फुटपाथ पर स्कूल से संवरते जीवन
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फुटपाथ पर स्कूल से संवरते जीवन

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Oct 5, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Oct 2015 12:50:14

कुंछ लोग अपने जीवन में नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद स्वयं को बूढ़ा मान लेते हैं, लेकिन कुछ कार्यक्षेत्र से मुक्त होने के बाद फिर से नई ऊर्जा के साथ अपना जीवन शुरू करते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण वसंत कुंज बी-सेक्टर में रहने वाले 65 वर्षीय श्याम बिहारी प्रसाद हैं। भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से पांच वर्ष पूर्व सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए श्याम बिहारी आज उन जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा मुहैया करवा रहे हैं, जो कि कभी मंदिर के बाहर बैठकर वहां जाने वाले श्रद्धालुओं से भीख मांगते थे, ऐसा देखकर श्याम बिहारी ने उन बच्चों का न केवल मार्गदर्शन किया, बल्कि उन्हें शिक्षित करने का प्रण भी कर लिया।
श्याम बिहारी बताते हैं कि करीब तीन वर्ष पहले वे जब पड़ोस के हनुमान मंदिर में पूजा करने गए तो एक दिन उन्होंने पाया कि कुछ छोटे बच्चे मंदिर के बाहर बैठकर वहां आने-जाने वाले श्रद्धालुओं से भीख मांग रहे थे। यह देखकर उन्होंने उन बच्चों से बारी-बारी से बातचीत की और उनसे परिवार के बारे में जानकारी ली। फिर अगले दिन से उन्हें फुटपाथ पर बैठाकर पढ़ाना शुरू कर दिया।
उसी दिन से इन बच्चों ने मंदिर के बाहर जाकर लोगों के आगे हाथ फैलाना भी छोड़ दिया है। ये सभी बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हैं, लेकिन इन्हें न तो अक्षरों का ज्ञान था और न ही ये सही से पुस्तक पढ़ पाते थे। ये सभी हरिजन बस्ती वसंत कुंज के रहने वाले हैं जिनके माता-पिता घरों में काम करते हैं या पेशे से चालक या मिस्त्री हैं। दोपहर की पाली वाले स्कूल में पढ़ने वाले करीब 20 बच्चे रोजाना सुबह आठ बजे से 11 बजे तक यहां पढ़ने आते हैं और वह भी सप्ताह में सातों दिन। स्कूल का अवकाश हो तो भी बच्चे बिना छुट्टी किए यहां रोजाना पहुंचते हैं और बच्चों का कहना है कि यहां पढ़ना शुरू करने के बाद से उन्हें अब अपनी कक्षाओं में शिक्षकों द्वारा कराई गई पढ़ाई आसानी से समझ में आ जाती है और  बच्चे कक्षा में पूछे गये प्रश्नों का भी उत्तर बड़ी सरलता से दे देते हैं।
श्याम बिहारी बताते हैं कि उनके इस प्रयास को पड़ोस में रहने वाले लोगों ने भी अपने सहयोग से और भी सार्थक बना दिया। इन लोगों ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ‘ब्लैक बोर्ड’ और मेज का इंतजाम करा दिया। साथ ही रोजाना बच्चों को खाने का सामान भी देते हैं। वे बताते हैं कि उनका बचपन काफी कष्टदायक रहा जिस कारण पढ़ने के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ा। वे पढ़ाई में काफी निपुण थे, लेकिन उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण कई बार स्कूल में फीस भरने की भी दिक्कत आती थी।

राहुल शर्मा

वर्ष 1967 में उन्होंने बिहार के ‘सर गणेश दत्त पाटलीपुत्र हाई स्कूल’ से दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की, आगे चलकर पटना विश्वविद्यालय से एम. एससी. की। इसके बाद वर्ष 1974 में उन्हें बीएसएनएल की नौकरी मिल गई। उनकी एक बेटी दिल्ली स्थित डीआरडीओ में वैज्ञानिक है और दो बेटे पुणे में इंजीनियर हैं। वे मानते हैं कि बचपन में किसी को दिखाई गई सही दिशा उस बच्चे का भविष्य सुधार सकती है। इसी भावना से वे अपने पथ पर अग्रसर हैं।
मैं अपने दूसरे दोस्तों के साथ मंदिर के बाहर बैठा रहता था, एक दिन श्याम बिहारी जी मिले और हम से पूछा कि कौन सी कक्षा में पढ़ते हो? उसके बाद कुछ प्रश्न पूछे जिनके उत्तर हम नहीं दे पाए या गलत उत्तर दिए। उन्होंने हम से कहा कि यदि वे हमें पढ़ाएं तो क्या पढ़ना चाहोगे? हम सभी तैयार हो गए और आज हमें विद्यालय से भी ज्यादा इनके पास पढ़ना अच्छा लगता है। मैं अपनी कक्षा में शिक्षक द्वारा पूछ गए सवालों के जवाब भी अब आसानी से दे देता हूं।                      
—राजू , कक्षा-10,राजकीय  उच्चतर माध्यमिक बाल विद्यालय,
वसंत कुंज

श्याम बिहारी जी द्वारा गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाता देख सेक्टर में रहने वाले दूसरे लोग भी सहयोग के लिए आगे आए हैं। कुछ लोग तो हर महीन इन बच्चों को फ्रूटी और बिस्कुट देने के लिए मुझे पहले ही पैसे दे जाते हैं। कई लोगों ने कहा हुआ है कि इन बच्चों को जिस भी चीज की जरूरत पड़े, दे दिया करो, लेकिन इनकी पढ़ाई बाधित नहीं होनी चाहिए। बरसात के दिनों में इन बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो उसके लिए मंदिर में बैठने की व्यवस्था रहती है।
—अनिल, दुकानदार, वसंत कुंज, सेक्टर-बी
ल्ल राहुल शर्मा

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