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अंक संदर्भ: 8 मार्च, 2015
आवरण कथा 'सब जग होली' खूब जमी होली एक ऐसा त्योहार है जो वर्ष भर की थकान एवं द्वेष को भुलाकर मस्ती में झूमने को प्रेरित करता है। सब तरफ प्रसन्नता, उल्लास और हर्ष का ही वातावरण दिखाई देता है। हमारे देश में पर्व सामाजिक जागृति और धार्मिक चेतना को बढ़ावा देते हैं और सही मायनों में यही हमारी विरासत भी हैं।
—हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म होली अर्थात् एक ऐसा त्योहार जिसमें मन, प्राण आत्मा सब रंगों में सराबोर हो जाएं, वर्षभर की सभी कुंठाओं, विरोधाभासों, विकृतियों से मुक्ति की भावना जाग जाए। हमारा समाज भी कितना अनूठा है! हिन्दू समाज में ऐसे अनेक पर्व हैं, जो मन को आनंदित करते हैं और उन त्योहारों के पीछे कुछ न कुछ ऐसा रहस्य अवश्य होता है, जो जीवन व समाज को संदेश देता है। इसी प्रकार की लोक संस्कृति से अनादिकाल से हिन्दू जीवन मूल्य अभिसिंचित हो रहे हैं। आगे भी यही परंपरा इसी प्रकार अविचल रूप से चलती रहेगी।
—डॉ. रामशंकर भारती
दीनदयाल नगर, झांसी (उ.प्र.)
ङ्म रपट 'होली का रंग तो बनारस में जमता था' को पढ़कर मन अपने घर-आंगन में पहुंच गया। जैसे काशी की होली का अपना अलग महत्व है वैसे ही झांसी की होली का भी अलग महत्व है। यहां के मंदिरों में खेली जाने वाली होली मन को इतना प्रसन्न कर देती है कि आदमी वर्षभर की सभी चीजों को भूल जाता है, उसे कुछ याद रहता है तो वह है सिर्फ होली। लेकिन आज के समय में सिर्फ होली की यादें ही रह गई हैं। न वे लोग हैं! न वह माहौल है! न समय है! समय और पैसे ने अपने पाश में ऐसा जकड़ा है कि व्यक्ति सब कुछ भूलता जा रहा है। लेकिन कुछ भी हो जीवन की भागदौड़ के बीच इस त्योहार पर घर से दूर रहना जरूर खलता है। काश! वे दिन फिर लौटें!
—मोहन नेपाली
हींगन कटरा, झांसी (म.प्र.)
सेवा की आड़ में कन्वर्जन
रपट 'मदर टेरेसा : ममता या मिशन?' से पता चलता है कि वर्षों से भारत में सेवा की आड़ में कन्वर्जन का खेल खेला जा रहा है। भारत में देशी-विदेशी जो भी मिशनरी हैं, उनका प्रथम और अंतिम लक्ष्य केवल गरीब व अशिक्षित हिन्दुओं का शिक्षा, चिकित्सा, लोभ और भय द्वारा मतांतरण करना है। देश में किस कदर ईसाई मिशनरी वेटिकन के इशारे पर घूम-घूमकर कन्वर्जन का काम कर रहे हैं,यह बड़े शहरों से लेकर छोटे गांवों तक देखा जा सकता है। सवाल है कि देश के पूर्वोत्तर में बढ़ती ईसाई जनसंख्या क्या प्रदर्शित करती है? रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने मदर टेरेसा पर जो भी कहा है, उसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है। इस वक्तव्य से मदर टेरेसा की जो कथित सेवा है उससे पर्दा उठा है और जो लोग आज तक मदर टेरेसा को 'सेवा की मूर्ति' जानते थे उनको टेरेसा की असली हकीकत पता चली है।
—बी.एल.सचदेवा
263, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
ङ्म इसे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां कथित लोगों को वे पुरस्कार दे दिए जाते हैं, जो देश के सम्मान के प्रतीक हैं। लेकिन उन्हें जो सम्मान दिया जाता है, क्या वास्तव में वे उस सम्मान के हकदार होते हैं? ऐसा ही नाम है मदर टेरेसा जिनको भारत के सेकुलर नेताओं ने पता नहीं कितने पुरस्कारों से सम्मानित करवाया और उनके हौसले को बढ़ावा दिया। लेकिन क्या इन नेताओं ने उनके असली काम को जानने का प्रयास किया कि कैसे वह भारत में धीरे-धीरे वेटिकन के इशारे पर कन्वर्जन की फसल काट रही थीं? मेरी सरकार से एक ही मांग है कि मदर टेरेसा की जो हकीकत है उसको देश के सामने लाने का प्रयास करे, क्योंकि देश की जनता उनके आधे-अधूरे इतिहास से परिचित है और इसी अधूरे इतिहास का फायदा उठाकर मिशनरी लोगों को मानसिक रूप से बरगलाते हैं।
—रामदास गुप्ता
जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
ङ्म कन्वर्जन से समाज में धीरे-धीरे एक गलत संदेश जा रहा है। इससे असमानता और विसंगतियां बढ़ रही हैं। घर वापसी पर शोर-शराबा मचाने वाला मीडिया देश में आएदिन बड़ी संख्या में मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं के कन्वर्जन पर मंुह सिल लेता है या पूरे समाचार को ही दबा देता है। अगर कहीं मिशनरियों के कन्वर्जन कार्य का हिन्दू समाज प्रतिकार करता है तो मीडिया इस समाचार को ऐसा तूल दे देता है जैसे समूची ईसाइयत पर संकट आ गया हो। सदैव से वह एक पक्ष को रखकर अपना समाचार बनाता है और दूसरे पक्ष की चीजों को अनदेखा कर देता है। मीडिया का इस प्रकार का रुख कितना सही है, यह एक अहम सवाल है, क्योंकि दिल्ली के चर्च में चोरी की एक मामूली बात को मीडिया ने बहुत बड़ा समाचार बनाया और ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश की मानो भारत में ईसाई समुदाय खतरे में है।
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग, प.निमाड (म.प्र.)
ङ्म कन्वर्जन के राष्ट्रघाती प्रभावों को देखते हुए वर्षों से हिन्दू संगठन देश में कन्वर्जन पर कड़े कानून और प्रतिबंध की बात पर बल देते रहे हैं। परंतु सेक्युलरिज्म की आड़ में विदेशी धन पर चल रहे कर्न्वजन को संरक्षण देने वालों ने इसका हमेशा ही विरोध किया है। तभी वे कड़े कानून की बात आते ही कन्नी काटने लगते हैं और इस कानून को पता नहीं क्या- क्या कहकर गलत ठहराने की कोशिश करते हैं। उन्हें इस कानून के बनने से डर है कि कहीं अगर यह कानून बन गया तो उनकी कन्वर्जन की गतिविधियां पकड़ी जाएंगी और उन पर लगाम लग जाएगी। अब इस कार्य को वे कैसे स्वीकार कर सकते हैं! या इसीलिए वह छोटी सी घटना को इतना तूल दे देते हैं कि वह विश्व मीडिया का समाचार बन जाता है। मेरा केन्द्र सरकार से एक ही आग्रह है कि देश में चल रहे कन्वर्जन के काले कार्य को तत्काल बंद किया जाए और उन कथित मिशनरी संस्थाओं को भी चिह्नित कर बंद किया जाए जो इस कार्य में सतत लगी हुई हैं।
—डॉ. सुशील गुप्ता
शालीमार गार्डन, सहारनपुर (उ.प्र.)
ङ्म असल में मदर टेरेसा को 'मदर' नहीं बल्कि मिशनरी टेरेसा कहना चाहिए। आज जो भी थोड़े जानकार और बुद्धिजीवी हैं वे टेरेसा के कन्वर्जन के कामों को भलीभांति जानते और समझते हैं। असल में टेरेसा को भारत में सेवा के लिए नहीं बल्कि कन्वर्जन करने के लिए ही भेजा गया था। सेवा तो आड़ में थी असल लक्ष्य तो कन्वर्जन ही था, जो उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया है। हमारे राष्ट्र के कुछ तथाकथित राजनीतिज्ञों ने टेरेसा को पूरा सहयोग दिया और उनकी राह में जितने भी रोड़े आए उन्हें हटाने का भी कार्य किया। आज भी इसी कड़ी में कुछ लोग अपना कार्य कर मिशनरियों को पालने और पोसने का काम कर रहे हैं। इस संदर्भ में आया सरसंघचालक का बयान अपने आप में महत्वपूर्ण है। उन्होंने टेरेसा की हकीकत से देश को परिचित कराया है।
—बिधूड़ी उधम सिंह आजाद
चन्द्रशेखर आजाद कुटीर
तेहखण्ड (दिल्ली)
देश में ईसाई मिशनरियां और मुसलमान कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं जिससे देश की अखंडता और संस्कृति पर कुठाराघात होता है। असल में इनकी भावना यह है ही नहीं कि भारत हमारा देश है और यहां की संस्कृति की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। देश के पूर्वोत्तर में ईसाई मिशनरियों की करतूतों को देखा जा सकता है। दूसरी ओर बंगाल सहित कई मुस्लिम बहुल राज्यों में मुसलमानों की करतूतों को भी देखा जा सकता है कि कैसे ये दोनों मत-संप्रदाय देश की एकजुटता को तोड़ने में लगे हुए हैं।
—बलवीर सिंह
अम्बाला छावनी (पंजाब)
ङ्म सेकुलरवादियों एवं वामपंथियों ने इस देश की संस्कृति, अस्मिता व मूल्यों के साथ सदैव दोहरा रवैया अपनाया है। अभी हाल के दिनों में कई राज्यों में ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं को प्रताडि़त करने की घटनाएं हुईं, लेकिन किसी भी मीडिया ने उनको समाज में लाने की चेष्टा नहीं की। मीडिया के इस प्रकार के रवैये को क्या समझा जाए? आज वनवासी क्षेत्रों में कार्य कर रहे कई सामाजिक संगठन डंके की चोट पर सिद्ध कर रहे हैं कि ईशाई मिशनरी सिर्फ और सिर्फ कन्वर्जन का ही काम कर रहे हैं। आज बड़े पैमाने पर देश में कन्वर्जन का खेल खुलेआम खेला जा रहा है। 'यीशू के संदेश' की किताबें बांटी जा रही हैं। 'लोगों को सभी दु:खों से यीशू ही छुटकारा दिला सकते हैं ' ऐसी बातों से हिन्दुओं को गुमराह किया जा रहा है। कितना दम है इन बातों में क्या कभी मीडिया या तथाकथित नेताओं ने इस पर गौर किया?
—रमेश कुमार मिश्र
कान्दीपुर,अंबेडकर नगर (उ.प्र.)
ङ्म स्वामी विवेकानंद ने 125 वर्ष पूर्व अमरीका में कई सार्वजनिक सभाओं में ईसाई मिशनरियों की कटु आलोचना की थी। देश में सेवा की आड़ में जो खेल मिशनरी खेल रहे थे उससे स्वामी जी बड़े चिंतित थे। आज देश में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में विदेशों से मुल्ला-मौलवी और ईसाई प्रचारक आते हैं। कोई बता सकता है कि वे यहां इतनी बड़ी संख्या में क्यों आते हैं? क्या उनका उद्देश्य सेवा है? यह सवाल अहम है। आज भारत ईसाई मिशनरियों और मुल्ला-मौलवियों का सबसे बड़ा केन्द्र बनता जा रहा है। वे यहां आकर सिर्फ और सिर्फ देश की अखंडता को नष्ट करते हैं। अगर इनकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखी गई तो आने वाले दिनों में स्थिति और खराब होगी।
—डॉ. के.वी. पालीवाल
राजौरी गार्डन (नई दिल्ली
सेवा की दुधारी तलवार
सेवा करना नि:संदेह अत्यंत महान और पुण्य का कार्य है। इसलिए हमारे यहां कहा भी गया है कि 'नर सेवा, नारायण सेवा'। लेकिन यदि कोई सेवा की आड़ में किसी का कन्वर्जन कराए तो उसे सेवा नहीं बल्कि षड्यंंत्र कहेंगे। इस परिभाषा के अन्तर्गत मदर टेरेसा एवं ईसाई मिशनरियां कठघरे में खड़ी दिखाई देती हैं। मदर की संस्था और ईसाई मिशनरियां देश के अनेक राज्यों में सेवा का नाटक रचकर अशिक्षित और भोले-भाले वनवासियों को 'कन्वर्ट' कर लेती हैं। इसके लिए वे लोभ, लालच और भय जैसे सभी तरीकोें का प्रयोग करते हैं। इन वनवासियों को देश और हिन्दू समाज के विषय में ऐसी गलत और निरर्थक बातें बताई जाती हैं कि उन्हें सुनने के बाद वे अपने समाज से घृणा करने लगते हैं। इसी का लाभ उठाकर ये मिशनरियां अपने कार्य को अंजाम देती हैं। जो लोग इसी माटी और भारत के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं वे इनके मायाजाल में नहीं फंसते। लेकिन जो डावांडोल रहते हैं वे इनके पाश में आ जाते हैं। भारत के नेता या जो भी अन्य सेकुलर हिन्दू विरोधी मदर टेरेसा को 'सेवा की मूर्ति' मानते हैं, वे इस बात का जवाब क्यों नहीं देते कि स्वयं मदर ने टाइम पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में स्वीकारा था कि 'वह भारत में प्यार से लोगों को 'कन्वर्ट' कर रही हैं और जीसस तक पहंुचा रही हैं'। यह क्या है? सेवा की आड़ में कन्वर्जन का खेल भारत में सदियों पुराना है और इस खेल को जारी रखने के लिए अधिकतर ईसाई देश भारत को इस कार्य के लिए सबसे उपयुक्त स्थान मानते हैं। वे जानते हैं कि यहां लोभ और लालच से अधिक से अधिक लोगों का कन्वर्जन किया जा सकता है और इसमें वे सफल भी हो रहे हैं। आज देश के अधिकतर कॉन्वेंट विद्यालयों में खुलेआम ईसाइयत का पाठ पढ़ाया जा रहा है। मदर टेरेसा को महिमामंडित करके संत घोषित किया जा रहा है। हिन्दू धर्म के प्रति द्वेष की बात बच्चों के मन में भरी जा रही हंै। देवी-देवताओं पर कटाक्ष किए जा रहे हैं। क्या इन तमाम चीजों से हमारा मीडिया और सेकुलर नेता परिचित नहीं हैं? सरसंघचालक के बयान पर हल्ला करने वाले मीडिया कभी संघ के सेवा कार्यों के बारे में वास्तविक जानकारी नहीं देता, जो कि वास्तव में देश व समाज की सेवा कर रहे हैं।
—अमित प्रधान
गोपाल मिष्ठान भण्डार,बस स्टैण्ड मार्ग,सीधी (म.प्र.)
सड़क पर सोनिया
सड़कों पर मैडम चलीं, कितने सालों बाद
बेटे ने है कर दिया, मानो सब बरबाद।
मानो सब बरबाद, मौज वे मना रहे हैं
और इधर माता के दिल को जला रहे हैं।
कह 'प्रशान्त' वृद्धा मां को दुख देने वाले
तुम्हें देखने हांेगे दिन इससे भी काले।।
-प्रशान्त
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