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जग सरकार ने गंगा को निर्मल बनाने का संकल्प लिया है, जिसके लिये उसका साधुवाद। गंगा को प्रदूषित करने वाली इकाइयों पर नकेल कसी जा रही है। परन्तु गंगा को अविरल बनाये बिना उसे निर्मल बनाना उतना ही कठिन होगा जितना बिना पेट्रोल डाले कार को चलाना होता है। आज विद्युत के लिए टिहरी एवं चीला, सिंचाई के लिए बिजनौर तथा नरोरा, एवं ‘नेवीगेशन’ के लिए फरक्का में बराज बनाए जा चुके हैं। बिजली बनाने के लिए सरकारी उपक्रम एनटीपीसी ने हाल में अलकनंदा पर पीपलकोटी मे बराज बनाना चालू किया है। ‘नेवीगेशन’ के लिए इलाहबाद से बक्सर के बीच बराज बनाने पर ‘इनलैंड वाटरवेजÞ अथारिटी आॅफ इंडिया’ द्वारा विश्व बैंक की सहायता से अध्ययन कराया जा रहा है।
इन बराजों की रुकावट से मछली अपने प्रजनन क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाती है। आज बंगलादेश से आने वाली हिल्सा मछली फरक्का बराज को पार नहीं कर पाती है। पहले यह मछली इलाहाबाद तक पायी जाती थी। नरोरा, हरिद्वार तथा ऋषिकेश में बराज बनाने से माहसीर मछली का आकार छोटा होता जा रहा है। ये मछलियां अंडे देने नदी के ऊपर जाती हैं। वहां अंडे से निकली छोटी मछलियां नीचे आती हैं। बड़ी होकर अगले चक्र मे ये पुन: ऊपर अंडा देने जाती हैं। इस आवागमन में बराज बाधा बन जाते हैं। मछली अंडा देने लायक स्थान तक नहीं पहुंच पाती है। जिस प्रकार कैदी मां का जेल मेें पैदा हुआ बच्चा नहीं पनपता है उसी प्रकार कैदी गंगाजी की मछलियां नहीं पनप रही हैं। मछली के क्षरण का अर्थ है कि अन्य छोटे जलीय जीव-जन्तुओं का क्षरण, जो मछली का भोजन होते हैंं। ये जीव-जन्तु ही जल के प्रदूषण को खाकर नदी के जल को निर्मल बनाते हैं। तमाम तीर्थस्थानों पर नदियों मे बड़ी मछलियों को तैरते देखा जा सकता है। इनके द्वारा पानी इतना साफ कर दिया जाता है कि नीचे तल दिखाई पड़ने लगता है। अपने धर्मग्रन्थों मे मत्स्यावतार की कथा बताई जाती है। मछली को पूजनीय माना जाता है।
बहते पानी द्वारा हवा से आक्सीजन सोखी जाती है। जल की गुणवत्ता नापने का एक प्रमुख मानदण्ड उसमें घुली हुई आक्सीजन है। पानी में आक्सीजन की मात्रा पर्याप्त होने से उसमें मछली जैसे जलीय जीव-जन्तु पनपते हैं। ठहरे पानी में आक्सीजन कम हो जाती है और ये जन्तु मरने लगते हैं। गंगा को निर्मल बनाने के लिये जरूरी है कि जलीय जीव-जन्तु प्रचुर संख्या में जीवित रहें। अविरलता खंडित करने का दूसरा दुष्प्रभाव गंगा द्वारा लाई जा रही मिट्टी पर पड़ता है। गंगा की मिट्टी के विशेष गुण हैं। नागपुर स्थित ‘नेशनल एन्वायरनमेंट इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (नीरी) ने टिहरी बांध का गंगा के पानी की गुणवत्ता पर अध्ययन किया है। नीरी ने पाया कि गंगा मे विशेष प्रकार के लाभप्रद कीटाणु होते हैं जिन्हें कालीफाज कहा जाता है। गंगा के कालीफाज मे विशेषता है कि एक प्रकार का कालीफाज कई प्रकार के हानिकारक कालीफार्म को खा लेता है। ये कालीफार्म मनुष्यों एवं पशुओं के मल से गंगा मे आते हैं और पानी को दूषित कर देते हैं। इन्हें खाकर कालीफाज गंगा के पानी को स्वच्छ कर देते हैं। दूसरी नदियों में इस प्रकार के कालीफाज नही पाए जाते हैं। कालीफाज की इस करामात को गंगा की ‘सेल्फ प्यूरिफाइंग’ क्षमता बताया गया है। ये कालीफाज गंगा के पहाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं। इनका ‘घर’ गंगा की मिट्टी होता है। ये मिट्टी में चिपककर वर्षों तक बैठे रहते हैं। मैदानी क्षेत्रों में गंगा के पानी को निर्मल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि कालीफाज युक्त मिट्टी पर्याप्त मात्रा मे नीचे आए। यह कालीफाज युक्त मिट्टी बांधों के पीछे कैद हो जाती है अथवा बराजों से निकाल कर खेतों को पहुंचा दी जाती है। वर्तमान में पहाड़ से आने वाली गंगा का पानी नरोरा के नीचे नहीं बहता है, जो पूरा सिंचाई के लिए निकाल लिया जाता है। कानपुर, बनारस, पटना और कोलकाता मे गंगा के पानी में ये कालीफाज नहीं पहुंच रहे हैं। फलस्वरूप आज नरोरा के नीचे गंगा स्वयं अपने को स्वच्छ नहीं कर पा रही है। ‘इनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी’ द्वारा गंगा की मिट्टी की लगातार ‘डेÑजिंग’ की जा रही है। इससे मिट्टी मेंं पड़े कालीफाज एवं मछलियों के अंडे बर्बाद हो रहे हैं।
निर्मलता और अविरलता में चोली-दामन का साथ है। योगी बताते हैं कि गंगा के किनारे ध्यान आसानी से लग जाता है। हमें गंगा की आध्यात्मिक शक्ति की रक्षा करनी होगी। गंगा की अद्भुत ‘सेल्फ प्यूरिफाइंग’ तथा आध्यात्मिक शक्तियों को बचाए रखते हुए आर्थिक विकास हासिल करना चाहिए। गंगा की इन शक्तियों का संरक्षण अविरलता बनाए रखने से ही होगा। डॉ. भरत झुनझुनवाला
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