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भाजपा की आगे की दिशा एवं दशा आगामी बजट से निर्धारित हो जाएगी। तीव्र आर्थिक विकास हासिल करने के लिए जरूरी है कि टैक्स की दरों में कटौती की जाए जिससे उपभोक्ता के पास खर्च करने को पैसा तथा उद्यमी के पास निवेश करने को पूंजी उपलब्ध हो सके। दूसरी तरफ बिजली, सड़क एवं पानी की बुनियादी जरूरतों तथा रक्षा के खर्च बढ़ाने की भी जरूरत है। पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव का सामना करने के लिए रक्षा क्षेत्र में विशेषकर खर्च बढ़ाने पड़ेंगे। चुनौती है कि टैक्स में छूट देने के कारण आय में कमी के बावजूद बढ़ते हुए खर्चों का पोषण कैसे किया जाए? कांग्रेस की नीति मजा लेकर भी पीने की थी। बढ़ते सरकारी खर्चों को पोषित करने के लिए सरकार ने भारी मात्रा में भाग लिया। सरकार द्वारा लिए जा रहे ऋण से बाजार में ऋण की मांग बढ़ी और ब्याज दर बढने को हुई जैसे सब्जी के ज्यादा ग्राहक आने से विक्रेता मंडी में विक्रेता दाम बढ़ा देता है। यदि ब्याज दर में यह वृद्धि हो जाती तो अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ता। उद्यमियों के लिए ऋण लेना कठिन हो जाता, निवेश प्रभावित होता और विकास दर में गिरावट आती। इस घटताक्रम को होने से रोकने के लिए रिजर्व बैंक ने नोट छापकर बाजार में बहाए। बैंकों ने रिजर्व बैंक से पैसा लेकर उद्यमियों को ऋण दिया।
इस प्रकार सरकार द्वारा ऋण लिए जाने के दुष्प्रभाव से हम बच गए। परन्तु दूसरी समस्या उत्पन्न हो गई। रिजर्व बैंक द्वारा भारी मात्रा में नोट छापने के कारण महंगाई बढ़ने लगी। यह भी मंडी में सब्जी के दाम बढ़ने सरीखा था। मंडी में तमाम लोग नोटों की गड्डी लेकर घूम रहे हों तो भी विक्रेता दाम बढ़ा देते हैं। अंतत: इस महंगाई ने कांग्रेस को ग्रस लिया। कुपोषण के मरीज को खांसी की दवा देंगे तो खांसी रुक जाएगी परन्तु पेट खराब हो जाएगा। पेट की दवा देंगे तो बुखार आ जाएगा। मरीज को चाहिए भोजन। भोजन के अभाव में एक दवा देने से दूसरा रोग बढ़ जाता है। इसी प्रकार कांग्रेस के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की मूल समस्या सरकार की खपत थी। सरकारी कर्मियों के बढ़ते वेतन तथा भ्रष्टाचार से अर्थव्यवस्था त्रस्त हो गई थी। इस मूल समस्या का सामना करने केे बजाए कांग्रेस ने तरह-तरह के पेंच खेले जैसे एक सरकारी उपक्रम के शेयरों को दूसरे सरकारी उपक्रम से खरीदवा कर रकम अर्जित करना चाहा। पर सब पेंच विफल हुए। सत्ता हाथ से गंवानी पड़ी।
बजट की चुनौती दुष्चक्र से बाहर आने की है। भाजपा सरकार की नीति है कि आम आदमी को दी जाने वाली सरकारी छूटों में कटौती करके कोटे को मिला ले। मनरेगा में कटौती करके बिजली, सड़क तथा रक्षा में खर्च बढ़ाए जाएं। ऐसा करने से कांटा तो मिल जाता है लेकिन जन आक्रोश बढ़ता है जैसा कि दिल्ली के चुनावों में देखा गया है। अत: चुनौती है जनहित को छेड़े बगैर बिजली, सड़क और रक्षा में खर्च बढ़ाने की।
इस कठिन उद्देश्य को हासिल करने का पहला उपाय है कि कर नीति को जनहित साधने का अस्त्र बनाया जाए। एक सोच है कि बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मेक इन इंडिया के तले भारत में लाभ कमाने दो। फिर इस लाभ में से कर वसूल कर मनरेगा जैसी योजनाएं चलाएंगे। चाहिए यह कि बड़ी कंपनियों पर कर बढ़ाकर छोटे उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए जिससे मनरेगा की जरूरत ही न रह जाए। जैसे कपड़ा मिलों पर कर लगाकर बनारस के हथकरघा उद्योग को पुनर्जीवित किया जा सकता है। अथवा शीतल पेय पर कर बढ़ाकर 'रसवंती' को बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐसा करने से एक तीर से दो शिकार किए जा सकते हैं। कर बढ़ाने से सरकार को राजस्व बढ़ेगा और बड़ी कंपनियों के दबाव में आने से छोटे उद्यमियों का व्यवसाय बढ़ेगा।
जानकार बताते हैं कि बड़ी कंपनियों पर कर बढ़ाने में कुछ रसूखदारों के हित प्रभावित होते हैं। मोदी सरकार ने प्राकृतिक गैस के दाम में अनुमान से कम वृद्धि करके औद्योगिक समूह विशेष के विरुद्ध सख्त कदम उठाया है जोकि प्रशंसनीय है। इस दृष्टि को कैबिनेट के मंत्रियों पर भी लागू करने की जरूरत है। साथ-साथ पीएसटी को निरस्त किया जाना चाहिए। पीएसटी का मूल सिद्धांत है कि अधिकाधिक माल पर एक ही दर से कर लगाया जाए जैसे कपड़ा उद्योग तथा हथकरघे पर। इस जनविरोधी नीति से सरकार को बचना चाहिए।
बढ़ते खर्च और घटती आय के संकट का सामना करने का दूसरा उपाय सरकारी कर्मियों की खपत में कटौती करने का है। इतिहास साक्षी है कि वेतन आयोगों की संस्तुतियां लागू करने के साथ देश की विकास दर में गिरावट आती है। सरकारी कर्मियों को नौकरी इसलिए दी जाती है कि वे जनता की सेवा करें। परन्तु पूरा देश इस असुर की अनंत भूख को पूरा करने में लगा हुआ है। अर्थव्यवस्था का उद्देश्य जनहित हासिल करना नहीं बल्कि सरकारी कर्मियों को उत्तरोत्तर ऊंचे वेतन तथा भ्रष्टाचार से धन कमाने के अवसर प्रदान करना रह गया है। जब परिवार की आय कम हो और बच्चे की फीस भरनी हो तो परिजनों को अपनी खपत में कटौती करनी पड़ती है। बजट से अपेक्षा है कि सरकारी कर्मियों के वेतन को 'फ्रीज' कर दिया जाए। जिन सरकारी कर्मियों को यह 'फ्रीज' पसंद नहीं हो उनके इस्तीफे स्वीकार कर लेने चाहिए। सरकार ने हाल में दोषी गृह सचिव को हटाकर स्वच्छ सरकार की ओर महत्वपूर्ण पहल की है। इस दृष्टि को सभी सरकारी कर्मियों पर लागू
करना चाहिए।
खर्च और आय में संतुलन स्थापित करने का तीसरा उपाय जनहितकारी सरकारी छूटों के आकार में परिवर्तन है। वर्तमान में जनता के नाम पर दी जा रही तमाम सरकारी छूट का लाभ वास्तव में अकुशल उद्यमियों तथा भ्रष्टकर्मियों को मिलता है। जैसे उर्वरक का लाभ अकुशल निर्माताओं को मिलता है। खाद्य छूट का लाभ खाद्य निगम के भ्रष्ट कर्मियों को मिलता है। मनरेगा का लाभ जिला प्रशासन एवं ग्राम प्रधानों को मिलता है। बजट से अपेक्षा है कि इन तमाम सरकारी छूटों को समाप्त करके हर परिवार के खाते में एक रकम सीधे जमा करा दी जाए। उपरोक्त के साथ साथ शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर किए जा रहे खर्च को जोड़ लिया जाए तो लगभग 500 हजार करोड़ प्रतिवर्ष की बचत होगी। बजट में नई दृष्टि की अपेक्षा है। गलत नीतियों को तत्परता से लागू करने का परिणाम सुखद नहीं होगा। -डा. भरत झुनझुनवाला
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