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केरल उच्च न्यायालय द्वारा पिछले दिनों राज्य सरकार को मालाबार देवासम बोर्ड की कब्जाई भूमि खाली कराने के आदेश दिए थे। देवासम बोर्ड मंदिरों का परिचालन करता है, लेकिन अदालती आदेश के बावजूद बोर्ड ने मंदिरों की जमीनें सेकुलर कब्जों से खाली नहीं करार्इं, बल्कि कब्जे और बढ़ गए हैं। उत्तरी केरल में मंदिरों की करीब 25 हजार एकड़ भूमि पर मालाबार परिक्षेत्र में कुछ संस्थाओं और व्यक्तियों ने अतिक्रमण कर रखा है। हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने इस भूमि से अतिक्रमण हटाकर खाली करवाने के लिए आयोग का गठन किया था। इस आदेश की हिन्दू संगठनों ने काफी प्रशंसा भी की थी। हिन्दू एक्य वेदी संगठन के महासचिव कुम्मनम राजशेखरन ने कहा कि केरल सरकार को उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए अतिक्रमण हटाना चाहिए क्योंकि केरल सरकार वर्षों से मामले की अनदेखी करती आ रही है जिस कारण उच्च न्यायालय को यह आदेश जारी करना पड़ा। साथ ही राजस्व विभाग को चाहिए कि वह अतिक्रमण की गई भूमि को चिह्नित कर खाली करवाकर उसका सीमांकन करे। इसके बाद ही इस भूमि को पट्टे पर दिया जाना चाहिए। न्यायालय के आदेश पर राजस्व सचिव के. आर. ज्योतिलाल ने 12 सितम्बर, 2014 को मंदिर की भूमि खाली करवाने का आदेश दिया गया था जिसकी पूरी तरह से अनदेखी की गई है। सूत्रों की मानें तो जिलाधिकारी को नोटिस जारी कर मंदिर की भूमि को भूमि सुधार अधिनियम 1957 के तहत खाली करवाने का आदेश दिया था। अतिक्रमण की हुई भूमि को 15 दिनों में मुक्त कराने के बाद कब्जा करने वालों से भूमि की कीमत का तीन गुना जुर्माना वसूल करना था। यह आदेश जिलाधिकारी के माध्यम से उप जिलाधिकारी और तहसीलदार को भी दिया गया था। इस आदेश की एक प्रति देवासम बोर्ड के आयुक्त को भेजी गई थी। हैरानी की बात यह है कि केरल उच्च न्यायालय द्वारा एक वर्ष पूर्व जारी किए आदेश पर अभी तक कार्रवाई नहीं की गई। हाल ही में न्यायालय ने एक सुनवाई के दौरान चोट्टनिकारा मंदिर की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश भी जारी किया, जो कि कोच्चि देवासम बोर्ड के अंतर्गत आता है। राज्य सरकार को इस पर की गई कार्रवाई की रपट तीन माह के भीतर न्यायालय में पेश करनी होगी। मालाबार में मंदिरों का संचालन मालाबार देवासम बोर्ड द्वारा किया जाता है जिसका गठन 2008 में हुआ था। बोर्ड को भूमि संबंधी सभी अधिकार प्राप्त हैं और यदि मंदिर की भूमि पर अतिक्रमण होता है तो रोकना सीधे-सीधे राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है। मालाबार देवासम बोर्ड ने 2014 में केरल उच्च न्यायालय में शपथपत्र दाखिल किया था कि मंदिर की भूमि पर बार-बार हो अतिक्रमण के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। स्वयं को फंसता देख सरकार न्यायालय में सारा ठीकरा राजस्व सचिव ज्योतिलाल पर फोड़ रही है कि उनके द्वारा नोटिस जारी किया गया था जिसके बाद मामले को दबा दिया गया। लेकिन हिन्दू संगठनों के बार-बार मंदिर की भूमि मुक्त करवाने की मांग पर प्रशासन ने पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। मंदिर की हजारों एकड़ भूमि पर इलाके के प्रभावशाली मुसलमान और ईसाइयों ने कब्जा कर रखा है, जिनके ऊपर सेकुलरदलों का हाथ बना हुआ है। इस तरह मंदिर की भूमि पर कब्जा करवाकर अल्पसंख्यकों को राज्य में बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे साफ है कि राज्य सरकार और देवासम बोर्ड जानबूझकर पर्दे के पीछे रहकर तमाशा देखते हुए हिन्दू संगठनों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि किस तरह से न्यायालय के आदेश के बाद भी केरल की सेकुलर सरकार मंदिरों की अनदेखी कर रही है। लंबे समय से मालाबार देवासम बोर्ड और राज्य सरकार की मिलीभगत के चलते यह स्थिति बनी हुई है। प्रदीप कृष्णन
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