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एशिया का एक देश म्यांमार है। इसका भारतीय नाम 'ब्रह्मदेश' है और 1937 तक यह भारत का ही अंग था। पहले म्यांमार का नाम 'बर्मा' हुआ करता था, जो यहां बड़ी संख्या में आबाद बर्मी नस्ल के नाम पर पड़ा था। भारत के बौद्ध प्रचारकों के प्रयासों से यहां बौद्ध मत का विस्तार हुआ।
उत्तर-पूर्वी एशिया के बड़े देशों में से एक म्यांमार पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां की 'वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स', शानदार स्मारक, असंख्य पगोडा, साफ-सुथरा और प्रदूषणमुक्त समुद्री तट, सुंदर बाग-बगीचे, लोगों की जीवनशैली, रमणीक पहाड़ी पर्यटन स्थल, जंगल, भव्य प्राचीन शहर और विस्मयकारी प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहे हैं।
म्यांमार में लगभग प्रत्येक गांव में, जंगल में, मार्गों पर और प्रत्येक मुख्य पहाड़ी पर पगोडेे (स्तूप) मिलेंगे। इनमें से ज्यादातर धार्मिक व दानशील व्यक्तियों द्वारा बनवाए गए हैं। वहां विश्वास प्रचलित है कि इनके निर्माण से पुण्य की प्राप्ति होती है। म्यांमार के पगोडे प्राय: बहुभुज की बजाय गोलाकृति के होते हैं। उन्हें डगोवा अथवा चैत्य कहा जाता है। वहां का प्राचीनतम चैत्य पगान में वुपया में है। यह तीसरी शताब्दी में बना हुआ बताया जाता है। दसवीं शती में बना म्यिंगान प्रदेश का नगकडे नदाउंग पगोडा, सातवीं अथवा आठवीं शताब्दी में बना प्रोम का बाउबाउग्यी पगोडा, 1059 ई. में बना पगान का लोकानंद पगोडा तथा 15वीं सदी में बना सगैंग का तुपयोन पगोडा भी विख्यात हैं।
स्वेदागोन पगोडा
म्यांमार में सबसे अधिक महत्वपूर्ण पेगू के श्वेहमाउडू पगोडा और यंगून के स्वेदागोन पगोडा को माना जाता है। स्वेदागोन पगोडा सबसे अधिक प्रभावोत्पादक है। यह भव्य स्तूप बौद्ध मतावलम्बियों के लिए बहुत पवित्र स्थल है। जहां आकर लोग शांति महसूस करते हैं। कहा जाता है कि यह पहले केवल 27 फुट ऊंचा बनाया गया था और फिर 15वीं शती में इसे 323 फुट ऊंचा बना दिया गया। इसमें भगवान तथागत के आठ बाल और तीन अन्य बुद्धों के पवित्र अवशेष स्थापित बताए जाते हैं।
स्वेदागोन पगोडा म्यांमार का प्रसिद्ध बौद्ध मठ है, जिसका शाब्दिक अर्थ स्वर्ण शिवालय होता है। हालांकि म्यांमार के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक असली स्वेदागोन खाक में मिल चुका है। स्वेदागोन पगोडा का निर्माण मोन ने बागान काल में करवाया था। इसमें मौजूद रंगबिरंगे स्तूपों में हर एक के बीच में 99 मीटर का दायरा है। सोने के आवरण से ढका मुख्य स्तूप इस मठ की भव्यता में चार-चांद लगाता है।
शुरुआती दौर में भारत और म्यांमार के बीच कोई राजनीतिक सम्बन्ध नहीं था। यद्यपि म्यांमार उस काल में भी हिन्दू संस्कृति से इतना अधिक प्रभावित था कि इसके नगरों के नाम, जैसे- 'अयथिया' अथवा 'अयोध्या' संस्कृतनामों पर रखे जाने लगे थे। बाद में अशोक के काल में बौद्ध मत और संस्कृति का म्यांमार में इतना अधिक प्रसार हुआ कि आज भी यहां के बहुसंख्यक बौद्ध मतावलम्बी हैं।
पर्यटन के लिए अनुपम
म्यांमार में कई पुरातात्विक स्थल हैं और पूरे देश में विभिन्न रंगारंग त्योहारों का आयोजन वर्ष भर होता रहता है। यहां 'एडवेंचर' के शौकीनों से लेकर धर्म, संस्कृति, प्रकृति और पुरातात्विक स्मारकों के प्रति रूझान रखने वाले सभी के लिए ढेर सारी सौगातें हैं। म्यांमार के उत्तर में चीन, पश्चिम में भारत, बंलादेश और हिन्द महासागर तथा दक्षिण-पूर्व की दिशा में इंडोनेशिया स्थित है।
यंगून : यह म्यांमार का सबसे बड़ा शहर है और म्यांमार की पुरानी राजधानी रह चुका है। शहर में कई बड़े-बड़े बाग-बगीचे होने के कारण इसे 'गार्डन सिटी ऑफ ईस्ट' भी कहा जाता है। यंगून में ही विश्व प्रसिद्ध 'गोल्डन पगोडा' है।
मांडले : इस शहर को 'सिटी ऑफ जेम्स' भी कह जाता है। यहां साहित्य और कई पारंपरिक कलाएं समृद्ध हुई हैं। म्यांमार का सबसे बड़ा सांस्कृतिक केन्द्र मांडले शहर और आसपास अनेक पर्यटक स्थल हैं।
हमिंगन बेल : वैसे तो यह इलाका काफी छोटा है लेकिन इसकी प्रसिद्धि इसलिए है कि यहां के एक उपासना स्थल पर दुनिया का सबसे बड़ा घंटा है।
बागान : यहां के भव्य स्मारक म्यांमार के शासकों की धर्मनिष्ठता और प्रतिभा को दर्शाते हैं। यहां अनेक पगोडे हैं। आनंद और थाबिन्यू मंदिर देखने लायक है। बागान ऐसी जगह है जहां आपको कला के अद्भुत नजारे देखने को मिलेंगे।
ताउन्ग्यी : यह गर्मियों की सैरगाह है और धीरे-धीरे पर्यटन केन्द्र के रूप में उभरा है। लोग यहां प्राकृतिक सुंदर और सुखद ठंडक का आनंद उठाने आते हैं। ताउन्ग्यी के पास ही इन्ले झील है जो पर्यटकों का मन मोह लेती है। नीले पहाड़ों से घिरी इन्ले झील तैरते द्वीपों पर बाग-बगीचों और तैरते गांवों के लिए जानी जाती है। यहां के रंगबिरंगे तैरते बाजार आकर्षण का केन्द्र हैं। ल्ल
म्यांमार
यहां वीजा लेकर यात्रा होती है। राजधानी- नेपितॉ
सबसे बड़ा शहर यांगून, पहले इसको रंगून कहा जाता था।
मुख्य हवाई अड्डा-यांगून
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