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7 की मौत 3 आतंकी ढेर कब क्या हुआ मृतकों में चार पुलिसकर्मी व तीन नागरिक
27 जुलाई की सुबह पंजाब के लिए एक काला सवेरा बनकर आई। सेना की वर्दी पहने हुए पाकिस्तान से भारत की सीमा में प्रवेश कर घुसे तीन आतंकवादियों ने पहले एक कार चालक को गोली मारकर कार छीनी, फिर एक बस में सवार यात्रियों को निशाना बनाया। आखिर में दीनानगर पुलिस थाने में कहर बरपाया। 12 घंटे बाद तीनों आतंकवादियों को मार गिराया गया।
5.30 बजे करीब सुबह आतंकी पंजाब में घुसे
7.00 बजे करीब सेना की वर्दी पहने आतंकियों ने कार छीनी
7.15 बजे करीब सेना की वर्दी पहने आतंकियों ने कार छीनी
7.15 बजे करीब आतंकियों ने बस पर गोलियां चलाईं
7.30 बजे करीब आतंकी दीनानगर पुलिस थाने पहुंचे
8.00 बजे आतंाकियों ने थाने में प्रवेश किया
8.30 बजे तक तीन लोगों की मौत
सेना, स्वॉट और एनएसजी मौके लिए लिए रवाना
9.00 बजे तक सेना ने थाने को घेरा, ऑपरेशन शुरु
राकेश सैन, गुरदासपुर (पंजाब)
27 जुलाई को पंजाब एक बार फिर से बड़े आतंकी हमले से दहल गया। सेना की वर्दी में आए आतंकवादियों ने गुरदासपुर जिले में सिलसिलेवार हमले कर पुलिस अधीक्षक सहित 7 लोगों की जान ले ली और 15 लोग घायल हो गए। करीब 12 घंटे तक चली मुठभेड़ में सेना और पुलिस ने तीन आतंकवादियों को मार गिराया। हमले के पीछे लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। आतंकवादियों से बरामद जीपीएस उनके पाकिस्तान से आने की कलई खोलता है, इससे स्पष्ट है कि इसके पीछे आईएसआई लिप्त है। पुलिस के मुताबिक आतंकवादियों ने दीनानगर में सबसे पहले एक चाय की दुकान को निशाना बनाया। स्थानीय निवासी कमलजीत सिंह मठारू ने बताया कि सेना की वर्दी पहने हुए हथियारों से लैस हमलावरों ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं और उनकी मारुति 800 कार छीन ली। मठारू गोली लगने से घायल हो गए। फिर आतंकवादियों ने कार के अंदर से दीनानगर बाईपास पर एक ढाबा मालिक की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद उन्होंने पंजाब रोडवेज की बस पर गोलीबारी कर दी। आतंकवादियों ने दीनानगर थाने पर कब्जा करने से पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और पुलिस आवास पर भी अंधाधुंध गोलीबारी की। इस मुठभेड़ में पंजाब के पुलिस अधीक्षक (गुप्तचर) बलजीत सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। सिर में गोली लगने से उनकी मौत हो गई। उन्होंने थाने की पहली मंजिल पर मोर्चा संभाल रखा था कि तभी थाने के अंदर छिपे आतंकवादियों ने पीछे से उन्हें गोली मार दी। आतंकवादी हमले में शहीद हुए पुलिस अधीक्षक (गुप्तचर) बलजीत सिंह के आखिरी शब्द थे…'मैं उनको खदेड़ कर ही दम लूंगा।' आतंकवादियों ने जब दीनानगर थाने पर हमला किया, तभी बलजीत सिंह ने अपने जवानों के साथ उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जांबाज बलजीत सिंह के साथ आतंकवादियों से लड़ रहे सहायक उप निरीक्षक भूपेंद्र सिंह ने बताया कि आतंकवादियों की गोलियां लगातार पुलिस अधीक्षक को छूकर गुजर रही थीं। बलजीत थाने की छत पर एक टंकी के पीछे छिपकर उनका जवाब दे रहे थे। भूपेन्द्र ने उनसे संभलकर रहने के लिए कहा तो उनका जवाब था कि 'आप मेरी चिंता मत करो, आगे बढ़ कर लड़ो……मैं इनको खदेड़ कर ही रहूंगा।' तभी एक गोली बलजीत के सिर को पार करते हुए निकल गई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
मूल रूप से कपूरथला के रहने वाले बलजीत सिंह डेढ़ महीने पहले ही तरक्की पाकर पुलिस अधीक्षक बने थे। दीनानगर थाने में गोलीबारी की खबर सुनते ही वह वहां पहुंच गए थे। बलजीत सिंह बेहतरीन हॉकी खिलाड़ी थे। वह हॉकी टीम में 'मिड फील्डर' रहे थे। उन्होंने 1993 में दक्षिणी अफ्रीका के खिलाफ पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था।
परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं
दिवंगत बलजीत सिंह के परिवार में पत्नी कुलवंत कौर, बेटा मनिंदर सिंह (24) और दो बेटियां परमिंदर कौर (22) व रविंदर कौर (20) हैं। मनिंदर बी-टेक कर रहा है, जबकि परमिंदर आईल्ट्स और रविंदर कौर बीडीएस की पढ़ाई कर रही हैं।
पिता भी हुए थे शहीद
बलजीत को 1984 में पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पुलिस की नौकरी मिली थी। बलजीत सिंह के पिता अच्छर सिंह को भी आतंकवादियों ने गाड़ी से कुचलकर मार दिया था। अच्छर सिंह उस समय निरीक्षक थे। उनकी मौत के बाद 1985 में बलजीत को सहायक उप निरीक्षक की नौकरी मिली थी। बलजीत काफी जांबाज पुलिस अधिकारी थे और अपने साथियों का भी मनोबल बढ़ाया करते थे।
जख्मी होकर भी दोनों पुलिसकर्मी
दीनानगर थाने के मुंशी रामलाल सुबह 5.30 बजे संतरी रजिंदर कुमार के साथ रोजाना की तरह ही थाने में बैठे हुए थे। अचानक बाहर से गोलियों की आवाजें उन्हें सुनाई दीं। कुछ नहीं सूझा तो दोनों ने थाने का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। लेकिन हथियारबंद आतंकवादी थाने के अंदर प्रवेश कर गए और दरवाजे के पास लगे शीशे पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इसी दौरान रामलाल, रजिंदर की एसएलआर लेकर थाने की छत पर चले गए। वहां से आतंकवादियों पर गोलीबारी शुरू कर दी। फिर एक गोली रामलाल की बाजू में जा लगी। फिर भी उन्होंने गोलीबारी नहीं रोकी। थोड़ी देर बाद आतंकवादियों की गोली उनकी बांई जांघ पर जा लगी। उनकी टांग भी टूट गई, लेकिन वे आखिर तक वहीं जमे रहे। संघर्ष खत्म होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
सेना-पुलिस की संयुक्त कार्रवाई
इस अभियान में पंजाब और जम्मू कश्मीर पुलिस के स्वॉट कमांडो सहित सेना के कमांडो ने भी मिलकर काम किया। इस ऑपरेशन में दो हेलीकॉप्टर भी लगाए गए थे। घटना के समय थाने में केवल मुंशी और संतरी सहित दो-तीन पुलिसकर्मी ही मौजूद थे, लेकिन जल्द ही आसपास के जिलों से पुलिस को घटनास्थल पर तैनात कर दिया गया। पुलिस के अतिरिक्त पंजाब सशस्त्र पुलिस (पीएपी), पंजाब पुलिस कमांडो फोर्स ने भी मोर्चा संभाल लिया। हालात नियंत्रण में नहीं आने पर पठानकोट से सेना को बुलाया गया। हमले के बाद पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में अलर्ट घोषित कर दिया गया।
पाकिस्तान से घुसे थे आतंकवादी
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने आतंकवादियों के पाकिस्तान के नरोवल से भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे। सीमा से 15 किलोमीटर दूर पहाड़पुर रोड से आतंकवादी राष्ट्रीय राजमार्ग तक पहुंचे। फिर उन्होंने दीनानगर इलाके में हमले को अंजाम दिया। यह भी आशंका जताई जा रही है कि इन आतंकवादियों के निशाने पर श्री अमरनाथ यात्रा में जाने वाले श्रद्धालु थे और आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में कठुआ जाने की बजाय रास्ता भटककर गुरदासपुर के दीनानगर में पहुंच गए। हालांकि खबर लिखे जाने तक हमले का अंदेशा लश्कर पर ज्यादा है।
आठ साल बाद फिर दहला पंजाब
14 अक्तूबर, 2007 को पंजाब में आखिरी बड़ा आतंकी हमला हुआ था। तब लुधियाना के श्रृंगार सिनेमाघर में शक्तिशाली बम विस्फोट में सात लोगों की मौत हुई थी और करीब 30 लोग घायल हुए थे। यह बम विस्फोट 'जो बोले सो निहाल' फिल्म के विरोध में खालिस्तानी आतंकवादियों ने किए थे। इससे पूर्व 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह की हत्या के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है। बेअंत सिंह की खालिस्तानी आतंकवादियों ने बम विस्फोट में हत्या कर दी थी। उनके हत्यारे वर्तमान में बुडेल जेल में सजा काट रहे हैं और उन्हें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है।
बस चालक नानकचंद ने बचाई कई जानें
आतंकवादियों ने जिस बस पर गोलीबारी की थी उसे नानकचंद चला रहे थे। उन्होंने बस नहीं रोकी और सीधे अस्पताल पहुंच गए। इससे 6 घायलों को तुरंत उपचार मिल सका। बस में 75 यात्री सवार थे।
गुरदासपुर ही क्यों रहा निशाने पर
एक वर्ष में जम्मू के हीरानगर, कठुआ और सांबा में इसी तरह के चार हमले हुए थे। गुरदासपुर इसी से सटा क्षेत्र है और सीमा से भी नजदीक है। इस क्षेत्र में सेना और सुरक्षा बलों की मौजूदगी कम है। आतंकवादी ज्यादा देर तक संघर्ष चलाकर मीडिया की सुर्खियों में बने रहना चाहते थे। ऐसे में आतंकवादियों के लिए यह आसान जरिया था। संभवत: इसलिए दीनानगर को चुना गया।
अश्वनी की सूझबूझ से टला हादसा
अश्वनी कुमार ने ही सबसे पहले दीनानगर-जखलौर रेलवे लाइन के पुल पर बम देखे। 200 मीटर दूर रेल को रुकवाया और कंट्रोल रूम को सूचित किया। बम निरोधक दस्ता पहुंचा तो पांच जिंदा बम मिले। आतंकवादियों ने अमृतसर-पठानकोट रेलवे लाइन पर भी पांच बम लगाए थे। गैंगमैन की सतर्कता से पांचों जिंदा बम बरामद कर लिए गए। इस प्रक्रिया के दौरान रेल सेवा भी बाधित रही। पठानकोट से बुलाए गए बम निरोधी दस्ते ने इन बमों को निष्क्रिय कर दिया। माना जा रहा है कि हमले से पहले इन्हीं आतंकवादियों ने बमों को रेलवे लाइन पर लगाया होगा।
मरने का नाटक किया और बच गई जान
27 जुलाई की सुबह दीनानगर में हुए आतंकवादी हमले में बुरी तरह जख्मी हुए कार मालिक कमलजीत सिंह मठारू को इलाज के लिए चौहान मेडिसिटी अस्पताल, कोटली में भर्ती कराया गया है। वे हमले के पहले चपेट में आने वालों में से एक हैं और तीनों आतंकवादियों को उन्होंने ही सबसे पहले देखा था। अस्पताल में संवाददाता से बातचीत में मठारू ने बताया कि सुबह करीब 5.10 बजे जब वह अपने होटल और रेस्तरां के लिए सब्जी खरीदने के लिए अपनी मारुति 800 कार में निकले थे तो सेना की वर्दी पहने तीन लोगों ने उनका रास्ता रोक लिया। वे तीनों 'क्लीन-शेव' थे और कुछ नहीं बोल रहे थे। उन्होंने बताया, 'मैं कार लेने के लिए उस थाने से करीब 250 मीटर दूर मकान से निकला, जहां बाद में आतंकवादियों ने धावा बोला था। कार दीनानगर के मुख्य बाजार में मेरे आवास से करीब 100 मीटर दूर गैराज में खड़ी थी और सेना की वर्दी पहने तीनों आतंकवादी गैराज के सामने खड़े थे। जैसे ही मैं कार में बैठा तो उन्होंने मुझे रुकने का इशारा किया। चूंकि वे देखने में बड़े अजीब से लग रहे थे, मैंने तुरंत खतरा भांपा और कार को पीछे मोड़ने का प्रयास किया, पर उन्होंने मेरी कार पर गोलियां बरसा दीं और कार छीनने से पहले उन्होंने मेरी दोनों कलाइयों और बाएं कंधे पर गोलियां मार दीं। मुझे यह तो याद नहीं कि उन्होंने मुझ पर कितनी गोलियां चलाई थीं पर जिंदगी पर खतरा मंडराता देख मैं मरने का नाटक करने लगा। मैंने सांस रोक ली और अपना सिर स्टेयरिंग पर रखकर हिलना-डुलना भी बंद कर दिया। उन्हें यकीन हो गया कि मैं मर गया हूं तो उन्होंने मुझे कार से नीचे फेंक दिया और मेरी कार लेकर भागे। मैंने उठने का प्रयास किया पर मेरे हाथ बुरी तरह लटक रहे थे और फिर मैं बेहोश हो गया था। किसी ने मेरे बड़े भाई सी. एस. मठारू को सूचित किया, जो भागकर मौके पर पहुंचे।'
सीमाएं पूरी तरह सील हों : बादल
पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि आतंकवादी पंजाब से नहीं आए थे। वे अंतरराष्ट्रीय सीमा से भारत में घुसे थे। केन्द्र सरकार अंतरराष्ट्रीय सीमा को पूरी तरह सील करे ताकि आतंकवादियों और नशीले पदार्थों की तस्करी रुक सके। ल्ल
आतंकवाद का दूसरा अध्याय : भट्टी
दीनानगर में जो हुआ उसकी किसी संगठन के जिम्मेदारी लेने से पहले हमें ये देखना होगा कि हमसे कोताही कहां हुई। यह कोई साधारण हमला नहीं बल्कि आतंकवाद का दूसरा अध्याय है। हमारे लिए केंद्र हो या प्रदेश सरकार, फर्ज तो दोनों का एक ही है। केंद्र कहता है कि कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का काम है और राज्य सरकार कह देती है कि केंद्र सहयोग नहीं करता। जबकि बड़ी बात ये है कि हमें हर समय सजग और चौकन्ना रहने की जरूरत है। अगर हम जाग रहे होते तो 27 जुलाई की सुबह का रंग इतना काला न होता। जरूरत है हर सुबह को सुखद बनाये रखने के लिए जरूरी कदम उठाने की। फिर वे चाहे सरहद पर चौकसी को पुख्ता करने के हों या फिर सियासी बातों से ऊपर उठकर, एकजुट होकर इस तरह के किसी भी हादसे को फिर न होने देने का संकल्प लेने के।
-जीएस भट्टी, पूर्व आईपीएस अधिकारी
(ऑप्रेशन ब्लू स्टार के समय भट्टी अमृतसर के उपमंडल अधिकारी थे)
पाक की शह पर ही किया गया हमला
यह कोई घरेलू आतंकवाद का कृत्य नहीं है। इसकी जड़ें सीमा पार यानी पाकिस्तान तक जाती हैं। यह संभव है कि इस हमले को लश्करे तैय्यबा के आतंकवादियों ने अंजाम दिया हो या ऐसे किसी अन्य आतंकी संगठन ने जो भारत के प्रति द्वेष की भावना रखता है। यह भी संभव है कि यह हमला किसी खालिस्तानी समूह द्वारा किया गया हो। हमले को पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के समर्थन-प्रोत्साहन अथवा अनुमति के बिना अंजाम नहीं दिया जा सकता था। यह हमेशा याद रखने की जरूरत है कि आईएसआई पाकिस्तानी सेना का ही हिस्सा है। हमेशा इस एजेंसी का मुखिया पाकिस्तानी सेना का एक जनरल होता है। स्वाभाविक है कि आईएसआई प्रभावी रूप से पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख के अधीन है। पाकिस्तानी सेना ने जिया उल हक के जमाने में ही यह फैसला कर लिया था कि भारत को हजार घाव देने हैं। इस नीति-फैसले के अनुरूप ही उसने सबसे पहले पंजाब में उग्रवाद को बढ़ावा दिया।
– ब्रिगेडियर (से.नि.) जगदीश गगनेजा
(रक्षा विशेषज्ञ एवं प्रांत सह-संघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – पंजाब)
आईएस का भारत में 'विजिटिंग कार्ड'
25 वर्ष बाद बाद पंजाब में हुआ आतंकी हमला इस्लामिक स्टेट (आईएस) का भारत में विजिटिंग कार्ड है और यह एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत किया गया है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि पाकिस्तान के तमाम चरमपंथी संगठन आईएस की सरपरस्ती में आ गए हैं। भारत के लिहाज से यह एक गंभीर मामला है, इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक अंतरराष्ट्रीय चरमपंथ का सवाल है। जैसे ब्रिटिश साम्राज्य अंतरराष्ट्रीय होना चाहता था, कम्युनिस्ट अंतरराष्ट्रीय होना चाहते थे, हिटलर अंतरराष्ट्रीय होना चाहता था वैसे ही इस्लामी चरमपंथ अंतरराष्ट्रीय होना चाहता है। पंजाब पुलिस ने इस मामले से जैसे निपटा है उससे एक संदेश यह भी मिलता है कि अगर पुलिस को सक्षम बनाया जाए तो वे ऐसे हमलों से निपट सकती है।
गुप्तचर ब्यूरो को मिली खुफिया जानकारी की जहां तक बात है तो इस एजेंसी को यह खबर मिलती है कि ऐसी घटना होने वाली है, पर कहां होने वाली है यह नहीं पता होता। काफी समय से यह चर्चा चल रही है कि खालिस्तानी और इस्लामी आतंकवादी मिलकर एक संयुक्त मोर्चा बना सकते हैं।
इस संबंध में आईएस ने यूरोप और अन्य जगहों पर बैठकें की हैं, लेकिन उसमें उनको सफलता नहीं मिली है। खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स नाम का एक संगठन बना था जिस पर पंजाब में काबू पा लिया गया था, लेकिन कश्मीर में इस पर काबू नहीं किया जा सका था।
-केपीएस गिल
(पूर्व पुलिस महानिदेशक, पंजाब पुलिस)
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