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दिल्ली की एक अदालत ने जबसे कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल, जो नेहरू वंश की परंपरा के तहत ही पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, को पेश होने के सम्मन जारी किये हैं तब से संसद की कार्यवाही बाधित की जा रही है। सड़कों पर मोर्चे निकाले गए हैं। कांग्रेस के नेताओं ने बढ़-चढ़कर मोदी सरकार पर राजनीतिक बदले की भावना के आरोप लगाए हैं। इससे भी अजीब है कि उन्होंने सरकार से मामले को वापस लेने की मांग की है। कहने की जरूरत नहीं कि ये मोर्चे और इन मांगों का कोई आधार नहीं है। इसके पीछे कुछ कारण हैं।
1937 में स्थापित की गयी अनेक शेयरधारकों के साथ स्थापित की गयी एक सार्वजनिक कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स को धारा 25 के तहत गठित एक निजी कंपनी यंग इंडिया ने अपने हाथों में ले लिया। यंग इंडिया में सोनिया और राहुल दोनों के 38-38 प्रतिशत शेयर हैं। यह हस्तांतरण एक आड़े-तिरछे और कानूनी रूप से अमान्य तरीके से कांग्रेस के कोष का इस्तेमाल करते हुए 2010-11 में हुआ था।
कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स को बिना ब्याज का 90 करोड़ रु. का कर्ज दिया था। यह वही कंपनी है जो अब बंद हो चुके नेशनल हेराल्ड को चलाती थी। ये कर्ज बकाया देनदारी और खर्चों को चुकाने के लिए 2008 में इसके बंद होने से पहले दिया गया था। एक करमुक्त राजनीतिक पार्टी के नाते कांग्रेस ने एक व्यापारिक संगठन को पैसा देकर चूक की थी। यह पहली भूल थी। इसके बाद यंग इंडिया ने कांग्रेस से महज 50 लाख रु. का कर्ज लिया, जिसका मतलब हुआ कि एसोसिएटेड जर्नल्स पर यंग इंडिया का 90 करोड़ बकाया हो गया। पैसा चुकाने की बजाय एसोसिएटेड जर्नल्स कर्ज को शेयरों में बांटकर वे शेयर यंग इंडियन को हस्तांतरित कर दिये गए। इसके साथ ही यंग इंडिया एसोसिएटेड जर्नल्स की 99 प्रतिशत मालिक बन गयी और उस मालिकाना अधिकार के चलते ये इसके दिल्ली, लखनऊ और मुम्बई सहित अनेक स्थानों पर मौजूद विशाल भवनों और संपत्तियों की मालिक बन गयी। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के 78 प्रतिशत शेयरों और ऑस्कर फर्नाडीस और मोतीलाल वोरा के बाकी के 24 प्रतिशत शेयरों के साथ 5 लाख रुपए की निजी कंपनी सिर्फ 50 लाख रुपए के बदले 2000 करोड़ रुपयों की अचल संपदा की मालिक बन गयी।
2012 में इस लेन-देन के कागजात सार्वजनिक हुए। डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, जो उस वक्त भाजपा में नहीं थे, ने आपराधिक विश्वासघात का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की। उस समय सत्तारूढ़ कांग्रेस ने उनके दावों को नकारते हुए उच्च न्यायालय में मामले को निरस्त करने की अपील की। उच्च न्यायालय ने स्वामी की याचिका बहाल रखी और सत्र न्यायालय ने स्वामी के कथन में प्रथम दृष्टया अपराध का संज्ञान लिया और सोनिया तथा राहुल, दोनों को अदालत के सामने हाजिर होने को कहा। संक्षेप में, नेशनल हेराल्ड की यही कहानी है। इस बीच स्वामी भाजपा के सदस्य बन गये और कांग्रेस 2014 का चुनाव हार गयी, भाजपा सत्ता में आ गयी। लेकिन राजनीतिक गतिविधियों का कानूनी प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं था। इस बिन्दु को वंश के दरबारी जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं। कांग्रेस के विध्वंसकारी कारनामों के पीछे स्पष्ट उद्देश्य है, जिसके दो आयाम हैं।
पहला, कांग्रेस एक व्यक्ति के विरुद्ध मामले को सरकार द्वारा दायर मामला बना कर जनमत को बरगलाने की कोशिश कर रही है। दूसरे कांग्रेस, खासकर इसका नंबर एक परिवार मानता है कि आक्रामक होना ही सबसे अच्छी सुरक्षा है। कांग्रेस इंदिरा गांधी द्वारा अपनाये रास्ते को फिर से उभारकर उसका फिर से मंचन करने की कोशिश कर रही है जो इंदिरा गांधी ने 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उनको सत्ता से हटाने और संसद से अयोग्य घोषित करने तथा सार्वजनिक कार्यालय से बाहर करने के निर्णय के बाद किया था। क्योंकि तब चुनाव में गड़बडि़यां हुई थीं। तब भी मंच के दरबारियों ने मुखर होकर न्यायपालिका पर हमला बोला था, और आरोप लगाया था कि यह विपक्ष का किया-धरा है। जबकि श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसे भारत और विदेशों में 'विध्वंसकारी ताकतों' की बड़ी साजिश करार दिया था। श्रीमती इंदिरा गांधी के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गये। भड़काऊ भाषण दिये गये। नेताओं ने दावे किये कि गांधी परिवार कोई अपराध नहीं कर सकता। इस पृष्ठभूमि में तब 25 जून, 1975 को आपातकाल लागू कर दिया गया था। वह निस्संदेह विपक्ष के विरुद्ध राजनीतिक बदले की भावना से हुआ था। जिस किसी ने भी इंदिरा गांधी और उनके आपातकाल का विरोध किया उसे सींखचों के पीछे धकेल दिया गया।
आपतकाल समाप्त हुआ। हम यह भी जानते हैं कि कैसे इंदिरा गांधी ने जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए राजनीतिक बदले की भावना का हौव्वा खड़ा किया था। सुपर पीएम सोनिया गांधी के तहत संप्रग सरकार के दस साल के राज में आलोचना करने वालों को मुंह बंद कर दिये गये। गुजरात में निवेश करने वाले निवेशकों के घर पर आयकर अधिकारियों को भेज दिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगातार बेबुनियाद आरोप मढ़े गये। उनके गृहमंत्री अमित शाह को आपराधिक मामलों में फंसाया गया। उन वर्षों के दौरान कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता तंत्र का प्रचंड दुरुपयोग किया उसे आज क्या वह भूल चुकी है?
कंचन गुप्ता
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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