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सकती खाद्य सुरक्षा पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वरिष्ठ भाजपा नेता श्री शांता कुमार खेती, किसान और खाद्य मामलों के विशेषज्ञ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों और भूमि से संबंधित मामलों की एक समिति श्री शांता कुमार की अध्यक्षता में गठित की है जिसकी विस्तृत रपट सरकार को सौंप दी गई है। देश में कृषि और किसानों की स्थिति पर पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक सूर्य प्रकाश सेमवाल ने श्री शांता कुमार से विस्तृत बातचीत की, यहां प्रस्तुत हैं बातचीत के संपादित अंश-
आज भारत का अन्नदाता दुरावस्था में क्यों दिखाई देता है?
भारत का अन्नदाता किसान दुरावस्था में इसलिए है क्योंकि स्वतन्त्रता के बाद सबसे अधिक आवश्यक व्यवसाय कृषि की सबसे अधिक उपेक्षा होती रही है। भारत कृषि प्रधान देश था। गांव और गरीबों का देश है। कृषि को सबसे अधिक महत्व दिया होता तो गांव और किसान अबाद होता और पूरा भारत भी खुशहाल होता। बड़ी-बड़ी पंचवर्षीय योजनाओं में बड़े-बड़े नगरों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती रहीं परन्तु गांव, गरीब और किसान की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। आज भारत की अर्थ-व्यवस्था विश्व में सबसे अधिक तेजी से आगे बढ़ रही है। वृद्घि दर चीन से भी थोड़ा आगे हो जाएगी। करोड़पतियों की संख्या भी अधिक बढ़ गई हैं। विश्व के 20 सबसे अधिक अमीर लोगों में यदि अमरीका के 5 हैं तो भारत के भी 3 है। परन्तु दूसरी ओर राष्ट्रसंघ की रपट के अनुसार विश्व में सबसे अधिक भूखे लोग भारत में रहते हैं। कारण एक ही है कि विकास तो हुआ पर सामाजिक न्याय नहीं हुआ। अन्त्योदय की भावना से गरीब और किसान पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।
आजादी के 67-68 वर्ष बाद भी कृषि प्रधान भारत देश में किसान के पास न जमीन है और न अपने अन्न का सही मूल्य। इस ओर राजनीतिक रवैये की उदासीनता पर आपका क्या कहना है?
भारत में लगभग 9 करोड़ किसान हैं। उन में से 85 प्रतिशत लघु किसान हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है यद्यपि 50 साल पहले न्यूनतम मूल्य तय करके किसान की उपज खरीदने का काम शुरू हुआ। भारतीय खाद्य निगम का प्रारम्भ किया गया। खाद अनुदान दिया जाने लगा। इस सारी व्यवस्था पर लगभग 2 लाख करोड़ रुपए खर्च किया जाता है। परन्तु कड़वी सचाई यह है कि इससे केवल 6 प्रतिशत अर्थात् 9 करोड़ किसानों में से केवल 54 लाख बड़े किसानों को ही लाभ होता है। बाकी किसान अपनी उपज कम भाव पर विचौलियों को बेचने पर विवश होते हैं। विश्वभर में भारत में गरीबों की संख्या सबसे अधिक है। विश्व 'हंगर इंडैक्स' में भारत सबसे नीचे है। खेत और किसान के प्रति उपेक्षा ही इसका सबसे बड़ा कारण है। न्यूनतम मूल्य तय करना ही पर्याप्त नहीं, किसानों को लाभप्रद मूल्य देने के लिये खाद्य निगम को सब प्रदेशों में अनाज खरीद की व्यवस्था करनी चाहिए। आज केवल 8 प्रदेशों में ही सरकारी खरीद होती है।
ल्ल विदेशी रासायनिकों और उर्वरकों की चपेट में आकर किसान आत्महत्या न करें, इसके लिए आपका क्या सुझाव है?
सरकार खाद अनुदान के रूप में लगभग 70 हजार करोड़ रुपए खर्च करती है। इसका अधिक लाभ बड़ी खाद कम्पनियों को ही होता है। विदेशी खाद के उपयोग से भूमि की उर्वरता कम हो रही है। यूरिया के अधिक सस्ता होने के कारण उसका आवश्यकता से अधिक उपयोग भूमि को खराब कर रहा है। इस अनुदान का आम गरीब किसान को सीधा कोई लाभ नहीं हो रहा है। मेरी अध्यक्षता में बनी कमेटी ने यह सुझाव दिया है कि यह सारा धन सभी किसानों को 'इनपुट सब्सिडी' के रूप में सीधे उनके खाते में जमा करवाया जाए। किसान स्वयं निर्णय करे कि उसे कितनी व कौन-सी खाद उपयोग करनी है। वह जैविक खेती की ओर भी प्रोत्साहित होगा। खेती और किसान के प्रति इस उदासीनता के कारण ही आज तक 2 लाख 78 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है। किसानों की इस अवस्था को रोकने के लिए अतिशीघ्र कुछ विशेष करने की आवश्यकता है। खेती का व्यवसाय न आकर्षक है न लाभप्रद है और न ही उसमें सामाजिक स्तर है। परन्तु इसके बिना कोई भी देश नही रह सकता। इसलिए विश्व के बहुत से देश किसान को खेत से जोड़कर रखने के लिए सीधे आय सहायता देते हैं। अमरीका में 21 लाख किसान हैं और प्रतिवर्ष हर किसान को सीधे 70 लाख रुपए की सहायता दी जाती है। भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए हमारी कमेटी ने उन्हें सीधे 70 हजार रुपए वार्षिक प्रति हेक्टयर तक देने की सिफारिश की है। इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है।
ल्ल भारत में पहली बार मोदी सरकार ने 33 प्रतिशत नुकसान झेलने वाले किसानों को भी डेढ़ गुनाा ज्यादा मुआवजा राशि देने की घोषणा की है। यह किसानों के हित में कितनी मददगार होगी?
सरकार का यह कदम सराहनीय है पर काफी बिलकुल नहीं है और भी बहुत कुछ करना होगा।
आज ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण कानून किसानों के विरुद्घ है, यह आरोप ज्यादातर वे दल लगा रहे हैं जिन्होंने आज तक किसानों की भूमि को केवल हड़पा है। ऐसे लोगों के प्रति आप क्या कहेंगे?
भूमि अधिग्रहण कानून के विरुद्घ विपक्ष का आन्दोलन राजनीति से प्रेरित है। केन्द्र सरकार द्वारा 9 संशोधन करने के बाद अब यह कानून किसानों के हित में है। फिर भी कुछ स्थानों पर किसान इस आन्दोलन में शामिल हो रहे हैं। उसका कारण यह कानून नहीं है। उन किसानों में से अधिकतर को न तो इस कानून का पता है और न ही उनके पास इतनी भूमि है। किसान वषोंर् से दु:खी है उपेक्षित है। आत्महत्या के कगार पर पहुंच जाता है इसलिए वह विपक्ष के बहकावे में आ रहा है।
ल्ल क्या खेती के काश्तकारों/खेतिहर मजदूरों की उपलब्धता में मनरेगा योजना एक बाधा है?
मनरेगा योजना अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर रही है। इतना ही नहीं इस योजना से भ्रष्टाचार नीचे तक पहुंच रहा है। यह ठीक है कि कुछ गरीबों को कुछ दिन का रोजगार दिया जा रहा है, परन्तु उससे विकास के स्थाई काम अधिक नहीं हो रहे हैं। फसल के समय खेत पर काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम हो गई है। मनरेगा योजना में बुनियादी तौर पर कुछ बदल करने की आवश्यकता है और इस पूरी योजना को कृषि व्यवसाय के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।
खाद्य भंडारण एक चुनौती है। आप भारतीय खाद्य निगम के पुनर्गठन की बात करते रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो क्या किसानों की स्थिति ठीक हो पाएगी?
भारत में पूरी खाद्य व्यवस्था का सरकारीकरण किया गया है। भारतीय खाद्य निगम ही अनाज खरीदता है और राज्य सरकारों द्वारा वितरण करवाता है। इस पूरी व्यवस्था पर 2 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। परिणाम यह है कि केवल 6 प्रतिशत किसानों को लाभ पहुंचता है और गरीब उपभोक्ताओं को जो अनाज भेजा जाता है उस में योजना आयोग की एक जांच के अनुसार 40 से लेकर 50 प्रतिशत तक चोरी होती है इसलिए मेरी अध्यक्षता वाली कमेटी ने यह सुझाव दिया था कि अनाज का भण्डारण, परिवहन पर एकाधिकार न हो उसे प्रतिस्पर्द्धा के तरीके से राज्य और केन्द्रीय एजेंसियों तथा निजी क्षेत्र से करवाया जाए। भण्डारण के लिए भारत के निजी क्षेत्र का सहयोग लिया जाए। आधुनिक तकनीकी की व्यवस्था की जाए।
ल्ल भारत में कृषि की स्वदेशी पद्धति जैविक खाद और सिंचाई का पतन आज किसान की बदहाली की बड़ी वजह बना है। भारत का किसान पारंपरिक खेती की ओर फिर से लौटे, इस सन्दर्भ में आपका क्या कहना है?
कृषि प्रधान देश भारत को विदेशी पद्घतियों की अंधी नकल नहीं करनी चाहिए थी। कुछ क्षेत्रों में कृषि में विदेशों में शोध द्वारा बहुत कुछ नया खोजा गया है। उसे लेना चाहिए था लेकिन पूरा लिया नहीं गया परन्तु सभी पुरानी स्वदेशी पद्घतियों को छोड़ना नहीं चाहिए था- जैविक खाद की ओर भारत के किसान को प्रेरित करना सबसे अधिक आवश्यक है। अधिक उत्पादन के लालच में विदेशी खाद के उपयोग ने धरती की उर्वरता बहुत कम कर दी है। विदेशी खाद पर ही 70 हजार करोड रुपए की सरकारी छूट को सीधे किसानों को नकद दे देना चाहिए। भारत के किसान को खेती के लिए यदि समय पर पानी मिलता रहे तो उपज बहुत बढ़ सकती है। देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के 68 वर्षों के बाद सिंचित भूमि का प्रतिशत बहुत कम है। आज से कुछ वर्ष पूर्व चीन खेती में भारत से बहुत पीछे था। भारत ने कृषि को सबसे कम महत्व दिया परन्तु चीन ने कृषि को सबसे अधिक महत्व दिया। उसका परिणाम है कि चीन में प्रति एकड़ उत्पादन भारत से दुगुना हो गया और कृषि पर ध्यान देने के कारण चीन ने गरीबी को भी कम कर दिया ।
आज से बहुत पहले भारत के प्रसिद्घ लेखक मुंशी प्रेमचन्द ने गोदान उपन्यास लिखा था। उपन्यास का नायक किसान होरी जीवन भर कर्जे में दबा रहता है। घुट-घुट कर जीवन व्यतीत करता है, मरने लगता है, तो उसकी पत्नी को लोग उसका गोदान करवाने को कहते हैं। उसकी पत्नी कहती है जीवन तो कर्ज में बीता अब गोदान के लिए कहां से पैसे लाएं। घर में रखे चार पैसे, मर रहे होरी के हाथ में रखकर उसकी पत्नी धनिया आंसू बहाती रहती है। आजादी के 68 वषोंर्र् के बाद किसान की हालत वही है। अब तो किसान आत्महत्या करता है गोदान करने की बात ही पैदा नहीं होती। भारत ने खाद्य सुरक्षा कानून बनाया है परन्त एक बात याद रखनी चाहिए कि किसान सुरक्षा के बिना खाद्य सुरक्षा नहीं हो सकती। इस बार केन्द्र ने भी इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं परन्तु वे पर्याप्त नहीं हैं। गांव, गरीब और किसान भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं इन्हें सबसे अधिक महत्व देना होगा।
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