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मेजर जनरल (से.नि.) भुवनचन्द्र खंडूड़ी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री के नाते चर्चित रहे हैं। इसके साथ ही उत्तराखंड राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में अण्णा हजारे के लोकायुक्त को पूरी तरह लागू करने वाले देश के पहले राज्य प्रमुख भी। 1982 में अतिविशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित कॉर्प्स ऑफ इंजीनियरिंग में 36 वर्ष सेवा देने वाले खंडूड़ी ने पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ के माध्यम से सैनिकों के हितों के लिए भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से निरंतर आवाज उठायी है। वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर रक्षा समिति के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने सरकार के साथ इसे लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक सूर्य प्रकाश सेमवाल ने वन रैंक वन पेंशन मुद्दे पर मे.ज. (से.नि.) भुवनचन्द्र खंडूड़ी से विस्तृत बातचीत की। यहां प्रमुख अंश प्रकाशित किये जा रहे हैं-
एक सैनिक होने के नाते वन रैंक वन पेंशन पर केन्द्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णय को आप किस प्रकार देखते हैं?
भारतीय सैनिकों के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है और एक सैनिक होने के नाते इसे मैं देश के सक्षम नेतृत्वकर्ता सेनापति द्वारा लिया गया ऐतिहासिक निर्णय मानता हूं। वास्तव में पिछले 40 वर्षों से ठंडे बस्ते में डाल दिये गये इस गंभीर प्रकरण को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रभावी निर्णय क्षमता के बल पर वायदे के अनुरूप 16 महीने में ही क्रियान्वित करके संकल्प शक्ति की दृढ़ता को सिद्ध किया है। जो सैनिक देश की संप्रभुता और रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करते हैं उनका मान बढ़ा है इस सौगात से। पूर्व सैनिकों व उनके परिजनों को इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री का आभार व्यक्त करना चाहिए।
वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा बहुत लंबे समय से चल रहा था। आप स्वयं इसके साक्षी रहे हैं। इसकी पृष्ठभूमि के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे?
देखिए, इसका वास्तव में एक पूरा इतिहास है और बड़ी पृष्ठभूमि है। देश में स्वतंत्रता के बाद सत्ता में ज्यादातर कांग्रेस पार्टी रही है और यह कड़वी सच्चाई है कि अंग्रेजों के जमाने में भी सैनिकों को सम्मान प्राप्त था, लेकिन कांग्रेस ने सैनिकों को कभी राष्ट्र के सम्मानित नागरिकों के रूप में देखा ही नहीं। पूर्व सैनिकों ने अपनी पेंशन, स्वास्थ्य एवं अन्य सुविधाओं की मांग के साथ सम्मान की लड़ाई बोट क्लब में 1991 में प्रभावी ढंग से शुरू की थी। इससे पहले पूर्व सैनिक सेवा परिषद के माध्यम से पूर्व सैनिकों ने सभी राजनीतिक दलों को अपनी वर्षों पुरानी मांग के बारे में ज्ञापन भी दिये थे। बोट क्लब के प्रदर्शन के बाद उस समय प्रतिपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव के समक्ष सैनिकों की मांगें रखी थीं। संसद के अंदर चार-पांच दिन तक बहस करने के साथ भाजपा ने संसद के बाहर भी यह बात प्रभावी ढंग से रखी थी। शरद पवार रक्षामंत्री थे। उसके बाद से वन रैंक वन पेंशन के नाम से यह आंदोलन निरंतर चलता रहा और राजनीतिक दलों के घोषणापत्र का हिस्सा बन गया। कांग्रेस ने पिछले 10 वर्षों में भी पूर्व सैनिकों का मात्र अपमान ही किया है। लेकिन हमें गर्व है कि भाजपा ने सत्ता में आते ही अपने घोषणापत्र के इस अहम मुद्दे को समय से पूर्व और उम्मीद से अधिक साकार कर दिया।
वन रैंक वन पेंशन को सरकार द्वारा लागू करने की घोषणा के बाद और विशेषकर प्रधानमंत्री द्वारा स्वयं इस विषय पर बड़ा वक्तव्य देने के बावजूद कुछ सैनिक अभी भी जंतर मंतर पर आंदोलनरत हैं। ऐसा क्यों?
यह सच है कि इस देश में नौकरशाही किसी भी ठोस निर्णय एवं बड़ी योजना के क्रियान्वयन में एक बहुत बड़ी बाधा है। नौकरशाहों द्वारा तैयार किये गये कार्यवाही बिन्दु गोलमोल और अस्पष्ट होते हैं। क्योंकि इस प्रकरण पर प्रधानमंत्री की पैनी नजर थी और प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर अत्यधिक गंभीर था, इसलिए नौकरशाही इस पर ज्यादा दिन तक आंखमिचौली नहीं कर सकती थी। इसी कारण फरीदाबाद में प्रधानमंत्री द्वारा 6 अगस्त को दिये गये भाषण से सभी पूर्व सैनिक हर्षित, रोमांचित एवं उत्साहित हैं। एक सैनिक होने के नाते मैं भी इसे एक अद्भुत कार्य मानता हूं जो नरेन्द्र मोदी जैसा त्वरित निर्णय कर्ता प्रशासक ही कर सकता है।
कुछ लोगों का तर्क है कि सेना के अधिकारियों को तो वन रैंक वन पेंशन से पर्याप्त लाभ मिलेगा जबकि 'जूनियर कमीशन ऑफिसर' और 'ओआर्स' को उस अनुपात में लाभ नहीं मिल पाएगा। इस पर आप क्या कहेंगे?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये भ्रांतियां वे लोग फैला रहे हैं जिन्होंने हाल ही में 10 वर्ष तक और उससे पूर्व भी कई वर्ष सरकार में रहकर पूर्व सैनिकों के लिए कुछ नहीं किया। जब जंतर मंतर में प्रदर्शनकारी पूर्व सैनिकों को नकली हमदर्दी देने चले तो वहां से बैरंग लौटा दिये गये। यही लोग सरकार द्वारा स्वीकृत वन रैंक वन पेंशन की योजना में खामियां गिना रहे हैं और जंतर मंतर पर धरना जारी रहने का प्रचार कर रहे हैं। बाकी देश के पूरे सैनिकों को प्रधानमंत्री की बात पर पूरा भरोसा है। सरकारी अध्यादेश एक औपचारिकता है जो नि:संदेह वही होगा जो प्रधानमंत्री ने कहा है।
बात यह भी आ रही है कि वन रैंक वन पेंशन को स्वीकारने के बाद सरकार के समक्ष अन्य विभाग भी ऐसी मांग रख सकते हैं । इस पर आपकी राय क्या है?
देश का सजग नागरिक जानता है कि सैनिक अपना घर परिवार और सबकुछ त्यागकर देश की सेवा के लिए अपना जीवन दांव पर लगाता है। वह अपनी मर्जी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति भी नहीं ले सकता। 60 वर्ष तक केवल सेना प्रमुख जा सकता है, बाकी इससे पहले सेवानिवृत्त कर दिये जाते हैं। सामान्यकर्मियों और सैनिकों की सेवा की प्रकृति में जमीन-आसमान का अंतर है। रक्षा से इतर सेवाएं इतनी जोखिम भरी नहीं होतीं, इसलिए विरोध का प्रश्न ही नहीं उठता।
आप सेना में भी प्रभावी पदों पर रहे और सरकार के अंदर भी रहे। रक्षा सेवाओं में प्रशासनिक सेवाओं की अपेक्षा युवाओं का आकर्षण ज्यादा क्यों नहीं है?
मैं इस बात से सहमत हूं। युवाओं को आकर्षित करने के लिए रक्षा सेवा के विभिन्न विभागों में प्रतिभाशाली युवक-युवतियों को आकर्षित करने के लिए ठोस वेतनमान और करियर प्रगति के अवसर बढ़ाये जाने चाहिए। अभियांत्रिकी, चिकित्सा, शिक्षा और अनुसंधान क्षेत्र में अंतविेभागीय नियुक्तियों को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। सैनिकों और उनके आश्रितों के कल्याण के लिए समय-समय पर विचार होना चाहिए। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ऐसा करेगी।
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