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अंक संदर्भ : 10 मई, 2015
आवरण कथा 'हम मरहम ' से प्रमाणित हो गया कि नेपाल का वास्तव में सहयोगी कौन है। भारत ने नेपाल के साथ पड़ोसी और अपने आध्यात्मिक आध्यात्मिक संबंधों का रखा भान संबंध का पूरा भान रखा और उसकी पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर राहत
कार्यों में तनिक भी देर नहीं की। यह सत्य है कि नेपाल में जो आपदा आई उसने नेपाल में जनजीवन को सिर्फ तहस-नहस ही नहीं किया बल्कि बीसों वर्ष पीछे धकेल दिया है। इस आपदा से उबरने के लिए नेपाल को इतना समय लगेगा, लेकिन नेपाल के लोग बहुत ही जुझारू हैं। उन्हें बस थोड़ी सी सहायता की जरूरत है।
—प्रमोद कुमार तिवारी
शिवगढ़, रायबरेली (उ.प्र.)
नेपाल में जिस तरह भूकंप आया और पलक झपकते ही सब ध्वस्त हो गया। हजारों लोग काल के गाल में समा गए और पता नहीं इस आपदा से कितने लोग हताहत हुए। भारत ने पड़ोसी धर्म इस आपदा में बखबी निभाया और दुनियां को भी संदेश दिया कि पड़ोसी के सुख-दु:ख में भारत जी-जान से लगता है। संकट की इस घड़ी में भारत ने पूरी ताकत लगाई। साथ ही विश्व के सबसे बड़े संगठन ने भी दोनों बाहें खोलकर अपने सहोदर की पीड़ा को अपना लिया। स्वयं सहसरकार्यवाह तत्काल घटनास्थल पर रवाना हुए और राहत कायोंर् को गति प्रदान की। संघ ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि वह प्रतिक्षण समाज सेवा के लिए तैयार है।
—कृष्ण वोहरा
जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)
आपदा में भी कुछ देश अपना हित देख रहे थे और राहत के नाम पर बाइबिल भेज रहे थे। शर्म नहीं आती ऐसे देशों को जो अपने को मानवता और शान्ति का दूत कहते हैं। साथ ही आपदा के कुछ पल के बाद पोप का ट्वीट और मिशनरियों का सोशल साइट्स पर पीडि़तों का मखौल और उन्हें इस घड़ी में लालच के दमपर खुलेआम गिरोहबंदी हुई वह उनकी हकीकत को बताती है कि असल में सेवा के पीछे उनका क्या मंतव्य है। असल में ईसाई मिशनरियां सेवा की आड़ में कन्वर्जन करती हैं आज यह किसी से भी छिपा नहीं रह गया है।
—प्रमोद कुमार वालसंगकर
दिलसुखनगर (हैदराबाद)
नेपाल में त्रासदी के बाद मिशनरियों ने कन्वर्जन का कार्य खुलेआम शुरू कर दिया। ऐसा लग रहा था वह इस मौके की फिराक में ही बैठे थे। कैसे यह लोग अपने को मानवता का प्रेमी कहते हैं। सेवा के नाम पर जो षड़यंत्र करते हैं और छल-प्रपंच से लेकर वह सभी तरीके अपनाते हैं जिससे भेड़ों की संख्या बढ़ सके। फिर भी अपने को सेवा की मूर्ति कहते हैं। लेकिन इनकी वास्तविकता तब दिखाई दी जब नेपाल के प्रधानमंत्री ने उनकी इस कारगुजारी पर उनको लताड़ लगाई कि उन्हें इस समय बाइबिल नहीं चाहिए, उन्हें राहत चाहिए। बाइविल यहां राहत देने का कार्य नहीं करेगी।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
स्वयंसेवक जहां भी कार्य करता है अपनी छाप छोड़ देता है। नेपाल में आई प्राकृतिक आपदा में उसने देश ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। फिर भी कुछ सेकुलर दल पानी-पी-पीकर संघ को कोसते रहते हैं। लेकिन कभी उनकी नजर इस प्रकार के आपदा कार्यों में नहीं जाती जहां स्वयंसेवक अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की चिंता ही नहीं करता बल्कि उनकी जान बचाने के लिए अपनी जान को खतरों में डाल देता है। खैर कुछ भी हो, संघ ने समाज के सामने हर क्षण आदर्श प्रस्तुत किया है। यह आदर्श ही है जो हिन्दू समाज को प्रेरणा देता है।
—गोपाल कृष्ण पण्ड्या
नागदा, उज्जैन (उ.प्र.)
सहोदर के घर में जो त्रासदी हुई उस पर तो समस्त मानवजाति ने दु:ख प्रकट किया पर भारत ने अपनी पुरातन मैत्री संस्कृति में रची-बसी दया, क्षमा व धैर्य की भावना का भान करते हुए पूरी जीजान लगा दी। लेकिन कुछ ईसाई देश इस क्षण भी अपनी वक्र दृष्टि नेपाल पर लगाए थे और उन्हें पीडि़तों का दर्द आनन्द ही नहीं दे रहा था बल्कि उन्हें उनमें स्वार्थ दिखाई दे रहा था। लेकिन नेपालवासियों को ऐसे षड्यंत्रों और सेवा के बाने में कन्वर्जन करने वालों से सावधान रहना होगा। क्योंकि सेवा करने वाले ढोल तो पीटते हैं कि हम सेवा करते हैं लेकिन उनकी क्षुद्र सेवा कैसी होती है पूरा विश्व जानता है।
—उमेदुलाल 'उमंग'
ग्राम पटूडी,धारमंडल,गढ़वाल(उत्तराखंड)
किसान हारने वालों में नहीं!
लेख 'फसल मरी, राजनीति लहलहाई' ने ह्दय को झकझोर कर रख दिया है। बेवक्त की बारिश, ओलावृष्टि ने समूचे भारत में जो तांडव मचाया उससे किसानों के अरमान मिट्टी में मिल गए। ऐसे किसान जिन्होंने कर्ज लेकर खेती की थी उनकी इस आपदा के बाद क्या हालत हुई और आगे होगी यह सोचकर मन सिहर उठता है। लेकिन आपदा किसी के वश में नहंी होती। फिर केन्द्र सरकार ने इससे निपटने और किसानों के दर्द पर मरहम लगाने का पूरा प्रयास किया है। देश के किसान के लिए यह आपदा बड़ी तो है लेकिन ऐसी नहीं कि वह इस आपदा से लड़ न सके क्योंकि उसने इससे भी बड़ी आपदाओं को टक्कर दी है और फिर से खड़ा हुआ है।
—कमलेश कुमार ओझा
पुष्प विहार (नई दिल्ली)
किसान बचपन से ही संकटों में पला-बड़ा होता है। बाढ़, सूखा,ओलावृष्टि और अन्य बेवक्त आने वाली आपदाओं से वह लड़कर ही बड़ा होता है। हां, इस आपदा में जरूर किसान की क्षति हुई है। परन्तु संघर्षशील किसानों ने कभी हिम्मत नहीं हारी है और आत्महत्या तो उनके मन में ही नहीं आई। लेकिन जिस प्रकार वर्तमान में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा किसानों को भड़काने और उनके मनों को छोटा करने का प्रयास किया जा रहा है वह बहुत ही गलत है। केन्द्र सरकार को चाहिए कि आपदा की इस घड़ी में वह किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके दुखों को दूर करने का अकाम करे। क्योंकि किसान ही देश ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और पालक भी।
—गोविन्द प्रसाद शुक्ल, इन्दिरानगर,लखनऊ (उ.प्र.)
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के चलते मुसलमानों के हौसले बुलंद हैं। खुलेआम वह अनेक क्षेत्रों में अराजकता का माहौल बनाए हुए हैं। इस दौरान अधिकतर गैर कानूनी कार्य भी उनके द्वारा किए जा रहे हैं और प्रशासन जानकर भी अनजान रहता है क्योंकि उसे पता होता है कि जैसे ही उनके ऊपर कुछ कार्रवाई की जायेगी उनका तो कुछ नहीं होगा लेकिन कार्रवाई करने वाला मुसीबत में आ जायेगा। इस डर से प्रशासन उनके खिलाफ कार्रवाई करने से बचता है। शासन का एक तरीके से बरदहस्त उन्हें प्राप्त है जिसकी आड़ लेकर वह सभी गैर कानूनी कामों को अंजाम दे रहे हैं।
—पवन कुमार सिंह शाहदरा(दिल्ली)
शिक्षा पद्धति में हो सुधार !
युगद्रष्टा डॉ. आंबेडकर की 125वीं जयंती भारत में हर्षोल्लास से मनाई गई। बाबासाहेब ने सदैव समाज में अमीर और गरीब को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया। लेकिन अभी उनका संकल्प अधूरा है क्योंकि देश में शिक्षा का सही पैमाना नहीं है। गरीब के लिए अलग शिक्षा और अमीर के लिए अलग। गरीब के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं, जबकि अमीर के बच्चे निजी विद्यालय में पढ़ते हैं। अब ऐसे में समाज में कैसे समानता आएगी, यह अहम सवाल है। समाज को एक सूत्र में बांधने की आज प्रमुख आवश्यकता है।
—जसवंत सिंह जनमेजय,
(दिल्ली)
नैतिक जिम्मेदारी समझें!
आज भारत समूचे विश्व में महान शक्तिशाली देश के रूप में खड़ा दिखाई दे रहा है। देश की बढ़ती शक्ति से विश्व के कई देश चिंतित हैं और अनेक रूप में संकटों को खड़ा करने का कुचक्र भी रच रहे हैं। इन षड्यंत्रपूर्ण प्रयासों से हमें बचके रहना होगा। दूसरा आज हम देखते हैं कि कुछ लोगों में एक विकृति उत्पन्न हो रही है कि हरेक चीज के लिए सरकार की ओर देखना और उससे लाभ की इच्छा रखना। लेकिन सवाल है कि क्या यह इच्छा वास्तव में हमारे समाज के लिए सही है? समाज को मन में बैठाना होगा कि हमें ही स्वयं उठकर अपने और अपने समाज के लिए सबकुछ करना है। जिस दिन यह विचार मन में आ जाएगा उस दिन सब कुछ स्वयं ठीक हो जायेगा।
— देशबन्धु संतोषपार्क, उत्तम नगर (नई दिल्ली)
अद्वितीय विभूति
स्वामी विवेकानंद ने विदेशी धरती पर सनातन संस्कृति का वास्तविक परिचय देकर विश्व को भारतीयता से परिचय कराया। उन्होंने अपने तप और तेज से विदेशियों को भी भारतीय संस्कृति और मूल्य मानने पर विवश कर दिया। आज फिर से ऐसी किसी विभूति की जरूरत है जो भारत का परिचय विश्व में करा सके और बता सके कि भारत ही विश्व गुरु है। आज भारत के लोग अपनी शक्ति भूल गए हैं और सुख और समृद्धि के जाल में फंस के रह गए हैं। वैभव और आरामतलवी जीवन ने हमें कमजोर बना दिया है। हमारे सुखों में कमी न रहे इसलिए हम गलत बात को भी सही मानकर स्वीकार कर लेते हैं और उस बात का विरोध नहीं करते हैं। इसलिए आज हमारी प्रतिभा का दिनोदिन हस हो रहा है और हम कमजोर हो रहे हैं। लेकिन समय की मांग है कि हम फिर से जागें और अपनी शक्ति को पहचाने, ताकि भारत को जो स्थान मिलना चाहिए वह मिल सके।
—कजोड़ राम नागर
दक्षिणपुरी, (नई दिल्ली)
पुरस्कृत पत्र
घर वापसी होनी चाहिए
भारत में इस्लाम के आगमन और आधिपत्य के साथ दो बातें विशेषता से हुई। पहला, भयादोहन करके असंख्य हिन्दुओं का कन्वर्जन और दूसरा,जिहादियों और आक्रान्ताओं द्वारा सनातन व्यवस्था को विकृत करना। इस प्रकार का खेल मुगल एवं अंग्रेजी शासन में तो चलता रहा लेकिन यह खेल आज भी गुपचुप रूप से चल रहा है। आज भी कहीं न कहीं से आवाज आती रहती है 'हंसके लिया है पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिन्दुस्थान'। कश्मीर इसका ज्वलंत उदाहरण है। डॉ. के.बी.पालीवाल ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है-इस्लाम के दो चेहरे। इसमें 87 पृष्ठ पर कुरान के सूरा क्रं.9 के आयत 5 का उल्लेख है कि जब प्रतिष्ठित महीने गुजर जाएं तो मूर्तिपूजक का जहां पाओ वहां कत्ल करो। मुसलमान बन जाएं तो मार्ग छोड़ दो। इसी का अनुसरण करते हुए मुगल शासन में और आज तक देश की निरीह जनता का भयादोहन करते हुए इस्लाम द्वारा उनका कन्वर्जन किया गया। रही सही कसर अंग्रेजी शासन ने पूरी की। एक तरफ देश में इस्लाम का कहर तो दूसरी ओर अंग्रेजों का कहर। अंग्रेजी शासन प्रणाली ने भारत की व्यवस्था को विकृत करने के लिए यहां की शिक्षा पद्धति और मानबिन्दुओं को नष्ट करने का काम शुरू किया। यहीं से उन्होंने गरीबों की सेवा के नाम पर कन्वर्जन की शुरुआत की और आज तक यह प्रक्रिया सतत रूप से संचालित हो रही है। देश के विभिन्न प्रदेशों में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर रोगियों को कन्वर्ट किया जाता है यह बात आज जगजाहिर है। आज समय है जब ऐसे लोगों को अपने घर में पुन: लाने का। क्योंकि जो लोग भय एवं अन्य किसी कारण से अपने लोगों से दूर हुए थे उन्हें पूरी तरीके से विधर्मियों के प्रभाव से मुक्त होने का अधिकार है। सामाजिक संगठनों को भी चाहिए कि वह इसके लिए हर संभव प्रयास करें और उनको पुन: घर में वापस लाएं।
डॉ. प्रणव कुमार बनर्जी
पेंड्रा-बिलासपुर (छ.ग.)
सत्ता मद में चूर
सत्ता के मद में हुए, हैं वे इतने चूर
चढ़ा केजरीवाल के, सिर पर एक फितूर।
सिर पर एक फितूर, रोज करते हैं झगड़ा
कभी मीडिया से तो कभी केन्द्र से लफड़ा।
कह 'प्रशांत' जनता की किस्मत बंद हो गयी
सोने जैसी चमक राख सी मंद हो गयी॥
-प्रशान्त
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