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सुरक्षा पर संवाद – सुरक्षा के मोर्चे पर सबकी भागीदारी जरूरी

by
Aug 22, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Aug 2015 15:02:35

पाञ्चजन्य, आर्गनाइजर एवं जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में हरियाणा भवन, नई दिल्ली में 14 अगस्त को 'रणनीतिक सुरक्षा विमर्श में पक्षकारों की भूमिका' विषय पर तृतीय सुरक्षा संवाद आयोजित किया गया। देश की रक्षा-सुरक्षा के वास्तविक में शिक्षाविद्, प्रबुद्ध तंत्र, स्वैच्छिक संस्थाएं, मीडिया और संबंधित कार्यकर्ता और विभिन्न क्षेत्रों के जनसूचना अधिकारी शामिल हैं। विषय प्रवर्तन करते हुए शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल ने कहा कि सुरक्षा के स्तर पर आज असहज आश्चर्यपूर्ण स्थिति है यह खतरे का द्योतक बन गयी है। भारत में अभी ठोस तरीके से आईएसआईएस की धमकी पर विश्लेषण नहीं किया गया है। इन दिनों आईएसआईएस नए विस्तार के साथ बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। उत्तर भारत से ज्यादा इसके प्रभाव का संभावित खतरा दक्षिण भारत में है।  पश्चिमी दुनिया और ईरान के बीच हुए समझौते के प्रभाव सीधे तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में पड़ेंगे। हमारे एकदम निकटस्थ पड़ोसी बंगलादेश में मजहब बचाने के नाम पर लगातार चौथे ब्लॉगर की हत्या, श्रीलंका में राष्ट्रपति के चुनाव और मालदीव में हो रही घटनाएं घरेलू रूप से हमारे रणनीतिक विमर्श पर प्रभाव डालेंगी।
पूर्व  मे.ज. अता हस्नैन ने कहा कि दुर्भाग्य से हमारे देश में गैर राज्य संस्थाएं रणनीतिक संस्कृति से स्वयं को अलग-थलग रखती हैं। देश में सुरक्षा संस्कृति की जागरूकता एक बड़ी रणनीतिक प्रक्रिया है। सुरक्षा के प्रति सामाजिक चेतना को सुनिश्चित करना होगा। शान्ति और सुरक्षा के लिए रचनात्मक सक्रियता बहुत महत्वपूर्ण है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की भूमिका दूसरा क्षेत्र है जहां रणनीतिक संस्कृति और देशभक्ति के प्रोत्साहन हेतु हमारे पक्षकार अपना यथेष्ट योगदान दे सकें। हमें मास्को से सीख लेनी चाहिए जहां बुद्धिजीवी जमात को सुरक्षा और रणनीतिक अध्ययन से जोड़ा जाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के स्तर पर होने वाली भारत पाक वार्ता पर दोनों देशों को संयुक्त रूप से आईएसआईएस को उखाड़ फेंकने की व्यूहरचना बनानी चाहिए क्योंकि दोनों पर ही इसका प्रभाव पड़ने वाला है।
मे.ज. (से.नि.) ध्रुव कटोच ने कहा कि हमें बाहरी पक्ष को देखने से पहले आंतरिक पक्ष को देखने की आवश्यकता है। भारतीय सैन्य उद्योग तंत्र सुरक्षा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण तत्व है। अशोक लीलैण्ड की तुलना में जबलपुर व्हीकल फैक्टी कम लागत मूल्य पर सैन्य वाहनों का निर्माण कर रही है। सैन्य उत्पादन उद्योग और खरीदारी के मोर्चे पर क्या यह किसी भ्रष्टाचार का संकेत है! इस पक्ष पर भी सोचने की जरूरत है। जनरल वी.के. सिंह विवाद झगड़े की जड़ जन्मतिथि कम हथियार माफियाओं द्वारा संगठित षड्यंत्र ज्यादा था। हथियारों की खरीद में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहा है। इसलिए इस क्षेत्र में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने की भी जरूरत है। डीआरडीओ को इसरो की पद्धति पर कार्य करना चाहिए। हमारे एक-एक व्यक्ति में देशभक्ति का भाव है और देश के लिए सभी अपने प्राण न्योछावर करने को तत्पर हैं। इस्लामी अतिवाद वैचारिक युद्ध का खतरा है। हमें ऐसे वास्तविक पक्षकारों की जरूरत है, जो इस्लामी ब्योरे और उसके समानान्तर एक नई व्याख्या तैयार करें। देवबंद और बरेलवी दोनों ही इस्लाम के घरेलू केन्द्र हैं, जो प्रत्येक भारतीय मुसलमान के लिए स्वाधीनता दिवस पर ध्वजारोहण की बात कर रहे हैं।  यह संकेत अच्छे हैं। दूरदर्शन के वरिष्ठ परामर्शदाता संपादक के. जी. सुरेश ने कहा जिस तेजी से मध्य-पूर्व में लोगों को दिग्भ्रमित किया जा रहा है इसके असर से केरल भी अछूता नहीं है। यह राज्य संभवत : दूसरा कश्मीर बनने जा रहा है!  एम. ए. यूसुफ जैसे लोगों द्वारा इस्लामी एजेंडे को पूरा करने के लिए पर्याप्त निवेश किया गया है। हमें आतंक को बढ़ावा देने वाले वित्त के इन स्रोतों को भी खंगालने की जरूरत है।
आलोक बंसल ने कहा कि हमारे विदेश मंत्रालय को सजग और चौकन्ना रहना होगा, अपने पड़ोसी देशों पर हमें विशेष और प्रभावी ढंग से ध्यान देना होगा। वरिष्ठ स्तंभकार सुश्री संध्या जैन ने कहा कि अपने पड़ोसी देश विशेषकर पाकिस्तान के लिए ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। यह वह क्षेत्र है जहां रूढि़यों से निकलने की जरूरत है।
शिक्षाविद् एवं रक्षा मामलों के जानकार एम. डी. नालापाट ने कहा कि भारत में मुस्लिम समुदाय दकियानूसी और पृथकतापूर्ण माहौल में जी
रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार विजय क्रांति ने कहा कि कश्मीर में मीडिया की भूमिका का विश्लेषण करना चाहिए। इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं। श्रीनगर में 100 फीसद ब्यूरो प्रमुख सुन्नी समुदाय से हैं। इससे खबरों की निष्पक्षता निश्चित ही प्रभावित होती है। साथ ही उन्होंने कहा कि धर्मशाला और बीजिंग के बीच जारी विवाद भारत के पक्ष में चौकाने की हद तक अहितकर मोड़ ले सकता है।
पूर्व एडमिरल अनूप सिंह ने कहा कि भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती आज चीन है। चीन ने गहरे समुद्र में अपनी नौसैनिक गतिविधियों को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। उन्होंने अपने तटरक्षक बलों का विस्तार किया है। निगरानी के नाम पर भारतीय महासागर में नाभिकीय ऊर्जा वाली पनडुब्बी छोड़ी है। आलोक बंसल ने कहा कि विदेश मंत्रालय को सैन्य कूटनीति को आपसी संबंधों के मामले में एक अनिवार्य बिंदु के रूप में रखना होगा और वर्तमान बदलते समय में राष्ट्र को भी जरूरत है कि वह अपनी नीति में भी बदलाव करे।
द्वितीय सत्र में आंतरिक सुरक्षा पर विषय प्रवर्तन करते हुए आलोक बंसल ने कहा कि भारत को आंतरिक सुरक्षा के विषय पर देश के अंदर ही वामपंथियों के अतिवाद, जम्मू-कश्मीर एवं इस्लामी अतिवाद आदि मुद्दों को ध्यान में रखते हुए चर्चा करनी चाहिए। यह तब और जरूरी हो जाता है जबकि 55 भारतीय पहले ही इस्लामिक स्टेट के लिए काम करते मिले हैं।
रक्षा मामलों के अध्येता जयबंस सिंह ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का उल्लेख करते हुए बाह्य एवं आंतरिक रक्षा चुनौतियों के परस्पर गुंथे सूत्रों की ओर ध्यान आकृष्ट किया। उनके अनुसार सीपीईसी भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। इस गलियारे में ग्वादर केन्द्र है जिसके माध्यम से चरणबद्ध तरीके से पाकिस्तान में चीन द्वारा 40 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया जाएगा। इसी प्रकार गिलगित-बाल्टिस्तान में शियाआंे का शोषण ऐसे बिंदु हैं, जहां राज्य के बाहर के लोग बड़ी भूमिका निभाते हैं। यहां सूत्र जम्मू-कश्मीर से जुड़ते हैं। इस विमर्श पर मीडिया की उदासीनता चिंता का विषय है। स्थानीय आतंक से लड़ने एवं इसे दूर करने के लिए भाजपा-पीडीपी सरकार अपनी दृष्टि और क्रिया दोनों ही रूपों में गंभीर है।
आलोक बंसल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अलग-अलग प्रकार के हित जुड़े हैं। ग्रामीण सुरक्षा समितियां, मीडिया और स्वयंसेवी संगठन इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं और इस्लामी अतिवाद से होने वाले नुकसान को रोक सकते हैं। अलगाववादी स्वर भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर राज्य में अशांति ही बढ़ा रहे हैं। धु्रव कटोच ने कहा कि रणनीतिक रिक्तता में हमें व्याख्याओं के प्रतिकार के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें सांस्थानिक समाधानों से इन चुनौतियों का मुकाबला करना चाहिए। मीडिया और वैचारिक तंत्र को आपस में समन्वय करना होगा। पाठ्यक्रमों से अतिवादी बिंदुओं को हटाने का प्रयास इस दिशा में बहुत प्रभावी सिद्ध हो सकता है। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक श्री अरुण कुमार ने कहा कि विचारों और भावों का निरंतर विनिमय होना चाहिए। तथ्यों के आधार पर सही विश्लेषण होना चाहिए। दिनभर के इस वैचारिक विमर्श में सामूहिक रूप से मुख्य बिंदुओं पर सहमति बनी।
संगोष्ठी का संचालन पाञ्चजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर और ऑर्गनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर ने किया।          – पाञ्चजन्य ब्यूरो  

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