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'क्या नेपाल में फिर इतिहास दोहराया जाएगा? क्या नेपाल फिर से हिन्दू राष्ट्र बनेगा? यह सवाल इन दिनों राजनीतिक और राजनयिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में नेपाल की राजनीतिक पार्टियों ने नए संविधान से 'पंथनिरपेक्ष' शब्द हटाने पर सहमति बना ली है। नेपाल की कट्टर यूनीफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (यूसीपीएन-एम) के दशकों लंबे चले हिंसक संघर्ष के बाद राजनीति की मुख्यधारा से जुड़ जाने के बाद 2007 में नेपाल को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। इस फैसले ने नेपाल के सदियों पुराने हिंदू साम्राज्य होने की पहचान को समाप्त कर दिया था।
नेपाल की 85 फीसद से ज्यादा जनसंख्या हिंदू है। राजनीतिक दलों ने नए संविधान पर लाखों लोगों की प्रतिक्रिया का सम्मान करते हुए पंथनिरपेक्ष शब्द हटाने का फैसला किया है। संविधान सभा के अनुसार, अधिकांश लोग पंथनिरपेक्ष की जगह 'हिंदू' और 'धार्मिक आजादी' शब्द संविधान में शामिल कराना चाहते हैं। नेपाल में जल्द ही नए संविधान की घोषणा की जाएगी। यूसीपीएन-माओवादी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने मीडिया से कहा, 'पंथनिरपेक्ष शब्द इसमें फिट नहीं बैठता। इसलिए हम इसकी जगह दूसरा शब्द जोड़ रहे हैं।' उन्होंने कहा, 'इस शब्द ने लोगों को परेशान किया है। इसने लाखों लोगों की भावनाओं को आहत किया है। हमें लोगों के फैसले का आदर करना चाहिए।' नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मार्कसिस्ट लेनिनिस्ट और मधेशी पार्टियों ने भी पंथनिरपेक्ष शब्द हटाने पर सहमति जताई है।
यह कदम उन सभी प्रतिगामी शक्तियों के लिए करारा झटका है जो 2006 से देश पर शासन कर रही थीं। माओवादियों और सात अन्य पार्टियों में सुलह से यह सुनिश्चित हुआ कि राजा ज्ञानेंद्र देश पर सीधे शासन न कर पाएं। इससे उत्साहित सत्तारूढ़ पार्टियों ने किसी भी मुद्दे पर जनता की राय जानना और बहस कराना जरूरी नहीं समझा और एकतरफा घोषणा कर दी कि नेपाल संघीय, सेकुलर और गणतंत्र होगा। जब कथित क्रांतिकारी कदम उठाए गए तब उसके लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन बदलावों का स्वागत करता रहा, बिना यह समझे कि जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी ही बदलावों को संस्थागत करने की दिशा में सबसे बड़ी गारंटी है। वास्तव में परिवर्तन के ये नौ साल नेपाली राजनीति का सबसे असहिष्णु कालखंड रहे। हिन्दू सम्राट के साथ हिन्दू राष्ट्र कहे जाने के बावजूद नेपाल ज्यादा उदारवादी, अन्य पंथों के प्रति सहिष्णु था, हालांकि वहां कन्वर्जन को लेकर कठोर कानून था। लेकिन आज पुन: देश के बहुसंख्य लोग नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित किए जाने के पक्ष में हैं।
आखिर नेपाल के इन प्रमुख राजनीतिक दलों का अचानक ह्रदय परिवर्तन कैसे हुआ? 2006 में सत्तारूढ़ पार्टियां, जिनमें माओवादी पार्टी भी शामिल थी, नेपाल के विदेशी दानदाताओं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और देश की सिविल सोसायटी की इस दलील से प्रभावित हो गईं कि यदि नेपाल को गणतंत्र बनना है तो उसे अपनी हिन्दू पहचान से मुक्ति पा लेनी चाहिए। पंथनिरपेक्षता पर कभी बहस ही नहीं हुई लेकिन देश को सेकुलर घोषित कर दिया गया। इससे आगे बढ़कर पश्चिमी देश, अंतरराष्ट्रीय एनजीओ और संयुक्त राष्ट्र के कुछ संगठन खुलेआम सेकुलरिज्म के अपरिहार्य अंग के तौर पर कन्वर्जन के अधिकार की बात करने लगे। ब्रिटेन के राजदूत एंड्रयू स्पार्क को तो तब इस्तीफा देना पड़ा जब उन्होंने कन्वर्जन के अधिकार की 'लॉबिंग' करने के लिए संविधान सभा के सदस्यों को खुली चिट्ठी लिखी। सरकार ने उन्हें खूब फटकारा। यह घटना बताती है कि संविधान निर्माण के काम में विदेशी राजनयिक बहुत दिलचस्पी ले रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों के संविधान निर्माण में पूरी तरह से नाकाम होने पर हिन्दू समूहों ने मुखर होना शुरू किया। वे दबाव डालने लगे कि नया संविधान लिखते हुए धर्म और उसकी भूमिका के मुद्दे को सही तरीके से सुलझाया जाए।
सेकुलरिज्म के मुद्दे पर बाहरी शक्तियों के अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण अब तक जो हिन्दू संगठन असंगठित थे वे एकजुट हुए और नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग करने लगे। पिछले वर्ष उन्होंने अपनी मांग के समर्थन में देशभर में आंदोलन छेड़ा जो काफी सफल रहा। उसके बाद से संविधान सभा में मांग उठने लगी कि लोगों की राय जानी जाए। यह बात मान तो ली गई लेकिन 48 घंटे में जनता की राय जानने की बात कही गई, इससे लोगों में भारी असंतोष पैदा हुआ। इसलिए संविधान सभा के सदस्य जनता की राय जानने के लिए जनता के बीच गए तो उन्हें जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा। संविधान सभा की सदस्य नजमा खातून संविधान के प्रारंभिक मसौदे पर लोगों की राय जानने गईं तो हैलमेट पहन कर गईं क्योंकि इससे पहले माधव कुमार नेपाल और माओवादी नेता प्रंचड भी जनता के आक्रोश का शिकार बन चुके थे। उन्हें सुरक्षा बलों की मदद लेनी पड़ी।
इस मुद्दे पर वहां दो तरह की सोच हावी है। आरपीपी-एन के अध्यक्ष कमल थापा का कहना है कि नेपाल को पंथनिरपेक्ष बनाने की वकालत करने वाले नेता पश्चिमी देशों से पैसे लेकर देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं। थापा ने कहा कि नेपाल के संविधान को देश की हिंदू राष्ट्र की पहचान को सुनिश्चित करना होगा। उनका कहना था कि जब दुनिया में 40 से ज्यादा मुस्लिम और 70 से ज्यादा ईसाई देश हो सकते हैं तो नेपाल एक हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं हो सकता है? उन्होंने संविधान में गो-हत्या रोकने के प्रावधान करने की भी मांग की है। दूसरी तरफ हिन्दू संगठन नेपाल को हिन्दू गणतंत्र बनाने के हामी हैं।
1962 के संविधान में तत्कालीन राजा महेंद्र बीर विक्रम शाहदेव ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित किया था। उससे पहले 1913 में महाराजा चंद्र शमशेर नेपाल को 'प्राचीन हिंदू अधिराज्य' कहकर संबोधित करते थे। 2008 में हिंदू राष्ट्र नेपाल को माओवादियों ने 'सेकुलर स्टेट' घोषित किया था। इसे देखकर हैरानी होती है कि जो लोग लंबे समय तक राजतंत्र के विरोधी रहे, वे भी हिंदू राष्ट्र बनाए जाने के लिए हामी भरने लगे हैं। कुछ समय पहले नेकपा-एमाले के नेता के.पी. शर्मा ओली ने मोहन प्राश्रित जैसे पुराने कामरेड को पार्टी की स्थायी समिति में अतिथि वक्ता के रूप में विचार व्यक्त करने के लिए बुलाया। मोहन प्राश्रित तो जैसे हिंदू राष्ट्र बनाने के वास्ते प्राण देने को तैयार दिखे। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि पृथ्वी नारायण शाह के जन्मदिन को 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाया जाना चाहिए। मोहन प्राश्रित जैसे सैकड़ों कामरेड 'नेकपा-एमाले' में मिल जाएंगे, जो हिंदू राष्ट्र के आग्रही हैं।
उल्लेखनीय है कि नेपाली कांग्रेस का बड़ा तबका भी नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाए जाने के पक्ष में है। उसके नेता नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने के अभियान में हिस्सा ले रहे हैं।
नेपाल के प्रस्तावित संविधान में हिन्दू राष्ट्र शब्द जोड़ने की दिशा में गोरखपुर से भी एक प्रयास हो रहा है। यह प्रयास गोरक्ष पीठाधीश्वर एवं भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। इसके लिए काठमांडू में विश्व हिन्दू महासंघ की एक संगोष्ठी में उनके नेतृत्व में एक प्रस्ताव पास कर नेपाल सरकार और संविधान निर्माण सभा को भेजा गया। संगोष्ठी में पहली बार नेपाल के पचास से ज्यादा सांसद, कई पूर्व मंत्री और विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों के साथ हजारों नेपाली शामिल हुए। इस धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम को नेपाली मीडिया ने भी महत्व देते हुए सीधा प्रदर्शित किया।
3 अगस्त को योगी आदित्यनाथ ने नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला और पूर्व नरेश ज्ञानेन्द्र से मुलाकात की। आधे घंटे की बातचीत में कोइराला ने उनको आश्वस्त किया कि नए संविधान में नेपाल के बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं का ध्यान रखा जाएगा। गोरक्ष पीठ नेपाल से गहरा सरोकार रखती है। माना जाता है कि नेपाल का एकीकरण महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने ही किया था। इसीलिए गोरक्षपीठ के प्रति आम नेपालियों में गहरी श्रद्धा रहती है।
नेपाल में संविधान निर्माण का काम अंतिम चरण में है। 3 अगस्त को सभी दलों ने नेपाल की बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं का सम्मान करते हुए एकमत से संविधान से पंथनिरपेक्ष शब्द निकालने का निर्णय किया। अब तय होना है कि उसकी जगह कौन सा शब्द जोड़ा जाए। फिलहाल 'हिन्दू' और 'धार्मिक आजादी' शब्द जोड़ने पर विचार चल रहा है।
नेपाल के पंथनिरपेक्ष राज्य बनने के बाद से वहां कन्वर्जन की प्रक्रिया तेज हो गई है। उत्तरी पहाड़ी इलाकों तथा दक्षिणी पठार के कुछ जिलों में अचानक लोग ईसाई बनने लगे हैं। इस बीच लाखों लोगों का कन्वर्जन हुआ है।
लगभग आठ साल पहले सन् 2006 में जब नेपाल का हिन्दू राजतंत्र समाप्त हुआ तथा माओवादियों द्वारा नया सेकुलर अंतरिम संविधान अस्तित्व में लाया गया, उसी दिन से मानो विदेशी मिशनरी संस्थाओं की बाढ़ सी आ गई। मिशनरी गतिविधियों के कारण नेपाल के पारंपरिक बौद्ध एवं शैव हिन्दू धर्मावलंबियों के बहुमत वाले समाज में तनाव निर्मित होने शुरू हो गए हैं। यहां तक कि ईसाई कन्वर्जन की बढ़ती घटनाओं के कारण वहां नेताओं को इस नए अंतरिम संविधान में भी पांथिक कन्वर्जन पर रोक लगाने का प्रावधान करना पड़ा।
नए संविधान में भी जबरन कन्वर्जन पर पांच साल की जेल का प्रावधान किया गया है। परन्तु इसके बावजूद मिशनरी संस्थाएं अपना अभियान निरंतर जारी रखे हुए हैं।
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