छत्तीसगढ़ में बस्तर के माओवादी क्षेत्र अबूझमाड़ के जंगलों में आयोजित पीडब्ल्यूजी की 9वीं कांग्रेस में शिरकत की थी।
1995 में नेपाली माओवादियों ने अपने पीपुल्स वार की शुरुआत की थी। पीडब्लूजी के एक नेता सुरेश एवं नेपाली माओवादी प्रचंड ने इस दौरान 'भारतीय विस्तारवाद एवं प्रभुत्व' की आलोचना करने वाले एक संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर भी किए थे। इस संबंध में पहला आधिकारिक वक्तव्य एमएचए की 2003-2004 की वार्षिक रिपोर्ट में जारी किया गया था। पीडब्ल्यूजी के अपने पिछले स्वरूप के दौरान माओवादियों ने इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉॅयर्स (आईएपीएल) एवं इंटरनेशनल लीग ऑफ पीपुल्स स्ट्रगल (आईएलपीएस) की भी नींव रखी थी।
इसके अतिरिक्त, माओवादी ने समान वैचारिक संगठनों के साथ मुंबई रेजिस्टेंस 2004 (एमआर 2004) के एक सम्मेलन का आयोजन किया था। भारतीय समूहों के अतिरिक्त, एमआर 2004 में 24 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने शिरकत की थी। आयोजन के प्रतिभागियों व विशाल जन रैली में लोगों को बालाघाट, गोंदिया एवं गड़चिरोली जिलों से इकट्ठा किया गया था जो क्षेत्र मुंबई के निकट हैं। और इन्हीं क्षेत्रों को माओवादी अपना गुरिल्ला जोन बताते हैं। इसके अलावा, श्रीलंका के लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ पूर्णत: अवसरवादी एवं विचारधाराहीन संबंध भी हैं। बेशक ये संबंध पुराने हैं और सरकार द्वारा इनकी परख भी हो चुकी है। 20 अगस्त 1991 को आंध्र प्रदेश के तत्कालीन गृहमंत्री एम़ वी़ मायसूरा रेड्डी ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि पीपुल्स वार ग्रुप (माओवादियों का पूर्व स्वरूप) ने 'लिट्टे से 20 एसएलआर एवं 60 एके 47 राइफलें प्राप्त की हैं।' यही नहीं, आंध्र प्रदेश की नक्सलवाद विरोधी विशेष इंटेलिजेंस शाखा के पूर्व प्रमुख ने अप्रैल 2004 के एक साक्षात्कार में बताया था कि, 'श्रीलंका के पूर्व लिट्टे काडर ने 1989-90 में पीडब्ल्यूजी के काडर को जमीनी सुरंगों की तकनीक का प्रशिक्षण भी दिया था।' ये सभी बाह्य संबंध एक महत्वपूर्ण लक्ष्य को साधते हैं। इनकी मदद से माओवादियों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहचान और प्रसिद्धि मिली है।
आंतरिक संबंध
उल्फा : 12 मई, 2012 को एक मीडिया रिपोर्ट में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा था कि वह लंबे समय से माओवादियों एवं उल्फा के बीच संबंधों पर बात करते रहे हैं। उन्होंने कहा था, 'इसमें शक नहीं कि अब परेश बरुआ को भी माओवादियों की ओर से नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ है, जो इस गठजोड़ को साबित करने के लिए काफी है।'
राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ लोग जो पहले उल्फा के लिए काम करते थे, बाद में माओवादियों से जा जुड़े थे और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। 17 नवंबर 2011 की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी, जो बाद में पश्चिम बंगाल के लारगढ़ में मारा गया था, ने असम की यात्रा की थी और वहां वह बोंगइगांव या कोकराझार जिले में गया था। पीएलए : 22 अक्तूबर 2008 को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर/रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) ने सीपीआई (माओवादी) के साथ मिलकर एक तीन सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
बस्तर में पुलिस के साथ झड़पों के दौरान माओवादी गुरिल्ला लड़ाकों के साथ मंगोल शक्ल-सूरतों वाले लोग भी दिखाई दिए हैं। एनआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया था कि 2008 में बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में पीएलए का आर्नल्ड सिंह उर्फ बीकन प्रशिक्षकों के एक दल का नेतृत्व कर रहा था। मणिपुर के बागी समूह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) एवं सीपीआई (माओवादी) के बीच संबंध उससे कहीं गहरे हैं जितने कि एक समय राष्ट्रीय सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों को आशंका थी। पीएलए के तीन कार्यकारियों और एक माओवादी की गिरफ्तारी के बाद नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) के अफसरों के पास इस बात के प्रमाण हैं कि दोनों दलों के बीच गत छह वषार्ें से संबंध हैं और दोनों के शीर्ष नेताओं के एक दूसरे के साथ निजी संपर्क भी रहे हैं।
जांचकर्ता यह जानकर हैरान रह गए, जब उन्हें पता चला कि सीपीआई (माओवादी) के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने 23 मई 2009 को दंडकारण्य स्थित एक माओवादी कैम्प में संयुक्त कार्यनीति के लिए पीएलए के तीन प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में पार्टी के महासचिव गणपति, पूर्वी ब्यूरो सचिव प्रशांत बोस, जो विद्रोही समूह का दूसरा कमान प्रमुख भी है, उत्तरी क्षेत्र के ब्यूरो प्रमुख जनार्दन एवं मिलिट्री विंग प्रमुख प्रकाश शामिल थे।
पीएलए के तीन शीर्ष कार्यकारियों, विदेशी मामलों के प्रमुख एऩ दिलीप सिंह उर्फ वंग्बा, सेंजम धीरेन सिंह उर्फ रघु एवं आर्नल्ड सिंह उर्फ बीकन के खिलाफ दायर चार्जशीट में एनआईए अधिकारियों ने दावा किया था कि 2006 से दोनों संगठन, एक-दूसरे के साथ बेहतर संबंध रखने हेतु कोलकाता के एक दफ्तर से अपना कार्य-व्यापार चला रहे थे। गुवाहाटी में दायर 24 पृष्ठ की चार्जशीट में कहा गया था कि दिलीप सिंह एवं उनके दल के पास माओवादियों के साथ संबंध बनाए रखने का जिम्मा था।
एनआईए अफसरों ने दावा किया कि दंडकारण्य की बैठक के बाद वरिष्ठ माओवादी नेता कॉमरेड आलोक ने 2009 में म्यांमार के सगेंग डिविजन में स्थित एक पीएलए कैम्प में पीएलए प्रमुख इरेंगबम चरन सिंह से भेंट की थी। माओवादी पार्टी सूत्रों ने इस मुलाकात की पुष्टि की ओर ध्यान दिलाया कि मारा गया माओवादी पोलित ब्यूरो नेता कोटेश्वर राव म्यांमार में उनका गुप्तचर था, जहां वह कामरेड प्रदीप के नाम से उल्फा प्रमुख परेश बरुआ से भी मिला था। हालिया वषार्ें में परेश बरुआ म्यांमार के एक कैंप में रहता है और उसने भी माओवादियों से बैठकों की पुष्टि की है, जिस दौरान उसने कार्यप्रणाली सहयोग पर विमर्श किया था।
एनआईए चार्जशीट में कहा गया है कि धीरेन एवं आर्नल्ड पर कोलकाता दफ्तर चलाने की जिम्मेदारी थी, जिसके जरिये माओवादियों ने अत्याधुनिक कम्युनिकेशन उपकरणांे के एक जखीरे के लिए पीएलए को 50 लाख रुपये की राशि भी दी थी। इस राशि को मिजोरम में धीरेन ने प्राप्त किया था। एनआईए अफसरों के अनुसार इस लेनदेन के प्रमाण उन्हें प्राप्त हुए हैं, परंतु ऐसे कई अन्य लेन-देन भी हुए होंगे जिनके बारे में पता लगाया जाना बाकी है।
चार्जशीट में कहा गया है कि दिलीप के निर्देशों के अनुसार, 29 जुलाई को पीएलए के तीन प्रशिक्षकों ने गुवाहाटी में आर्नल्ड से मुलाकात की थी। वह वहां एक गेस्टहाउस में रुका था और दो दिन बाद वह कोलकाता पहुंचा था। चारों आर्नल्ड के टॉलीगंज स्थित किराये के घर पर पहुंचे थे जिसका इंतजाम जयदीप भट्टाचार्य नामक व्यक्ति के जरिये किया गया था।
धीरेन ने वहां इस दल से भेंट की, जिस दौरान माओवादी कॉमरेड राज भी मौजूद था। कोलकाता में दो सप्ताह का समय बिताकर आर्नल्ड एवं पीएलए के तीन प्रशिक्षक रेल से राउरकेला पहुंचे थे। वहां इस दल का स्वागत माओवादी नेता कॉमरेड सागर ने किया था, जो समूह के केंद्रीय मिलिट्री कमीशन का सदस्य है। पीएलए के दल ने माओवादी गुरिल्ला लड़ाकों को उन कम्युनिकेशन उपकरण चलाने का प्रशिक्षण दिया जिन्हें पीएलए ने चोरी छुपे वहां पहुंचाया था। इससे पता चलता है कि उस समय तक लाल सेना को उनके कैंपों में तब तक कुछ कम्युनिकेशन उपकरण प्राप्त हो चुके थे। दो माह बाद, एक बार फिर पीएलए का एक दल सारंड में माओवादियों को प्रशिक्षण देने पहुंचा था।
इन तीन पीएलए तत्वों की गिरफ्तारी के बाद, एनआईए ने कोलकाता में माओवादी संपर्क अधिकारी इंद्रनील चंदा को भी घेरा था, जिसके बाद पता चला था कि कोलकाता का वह दफ्तर दोनों दल 2012 से चला रहा था। चंदा से पूछताछ के बाद पता चला था कि कोलकाता में ऐसे अन्य दफ्तर भी सक्रिय थे एवं उसके बाद से पुलिसकर्मी अभी तक शहर में ऐसे ठिकानों की पहचान करने में लगे हैं। पल्लब बरबोरा उर्फ प्रफुल्ल का संबंध उल्फा से था और वह पीएलए से भी संपर्क में रहता था। इसके अतिरिक्त, गिरफ्तार किए गए कुछ अन्य व्यक्तियों ने भी माना कि वे भी माओवादियों एवं पीएलए की बैठकों में शामिल हो चुके थे। उत्तर-पूर्व के उग्रवादी संगठनों के साथ यह संबंध मुख्यत: हथियारों और प्रशिक्षण के लिए स्थापित किए गए थे।
माओवादी अपना संजाल तेजी से बढ़ाते रहे हैं और दुनिया के हर कम्युनिस्ट और उग्र कम्युनिस्ट विचारधाराओं से खाद-पानी पाते हैं। इनका खात्मा करने के लिए एक कुशल और सोची-समझी रणनीति के साथ काम करना होगा।
(लेखक इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेन्स स्टडीज एंड एनेलिसिस, नई दिल्ली में शोध अध्येयता हैं)
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