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1876 से जो शुरुआत हुई तो 1992 तक भारत और साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य भी छोटा होता चला गया। आज के जम्मू-कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान तथा चीन से लगती हैं। ये अतिसंवेदनशील हैं और तीन नामों से जानी जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा, वास्तविक नियंत्रण रेखा। भारत का लगभग 78000 वर्ग किमी़ क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे मंे है जिसमें से 5180 वर्ग किमी. जमीन उसने चीन को दे दी है। अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र हिन्दू बहुल है, जबकि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का इलाका मुस्लिम बहुल तथा लद्दाख बौद्ध बहुल है। अन्तरराष्ट्रीय सीमा मैदानी है। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर तथा चीन अधिकृत जम्मू-कश्मीर अतिदुर्गम पहाड़ों पर है। अलग-अलग भाषाएं तथा वेश-भूषा है। यहां तक कि मौसम भी समान नहीं है। भारत के लोग सोचते हैं कि पाकिस्तान एक दुश्मन देश है, लेकिन चीन भारत की दृष्टि से पाकिस्तान से कहीं ज्यादा खतरनाक है। सीमा पर सेना की कड़ी चौकसी के बाद भी उस तरफ से घुसपैठ, गोलीबारी तथा नशीले पदाथोंर् की तस्करी होती रहती है। ये तीनों आपस में जुड़ी हुई चीजें हैं। किसी भी राष्ट्र को तोड़ने का प्रयास करने वाले लोग पहले नशीले पदाथोंर् का चलन उस देश मे बढ़ाते हैं। इससे एक तो हथियार खरीदने के लिए पैसे तथा भर्ती के लिए नशे की लत में फंसे नवयुवक आसानी से उनके बिछाए जाल में फंस जाते हैं, तो वहीं गोलीबारी के पीछे अक्सर घुसपैठ करवाने का उद्देश्य होता है।
कठुआ से लेकर अखनूर तक अन्तरराष्ट्रीय सीमा है और इसका अधिकतर इलाका हिन्दू बहुल है। इसी सीमा पर पश्चिमी पाकिस्तान के 1965 व 1971 के शरणार्थी बसाए गए हैं। आएदिन यहां पर घुसपैठ के प्रयास होते रहते हैं, गोलाबारी भी होती रहती है जिसकी आड़ में घुसपैठ करवाने का प्रयास होता है। सीमा की तरफ जाने वाले नदी-नालों के किनारे मुस्लिम समाज के खानाबदोश लोगों के डेरे बसाए गए हैं, जो सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों को शरण देते हैं। सीमा पर रहने वाला समाज हमेशा डरा-सहमा रहता है, क्योंकि जब गोलीबारी शुरू होती है तो यहां के निवासियों को सीमा से पीछे हटना एवं जान-माल का नुकसान उठाना पड़ता है। इससे बच्चों की शिक्षा पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए प्रदेश स्तर पर दूसरे बच्चों से वे पिछड़ते चले जाते हैं। रोजगार के साधन भी सीमित हैं।
साथ ही बहुत सारे स्थानीय किसानों की जमीन तार की बाड़ के कारण या तो सीमा सुरक्षा बल ने अधिग्रहित कर ली है या तारबंदी के उस तरफ चली गई है। इससे बहुत सारे किसान या तो भूमिरहित हो गए हैं या फिर उनके पास बहुत कम जमीन बची है। अच्छे विद्यालयों की कमी, अस्पताल न के बराबर, टूटी-फूटी सड़कें, रोजगार की कमी तथा डर का माहौल इन लोगों का जीवन मुश्किल बना रहा है।
नियंत्रण रेखा का इलाका मुस्लिम बहुल है और यह पूरी तरह से पहाड़ी तथा घने जंगलों से घिरी है। घुसपैठ अक्सर इन्हीं रास्तों से होती है। यहां से नशीले पदाथोंर् की तस्करी तो आम बात है। जंगल तथा पहाड़ी नाले आतंकवादियों तथा तस्करों के लिए आना जाना संभव बनाते हैं। इस सीमा पर रहना वाला समाज आमतौर पर किसान है। इसके अलावा कश्मीर संभाग में फलों की पैदावार होने के कारण लोगों की आर्थिक हालत बेहतर है। लेकिन वे श्रीनगर और इसके आसपास रहने वाले लोगों के मुकाबले इतने संपन्न नहीं हैं। पाकिस्तान के साथ हमदर्दी तो हो सकती है पर अखनूर से लेकर कारगिल तक लोगों ने कभी सीधे-सीधे भारत का विरोध नहीं किया।
देश की सीमा पर रहने वाला समाज देशभक्त हो तो देश मजबूत होता है। दुश्मन को देश में घुसने मंे समस्या आती है। जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में जहां हर समय सीमा पर तनाव रहता है, सीमा पर सीमा रक्षा समिति बनाकर लोगांे को हथियार देने चाहिए। इससे घुसपैठ रोकने मे मदद मिल सकती है। लोगो का मनोबल भी ऊंचा होता है। सीमा क्षेत्र के लोगों का देशभक्त होने के साथ साथ संपन्न होना भी जरूरी है क्योंकि संपन्न होने पर व्यक्ति किसी के बहकावे में नहीं आता और किसी भी आतंकवादी गतिविधि को देखते ही सजग होकर उसका मुकाबला करता है। इसलिए सीमा क्षेत्र में सहकारिता को प्रोत्साहित करके दूध तथा कृषि से संबंधित उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए । नवयुवक के लिए खेल के मैदानों की व्यवस्था होनी चाहिए, जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि नौजवान को केवल खेलना तथा पढ़ना चाहिए, इसलिए अच्छे स्कूलों के साथ बड़े मैदान भी होने चाहिए। सीमा पर रहने वालों को सरकारी क्षेत्र में जितना आरक्षण मिलना चाहिए, उतना नहीं मिला है। इसलिए यह भी बढ़ना चाहिए। सीमा पर यह भी बढ़ना चाहिए। सीमा पर रहने वाले समाज तथा सीमा सुरक्षा बल के बीच तालमेल होने से तारबंदी के पार की जमीन पर खेती करने मंे आसानी हो जाएगी। इससे तस्करी रुकेगी। सेना के जवानों और स्थानीय लोगों के मध्य एक मित्रता का भाव स्थापित होगा। साथ ही सीमा पर अक्सर होने वाली गोलीबारी में लोग घायल हो जाते हैं। समय पर अस्पताल न पहंुचने से रास्ते में ही उनकी मृत्यु़ हो जाती है। इसलिए हर 40 किमी. के क्षेत्र में एक मोबाइल सर्जिकल अस्पताल होने से बहुत लोगों की जान बचाई जा सकती है। सीमा पर सड़कों की हालत बहुत बुरी है। सीमा क्षेत्र की ओर जाने वाली सभी सड़कों को एकदम सही हालत मंे होना चाहिए। इससे लोगों के अलावा जवानों को भी आने-जाने मे सुविधा होगी। जरूरत आने पर कम से कम सेना समय पर सीमा पर पहुंच सकती है।
अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर ज्यादातर शरणार्थियों के पास खेती की जमीन कम है, इसलिए सीमा सुरक्षा बल द्वारा ली गई जमीन का मुआवजा जल्दी मिलना चाहिए। वहीं कमजोर संचार सेवा होने के कारण लोगों से संपर्क नहीं होता है और लोग देश-दुनिया से कटे रहते हैं। एक अच्छी तथा सुरक्षित संचार सेवा से लोगों का आपस में संपर्क बढ़ेगा और समय रहते जरूरी सूचना सभी को मिल पाएगी। अभी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर अर्धसैनिक बल तैनात हैं, लेकिन केवल इतना पर्याप्त नहीं है।
वर्तमान स्थिति मंे प्रदेश के शासन तंत्र को भी इस जिम्मेदारी का हिस्सा बनाना चाहिए और इसके साथ ही स्थानीय जनता के गैर राजनीतिक प्रतिनिधियों को भी इसमें शामिल करके एक बड़ी सुरक्षा योजना बनाई जाए, जिसमें सभी का दायित्व निश्चित हो। इन सब बातों को ध्यान मंे रखते हुए, सीमा क्षेत्र के लिए अलग से विकास प्राधिकरण होना चाहिए। अलग से बजट की भी व्यवस्था होनी चाहिए। अलग बजट होने से समस्याओं का बड़ी ही आसानी से निदान किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि सीमा जनकल्याण समिति लगभग10 वर्ष से जम्मू-कश्मीर में अपना कार्य कर रही है और अलग-अलग तरह के कार्यक्रम किए जा रहे हैं जैसे- रक्षा बंधन, भारत माता पूजन, शक्ति पूजन, खेल कूद प्रतियोगता आदि। रक्षा बंधन का कार्यक्रम लगभग 40 से 50 चौकियों पर किया जाता है, इससे सीमा सुरक्षा बल तथा समाज के बीच तालमेल बढ़ता है। इन उपायों से भारत की अन्तरराष्ट्रीय सीमा पट्टी भेदभाव मुक्त होकर समरस बनेगी, विकास योजनाओं के कारण विकसित होगी तथा शांति स्थापित होगी।
सीमाएं सुरक्षित करने को जरूरी हैं ये काम
सीमा से लगते इलाके को विकास प्राधिकरण के अधीन लाना होगा।
सीमा क्षेत्र में प्रत्येक 40 किमी़ पर एक केन्द्रीय विद्यालय होना चाहिए।
40 किमी़ के क्षेत्र में एक अस्पताल होना चाहिए ।
सीमा के अंतिम छोर तक अच्छी सड़कों का संजाल होना चाहिए ।
तारबंदी के लिए ली गई जमीन का तुरंत मुआवजा मिलना चाहिए ।
तारबंदी के पार गई जमीन पर खेती करने की सहूलियत देनी चाहिए।
सीमा पर रहने वाले समाज के लिए सरकारी, गैर-सरकारी सेवाओं में आरक्षण की सुविधा होनी चाहिए।
संचार सेवा को मजबूती प्रदान करनी चाहिए।
सीमा क्षेत्र पर रक्षा समितियों का गठन होना चाहिए ।
खेलों तथा पारंपरिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
सीमा सुरक्षा बल तथा सीमा पर रहने वाले समाज के बीच तालमेल बढ़ना चाहिए।
सहकारिता को प्रोत्साहन देना चाहिए।
सीमा प्रबंधन सुचारु होना चाहिए।
प्रस्तुति:संजीव शर्मा
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