जीवन यात्रा एक विहंगम दृष्टि
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जीवन यात्रा एक विहंगम दृष्टि

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Nov 23, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Nov 2015 12:02:33

नब्बे के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन जब अपने यौवन पर था, उन दिनों जिनकी सिंह-गर्जना से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, उन श्री अशोक सिंहल को संन्यासी भी कह सकते हैं और योद्धा भी; पर वे जीवन भर स्वयं को संघ का एक समर्पित प्रचारक ही मानते रहे।
अशोक जी का जन्म आश्विन कृष्ण पंचमी (27 सितम्बर, 1926) को उ.प्र. के आगरा नगर में हुआ था। उनके पिता श्री महावीर सिंहल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे। घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ। 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो़ राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोक जी की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे माता जी ने अशोक जी को शाखा जाने की अनुमति दे दी। 1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे; पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा ? अशोक जी भी उन देशभक्त युवकों में थे। अत: उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया। बचपन से ही अशोक जी की रुचि शास्त्रीय गायन में रही है। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी है।
1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो अशोक जी सत्याग्रह कर जेल गये। वहां से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये। अशोक जी की सरसंघचालक श्रीगुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहां उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोक जी अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टत: स्वीकार करते हैं। 1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। इस दौरान अशोक जी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये। 1981 में डॉ. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक जी और संघ की थी। उसके बाद अशोक जी को विश्व हिन्दू परिषद् की जिम्मेदारी दी गयी। परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा़… आदि अनेक नये आयाम जुड़े। इनमें सबसे महवपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गांव-गांव तक पहुंच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। आज विहिप की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक जी का योगदान सर्वाधिक है।
अशोक जी परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त-सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गये थे। परिषद के महामंत्री श्री चम्पत राय जी भी उनके साथ थे। पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ। – विजय कुमार

विशिष्ट व्यक्तियों की नजर में अशोक जी
* श्री अशोक सिंहल का संपूर्ण जीवन देश की सेवा करने पर केंद्रित था। हमारा सौभाग्य है कि श्री अशोक जी का आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमें मिला। उनके परिवार एवं अनगिनत समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।
-नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री   
*अशोक जी की कर्तव्यनिष्ठा और हिन्दू समाज के प्रति उनका समर्पण सदैव याद रहेगा।
-अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा
* वे सदैव हिन्दू समाज की सेवा में तल्लीन रहे। ऐसा कौन महापुरुष होगा जो अशोक जी का स्थान लेकर राम जन्मभूमि आन्दोलन को आगे बढ़ाएगा और भगवान राम का भव्य मंदिर बनवाएगा। केन्द्रीय शासन से विशेष आग्रह है कि राम मंदिर का निर्माण ही अशोक जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-वासुदेवानंद जी महाराज, शंकराचार्य
* अशोक सिंहल हिन्दुत्व के स्वाभिमान थे। उन्होंने संपूर्ण विश्व में हिन्दुत्व की अलख जगाई।
-डॉ.रामविलास वेदान्ती
रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य
* अशोक जी एक व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं में एक संस्था थे। उनके अंदर का संकल्प बल, त्याग हमारे विचार में एक अमर प्रेरणा का
कार्य करेगा।
   -गीतामनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी
* उनके विचार हम सभी के लिए प्रेरणा का काम करेंेगे। उन्होंने समाज के लिए जो कार्य किया वह सदैव याद रहेगा।
– सुरेश प्रभु, रेलमंत्री
* विश्व को बड़ा बनाने का संकल्प और ऐसा ही कुछ संकल्प कि सबको बड़ा बनाकर स्वयंसेवक बनकर कार्य करना। यही श्री अशोक जी की महानता थी।
-सुमित्रा महाजन, लोकसभा अध्यक्ष
* श्रद्धेय अशोक सिंहल जी हिन्दुत्व के पुरोधा, हिन्दू जगत के स्वाभिमान एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदर्श स्वयंसेवक एवं प्रचारक के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे।
-डॉ. बजरंगलाल गुप्त
उत्तर क्षेत्र संघचालक
* अशोक सिंहल जी का इस दुनिया से प्रस्थान एक युग का अन्त है। श्रीरामजन्मभूमि के लिए उनका संघर्ष समाज को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
-डॉ. निर्मल सिंह
उपमुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर
* विश्व के संपूर्ण हिन्दू समाज के लिए वे मार्गदर्शक थे और अंतिम क्षण तक वे क्रियाशील थे। उनके कण-कण में धर्म भरा हुआ था। उनके चरणों में शत-शत नमन।
– श्री भागय्या, सहसरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
* श्री अशोक जी के निधन से पूरे देश ने एक ज्वलंत व्यक्तित्व को खो दिया है। हिन्दुत्व की अविचल धारा आज स्तब्ध हो गई है।
-श्रीपाद नाईक, केन्द्रीय आयुष मंत्री
* विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक एवं संपूर्ण नेपाली जनता से सुपरिचित विराट व्यक्तित्व को नेपाली जनता की ओर से श्रद्धासुमन अर्पित है।
-दीप उपाध्याय, राजदूत, नेपाल
* उनके जाने से मुझे लगता है कि मेरा व्यक्तिगत नुकसान हुआ है और एक पितातुल्य जो छाया थी वह हट गई।
– रमन सिंह, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़
* अशोक जी महान थे। उनके विराट व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता।
– पदमनाभ आचार्य
राज्यपाल, नागालैंड
* श्री अशोक सिंहल ने राम जन्मभूमि के आन्दोलन को तीव्र गति से आगे बढ़ाकर संपूर्ण हिन्दुओं में चेतना जगाने का अतुलनीय
कार्य किया।
– मनोहर लाल
मुख्यमंत्री, हरियाणा
* उनकी प्रेरणा से सैकड़ों युवाओं ने भी राष्ट्रहित के कार्य में स्वयं को समर्पित किया है।
-श्रीहरि बोरिकर
राष्ट्रीय महामंत्री, अभाविप
* अशोक जी के राष्ट्र सेविका समिति से प्रारंभ से ही आत्मीय संबंध थे।  देशभर की समिति सेविकाएं उस चिन्मय प्रकाश को, जो चिन्मय सत्ता में विलीन हो गया है, अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करती हैं।
-शांतक्का
प्रमुख संचालिका,राष्ट्र सेविका समिति

 हम परम वैभव लाएंगे
*  आलोक कुमार
श्री अशोक सिंहल ने देह छोड़ दी। आठ से भी अधिक दशकों तक यह उनका घर थी। इसी के अवलम्ब से वह हिन्दू जागरण, संगठन एवं संघर्ष का काम करते रहे।
 फिर 'एष: काया पततु' की स्थिति आई। अशोक जी ब्रह्मलीन हो गये।
 उन पर श्रद्धा रखने वाले उनकी देह को निगमबोध घाट ले गये। चिता सजाई गई। मुखाग्नि दी गई। आतुर अग्निदेव  ने  जल्दी से अपनी ऊंची ज्वालाओं में वह शरीर समेट लिया।
 माइक पर आज्ञा गूंजी- 'दक्ष'। हम सतर्क खड़े हुए। आज्ञा गूंजी- 'ध्वज प्रणाम' 1, 2, 3। उस समय  मेरी  आंखें  चिता  से  उठ  रही  ज्वालाओं पर थीं। अपना भगवा ध्वज,  अपना गुरु है। यह अग्नि की सदा उर्ध्वमुखी रहने वाली ज्वालाओं का प्रतीक है। यज्ञ शिखाएं भगवा ध्वज की ही प्रतीति होती हैं। आज यह ज्वालायें उस शरीर से उठ रही थीं, जो जीवन भर समर्थ, पौरुषी समाज बनाने का माध्यम बना था । पुण्यभूत हो गया था ।
 वह ज्वालायें – शरीर में से भूमि का भाग भूमि को, जल का भाग जल को, वायु का भाग वायु को, अग्नि का भाग अग्नि को और आकाश का भाग आकाश को लौटा रही थीं । अशोक जी जीवन व मृत्यु – दोनों में पूर्ण रूप से उऋण हो गये ।
 ध्वज प्रणाम की आज्ञा के साथ चिता की लपटों में अपने गुरु प्रवित्र भगवा ध्वज के प्रत्यक्ष दर्शन हुए। संघ की पद्धति से अपने गुरु को अपने हृदय पर हाथ रखकर, मस्तक झुका कर, प्रणाम किया। प्रार्थना के उच्चार में हम सब ने भी कहा त्वदर्थे पतत्वेष कायो हमारे भी शरीर, हे मातृभूमि! तेरे काम आयें। परिचय दिया,  हम  हिन्दूराष्ट्र  के अंगभूत हैं। उग्र वीरव्रत मांगा। और मानो प्रत्यक्ष अपने गुरु की उपस्थिति में श्री अशोक जी से वायदा किया कि आपके व श्रीभगवान के आशीर्वाद से हम अपनी संगठित कार्य शक्ति द्वारा अपने धर्म का संरक्षण करते हुए इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने का संकल्प अवश्य पूर्ण करेंगे ।
(लेखक रा.स्व.संघ, दिल्ली प्रांत के सह प्रांत संघचालक हैं)

एक श्रेष्ठ संयोजक
–  दिनेश चंद्र
मा. अशोक जी का आज जो व्यक्तित्व विश्वमानव के रूप में हम सबके सामने है, उसके पीछे उनके जीवन की कठोर साधना है। उनका कतृर्त्व विहिप के समाजव्यापी कार्य को बनाने, बढ़ाने और जन-जन तक पहुंचाने के लिए मील का पत्थर सिद्ध हुआ। संगठन के स्वरूप को खड़ा करने के साथ इसे विस्तार देने के लिए उन्होंने 20-25 प्रकार के विभिन्न आयामों के रूप में कार्य विभागों का व्यवस्थित स्वरूप खड़ा किया। इसका परिणाम यह निकला कि भारत तथा विश्व में उस कार्य का व्यापक स्वरूप हम सबके सामने है। कार्यकर्त्ताओं से अपनत्व और आत्मीयता का भाव रखते हुए कार्यकर्त्ताओं को जोड़ने का, सक्रिय करने का यह उनका विशेष स्वभाव रहा और उसके कारण आज समाज के कार्यकर्ता के रूप में अच्छे व्यक्तियों का जुड़ाव उनके साथ रहा। वे गो, गंगा, गीता, वेद और श्रीराम जन्मभूमि, श्रीकृष्णजन्मभूमि तथा बाबा विश्वनाथ, जो हमारे श्रद्धा के केन्द्र हैं, इन सबके प्रति अत्यंत संवेदनशील थे। विश्व में वर्तमान में 6.5 करोड़ हिन्दू हैं। भारत के साथ-साथ विदेश में रहने वाले असंख्य हिंदुओं के बीच हिन्दू संस्कार, जीवनचर्या और हिन्दू संस्कृति को उनके जीवन में उतारने के लिए भी कार्य किया। आज लगभग 32 देशों में विहिप का कार्य और 80 देशों में संपर्क विभाग हैं। लंबे समय बाद हिन्दू समाज के स्वाभिमान को जगाने का अपूर्व कार्य अशोक जी द्वारा किया गया। आज हिन्दू स्वाभिमान के साथ खड़ा दिखाई देता है तो यह अशोक सिंहल जी की कठोर साधना का ही फल है। ऐसी पावन आत्मा को विनम्र होकर हम बारंबार वंदन करते हैं।
(लेखक विहिप के अंतरराष्ट्रीय संगठन महामंत्री हैं) 

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