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2015 में हर वह फिल्म दर्शकों को भाई जो अच्छी बनी थी। बाहुबली की रिकार्डतोड़ सफलता के पीछे है उसकी कहानी का भारत की जड़ों से जुड़ा होना।
—-अशोक पंडित, फिल्मकार
अभी एक सोशल साइट पर साल के चर्चित चेहरों की एक फेहरिस्त मंडराती दिखी जिसकी मानें तो भारत के इस साल के नामी लोगों में फिल्म स्टार प्रभास का नंबर 4 है। अच्छा लगा। इसलिए अच्छा लगा क्योंकि उसकी फिल्म बाहुबली ने टिकट खिड़की पर झंडे ही नहीं गाड़े बल्कि सिनेमा के नाम से ऊबते जा रहे दर्शकों के मन में फिर से रुपहले पर्दे के लिए एक चाहत पैदा कर दी। ऐसा क्या खास था उस बाहुबली में जो तेलुगु से हिन्दी में डब करके मुम्बइया फिल्म उद्योग के धुरंधरों को पटखनी देकर कमाई के सारे आंकड़े छकाकर छाप छोड़ गई? इस पर बात करेंगे, पर पहले उन कुछ और इनी-गिनी फिल्मों पर नजर डालें जो साल 2015 ûमें लोगों को किसी हद तक रिझा पाईं। ज्यादा नहीं, तो इस पैमाने पर फिट बैठने वाली दो और फिल्में ध्यान आती हैं। एक, जुलाई 2015 में प्रदर्शित बजरंगी भाईजान और दो, दिसम्बर 2015 में प्रदर्शित बाजीराव मस्तानी।
फिल्म बजरंगी भाईजान अपने कथानक और कलाकारों के शानदार अभिनय की बदौलत दर्शकों के दिलों में उतरने में कामयाब रही थी। कहानी में केन्द्रीय पात्र की भूमिका में छोटी बच्ची हर्षाली मल्होत्रा का गजब का अभिनय दर्शकों को खूब भाया। इससे बढ़कर एक आम भारतवासी के दिल में भावनाओं के सहज अतिरेक को सलमान खान के किरदार के जरिए सफलतापूर्वक झलकाया गया। बाधाओं को पार कर अपने लक्ष्य को पाने की अकुलाहट किसी सीमा को नहीं मानती। कबीर खान की इस फिल्म की कसी कहानी, सुन्दर संगीत और भारत-पाकिस्तान संबंधों की झलक इस फिल्म को सफलता के सोपान चढ़ाने में कामयाब रही।
इसी तरह साल बीतते तक आई बाजीराव मस्तानी फिल्म में पेशवा बाजीराव के ऐतिहासिक चरित्र के गिर्द बुनी कहानी हालांकि वैसी नहीं बन पाई जैसी बननी चाहिए थी। लेकिन कम से आज की पीढ़ी में हिन्दवी साम्राज्य के उस योद्धा को और जानने की ललक तो जगाने में कामयाब ही रही। संजय लीला भंसाली कथानक को बड़े कैनवस पर उकेरने में माहिर माने जाते हैं इसलिए बाजीराव फिल्म में दृश्यों की भव्यता, गीत-संगीत जहां लुभा गया वहीं मुगल साम्राज्य के प्रति बाजीराव के प्रसिद्ध अभियानों को फिल्मी मजबूरीवश भंसाली शायद उतना खुलकर दिखाने से बचते रहे। इतिहास में मुगल सल्तनत के खिलाफ सबसे ज्यादा युद्ध लड़ने वाले बाजीराव शिवाजी के हिन्दवी राज स्थापित करने के सपने को साकार करने की कोशिश में महज 41 साल में दुनिया से विदा हो गए, पर लक्ष्य के प्रति समर्पण की अनूठी मिसाल पेश कर गए। भंसाली के सामने बॉक्स ऑफिस की शायद मजबूरियां ही रही होंगी जो उन्होंने उस वक्त दिल्ली की मुगलिया सल्तनत को उखाड़ फेंकने की बाजीराव की जांबाजी को खुलकर सामने लाने की बजाय, उसे रूमानियत के पर्दे में ढांप दिया। अगर बाजीराव मस्तानी में मस्तानी के किरदार पर ज्यादा जोर देने की बजाय बाजीराव के चरित्र को और दमदारी से सामने लाया जाता तो यह फिल्म साल की मिसाल बन सकती थी।
अब बात एस.एस. राजामौली की मील का पत्थर साबित हुई फिल्म बाहुबली की। पााञ्चजन्य से बात करते हुए सुप्रसिद्ध फिल्मकार अशोक पंडित ने कहा,'2015 में हर वह फिल्म दर्शकों को पसंद आई जो अच्छी बनी थी। बाहुबली की रिकार्डतोड़ सफलता के पीछे है उसकी कहानी का भारत की जड़ों से जुड़ा होना।' अशोक पंडित कहते हैं, 'यह फिल्म पूरी तरह से हिन्दुस्थान में बनी, चाहे उसका एनीमेशन हो, विशेष प्रभाव या अन्य तकनीकी पक्ष। लोगों ने उसे कहीं न कहीं महाभारत की कथा से जोड़ा। भारत की संस्कृति, इतिहास की उसमें झलक थी और इसमें संदेह नहीं कि ऐसी फिल्में दर्शकों को भाती ही हैं। अब तो लोग उसकी अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।' बाहुबली की सफलता से ऐसी फिल्मों का चलन शुरू हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
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