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भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने जैसे ही खनन माफिया के विरुद्ध मोर्चा खोला तो उन्हें सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने निशाने पर ले लिया। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अब स्वयं की जान को खतरा भी बताया है, लेकिन साफ हो गया है कि यदि सपा के चहेतों पर किसी ने हाथ डाला तो उसकी खैर नहीं।
पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने जब सत्ताधारियों के करीबी खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को निशाने पर लिया तो वह उन्हें महंगा पड़ गया। पुलिस अधिकारी की सक्रियता को लेकर सत्ता में शीर्ष पर बैठे लोगों को भी स्वयं के फंसने का भय दिखाई देने लगा। हजारों करोड़ रुपए के अवैध खनन के इस गोरखधंधे को उजागर करने की कोशिश की जा रही थी। ऐसे में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को नागवार गुजरा कि आखिर उनकी सरकार के मातहत काम करने वाले अधिकारी के हाथ इतने लंबे कैसे हो गए।
आनन-फानन में मुलायम सिंह ने फोन पर पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को धमकाने के लहजे में समझाने की कोशिश की। ठाकुर समझते हुए भी सत्ता की ताकत को लेकर नासमझ बन गए। नतीजा, महीनों पुराने मामले में महिला से दुष्कर्म के आरोपी भी बन गए। सरकार को उनकी तरफ से एक सप्ताह पहले पुलिस मुख्यालय पर धरना देकर अनुशासनहीनता की भी याद आ गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया।
मुलायम सिंह के करीबी कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को हाल ही में अवैध खनन और आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त न्यायाधीश एन. के. मेहरोत्रा ने 'क्लीन चिट' दी थी। प्रजापति और ठाकुर के बीच झगड़ा काफी लम्बे समय से चल रहा था। दोनों के संबंधों में खटास तब और बढ़ गई कि जब अन्य शिकायतकर्ताओं के मंत्री के विरुद्ध शिकायत को वापस लेने के बावजूद अमिताभ की पत्नी नूतन ठाकुर ने मंत्री के खिलाफ अपनी शिकायत वापस नहीं ली। उधर, गाजियाबाद में रहस्यपूर्ण तरीके से एक महिला सामने आई और उसने ठाकुर के विरुद्ध बलात्कार के आरोप लगा दिए। ठाकुर दंपति ने मंत्री से जान का खतरा बताते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन शिकायत दर्ज नहीं की गई। इसी को लेकर अमिताभ और उनकी पत्नी पुलिस महानिदेशक के कार्यालय पर धरने पर बैठे थे। इसी आरोप में ठाकुर निलंबित किए गए हैं।
उधर ठाकुर इस मसले पर अभी पीछे हटते दिखाई नहीं दे रहे हैं। उन्होंने दिल्ली में गृह मंत्रालय के अधिकारियों के समक्ष पूरा प्रकरण रखते हुए सीबीआई जांच की मांग की है। मुलायम सिंह द्वारा ठाकुर को सुधर जाने की नसीहत देने के कुछ ही घंटे बाद उनके विरुद्ध बलात्कार का मामला दर्ज कर उन्हें निलंबित करना बताता है कि उन्हें सरकार क्या संकेत दे रही है। मुलायम सिंह की बातचीत का तरीका जरूर नरम है, मगर बात सख्त है। इस बातचीत में मुलायम सिंह किसी 'जसराना प्रसंग' की याद दिला रहे हैं कि वैसी हालत हो जाएगी।
दरअसल 2006 में जसराना में अमिताभ ठाकुर पर सपा के तत्कालीन विधायक रामवीर सिंह यादव और उनके समर्थकों ने हमला किया था, बाद में आरोपी रामवीर और अन्य लोगों को बरी कर दिया गया क्योंकि मामले से जुड़े कई गवाह पलट गए थे। अमिताभ ने जो बातचीत सार्वजनिक की उसमें मुलायम यह भी कह रहे हैं कि 'आपसे हमदर्दी रही है। मैं पटना गया… घर वालों ने कहा मेरा लड़का है देखते रहना।' मुलायम सिंह की क्यों हमदर्दी थी और वे पटना अमिताभ के घर क्यों गए, अगर इतनी हमदर्दी थी तो अमिताभ, मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए दो बार निलंबित क्यों हुए? बातचीत रिकॉर्ड करना और सार्वजनिक करना विवादास्पद हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं होता तो पता कैसे चलता कि राजनेता अधिकारियों से कैसे बात करते हैं। भले ही बातचीत पर तकनीकी सवाल उठाए जा रहे हों, लेकिन मुलायम के पुत्र व राज्य के मुख्यमंत्री ने यह कहा कि 'नेता जी तो उन्हें भी डांटते और समझाते हैं'। यह एक तरह से स्वीकारोक्ति है कि फोन पर बातचीत करने वाले मुलायम ही हैं।
वैसे उ. प्र. की राजनीति में यह पहली बार नहीं हुआ है। वरिष्ठ नौकरशाह डॉ. एस. पी. सिंह उनके पक्ष में खड़े हैं। वह सार्वजनिक रूप से सरकार के कई निर्णयों पर सवाल उठा चुके हैं। ठाकुर की तरह वह भी 'न्यूज चैनल' पर सरकार के जनविरोधी फैसलों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। इससे संभव है कि भविष्य में उनके बारे में इसी तरह की खबरें सामने आएं। बीते एक दशक पर नजर डालें तो मायावती के शासन में मुख्य सचिव पद पर तैनात प्रशांत मिश्र व राजू शर्मा जैसे भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों ने तो सच और सिद्धांतों के लिए वर्षों की नौकरी को छोड़ने की राह चुन ली। डी. डी. मिश्र जैसे ईमानदार पुलिस अधिकारी को पूरा तंत्र ही पागल साबित करने पर तुल गया। अखिलेश सरकार में दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लोग अभी भूले नहीं हैं।
एक बात स्पष्ट है कि सपा और बसपा जैसे दलों की सरकारों ने उ. प्र. के प्रशासनिक तंत्र का राजनीतिकरण कर दिया है। यहां फैसले सत्ता संभालने वाले राजनीतिज्ञों को खुश करने या उनकी स्वार्थों की पूर्ति के लिए होते हैं न कि जनहित को ध्यान में रखकर। पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और लोक प्रहरी के संयोजक एस. एन. शुक्ल इसे लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं मानते। कुुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि ठाकुर और उनकी पत्नी भी दूध के धुले नहीं हैं। सपा का तर्क है कि ठाकुर को नौकरी छोड़कर राजनीति करनी चाहिए। उच्च न्यायालय भी उन्हें सख्त लहजे में समझा चुका है कि जनहित याचिका डालना छोड़कर पुलिस महानिरीक्षक नौकरी करें। इससे स्पष्ट है कि उ. प्र. का प्रशासनिक तंत्र किस तरह सत्ता के आगे नतमस्तक रहता है। सिर उठाने वाले का ऐसा ही हश्र होता है।
धीरज किशोर
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