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अमरनाथ डोगरा
अपने एक संबोधन में दत्तोपंत जी ने वर्ष 1984 में कहा 'सम्पूर्ण राष्ट्र के साथ मजदूरों का हित भी एकात्म है। राष्ट्र खड़ा रहेगा तो मजदूर गिर नहीं सकता। राष्ट्र गिर जाएगा तो मजदूर खड़ा नहीं रह सकता। वैसे ही जब तक मजदूर खड़ा है तब तक वह राष्ट्र को गिरने नहीं देगा। मजदूर गिर जाएगा तो राष्ट्र को कौन बचाएगा?'
वैचारिक संघर्ष के उस कालखंड में जब मजदूर क्षेत्र पर वामपंथी वर्चस्व अपने चरम पर था और लाल रथ पर सवार लाल सलाम का उद्घोष करते हुए वामपंथी इंकलाबी घोड़े लाल किले की ओर सरपट दौड़े जा रहे थे तब उन्हें थामना कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य था। उस समय राष्ट्रशक्ति ने उक्त कठिन कार्य को सम्पन्न करने का दायित्व ठैंगड़ी जी को दिया। उद्देश्य एकमात्र साम्यवादी शक्तियों को रोकना ही नहीं अपितु श्रमिक क्षेत्र में भारतीय आर्थिक चिंतन के आधार पर श्रमिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करते हुए उन्हें सभी प्रकार के अन्याय, शोषण से संरक्षित करके भगवाध्वज के नीचे वंदेमातरम् उद्घोष के साथ समरस समाज रचना की दिशा में अग्रसर करना था।
तदनुसार 23 जुलाई 1955 को दत्तोपंत ठेंगड़ी ने 'भारतीय मजदूर संघ' नाम से एक अखिल भारतीय केन्द्रीय श्रमिक संगठन की स्थापना करके शून्य से कार्य का श्रीगणेश किया। संगठन की संस्थापना के साथ ही इसके उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है। उसके उपरांत उद्योग हित, फिर मजदूर हित तथा अंत में संगठन का हित आता है।' राष्ट्र का औद्योगीकरण, उद्योगों का श्रमिकीकरण व श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण हो' का उन्होंने नया नारा दिया। वामपंथियों के 'मांग हमारी पूरी हो-चाहे जो मजबूरी हो' नारे को उन्होंने पलट दिया और कहा 'देशहित में करेंगे काम-काम के लेंगे पूरे दाम' वामपंथियों के 'दुनिया के मजदूरो एक हो' को भारतीय मजदूर संघ ने कहा 'मजदूरो दुनिया को एक करो' और इंकलाब के स्थान पर भारत माता की जय के नारे गूंजने लगे।
ठेंगड़ी जी की चमत्कारिक नेतृत्व क्षमता, कतृर्त्व की पारदर्शी विशालता और ममतामयी आत्मीयता ने अल्पावधि में, भारत की श्रम शक्ति का मन जीत लिया। समूचे परिदृश्य में लाल के स्थान पर भगवा रंग उभरने लगा। संगठन स्थापना के दिन से बारह वर्ष तक ठेंगड़ी जी बिना किसी अखिल भारतीय कार्यसमिति और पदाधिकारियों के अकेले श्रमिकों में देशभक्ति की अलख जगाते देश भर में उनके छोटे-छोटे समूहों का गठन करते रहे। बारह वर्ष की घोर तपस्या के उपरांत 12-13 अगस्त 1967 के दिन भारतीय मजदूर संघ का प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन दिल्ली में सम्पन्न हुआ जिसमें कार्यसमिति गठित की गई और दत्तोपंत ठेंगड़ी संगठन के विधिवत प्रथम महामंत्री निर्वाचित हुए।
वर्ष 1955 में शून्य से सृष्टि निर्माण की यात्रा प्रारंभ करने वाला भारतीय मजदूर संघ तेजस्वी नेतृत्व, सशक्त विचारधारा, त्याग, तपस्या और बलिदान की भावना के अन्तर्गत अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के दम पर आज देश ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा केन्द्रीय श्रमिक संगठन है। (संख्या बल में चीन का आईसीएफटीयू शीर्ष पर है किंतु वह सरकारी नियंत्रण के अधीन चलता है। स्वतंत्र स्वायत्त रूप में भारतीय मजदूर संघ ही वास्तव में इस समय दुनिया का आज सबसे बड़ा श्रम संगठन है।)
वर्ष 1989 तक भारतीय मजदूर संघ श्रमिक क्षेत्र पर मुख्यतया वर्चस्व स्थापित कर चुका था। मजदूर मानस को ठेंगड़ी जी पहचानते थे इसीलिए उन्होंने राष्ट्रशक्ति को आश्वस्त करते हुए कहा था कि जब तक मजदूर खड़ा है राष्ट्र को गिरने नहीं देगा। वर्ष 1989 में ही उन्होंने पू.डा.हेडगेवार शताब्दी वर्ष के अवसर पर नागपुर के रेशिम बाग में कहा, 'हिन्दू राष्ट्र की इस छोटी सी प्रतिकृति के समक्ष राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय घटनाओं और परिदृश्य के आधार पर तथा वास्तविकता की ठोस धरती पर खड़े होकर मैं यह कह रहा हूं कि अगली शताब्दी अर्थात एक जनवरी 2001 का सूर्योदय जब होगा तो सूर्यनारायण को यह देखकर प्रसन्नता होगी कि बीसवीं शताब्दी की समाप्ति के पूर्व ही हिन्दुस्थान के आर्थिक क्षेत्र में गुलाबी लाल रंग से लेकर' गहरे लाल रंग के सभी झंडे हिन्दू राष्ट्र की सनातन भगवाध्वज में आत्मसात और विलीन हो चुके होंगे।'
ठेंगड़ी जी की उक्त भविष्यवाणी आज अक्षरश: सत्य सिद्ध होती दृष्टिगोचर हो रही है। वर्ष 1970 के कानपुर अधिवेशन में ठेंगड़ी जी ने कहा कि 'साम्यवाद को समाप्त करने के लिए हमें कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। साम्यवाद अपने ही अन्तर्निहित विरोधाभासों के कारण टूटने वाला है। वर्ष 1989 तक भारत तथा विश्व में इसका बिस्तर गोल हो जाएगा।' आगे उन्होंने यह भी कहा कि 'वर्ष 2010 तक पूंजीवाद भी अधोगति को प्राप्त होगा।' उनकी उक्त दोनों भविष्यवाणियां भी सत्य सिद्ध हुई हैं।
पूंजीवाद और विशेषकर साम्यवाद का ठेंगड़ी जी का विशद् विस्तृत गहरा अध्ययन था। मार्क्सवाद के जनक कार्ल मार्क्स को वे श्रेष्ठ विचारक तो मानते थे किंतु मार्क्स का चिंतन मौलिक नहीं है ऐसा भी कहते थे।
'मजदूरों का कोई देश नहीं होता' मजदूरों ने ही गलत सिद्ध कर दिया है। 'वर्ग संघर्ष' की संकल्पना मिथ्या सिद्ध हो चुकी है। 'अनर्जित आय जो श्रमिकों की आय से निचोड़ी गई' और 'अति उत्पादन' तथा 'दुनिया के मजदूरो एक हो जाओ' और 'पैरों में दासता की जंजीरों को गंवाने के अतिरिक्त, गंवाने के लिए और तुम्हारे पास कुछ नहीं है' की वामपंथी घोषणाएं खोखली सिद्ध हुईं।
मार्क्स की प्रसिद्ध रचना 'दास कैपिटल' के प्रकाशन (1867) के पश्चात उनके अनुवर्ती एंजिल्स ने अपनी मृत्यु के एक सप्ताह पूर्व 1895 में लिखा कि 'इतिहास ने हमें और हमारे जैसे ही विचार रखने वालों को गलत सिद्ध कर दिया है।' उन्होंने आगे लिखा कि 'श्रमिक वर्ग का शासन असंभव है।'
भारत में दत्तोपंत ठेंगड़ी 'एकात्म मानव दर्शन' का विचार लेकर आगे बढ़े और 'सत्य सिद्धांत की विजय' और भारतीय वैचारिक अधिष्ठान पर मजबूती से खड़े होकर श्रमिक कल्याण, 'चिरंतन सुख' एवं प्राणिमात्र के उत्कर्ष की जन आकांक्षाओं की मंजिलें सफलतापूर्वक निरंतर पार करते चले गए। 'सत्य सिद्धांत की विजय' में उन्होंने लिखा है 'ऐसे विश्वविजयी सिद्धांतों के अधिष्ठान पर खड़े हुए कार्य के साथ हम रहेंगे तो विजय की पताका हिमालय के तुंग शृंग पर फहराने को सिद्ध होगी।'
रा.स्व.संघ की ठाणे बैठक (1972) में प.पू.श्री गुरुजी ने भा.म.संघ के संदर्भ में कहा 'संगठन कार्य में अपने कार्यकर्ताओं की सहानुभूति, सहायता थोड़ी बहुत होगी ही किंतु उन्होंने (दत्तोपंत ठेंगड़ी) अकेले ही यह कार्य किया जिसे अंग्रेज 'सिंगल हैंडिड' कहते हैं। अब इसका (भा.म.संघ का) बोलबाला भी काफी हो गया है'।
ठेंगड़ी जी का व्यक्तित्व बहुआयामी और अद्भुत क्षमताओं से युक्त था। कतृर्त्व केवल श्रमिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था। आपातकाल (1975-77) में लोक संघर्ष समिति के सचिव के नाते भूमिगत रहते हुए उन्होंने लोकतंत्र की गाड़ी को पुन: पटरी पर लाने के लिए जबरदस्त अभियान चलाया। डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने लिखा है 'जनता आपातकाल का मुझे नायक मानती है किंतु आपातकाल के वास्तविक महानायक दत्तोपंत ठेंगड़ी थे। उनके द्वारा किया गया यह अकेला महान कार्य ही उन्हें महापुरुषों की श्रेणी में स्थापित करने के लिए पर्याप्त है किंतु दु:ख है कि उनके उक्त महान कार्य से देश आज भी अनभिज्ञ है।'
दीपावली के शुभ दिन 10 नवम्बर 1920 को आर्बी, जिला वर्धा (विदर्भ) में जन्मे दत्तात्रेय बापूराव ठेंगड़ी (प्रसिद्ध नाम दत्तोपंत ठेंगड़ी) नागपुर से विधि स्नातक होने के पश्चात वर्ष 1942 में रा.स्व.संघ के प्रचारक निकले और केरल तथा बंगाल प्रांतों में संघ शाखा कार्य को सुदृढ़ किया। 1949 से 1954 तक विद्यार्थी, राजनीतिक तथा श्रमिक क्षेत्र में कार्य का अनुभव लेकर 23 जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की। तत्पश्चात भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सर्व पंथ समादर मंच आदि संगठनों में वे मार्गदर्शक के रूप में जीवन की अंतिम सांस (14 अक्तूबर 2004) तक सक्रियतापूर्वक जुड़े रहे।
स्कूल विद्यार्थी काल (1934-35) में आर्वी में श्री ठेंगड़ी संघ शाखा से जुड़े। उच्च शिक्षा के लिए जब वे नागपुर आए तो प.पू श्री गुरुजी के निवास पर ही रहने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके व्यक्तित्व को गढ़ने, निखारने व जीवन की दिशा तय करने में पू. श्री गुरुजी का सर्वाधिक योगदान है। ठेंगड़ी जी के जीवन में दो ही सर्वोच्च श्रद्धा केन्द्र थे-उनकी पू.माता वंदनीया जानकी बाई ठेंगड़ी तथा प.पू.श्री गुरुजी।
संघ उनका विचार अधिष्ठान था जिसके वे निष्ठावान स्वयंसेवक थे। हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी की पचास एक पुस्तकों के रचयिता, दर्जनों पुस्तकों के प्रस्तावक, सैकड़ों लेखों के सिद्धहस्त लेखक, परिव्राजक की भांति चालीस के लगभग विदेश प्रवास, बारह वर्ष तक सांसद रहते हुए सत्य सिद्धांत की विजय तथा भारतीय आर्थिक चिंतन की अलख जगाने वाले श्री ठेंगड़ी 84 वर्ष की आयु में इस संसार से विदा होने से पूर्व निजी पैतृक संपत्ति से भी उन्होंने स्वयं को मुक्त कर लिया था। उनका सर्वस्व राष्ट्र को समर्पित था।
वर्ष 1968 में श्री नीलम संजीव रेडडी के नेतृत्व में एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल रूस प्रवास पर गया था जिसमें ठेंगड़ी जी भी सम्मिलित थे। प्रवास के दौरान प्रख्यात वामपंथी नेता श्री हिरेन मुखर्जी ठेंगड़ी जी के निकट संपर्क में आए। कुछ दिन साथ रहने और साथ-साथ यात्राएं करने के उपरांत रूस से जब विदाई का समय आया तो हिरेन बाबू ने ठेंगड़ी जी से कहा-ळँील्लॅं्रि! ङ्म४ ँं५ी ाङ्म४ल्लि ८ङ्म४१ स्र'ंूी ्रल्ल ३ँी ४ल्ल्र५ी१२ी.क ँं५ी ल्लङ्म३. साम्यवाद से कामरेड के मोहभंग तथा ठेंगड़ी जी जिस विचारधारा के प्रतिनिधि थे उसके वर्चस्व व पुनर्स्थापना की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी।
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