विकल्प नहीं मां और मातृभाषा का
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विकल्प नहीं मां और मातृभाषा का

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Apr 18, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Apr 2015 14:42:07

अंक संदर्भ: 29 मार्च, 2015
आवरण कथा 'पढ़ाई से लड़ाई बंद' में तथ्यों के साथ बताया गया है कि बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने से उनका सर्वांगीण विकास होता है। दुनियाभर के विद्वानों और शिक्षाविदों का भी कहना है कि मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने से बच्चों की समझ बहुत अधिक बढ़ती है। ऐसे बच्चे किसी भी विषय को आसानी से आत्मसात कर सकते हैं। गांधी जी, रविन्द्रनाथ ठाकुर, महर्षि अरविन्द जैसे महापुरुष भी कहते थे कि शिक्षा मातृभाषा में ही देनी चाहिए। इसके बावजूद भारत में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों और छात्रों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है।
—मनीष कुमार , चिरैयाटांड़, पटना (बिहार)
ङ्म राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने के सम्बंध में जो प्रस्ताव पारित किया है, वह स्वागत योग्य है। काश, भारत में इस सम्बंध में आजादी के तुरन्त बाद ही विचार और अमल होता तो आज का दृश्य कुछ अलग ही होता। लगभग 98 प्रतिशत बच्चे घर में अपनी बोली या मातृभाषा बोलते हैं, लेकिन विद्यालय में इन बच्चों को अंग्रेजी का सामना करना पड़ता है। इस कारण बच्चे अनावश्यक तनाव में रहते हैं। यह तनाव उनके विकास में बाधक है।
—सिद्धार्थ परमार
लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.)
ङ्म मातृभाषा में शिक्षा देने का अर्थ यह नहीं है कि हम अपने बच्चों को अन्य भाषाओं से दूर रखें। शिक्षा तो अपनी भाषा में ही हो, पर अन्य भाषाओं का ज्ञान भी आवश्यक है। नई-नई तकनीकी के कारण आज दुनिया सिकुड़ गई है और देशों की दूरियां कम हो गई हैं। इस माहौल में अपने को उपयुक्त साबित करने के लिए अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान जरूरी है।
— कृष्ण कुमार
अनाज मण्डी, कैथल (हरियाणा)
ङ्म सरकारी नीतियों के कारण लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजते हैं। सरकारी कामकाज में अंगे्रेजी का वर्चस्व है। जो लोग अंगेे्रजी नहीं बोलते हैं उन्हें अंग्रेजी-दां लोग पढ़ा-लिखा मानते ही नहंीं हैं। हाल यह है कि दिल्ली जैसे शहरों में किसी सरकारी कार्यालय से अंगे्रेजी में ही कोई पत्र आता है। मैंने कई लोगों को देखा है कि वे पत्र पढ़वाने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की मदद लेते हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि उनके बच्चे अंग्रेजी जान लेंगे तो उन्हें इस तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन अंगे्रजी के चक्कर में अपनी बोलियों और मातृभाषा की उपेक्षा करना ठीक नहीं है।
— नीतू तंवर, नारायणा, नई दिल्ली
जनसंख्या नियंत्रण जरूरी
मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर प्रकाशित लेख '24 प्रतिशत बढ़ी मुस्लिम आबादी' में जो चिन्ता व्यक्त की गई है वह हर राष्ट्रभक्त की होनी चाहिए। इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत में मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है। लाखों ऐसे मुसलमान दम्पति हैंं, जिनके 18-18, 20-20 बच्चे हैं। उनकी मंशा है कि ज्यादा से ज्यादा आबादी बढ़ाओ ताकि एक दिन भारत इस्लामी राष्ट्र बन जाए। इसमें पढ़े-लिखे मुसलमान भी हैं। साथ ही बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठियों के कारण भी भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है। ये घुसपैठिए भारत के हर कोने में मौजूद हैं। कई न्यायालयों, यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मुद्दे पर अनेक बार अपनी नाराजगी व्यक्त की है, इसके बावजूद बंगलादेशी घुसपैठियों को बाहर करने की योजना नहीं बन रही है। कुछ सेकुलर नेता और बुद्धिजीवी यह भी कहते हैं कि भारत में जो बंगलादेशी हैं, उन्हें यहां की नागरिकता दे दी जाए। ऐसे लोगों से भारत को बचाना होगा। इसके साथ ही जनसंख्या पर नियंत्रण लगाने के लिए कोई कारगर नीति बनानी होगी।
—ब्रजेश श्रीवास्तव
आर्य समाज रोड, मोतीहारी (बिहार)

धरती का भगवान
वर्षा के कारण हुआ, है भारी नुकसान
मूढ़ पकड़ कर रो रहा, धरती का भगवान।
धरती का भगवान, इस तरह बरसे ओले
आफत बनकर अंबर से टपके ज्यों शोले।
कह 'प्रशांत' इन सबको गले लगाना होगा
जैसे भी हो, इनका दर्द मिटाना होगा॥
-प्रशान्त
फिर किसी रवि, सत्येन्द्र या मंजूनाथ की हत्या न हो

बेंगलुरू में भारतीय प्रशासनिक अधिकारी डी.के. रवि की मौत पर आधारित रपट 'रवि की मौत, आत्महत्या या साजिश' पढ़ी। रवि की मृत्यु कैसे हुई, इसकी जानकारी अभी तक बाहर नहीं आई है। लेकिन हर जगह चर्चा है कि रवि की ईमानदारी से माफिया और बदमाश कांपते थे। उनके परिजनों ने भी आशंका जताई है कि माफिया से जुड़े तत्वों ने ही उनकी हत्या की है। फिलहाल सी.बी.आई. उनकी हत्या की जांच कर रही है। उनसे पहले भी कई वरिष्ठ अधिकारियों को ईमानदारी के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है। रेत माफियाओं ने 2012 में मध्य प्रदेश के शिवपुरी में एक ईमानदार पुलिस अधिकारी नरेन्द्र कुमार की हत्या डंपर से कुचलकर कर दी थी। इससे पहले 2005 में पीलीभीत में तेल माफियाओं ने इंडियन ऑयल के अधिकारी एस. मंजूनाथ को मारा था। 2003 में बिहार में अभियंता सत्येन्द्र दुबे को भी मारा गया था। उन सबका दोष केवल इतना था कि वे लोग अपने कर्तव्य को पूरी ईमानदारी से निभा रहे थे। हत्यारों को अभी तक उचित सजा नहीं मिली है। सरकार ऐसे कर्तव्यनिष्ठ लोगों की हत्या करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने में क्यों असफल हो रही है? हत्यारों को जब तक सजा नहीं मिलेगी तब तक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी मारे जाते रहेंगे। फिर किसी रवि, सत्येन्द्र या मंजूनाथ की हत्या न हो, यह सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है। ऐसा होने से जो अधिकारी ईमानदारी से कार्य करना चाहते हैं उनका हौसला बढ़ेगा और देश में कार्य संस्कृति भी बदलेगी।
— शिवा भटनागर, 1-सी, धवलगिरि अपार्टमेन्ट (बी-5), सेक्टर-34, नोएडा

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