|
गत 27 अक्तूबर को अमरीकी युद्धपोत 'यूएसएस लासेन' द्वारा दक्षिणी चीन सागर के विवादित क्षेत्र में गश्त करने को लेकर अमरीका-चीन के बीच बढ़े तनाव के बाद तकरार और तीखी होती जा रही है। अमरीका को चीन द्वारा नसीहत दिए जाने के बाद पलटवार करते हुए अमरीकी नौसेना के कमांड प्रमुख एडमिरल हैरी हैरिस ने विवादित क्षेत्र के एक कृत्रिम द्वीप तक अपने युद्धपोत के पहुंचने का बचाव किया है।
उल्लेखनीय है कि अमरीकी युद्धपोत के दक्षिणी चीन सागर में गश्त करते हुए दिखाई देने पर चीन ने अमरीकी युद्धपोत के पीछे अपने पोत लगा दिए थे। चीन की तरफ से अमरीका के युद्धपोत को सीमा क्षेत्र से बाहर जाने की चेतावनी भी दी गई थी। यहां तक कि चीन ने अमरीका के राजदूत को तलब कर स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अमरीका चीन की सहनशीलता की परीक्षा न ले। चीन ने अमरीकी जंगी जहाज की गतिविधि को सरेआम उकसाने वाली कार्रवाई करार दिया था। इसके जवाब में एडमिरल हैरिस ने कहा कि जहां कहीं भी अंतरराष्ट्रीय कानून इजाजत देता है वहां अमरीकी सेना उड़ान भरना, नौवहन करना व अन्य सैन्य गतिविधि जारी रखेगी। दक्षिणी चीन सागर इसका कोई अपवाद नहीं है और आगे भी नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के नियमित अभियानों को किसी देश पर खतरे के तौर पर नहीं लेना चाहिए। ऐसे अभियानों से समुद्री व हवाई क्षेत्र के कानूनी इस्तेमाल, अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा होती है जो अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सभी देशों को मिले हुए हैं। वहीं हैरिस के इस बयान पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि अमरीका नाटक कर रहा है। इसकी पटकथा लेखन, निर्देशन व अभिनय सब कुछ किसी और ने किया है।
भारत भी चीन पर बरसा
दक्षिणी चीन सागर पर चीन के दावे को भारत ने भी खारिज कर दिया है। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय कानून इस क्षेत्र से गुजरने और यहां मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल करने का हक सभी देशों को देते हैं। ये बातें उन्होंने गत चार नवंबर को असियान रक्षा मंत्रियों की तीसरी बैठक को संबोधित करते हुए कहीं। पर्रिकर ने कहा कि दक्षिण चीन सागर के मौजूदा हालात और वहां चीन के बढ़ते दखल के कारण पूरी दुनिया का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में न केवल जहाज आ जा सकते हैं, बल्कि उड़ान भी भर सकते हैं। 1982 का संयुक्त राष्ट्र अधिनियम भी इसकी इजाजत देता है। उन्होंने समुद्री सुरक्षा को साझा चुनौती बताते हुए इस विवाद का शांतिपूर्ण हल निकलने की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि 'आम सहमति से हल निकालने के लिए जरूरी है कि दक्षिण चीन सागर से जुड़े सारे देश 2002 के घोषणा पत्र का पालन करें और इसके लिए अचार संहिता को अंतिम रूप देने का जल्द से जल्द प्रयास करें।' उल्लेखनीय है कि दक्षिणी चीन सागर से हर वर्ष पांच ट्रिलियन डॉलर का कारोबार होता है। भारत आधे से ज्यादा समुद्री कारोबार इसी रास्ते से करता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस का अकूत भंडार है। अपनी आदत के अनुसार चीन इस इलाके के अधिकांश हिस्से पर अपना दावा जताता आ रहा है।
कनाडा की संसद में तीसरी भाषा होगी पंजाबी
पंजाबी अब कनाडा की संसद की आधिकारिक भाषा बन गई है। अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद यह तीसरी भाषा है, जिसे संसद में समान दर्जा प्राप्त हुआ है। उल्लेखनीय है कि कनाडाई संसद (हाऊस ऑफ कॉमंस) के लिए गत 19 अक्तूबर को हुए चुनावों में दक्षिण एशियाई मूल के 23 लोगों ने जीत दर्ज की है। इनमें पंजाबी बोलने वाले 20 सांसद हैं।
कनाडा के समाचार पत्र हिल टाइम्स की रपट के अनुसार पंजाबी नहीं बोल पाने वाले सांसदों में चंद्र आर्य, गैरी आनंदसांगरी और मरियम मोसेफ हैं। अन्य सभी पंजाबी बोल लेते हैं। इनमें 18 लिबरल पार्टी और दो कंजरवेटिव पार्टी के हैं।
रपट के अनुसार पंजाबी बोलने वाले नवनिर्वाचित सांसदों में 14 पुरुष और छह महिलाएं हैं। इनमें ओटारियो के 12, ब्रिटिश कोलंबिया के चार, अल्बर्टा के तीन और क्यूबेक प्रांत के एक संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। कंजरवेटिव पार्टी के सांसद दीपक ओबेराय ने कहा कि संसद में अब इंडो-कनाडाई समुदाय के लोगों की आवाज अच्छी तरह से उठाई जाएगी। सभी दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह दक्षिणी एशियाई समुदाई की जीत है।
इस्लामिक स्टेट से सीधी लड़ाई लड़ेगा अमरीका
सीरिया में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) का खात्मा करने के लिए अमरीका ने अपनी सैन्य कार्रवाई को तेज कर दिया है। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि उन्होंने सीरिया में सैनिकों के विशेष दस्ते को भेजा है जो आतंकियों से सीधे जंग लड़ेंगे। माना जा रहा है कि अमरीका का यह कदम रूस के साथ उसके झगड़े को बढ़ा सकता है।
दरअसल ओबामा प्रशासन सीरिया में रूस की कार्रवाई का विरोध करता रहा है। अभी तक अमरीकी सैनिक सिर्फ आईएसआईएस से लड़ रहे स्थानीय सैनिकों को सुझाव देने और आतंकी संगठन के ठिकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई किया करते थे, लेकिन ओबामा के नये फैसले के बाद अमरीकी सेना पहली बार आतंकियों से आमने-सामने की लड़ाई लड़ेगी। इससे पहले राष्ट्रपति ओबामा आईएसआईएस से सीधी लड़ाई में शामिल होने से मना करते रहे थे। माना जा रहा है कि ओबामा का थल सेना को सीरिया भेजने का यह प्रयास कूटनीतिक रिश्तों को बेहतर बनाने की तरफ उठाया गया कदम है। अमरीका सीरिया और इराक में आईएसआईएस के खिलाफ अपनी कार्रवाई को तेज करता जा रहा है। हाल ही में ओबामा ने इराक में 3500 सैनिकों को भेजा है। इस बीच ओबामा के इस फैसले की विपक्ष ने आलोचना शुरू कर दी है।
टिप्पणियाँ