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प्रकृति और मानव का संबंध-संपर्क युगों से रहा है। या कहें मानव के जन्म लेने के साथ ही उसका जल-जंगल-नदी-पहाड़-सूरज-चांद-पेड़-पौधों से ऐसा नाता जुड़ा है जो जाने-अंजाने उसके जीवन में पग-पग पर अपने होने का एहसास कराता रहता है। एक अर्थ में दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। आज की भागमभाग भरी जिंदगी में इंसान प्रकृति की महत्ता को हंसी-ठट्ठे में भले भुला देता हो, पर समय-समय पर प्रकृति उसे अपना भान जरूर करा देती है। हम प्रकृति से इतना पाते हैं फिर भी उसका खजाना सैकड़ों-हजारों साल से खाली नहीं हुआ है। लेकिन आज ऐसा समय आया है कि वह खजाना घटता दिखता है। और इसकी पीछे हमारी ही नासमझी और लापरवाही है। हमने प्रकृति का बेतहाशा दोहन किया और अपनी मनमर्जी ही चलाई, जिसकी वजह से आज प्रकृति आहत है। उसके खजाने के अनमोल मोती कम होते जा रहे हैं। ऐसे में सूर्य के ताप को संचित कर उसे उपयोग में लाने की सोच पूरब के देशों द्वारा तेजी से अपनाई जा रही है। इस अभियान में भारत का योगदान दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। भारत में हालांकि अभी सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में खर्चा बहुत आता है, शायद इसीलिए सौर ऊर्जा अभी आम समाज में उतनी प्रचलित नहीं हो पा रही है। ज्यादातर संयंत्र सरकारी खर्च पर सांसदों/मंत्रियों के बंगलों, सरकारी उपक्रमों में दिखते हैं या फिर विशाल औद्योगिक इकाइयों, कुछ स्वयंसेवी संगठनों के उपक्रमों और कुछेक ट्रस्ट द्वारा संचालित विशाल रसोइयों में। सोलर पैनलों को खरीदना, उनका रखरखाव करना अभी भी आम आदमी के बस की बात नहीं है।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस घोषणा से कुछ संतोष जरूर मिलता है कि 2019 तक 40 करोड़ भारतीयों के घर सौर ऊर्जा की रोशनी से जगमगाएंगे। मोदी सरकार सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया के बड़े देशों की बराबरी करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। सपना देश के हर घर को सौर ऊर्जा से रोशन करने का है, पर ये अभियान बड़ा है और भारत को अभी इस मामले में बहुत लंबी दूरी तय करनी है। पर यह संभव है। मोदी के काम को देखते हुए यह नामुमकिन नहीं लगता। कारण यह है कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनके प्रयासों से ही वहां पाटण जिले में चरनका सोलर पार्क बना था, जो आज एशिया का अभी तक का सबसे बड़ा सोलर पार्क माना जाता है। यह अलग-अलग क्षमता वाले छोटे-बड़े कई सोलर पार्क का संकुल है। अप्रैल 2012 में बनकर तैयार हुआ यह परिसर मार्च 2013 में 856.81 मेगावाट क्षमता पा चुका था। यह पार्क कुल 2000 हेक्टेयर पर बना है। माना जा रहा है कि इस संयंत्र के कारण हर साल 80 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस हवा में घुलने से बच जाएगी और 9 लाख टन प्राकृतिक गैस की बचत होगी।
सौर ऊर्जा के प्रति बढ़ती दिलचस्पी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केन्द्र सहित भारत की राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में सौर ऊर्जा केन्द्र/पार्क के निर्माण के लिए देशी-विदेशी विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रही हैं। इस ओर तेजी से कदम बढ़ाने वाला एक राज्य है राजस्थान। प्रदेश सरकार ने जोधपुर के भडला गांव में बहुत बड़ा सोलर पार्क स्थापित करने की परियोजना को अगस्त, 2013 में हरी झंडी दिखाई थी। उसके बाद से काम काफी आगे बढ़ा है। एक अनुमान के मुताबिक अगले 10-12 साल में सौर ऊर्जा के मामले में राजस्थान देश का एक प्रमुख राज्य बन जाएगा जिससे, माना जा रहा है कि यहां निवेश और उद्योगों में बढ़ोतरी होगी। अनुमानत: यह केन्द्र 10,000 से 12,000 मेगावाट बिजली बनाएगा। इसके लिए 10 हजार हेक्टेयर जमीन पर 3000 मेगावाट के सोलर पैनल जमाने का काम जारी है। इंदिरा गांधी नहर से इसके लिए 58 क्यूसेक पानी भी उपलब्ध्ध कराया जाएगा।
पार्क में 75 मेगावाट की सात सोलर पावर परियोजनाएं कार्य करेंगी। पाञ्चजन्य से बात करते हुए प्रदेश के ऊर्जा मंत्री पुष्पेन्द्र सिंह राणावत ने बताया कि प्रदेश सरकार लोगों में सौर ऊर्जा के प्रति जागरूकता लाने के लिए अपनी तरफ से प्रयास कर रही है। आम आदमी अपने घर की छत पर सौर पैनल लगाने के लिए उत्सुक हो, इसके लिए विभिन्न योजनाएं चालू की हैं। खपत से अधिक बिजली होने पर वह ग्रिड में बिजली दे सकता है जिसके लिए 6 रु. 84 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से सरकार पैसा देती है। (देखें बॉक्स) उधर मध्य प्रदेश भी सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने के मामले में पीछे नहीं है। वहां पिछले दिनों कैबिनेट ने कुल 750 मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा विद्युत केन्द्र स्थापित करने की योजना को हरी झंडी दिखा दी है। यह सौर ऊर्जा विद्युत केन्द्र रीवा जिले में बनने जा रहा है। इसकी स्थापना के लिए जरूरी 45 अरब कीमत की 1500 हेक्टेयर जमीन खरीदने की ओर कदम भी बढ़ाया जा चुका है। बताया जाता है कि उत्पादन शुरू करने के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा विद्युत केन्द्र बनेगा। यह सच है कि मध्य प्रदेश पिछले काफी समय से यह प्रयास कर रहा था कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वह पीछे न रहे। यही कारण है कि अब गुजरात और राजस्थान के बाद सौर ऊर्जा उत्पादन में वह देश का तीसरा राज्य बना है।
सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर मध्य प्रदेश सरकार यह सोलर पार्क बनाएगी जिसमें 250-250 मेगावाट के तीन हिस्से होंगे। बहुत संभावना है कि अगले साल 26 जनवरी को इसका शुभारम्भ हो जाए। पूरी तरह कार्यरत होने के बाद यह संयंत्र 1.25 अरब यूनिट बिजली बनाएगा, जिससे वायुमंडल से 10 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस कम होगी। इससे बनने वाली बिजली के पारेषण के लिए पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया संजाल बिछाने में जुट गया है।ल्ल
हमारी नीतियों से बढ़ेगा सौर ऊर्जा उत्पादन
भडला सौर पार्क ने राजस्थान को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नया आयाम दिया है। अभी 650 मेगावाट क्षमता से वहां बिजली बनाई जाएगी। पाञ्चजन्य ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री पुष्पेन्द्र सिंह राणावत से इस विषय पर बातचीत की उसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं।
राजस्थान के सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने के पीछे प्रेरणा क्या है?
हमारे प्रदेश में सौर किरणों की उपलब्धता और उनका विकिरण सबसे अच्छा है। जमीन की कमी नहीं है। हमारी नई नीति के अनुसार किसान अपनी जमीन का अपने तरीके से उपयोग कर सकता है। वह चाहे तो अपने खेत में सोलर पैनल लगा सकता है। हमारे यहां सौर विकिरण और सौर ऊर्जा नीति सर्वोत्तम है इसलिए सौर ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान में कदम स्वाभाविक ही तेजी से बढ़ रहे हैं। लोग इस क्षेत्र में बढ़-चढ़कर निवेश कर रहे हैं। हमारी नीतियों से सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा।
सोलर पैनल लगाना कोई सस्ता काम नहीं है। इसमें बहुत खर्चा आता है। क्या सरकार इसमें किसी तरह की मदद करती है?
अगर कोई किसान खेत में सौर ऊर्जा के लिए पैनल लगाता है तो उसमें जो उसे खर्चा आता है उसे वह परियोजना के साथ समायोजित कर सकता है।
भडला सौर पार्क कितना बड़ा है और कितनी क्षमता का है?
यह सौर पार्क 650 मेगावाट का है। इसमें राजस्थान सरकार ने सड़क से लेकर विनिर्माण तक का काम हाथ में लिया है। हम 220 तथा 420 मेगावाट के सबस्टेशन बना रहे हैं। इसमें हम निविदाएं आमंत्रित करेंगे। उसमें सर्वोत्तम को हम इसका काम सौपेंगे।
आम आदमी सौर ऊर्जा अपनाए, उसके लिए आपकी सरकार की तरफ से क्या नीति बनाई गई है?
हमने 'रूफ टॉप' नीति बनाई है। इसके अन्तर्गत कोई व्यक्ति अपने घर की छत पर सौर पैनल लगाएगा। वह अपनी खपत के बाद बची बिजली सरकार के ग्रिड में देगा तो हम उसे रु. 6.84 प्रति यूनिट देंगे। इससे जहां आमजन में घर की छत पर सोलर पैनल लगाने के प्रति उत्साह जगेगा वहीं उसे साथ-साथ कुछ आमदनी भी होगी।
सौर ऊर्जा के अलावा और आप किन ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं?
हम बायोमास से बिजली पैदा करने में जुटे हैं। जैसे- सरसों का चूरा और कपास के डन्ठल को पीस कर ऊर्जा निर्मित की जा रही है। प्रदेश में 3 स्थानों पर इसके संयंत्र हैं।
क्या बिजली की बचत के लिए कोई अभियान चला रहे हैं?
हम बिजली की बचत के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। सरकार प्रत्येक उपभोक्ता को 120 रु. प्रति बल्ब की दर पर 3 एलईडी बल्ब उपलब्ध करा रही है, जिसका मूल्य हम 10-10 रु. के हिसाब से बिजली के बिल में ही जोड़कर लेंगे।
आलोक गोस्वामी
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