|
'जीवन मंे सकारात्मकता, समर्पण व मानवीय मूल्यों का विकास संस्कृत के माध्यम से संभव है, क्योंकि संस्कृत जीवन जीने की कला है। आवश्यकता है संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाने की।' ये विचार हैं संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रशिक्षण प्रमुख श्री चमू कृष्ण शास्त्री के। वे पिछले दिनों संस्कृत भारती, दिल्ली प्रान्त की ओर से आयोजित आवासीय शिक्षक प्रशिक्षण वर्ग के समापन समारोह में बोल रहे थे। संस्कृत भारती, दिल्ली के प्रान्ताध्यक्ष एवं लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के प्राध्यापक ड़ॉ. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत के साथ-साथ संस्कृत के शास्त्रों के संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता है। संस्कृत शास्त्रों में ज्ञान-विज्ञान के भण्डार भरे हैं। लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के कुलपति प्रो़ रमेश कु़ पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत भाषा भारत में सर्वसामान्य की भाषा रही है और संस्कृत भारती के प्रयास से प्रत्येक व्यक्ति तक संस्कृत पहुंचने लगी है। प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं संस्कृत भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष ड़ॉ. चान्दकिरण सलूजा ने शिक्षार्थियों को पाठन कौशल के साथ संस्कृत की श्रेष्ठता की जानकारी दी। इससे पहले 2 जून को सुल्तानपुरी की सेवा बस्तियों में विशाल शोभायात्रा निकाली गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. कौशलेन्द्र प्रपन्न ने कहा कि संस्कृत को रुचिपूर्ण बनाकर इसे आम जनता तक पहुंचाने और इसे रोजगार-परक बनाने की आवश्यकता है। संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री डॉ. नन्द कुमार ने युवाओं से अपील की कि वे संस्कृत के प्रचार-प्रसार में योगदान दें। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उत्तरी विभाग के संघचालक श्री सत्यनारायण बंधु ने की। यह वर्ग 23 मई से 3 जून तक आऱ आर. गीता विद्यालय, सुल्तानपुर, दिल्ली में चला। इसमें अनेक शिक्षकों ने भाग लिया। – प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ