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12 अगस्त। पूरा देश लोकसभा की कार्यवाही को एकटक देखता रहा। जो नहीं देख रहे थे, उन्हें उनके मित्र-संबंधी फोन करके टीवी देखने की सलाह दे रहे थे। सुषमा स्वराज स्वयं पर लगे आरोपों का उत्तर दे रही थीं। कैमरा सुषमा स्वराज का भाषण दिखाते हुए अचानक सोनिया गांधी की ओर चला जाता है। सुषमा स्वराज ने उस समय सवाल उठाए थे- एंडरसन को भागने में मदद किसने की? क्वात्रोकी को भागने में मदद किसने की?
टीवी स्क्रीन पर सोनिया गांधी की भंगिमाएं दिख रही हैं। चेहरा अचानक उतरा हुआ, प्रकट तौर पर हल्की चिंता, सामान्य दिखने की जबरदस्त कोशिश, लेकिन नाकाम। पीछे कांग्रेस सदस्य लगातार शोर कर रहे हैं, सिर्फ इस कोशिश में कि सुषमा स्वराज की आवाज को जहां तक हो सके, दबाया जा सके। आवाज नहीं दबी।
इस एक क्षण को देश और देश का लोकतंत्र हमेशा याद रखेगा। कांग्रेस के प्रथम परिवार के कारनामे इस देश में कई लोग जानते हैं। लेकिन लोग अक्सर इन्हें दबे सुरों में कहने के आदी हो चुके थे। निस्संदेह डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बहुत बार बहुत बेलाग शब्दों में इस परिवार पर बहुत गंभीर आरोप लगाए हैं। लोग उनके लगाए आरोपों पर विश्वास भी करते हैं, लेकिन आम लोगों के पास इस तरह के दस्तावेजी, लिखित या स्पष्ट साक्ष्य नहीं होते हैं, जिनके बूते वे इन आरोपों को खुलकर दोहरा सकें। अब, सुषमा स्वराज के भाषण के बाद, उनके पास उद्धृत करने के लिए एक आधार बिन्दु है। सारी बात लोकसभा के रिकार्ड में दर्ज है, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मौजूदगी में कही गई , और कांग्रेस का प्रथम परिवार इसका कोई उत्तर न सदन में दे सका, न सदन के बाहर।
उस एक क्षण पर, सोनिया गांधी के मन में क्या चला होगा? शायद यह कि काश, कांग्रेस सदस्य इतना शोर मचा पाते कि सुषमा स्वराज का कहा हुआ एक भी शब्द किसी को सुनाई न दे पाता? या शायद यह घबराहट कि पता नहीं सुषमा स्वराज अगले वाक्य में क्या कहेंगी। कोई संदेह नहीं कि कई सवाल अभी भी बाकी हैं। कुछ भी हो सकता था। जैसे यह कि आदिल शहरयार को छुड़वाने के लिए राजीव गांधी ने, वायरलेस पर संदेश भिजवा कर, भोपाल की हत्यारी यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को रिहा करवाया था। लेकिन आदिल शहरयार से राजीव गांधी का आखिर ऐसा क्या रिश्ता था? या जैसे यह कि ओतावियो क्वात्रोकी को भागने में कांग्रेस सरकार ने मदद की थी, लेकिन क्वात्रोकी का कांग्रेस के प्रथम परिवार से आखिर ऐसा क्या रिश्ता था?
अब ये सारे सवाल उठेंगे और अपने जवाब तक पहुंचने तक उठते रहेंगे।
यह भी हो सकता है कि उस एक क्षण पर सोनिया गांधी मन ही मन उस क्षण को कोस रही हों, जब कांग्रेस ने बहस की मांग करने का फैसला किया था, काम रोको प्रस्ताव की जिद की थी। अगर रोज की तरह रोजमर्रा का हंगामा होता तो कांग्रेस को यह दिन नहीं देखना पड़ता। कांग्रेस के प्रथम परिवार पर हमला? कांग्रेस के लिए यह कुफ्र जैसी स्थिति है।
वास्तव में सुषमा स्वराज ने सिर्फ कांग्रेस के प्रथम परिवार का पर्दाफाश नहीं किया। उन्होंने उस मीडिया जमात का भी भांडा फोड़ दिया, जो कांग्रेस के इशारों पर नाचने की जल्दबाजी में या मोदी विरोध की अहंतुष्टि में, अर्धसत्य और झूठ के बीच टहलती रहती है, चीखती और कराहती रहती है। ललित मोदी को 'भगोड़ा' कहने वाला देश का मूलत: अंग्रेजी और कुछ अन्य मीडिया ही था, सुषमा स्वराज ने और अरुण जेटली ने लोकसभा में स्पष्ट किया कि ललित मोदी को आज तक देश की किसी भी अदालत ने भगोड़ा घोषित नहीं किया है। चिट्ठी ललित मोदी के लिए लिखी गई, यह आभास पैदा करने वाला भी इसी मीडिया का यही हिस्सा था,आज यह झूठ भी खुल गया। ललित मोदी की पत्नी, जो पिछले कई वर्ष से कैंसर से पीडि़त हैं, चिट्ठी उनके लिए लिखी गई थी। उन पर न तो कोई आरोप है और न ही वह किसी भी तरह से विवादित हैं।
निशाने पर तीर
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सपाट सी घोषणा थी-जब तक सुषमा स्वराज इस्तीफा नहीं देंगी, संसद नहीं चलने दी जाएगी। लेकिन 12 अगस्त को मल्लिकार्जुन खडगे ने काम रोको प्रस्ताव रख कर सबको चौंका दिया।
प्रश्न- क्या यह कांग्रेस में किसी नई सोच का परिणाम था? क्या कांग्रेस किसी कारण से दबाव महसूस कर रही थी?
उत्तर-नई सोच का सवाल ही नहीं था। मल्लिकार्जुन खडगे से राहुल गांधी की खींची लकीर से आगे जाने का साहस दिखाने की अपेक्षा कोई नहीं रखता।
ऐसे में शायद कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह उम्मीद रही होगी कि काम रोको प्रस्ताव की उनकी मांग खारिज कर दी जाएगी और लिहाजा यह मांग उठाने में कोई हर्ज नहीं है।
अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वे प्रस्ताव की शब्दावली के आधार पर भाजपा को भड़काने का काम करेंगे, इससे सदन न चलने देने का दोष भी भाजपा पर मढ़ना सरल हो जाएगा।
लेकिन सुषमा स्वराज ने प्रस्ताव को, किसी भी शब्दावली में, तुरंत स्वीकार करने की मांग करके उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
कांग्रेस ने आखिरी पत्ता फेंका। वह (अपने ही लाए काम रोको प्रस्ताव पर) बहस करने के लिए तैयार थी, लेकिन इस पर भी उसकी शर्त थी- पहले प्रधानमंत्री को बुलाया जाए।
अब कांग्रेस की चिढ़ या अहंकार साफ था। उसे सिर्फ अहंतुष्टि करनी थी। बहस की औपचारिकता में मल्लिकार्जुन खडगे सिर्फ एक मोहरे साबित होने जा रहे थे, हालांकि सुषमा स्वराज ने उन्हें बख्श कर और सीधे राजपरिवार पर हमला करके इस आखिरी पत्ते को भी भोथरा कर दिया। उधर कांग्रेस की ओर से कोई नहीं जानता था कि अगर एक बार बहस शुरू हो गई, तो कांग्रेस किस बिन्दु का क्या जवाब देगी। कांग्रेस अपने मुंह की खाने की पटकथा खुद लिख कर आई थी।
दूसरा पहलू। सदन में कांग्रेस अकेली पड़ती जा रही थी। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस राजदरबार को उनके 'तू सेवेंती तू' वाले क्षण की याद दिला दी थी, जब मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया था। कांग्रेस के बाकी 'नैसर्गिक सहयोगी' पहले ही मैदान छोड़ चुके थे। कांग्रेस के साथ आने के लिए पूरा विपक्ष भी राजी नहीं था। यहां तक कि वह राजद भी सदन चलने देने के पक्ष में खड़ी हो गई, जो बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की गठबंधन भागीदार बनने जा रही है। खीझे हुए कांग्रेस सदस्यों ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में सदन में मुलायम सिंह को न बोलने देने के लिए चीख-चीख कर जमीन-आसमान एक कर दिया। हालांकि जब उसी विषय पर राजद के सांसद बोल रहे थे, तो कांग्रेस उस पर बिल्कुल चुप रही।
तीसरा पहलू। सीआईआई की पहल पर एक ऑनलाइन याचिका शुरू की गई, जिसमें दिखावे के लिए सभी पार्टियों से और वास्तव में कांग्रेस-सीपीएम गठजोड़ से अपील की गई थी कि वे सदनों को काम करने दें। इस याचिका पर देश के १५ हजार शीर्ष उद्योगपति हस्ताक्षर कर चुके थे।
कांग्रेस को उद्योग जगत की यह हुकुमउदूली जरा भी रास नहीं आई। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने ट्वीट करके इस बात पर ही आपत्ति कर दी कि उद्योग जगत आखिर बोल क्यों रहा है। लेकिन मनीष तिवारी यह भूल गए कि हाल ही में कांग्रेस ने अपने सर्वोच्च, यानी कि उपाध्यक्ष के स्तर पर, आर्थिक दबाव होने की बातकही थी और चंदे की मांग की थी।
चौथा पहलू। कांग्रेस 25 सदस्यों का निलंबन देख चुकी थी। कोई संदेह नहीं कि इसके अति नाटकीय विरोध की तस्वीरें अखबारों में छपी थीं। लेकिन जाहिर तौर पर एक ही तस्वीर बार-बार नहीं छप सकती थी। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा ताई महाजन अपनी नाराजगी बहुत साफ शब्दों में जता चुकी थीं, और अब कांग्रेस के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं बचा था।
सुषमा स्वराज के हमलों का तीसरा निशाना बने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम। सुषमा स्वराज ने सरेआम कहा कि मल्लिकार्जुन खडगे जो कुछ पढ़ कर सुना रहे हैं, उन्हें वह पी. चिदम्बरम ने लिखकर दिया है और यह पूरा मामला निजी शत्रुता का षड्यंत्र है। कांग्रेस के पास इसका कोई उत्तर नहीं था, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
सुषमा स्वराज ने पी. चिदम्बरम पर फिर हमला बोला। उन्होंने चिदम्बरम के वित्त मंत्री रहते हुए उनकी पत्नी नलिनी चिदम्बरम के आयकर विभाग की ओर से वकील होने का मामला उठाया। कांग्रेस ने चिदम्बरम का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं समझी।
यहां तक आते आते कांग्रेस लगभग पस्त हो चुकी थी। इतनी पस्त कि जब सुषमा स्वराज ने सोनिया, राहुल और राजीव गांधी पर हमले किए, तो भी कांग्रेस हताश भाव से देखती रही। सोनिया गांधी तब जाकर आसन के आगे आईं, जब भाजपा के एक सांसद सतीश गौतम ने सोनिया गांधी की बहन एलेक्जांद्रा उर्फ अनुष्का के लिए पूछ लिया- राहुल की मौसी को कितना पैसा मिला ललित मोदी से? इस आरोप ने सोनिया, राहुल और बाकी कांग्रेस में नई जान फूंक दी। पूरी कांग्रेस सदन के गर्भ में उतर आई, और सदन एक घंटे के लिए स्थगित होने के बाद ही हटी। बाद में घोषणा की गई कि यह टिप्पणी रिकार्ड में नहीं है।
कांग्रेस के प्रथम परिवार का, प्रथम परिवार के लिए, प्रथम परिवार की ओर से अहंकार को दबे शब्दों में एक अभिव्यक्ति दी मल्लिकार्जुन खडगे ने। उन्होंने मांग की कि सुषमा स्वराज के भाषण को नियम ३५२ के तहत पूरा का पूरा खारिज किया जाए। तर्क नहीं, सीधा खारिज करने का फरमान। निष्ठावान फर्ज। जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इस नियम के तहत तो खुद खडगे का भी भाषण खारिज हो जाएगा, तो खडगे बैठ गए। कांग्रेस का यह अंतिम तर्क था। -ज्ञानेन्द्र बरतरिया
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