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भारतीय संस्कृति व समाज रचना का ताना-बाना नारी अस्तित्व के आस-पास बुना गया है। संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। महिलाओं के इसी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समाज से परिचय कराने का जिम्मा उठाया है राष्ट्र सेविका समिति ने। 'अखिल भारतीय महिला चरित्र कोश' के माध्यम से भारत की तेजस्वी महिलाओं का कार्य विश्व पटल पर रखने की तैयारी है।' यह जानकारी गत दिनों देहरादून में राष्ट्र सेवा समिति की राष्ट्रीय संयोजिका डॉ़ विद्या देवधर महाजन ने एक प्रेस वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि इस कोश का निर्माण संघमित्रा सेवा प्रतिष्ठान के तत्वावधान में किया जा रहा है। इसके माध्यम से आने वाली पीढि़यों को यह जानने का अवसर मिलेगा कि वैदिककाल से लेकर वर्ष 2000 तक महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में क्या-क्या योगदान दिया। डॉ़ महाजन ने कहा कि इतिहास महिलाओं की उपलब्धियों से भरा पड़ा है। इनमें एकाध नहीं, अनेक ऐसी गाथाएं हैं, जिनसे लोग अभी तक भी अनजान हैं। भावी पीढ़ी को ऐसी तमाम विलुप्त गाथाओं व अनसुनी कहानियों से परिचित कराने के लिए ही महिला चरित्र कोश का निर्माण किया जा रहा है। उत्तराखण्ड प्रवास के दौरान डॉ़ महाजन विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बना चुकीं महिलाओं से मिलीं। इस दौरान प्रान्त कार्यवाहिका अंजली वर्मा, डॉ़ सुषमा महाजन आदि उपस्थित रहीं। ल्ल प्रतिनिधि
शिक्षा एवं भविष्य की दिशा पर संगोष्ठी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने 3 मई को कुरुक्षेत्र में प्राध्यापक संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी का विषय था 'वर्तमान शिक्षा एवं भविष्य की दिशा'। मुख्य वक्ता और विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ़ नागेश ठाकुर ने कहा कि देश बदलाव की ओर बढ़ रहा है। शिक्षा से ही भारत का भविष्य उज्ज्वल होगा और राष्ट्र सबल एवं संस्कारित बन सकेगा। पूरे देश में परिषद् की इकाइयां विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके विद्वानांे से सुझाव एकत्रित कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जब विश्व के अन्य लोगों ने बोलचाल भी नहीं सीखी थी, तब भारत में वैदिक ज्ञान से लोग परिचित थे। आज सारा विश्व वेद को प्राचीनतम स्वीकार करता है और उन्हें ज्ञान का माध्यम मानता है। भारत के ऋषि-मुनियों के इसी ज्ञानसागर के कारण भारत विश्व गुरु बना। लेकिन समय के प्रभाव के चलते आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ में सत्ता रही वे युवा पीढ़ी को सार्थक ज्ञान नहीं दे सके। उन्होंने कहा कि आज देश में अनुसंधान एवं विकास पर जोर देने की जरूरत है, क्यांेकि इसी से हर नागरिक को सुखी व समृद्ध जीवन दिया जा सकता है। संगोष्ठी में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ़ राघवेंद्र तंवर, डॉ़ दिनेश गुप्ता, डॉ़ सी. डी. एस. कौशल और डॉ़ मोद्गिल ने भी अपने विचार रखे। – प्रतिनिधि
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