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देखन में चुटीले लगें, घाव करें गंभीर

by
Feb 28, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Feb 2015 14:39:03

अंक संदर्भ : 8 फरवरी, 2015
आवरण कथा 'ये होता है आम आदमी' से स्पष्ट हुआ कि आर.के.लक्ष्मण एक ऐसे व्यंग्य चित्रकार थे, जो अपनी कलम से तीखा प्रहार करते हुए अपनी बात को जनता से लेकर सरकार तक पहुंचाते थे। हर एक घटना पर उनका चुटीला व्यंग्य चित्र मन को भाता था। हर रोज हर प्रमुख दल, पार्टी व प्रमुख घटना पर अपने व्यंग्य चित्र के माध्यम से तीखा प्रहार करते थे, पूरी मर्यादा के साथ। उनका यूं चले जाना मन को व्यथित करता है।
—प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
दिलसुख नगर (हैदराबाद)
चुनौती का समय
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिली जीत से उस दल को प्रसन्नता तो अवश्य ही होगी, लेकिन उस प्रसन्नता से ज्यादा उसके सामने चुनौतियां हैं। बड़े-बड़े लोकलुभावन वायदे करके उसने दिल्ली की जनता को अपनी ओर आकर्षित तो कर लिया, लेकिन अब उसे वे सभी वायदे पूरे भी करने होंगे, जिसके लिए जनता ने उसे चुना है। साथ ही भाजपा की दिल्ली में हुई हार से उसे आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर में उसकी हार के क्या कारण रहे? लेकिन दूसरी ओर एक प्रसन्नता की बात यह है कि इस चुनाव में कांग्रेस का बिल्कुल सफाया ही हो गया। इससे एक बात सिद्ध हो चुकी है कि राहुल गंाधी कितनी भी बड़ी-बड़ी लच्छेदार बातें कर लें पर जनता कांग्रेस को अच्छी तरह से जान चुकी है।
—अरुण मित्र
324, रामनगर (दिल्ली)
० दिल्ली के दंगल में राजनीतिक दलों द्वारा वायदों की रेवडि़यां ऐसे बांटी जा रही थीं, जैसे आने वाले दिनों में सब मुफ्त मिलने वाला है। लेकिन दल यह नहीं बता रहे थे कि यह सब करने के लिए पैसा कहां से लाएंगे और कैसे जनता से किए वायदों को पूरा करेंगे? कारण, दिल्ली विधान सभा को उतने अधिकार प्राप्त नहीं हैं, जितने अधिकार अन्य राज्यों की विधानसभाओं को प्राप्त हैं। ऐसे में वर्तमान दिल्ली सरकार इन तमाम वायदों को कैसे पूरा करती है, यह आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन कुल मिलाकर अगर आम आदमी पार्टी जनता से किए वायदों को किसी भी प्रकार पूरा करती है तो यह संतोष की बात होगी।
—डॉ.जसवंत सिंह
कटवारिया सराय (दिल्ली)
जागे स्त्री शक्ति
21वीं सदी की नारी की सोच, मानसिकता, आचरण, जीवन स्तर एवं जीवन शैली में अत्यंत बदलाव आया है। जहां वह आज के समय में स्वावलंबन से उच्च पद पर आसीन होकर सम्मान प्राप्त कर रही है तो दूसरी ओर उस पर हिंसा व बलात्कार जैसी घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है। ये घटनाएं इस बात पर सोचने को मजबूर करती हैं कि आखिर इस प्रकार के कार्य के लिए कौन जिम्मेदार है? नारी को क्यों हेय दृष्टि से देखा जाता है? कुल मिलाकर इसके पीछे कई कारण सामने आते हैं और इसके लिए पुरुष और स्त्री, दोनों समान रूप से जिम्मेदार दिखते हैं। आने वाले समय में नारी शोषण रोकने के लिए स्त्री को स्वयं जागना होगा और अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा। साथ ही पुरुषों के साथ कदम मिलाकर भी चलना होगा,अहंकार से नहीं बल्कि स्वावलंबन से। यह देश सदैव महिलाओं का सम्मान करता रहा है और आगे भी करता रहेगा।
—कमल मालवीय
डी-उत्तरी पीतमपुरा (दिल्ली)
पथ से बहकता मीडिया
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। चारों स्तंभों में से अगर एक भी स्तंभ कमजोर होगा तो निश्चित ही भवन का गिरना तय है। निष्पक्षता, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय गरिमा, मानवता जैसे मूल उद्देश्यों से मीडिया भटक गया है। आज वह 'टीआरपी' बढ़ाने के लिए खबर के बजाए मुस्लिम तुष्टीकरण, मुसलमानों की पीड़ा, पर्दे के पीछे रहकर कार्य कर रहे ईसाइयों की गतिविधियों को सकारात्मक रूप में रखकर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है। जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में अलगाववादियों, पत्थरबाजों की हिमायत की जाती है। सवाल है कि इस मीडिया को कभी भी, कहीं भी हिन्दू पीड़ा, उनका दुख-दर्द क्यों दिखाई नहीं देता? आए दिन कश्मीर के रहने वाले आतंकी ही सेना को अपना निशाना बनाते हंै, यह मीडिया को क्यों नहीं दिखाई देता? सवाल है कि क्या यही निष्पक्षता का पैमाना है? ऐसा लगता है कि आज मीडिया राष्ट्रीय गरिमा बिल्कुल भूल गया है और पैसे और स्वार्थ ने उसके स्वाभिमान को समाप्त कर दिया है।
—दीपक कुमार सालवन
करनाल (हरियाणा)
ये तो देशद्रोही हैं!
जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने आतंकियों से लोहा लेते बलिदान हुए सैनिकों का अपमान किया और आतंकवादियों को 'शहीद' कहा। लेकिन गिलानी यह भूल गए कि जब कश्मीर में बाढ़ में फंसकर जिंदगी के लिए वे और वहां की जनता गुहार लगा रहे थे तो भारतीय सेना ने ही उनकी जान बचाई थी। फिर भी वे देश व सेना के खिलाफ ऐसी बातें कर रहे हैं। शर्म आनी चाहिए उनको। केन्द्र सरकार को ऐसे बयानों पर सख्त से सख्त कदम उठाने चाहिएं। सवाल है कि क्या इस प्रकार के लोगों को देश में रहने का अधिकार है? जो देश रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे देते हैं, उनका यह तिरस्कार करते हैं?
—लक्ष्मीकांता चावला अमृतसर(पंजाब)

अमृतसर(पंजाब)
० अभी हाल में ही पाकिस्तान में तालिबान आतंकियों ने पेशावर के एक विद्यालय पर हमला करके 132 बच्चों की हत्या कर दी। इस हमले की चहंुओर निंदा हुई। यहां तक कि भारत की संसद एवं देश के सभी विद्यालयों में दो मिनट का मौन रखकर उनको श्रद्धांजलि दी गई। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान इस प्रकार के हमलों के लिए स्वयं उत्तरदायी नहीं है? क्या जिन आतंकियों ने इन बच्चों को मारा वे उन्हीं के पालने में पहले नहीं पोसे गए थेे? कुल मिलाकर पाकिस्तान की आतंक के प्रति दोहरी नीति रही है। वह अपने ही देश में दाऊद और खूंखार आतंकवादी हाफिज सईद को पूरा सरंक्षण देता है। ऐसे में कैसे मान लिया जाये कि वह आतंक के खिलाफ चल रही लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा? असल में देखा जाये तो पाकिस्तान ही इन आतंकियों को पालता-पोसता है और जब तक वह इन लोगों को फांसी पर नहीं लटकायेगा तब तक उस देश को आतंक का निवाला बनने से कोई नहीं रोक सकता।
—रतन प्रकाश गुप्त
गुलमोहर टॉवर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
खुद बढ़ो आगे
आज देखने में आता है कि देश की अधिकतर जनता प्रत्येक छोटी से छोटी चीज के लिए प्रधानमंत्री की ओर देखने लगती है। उन्हें यह भी लगता है कि मोदी जी के पास कोई जादू की छड़ी है, जिसको घुमाते ही देश में सब कुछ ठीक हो जायेगा। लोगों का इस प्रकार से सोचना शायद न तो समाजहित में है और न ही देशहित में। क्योंकि जब तक आप स्वयं कोई जिम्मेदारी नहीं लेते,उसमें सफलता नहीं मिलती। देश की जनता को स्वयं जागना होगा और प्रत्येक क्षेत्र में लगना होगा तभी जाकर कुछ होने वाला है। आशा उतनी की जानी चाहिए कि जितनी पूरी हो जाये। अनावश्यक आशा कष्ट देती है।
—गोविन्द प्रसाद सोड़ानी
नवकार सिटी सेन्टर, कांचीपुरम, भीलवाड़ा (राजस्थान)
चिन्ता करे सरकार
केन्द्र व राज्य सरकारों का दायित्व है कि नागरिकों को भयमुक्त समाज उपलब्ध करायें। लेकिन ऐसा कम ही देखने में आता है कि सभी राज्य सरकारें इस पर प्रतिबद्ध हों। इसी कारण अपराध में बढ़ोतरी होती है।
—डॉ. अ.कीर्तिवर्धन
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गिरता शिक्षा का स्तर
उत्तर प्रदेश किसी समय शिक्षा का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था। वाराणसी, इलाहाबाद शिक्षा के केंद्रों में से एक थे। एक तरीके से उत्तर भारत की यह पट्टी साहित्यकारों, कवियांे और नेताओं से सराबोर थी। अपने-अपने क्षेत्रों के मूर्धन्य विद्वानों ने अच्छी शिक्षा के बल पर ही इस प्रदेश का नाम ऊंचा किया, लेकिन आज इसी प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, दोनों मिलकर शिक्षा की दुर्गति करने में लगे हैं। हाल यह है कि बोर्ड परीक्षाओं में खुलेआम नकल हो रही है। कोई उसे रोकने वाला नहीं है। समाचार पत्रों में प्रतिदिन नकल के छपते समाचारों पर न तो उनके सलाहकारों की नजर जाती है और न ही उनके कान पर जूं रेंगती है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी परीक्षा से क्या लाभ,जिसमें खुलेआम नकल होती हो? क्या मौजूदा सपा सरकार छात्रों के भविष्य के साथ जानबूझ कर खेल रही है? अगर ऐसा नहीं है, तो लोकायुक्त द्वारा 'ब्लैक लिस्टेड' परीक्षा केन्द्रों को बाहर रखने की हिदायत को क्योंं दरकिनार किया गया? इस सबके बाद भी समाजवादी सरकार ने अपने चहेतों को रेवड़ी की तरह परीक्षा केन्द्र आबंटित कर दिए और अब इन्हीं परीक्षा केन्द्रों पर सरकार के अप्रत्यक्ष सहयोग से खुलेआम नकल हो रही है या यूं कहें कि प्रशासन भी इसमें उनकी मदद कर रहा है।
ऐसे में उत्तर प्रदेश की जनता समझ सकती है कि कैसे सपा सरकार शिक्षा तंत्र व शिक्षा व्यवस्था को घुन की तरह लीलने में लगी हुई है। लेकिन वह सच को जानकर भी क्या कर सकती है, क्योंकि कहावत है कि 'अब पछताये होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत।' अब तो सत्ता उनकी ही है। अब जब जनता बेरोजगारी भत्ते और लैपटाप के लालच में रहेगी तो ऐसे ही नेता राज्य और उसके 'सिस्टम' को घुन की तरह चट करेंगे?
—हरिओम त्रिपाठी
1954, जीनत महल,लालकुआं बाजार (दिल्ली)

दिमागी कालापन
सब धर्मों का देश में, होता है सम्मान
रीति-नीति प्राचीन है, भारत की पहचान।
भारत की पहचान, नाम सेवा का लेकर
कन्वर्जन करते हो, कुछ सुविधाएं देकर।
कह 'प्रशांत' पादरी महोदय ये बतलाओ
कालापन अपने दिमाग का भी दिखलाओ
—प्रशांत

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