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डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
जो जम्मू-कश्मीर के इतिहास, भूगोल में रुचि रखते हैं, उन्होंने सैयद अली शाह के नाम और काम के बारे में अवश्य सुना होगा। उन्हीं गिलानी को अब पासपोर्ट चाहिये। लेकिन पासपोर्ट के लिये एक निश्चित प्रक्रिया है। छपा हुआ आवेदन पत्र भरना पड़ता है। उसमें अपना, अपने पिता, माता का नाम लिखना पड़ता है। उसके बाद जन्म तिथि लिखनी होती है। अपनी राष्ट्रीयता लिखनी पड़ती है। इसके बाद अपना पूरा पता लिखकर अपने चार फोटो साथ लगाने पड़ते हैं। यह सब कर लेने के बाद निर्धारित फीस जमा करवानी होती है। आजकल बायोमीट्र्कि निशान भी देना होता है।
यह तो है पासपोर्ट की आवेदन की प्रक्रिया। उसके बाद सरकार यह देखती है कि पासपोर्ट मांगने वाला आदमी कहीं विदेश में जाकर देश के खिलाफ बोलने तो नहीं लगेगा? यदि सरकार को ऐसी आशंका हो तो वह पासपोर्ट देने से इनकार भी कर देती है। सैयद गिलानी की बेटी सऊदी अरब के शहर जेद्दाह में रहती है और इन दिनों बीमार है। अली शाह बेटी का हाल जानने के लिये वहां जाना चाहते हैं। उन्होंने पासपोर्ट के लिये आवेदन दिया, लेकिन अभी तक पासपोर्ट बन कर आया नहीं है। पीडीपी और सीपीएम को इससे बहुत चिन्ता हो रही है। प्रदेश विधानसभा में सीपीएम के इकलौते विधायक और मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा है कि मानवीय आधार पर गिलानी को पासपोर्ट दे देना चाहिये। एक सैयद की दूसरे सैयद के प्रति यह सहानुभूति समझ में आती है। लेकिन मानवीय आधार पर तो भारत सरकार केवल इतना ही कर सकती है कि चाहे अली शाह पर कितने भी आपराधिक मामले देश में क्यों न चल रहे हों, उन्हें पासपोर्ट दे दिया जाना चाहिये। वैसे भी उनके पाकिस्तान भाग जाने का खतरा तो बिल्कुल नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान के लिये भी ये गिलान वाले सैयद तब तक ही लाभदायक हैं, जब तक वे हिन्दुस्थान में डटे हुये हैं। एक बार पाकिस्तान में ही पहंुच गए तो उनके लिये किस काम के? यह बात सैयद गिलानी से बेहतर और कौन जान सकता है? दूसरा मुद्दा है कि भारत सरकार को आशंका है कि वे बाहर जाकर भारत के खिलाफ विषवमन कर सकते हैं। मानवीय आधार पर भारत सरकार उसे भी नजरअन्दाज कर सकती है, क्योंकि भारत के खिलाफ जितना वे भारत में रहकर बोलते हैं, उससे ज्यादा बाहर जाकर क्या बोल लेंगे? यहां भी वे पाकिस्तान के झंडे फहराते हैं और 'जिए पाकिस्तान' के नारे लगाते हैं, सऊदी अरब में जाकर भी और ज्यादा चिल्लाकर यही नारे लगा सकते हैं। इसलिये यदि पीडीपी वाले सैयद की बात मान भी ली जाये तो गिलान वाले सैयद को इसी क्षेत्र में भारत सरकार मानवीय आधार पर रियायत दे सकती है।
लेकिन पासपोर्ट लेने के लिये प्रक्रिया का जो पहला हिस्सा है वह तो सैयद अली शाह को खुद ही भरना पड़ेगा, उसका तो मानवीय आधार पर रियायत देने से कोई ताल्लुक नहीं है। मसलन आवेदन के साथ चार फोटो जमा करवाने होते हैं, आखिर वे तो जमा करवाने ही पड़ेंगे, उसका तो मानवीय आधार से कोई सम्बंध नहीं है। हां, यह अलग बात है कि सैयद गिलानी अब यही तर्क देना शुरू कर दें कि भारत सरकार की इतनी हिम्मत कि मुझसे फोटो मांग रही है? मुझे तो देश के लोग अच्छी तरह पहचानते हैं। मुझसे फोटो मांगना तो इस देश में रह रहे सैयदों से भेदभाव है। आखिर पासपोर्ट के आवेदन पत्र की फीस भी गिलानी को खुद ही भरनी होगी। मानवीय आधार पर वह फीस तो भारत सरकार माफ कर नहीं सकती। आवेदन पत्र में एक कॉलम राष्ट्रीयता का भी होता है। सैयद गिलानी अपने आप को भारत का नागरिक नहीं मानते, ऐसा उनका कहना है। इसी तर्क के आधार पर वे अपने आवेदन पत्र में नागरिकता का कॉलम खाली छोड़ रहे हैं।
ताज्जुब है, गिलानी जिस देश से अपना पासपोर्ट बनाने को कह रहे हैं, स्वयं को वे उस देश का नागरिक नहीं मानते। जब वे अपने आपको भारत का नागरिक ही नहीं मानते तो भारत सरकार उनको पासपोर्ट कैसे दे सकती है? कोई भी देश अपने देश के नागरिकों को ही पासपोर्ट दे सकता है, किसी अन्य को नहीं। 1947 में विभाजन के वक्त उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, जम्मू, राजस्थान, कश्मीर इत्यादि स्थानों से बहुत से मुसलमान पाकिस्तान को चले गये थे। वे अब भारत को अपना देश नहीं मानते। हो सकता है कुछ मुसलमान हैं, जो विभाजन के बाद मन से भारत को अपना देश न स्वीकारते हों लेकिन उनमें इतनी ईमानदारी न बची हो कि वे पाकिस्तान में चले जायें। गिलान वाले सैयद द्वारा डंके की चोट पर यह कहने से कि, मैं भारत का नागरिक नहीं हूं, यही प्रतीत हो रहा है। इस स्थिति में, क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री सैयद मुफ्ती मोहम्मद बता सकेंगे कि इस मुद्दे पर मानवीय आधार क्या हो सकता है?
हालात संकेत कर रहे हैं कि सैयद जान-बूझकर कर अपनी बीमार बेटी के नाम पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं। वे कश्मीरियों की सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रहे हैं। गिलानी जानते हैं कि घाटी में उनका राजनैतिक आधार सिमटता जा रहा है। उनके समर्थकों की संख्या भी घटती जा रही है। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी बीमार बेटी के नाम पर पासपोर्ट की राजनीति करनी शुरू कर दी है। गिलानी तो पढ़े-लिखे बुजुर्ग हैं। इतना तो जानते ही हैं कि नागरिकता की घोषणा के बिना कोई भी देश अपने नागरिक को पासपोर्ट जारी नहीं करेगा। इससे पूर्व उनको अनेक बार पासपोर्ट मिल चुका है और वे हर बार अपने आप को भारत का नागरिक घोषित करते रहे हैं। इस बार उन्होंने जान-बूझकर कर नागरिकता का कॉलम खाली छोड़ा ताकि उनको पासपोर्ट जारी न हो सके और वे अपनी बीमार बेटी के नाम पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक सकें। इस पकती उम्र में भी गिलानी ऐसा घटिया खेल खेल रहे हैं, यह निश्चय ही दुख की बात है और सैयद मुफ्ती मोहम्मद यह जानते-बूझते भी दूसरे सैयद की मदद कर रहे हैं, यह और भी चिन्ता का विषय है। ल्ल
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