|
पाञ्चजन्य के 18 जून 2000 के अंक में
पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर विशेष
राष्ट्र की आस्था का केन्द्र बना सिन्धु तीर्थ
सिन्धु दर्शन अभियान के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भावपूर्ण उद्बोधन दिया। यहां श्री वाजपेयी के उसी भाषण के सम्पादित अंश प्रस्तुत हैं-
जब से भारत स्वाधीन हुआ है, हम राष्ट्रगान में 'पंजाब, सिन्ध, गुजरात मराठा' गाते रहे हैं। कभी कोई पूछता था कि आप गा तो रहे हैं पर सिन्ध है कहां? तो हमारे पास तत्काल यह उत्तर नहीं होता था कि सिन्धु संस्कृति लेह में है। हम कहते थे सिन्धु तो चली गयी है, आगे देखेंगे क्या होता है? लेकिन सिन्धु लद्दाख में बह रही है, लेह में बह रही है। अतीत की सारी स्मृतियों को साकार कर रही है। उतार-चढ़ाव की पूरी गाथा हमारी आंखों के सामने खोल रही है। यह वास्तव में बड़े सौभाग्य की बात है। आज सिन्धु के जल का स्पर्श कर मैं सचमुच गद्गद् हो गया हूं।
सिन्धु की बड़ी महिमा है। हम अनेक नदियों का नाम लेते हैं, उनके बारे में जानते हैं, किन्तु सिन्धु के बारे में हमारी जानकारी बहुत कम है। वेदों में जहां और नदियों के नामों का उल्लेख है, वहां सिन्धु नदी के नाम का उल्लेख 30 बार से ज्यादा है। गंगा-यमुना भी बाद में हैं। ऋषियों का सम्बंध भी सिन्धु तट से था, उत्थान और पतन की कहानियां यहां लिखी जाती थीं। आज हमने सिन्धु का पूजन, आचमन किया, इससे हमारे हृदय में उल्लास होना स्वाभाविक है।
यह सभी जानते हैं कि सिन्ध सिन्धु से उत्पन्न हुआ है तथा पांच हजार वर्ष प्राचीन हमारी सभ्यता का परिचय देता है। वेद के एक मंत्र का मुझे स्मरण है, जिसमें सिन्धु नदी की महत्ता का वर्णन किया गया है। ऋग्वेद में सिन्धु नदी का प्रभावशाली वर्णन इस प्रकार से किया गया है- सिन्धु नदी अन्य नदियों की तुलना में सबसे शक्तिशाली नदी है। इसकी गर्जना स्वर्ग तक सुनाई देती है। पलकें झपकते ही इसमें प्रचण्ड तूफान आ जाता है। जिस प्रकार दूध से भरे हुए थन वाली गाय अपने बछड़ों की ओर तेजी से भागती है, उसी प्रकार दूसरी नदियां भी कल-कल करती हुई सिन्धु नदी में मिलने को आतुर रहती हैं। जिस प्रकार एक शूरवीर राजा दूसरे योद्घाओं का नेतृत्व करता है, उसी प्रकार सिन्धु नदी दूसरी नदियों का नेतृत्व करती है। यह तीव्र गति से बहने वाली नदी है, स्वर्ण भण्डार से परिपूर्ण है, नदियों में श्रेष्ठ है तथा धन-सम्पदा से पूरित है।
इन शब्दों में वैदिक ऋषियों ने सिन्धु का उल्लेख किया था। आज हम उसी सिन्धु नदी के किनारे एकत्र होने का सौभाग्य प्राप्त कर सके हैं। हृदय में एक खाली स्थान था, जो आज भर रहा है, भावनात्मक एकता में जो थोड़ी कमी थी और राष्ट्रगान गाते हुए जो कमी खलती थी, वह कमी आज पूरी हो गयी। फारुख अब्दुल्ला जी ने कहा है कि यहां घाट बनना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आडवाणी जी सारे देश का भार संभाले हुए हैं, वे यहां का घाट बनाने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेंगे। उसमें मुझसे जितनी भी सहायता की जरूरत होगी, मैं देने का प्रयास करूंगा। केवल सिन्धु नदी का स्मरण ही नहीं अपितु सिन्धु सभ्यता, जो हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से जुड़ी हुई है, उसका फिर से स्मरण करना, उस सभ्यता के आवश्यक अंगों को सुरक्षित रखने का प्रयास करना और भारत की विराट सभ्यता में उसके लिए एक सम्माननीय स्थान ढूंढना बहुत आवश्यक कार्य है। यह कार्य अब प्रारम्भ हो चुका है, अब रुकेगा नहीं। महात्मा बुद्घ के जीवन में भी सिन्ध की बात कही गयी है। जब वे कपिलवस्तु जा रहे थे तब बताया गया कि उनको ले जाने वाले रथ में जो चार घोड़े थे, वे सिन्ध से लाए गए थे। आज मुझे प्रसन्नता है कि अनेक पंथ, सम्प्रदायों के प्रतिनिधि यहां उपस्थित हैं। यह सांझा नदी है, यह सम्मिलित नदी है।
आडवाणी जी ने ठीक कहा है कि हम इस नदी को एक मित्रता की नदी के रूप में, सहयोग की धारा के रूप में देखना चाहते हैं, शांति का संदेश देने वाली धारा के रूप में देखना चाहते हैं। हमें विश्वास है कि हमारे प्रयास आज नहीं तो कल सफल होंगे। हम थोड़ा इन्तजार करने के लिए तैयार हैं। हम हृदय से मित्रता चाहते हैं, यह बार-बार दोहराने की आवश्यकता नहीं है। सिन्धु की खोज ने और सिन्धु के तट पर आज एकत्र जन समुदाय ने उस एकता की धारा को पहचाना है। मुझे विश्वास है यह धारा बलवती
होती रहेगी।
सिन्धु नदी के साथ लद्दाख क्षेत्र के भी विकास का एक पूरा आयोजन है। संस्कृति मंत्रालय यहां सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित करने जा रहा है। यहां की शिल्प, यहां की कारीगरी, कला को विकसित होने का अवसर देने का भी पूरा आयोजन है। मुझे विश्वास है कि जिस बौद्घ अध्ययन संस्थान की आज मैंने आधारशिला रखी है उसमें सम्पूर्ण विश्व से लोग आएंगे और लद्दाख की सभ्यता तथा बौद्घ संस्कृति के बारे में ज्ञान प्राप्त करेंगे। सिन्धु दर्शन के आयोजन से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
अधिक से अधिक लोग लद्दाख आएं, लेह तक 12 महीने चलने वाला अबाध रास्ता बने, जो विकास के द्वार खोले और सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो, इसीलिए हमने रोहतांग पास बनाने की घोषणा कर दी है। 500 करोड़ रुपए की लागत से सात वर्ष में यह योजना पूर्ण कर ली जाएगी। इस मार्ग से श्रीनगर से लेह तक सामान को बिना किसी बाधा के लाया जा सकेगा। ल्ल
7 जून 2000 को सिन्धु दर्शन अभियान के उद्घाटन अवसर पर दिया गया वक्तव्य।
टिप्पणियाँ