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संघ भारतीय समाज की एकता के लिए प्रयत्नशील

by
Jan 31, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 31 Jan 2015 12:16:49

वर्ष: 9 अंक: 36 26 मार्च,1956

संघ भारतीय समाज की एकता के लिए प्रयत्नशील
गुजरात के स्वागत समारोह में श्री गुरुजी का भाषण
साठ हजार की श्रद्धानिधि भेंट
(निजि प्रतिनिधि द्वारा)
अहमदाबाद। जीवन के पचास वर्ष सफलतापूर्वक पूर्णकर 51वें वर्ष में पदार्पण करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री. मा.स.गोलवलकर जी का यहां, गुजरात, सौराष्ट्र तथा कच्छ के नागरिकों की ओर से सत्कार किया गया।
इस अवसर पर उनको 60001 रुपए की श्रद्धानिधि भी समर्पित की गई।
श्री गुरुजी का भाषण : अपने स्वागत के उत्तर में श्री गुरुजी ने कहा, 'यह मेरा स्वागत नहीं, रा. स्व.संघ का स्वागत है, क्योंकि व्यक्ति की श्रेष्ठता उसके कार्य से प्रकट होती है और मैं तो 24 घंटे संघ का ही कार्य करता हूं।'
रा. स्व. संघ के तत्वज्ञान को स्पष्ट करने के पूर्व श्री गुरुजी ने दु:ख व्यक्त किया कि असत्य का सहारा लेकर संघ के विरुद्ध कुप्रचार किया जाता है और वह भी श्रेष्ठ नेताओं के द्वारा। आपने कहा, 'इतना ही नहीं, ऐसे कुप्रचार के लिए सुनियोजित-आयोजन भी किये जाते हैं। हाल ही में बंबई में हुए उपद्रवों में संघ का हाथ था, ऐसा कुप्रचार करने का एक आयोजन, अभी हाल ही में कुछ श्रेष्ठ नेताओं द्वारा किया गया है, यह मुझे ज्ञात हुआ है।'
आपने घोषणा की, 'जो संघ प्रत्येक भारतीय के बीच एकत्मभाव निर्माण करने का प्रयत्न कर रहा है, उसके स्वयंसेवक ऐसे उपद्रवों को करने की कल्पना स्वप्न में भी नहीं कर सकते हैं।'
संघ के तत्वज्ञान को स्पष्ट करते हुए श्री गुरुजी ने कहा, 'जब हम 'हिंदू राष्ट्र' शब्द का उच्चारण करते हैं तब कुछ लोग पूछते हैं मुसलमान तथा ईसाइयों का क्या होगा?' यह मुसलमान तथा ईसाई कौन हैं? यह हमारे अपने ही बांधव है, जो परकीस शासन के समय बलात्पूर्वक मुसलमान या ईसाई बनाए गए थे। स्वाभिमान की मांग है कि अब स्वराज्य के काल में स्वबांधव अपने गले में पड़े हुए बलात् के जुए को उतारकर फेंक दें और अपने हिंदू धर्म बांधव में मिल जाएं। यदि सदियों के कालखण्ड की आदत के कारण उन्होंने मुहम्मद अथवा ईसा की उपासना पद्धति अंगीकृत कर ली है तो वे उसे हिंदू होकर भी वैसी की वैसी बनाए रख सकते हैं, क्योंकि हिंदू समाज में उपासना की पद्धति के विषय में अत्यंत उदारता एवं सहिष्णुता का भाव विद्यमान है।'
आपने आगे कहा, 'भारत के उत्थान का यह सूत्र अपने मानस पटल पर सदैव अंकित रखना चाहिए, उसके पुत्रस्वरूप हम प्राग्ऐतिहासिक समय से ही एक विशिष्ट समाज रचना, धर्मरचना, तत्वज्ञान, संस्कार, सद्गुण, चरित्र आदि के प्रभाव से एक समाज के रूप में रहते हैं। यही सब तो यहां का राष्ट्रजीवन है। यही सब तो हिंदू समाज है। इस सबको भूलकर राष्ट्रोत्थान का कोई कार्य यशस्वी नहीं हो सकता।''

भारतीय सीमा पर पाक आक्रमण
पिछले कुछ दिनों से शायद ही कोई दिवस ऐसा प्रतीत होता हो, जब पाकिस्तानी सेनायें भारतीय सीमा पर आक्रमण न करती हों। गत बारह दिनों में पांच आक्रमण हो चुके हैं, जिनके कारण समस्त देश में अत्यंत चिंता का निर्माण हो गया है।
कराची में हुए 'सीटों ' राष्ट्रों के सम्मेलन में काश्मीर के प्रश्न पर जिस प्रकार पाकिस्तान का समर्थन किया गया, उससे प्रतीत होता था कि पश्चिमी शक्तियां किसी ने किसी तरह भारत की तटस्थता को भंग करने के लिए तथा उसे शीत युद्ध में खींचने के लिए तुली हुई हैं। साथ-साथ भारतीय राजनीतिज्ञों को यह आशंका भी होने लगी थी कि पाकिस्तान अमरीका से प्राप्त सैनिक शक्ति का दुरुपयोग शांतिप्रिय भारत के खिलाफ करेगा।

अमरीकी जनता के नाम संदेश
(श्री अटल बिहारी वाजपेयी 1960 में प्रथम बार तीन मास की अमरीका यात्रा पर गए। उनके निवदेन पर श्री गुरुजी ने अमरीकी जनता के लिए के लिए एक संदेश दिया। श्री वाजपेयी ने यह संदेश 28 सिंतबर, 1960 को वाशिंगटन की जनसभा में पढ़कर सुनाया था)
विश्व दो गुटों में विभक्त हो गया है। संपूर्ण जगत् पर आधिपत्य स्थापित करने का उन्मत्त प्रयास हो रहा है। सतही रूप में देखने वालों को जैसा दिखाई देता है, यह संघर्ष लोकतंत्र व साम्यवाद के मध्य नहीं है। निकृष्ट भौतिकवाद व धर्म के बीच युगों से चला आया संघर्ष है। साम्यवाद भौतिकवाद का पक्षधर है और स्वत: को जागतिक सिद्धांत के रूप में प्रकट करने के प्रयत्न में है। इसका विरोध, न तो कामचलाऊ भौतिक व्यवस्थाओं के द्वारा और न ही जातिगत सांप्रदायिक मतों के द्वारा किया जा सकता है, आपितु अद्वैत की अडिग शाश्वत नींव पर खड़े विश्वधर्म, जिसमें जातिगत धर्मों का सामंजस्य प्रस्थापित हो, उसमें एकात्मता आए व अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति हो, के द्वारा ही किया जा सकता है। यह व्यक्तिगत मान्यताओं को अमान्य करना नहीं, आपितु उनका उत्कृष्ट, यथार्थ व शाश्वत रूप में उदात्तीकरण है। यही एकमेव समान रूप से प्रिय वैश्विक विचारधारा है, जो सदाचरण, ठीक नीतियों के अपराजेय निश्चय के बल पर विघटनकारी भौतिकतावादी शक्तियों का मुकाबला कर सकती है और स्वतंत्र जगत् को साम्यवाद के कहे जाने वाले बढ़ते संकट से उबारकर अंतिम सफलता की ओर ले जा सकती है। मेरी कल्पना है कि अमरीकी जनता स्वामी विवेकानंद जी के अमर संदेश का स्मरण करे, भारत के साथ अभेद्य मित्रता के सूत्र में वह बंधे, धर्म-शक्तियां विजयशाली हों, तो विश्व अनवरत युद्धों से मुक्त होगा तथा मानव को शांति व स्मृद्धि प्राप्त होगी।
—श्रीगुरुजी समग्र: खण्ड 10 पृष्ठ 262

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