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यह तो सर्वविदित है कि इस देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू पर पाश्चात्य-संस्कृति और कम्युनिस्ट छाप प्रगतिशीलता का इतना अधिक प्रभाव था कि स्वयं गान्धीजी के सनातन हिन्दू संस्कृति और तज्जन्य विचार-सरणि का उतना भी प्रभाव परिलक्षित नहीं होता था, जितनी उड़द पर सफेदी। यह नेहरू जी का बाह्य रूप था; परन्तु उनके पिता पं़ मोतीलाल नेहरू सनातन हिन्दू-परम्परा के प्रति अनन्य निष्ठा रखते थे, यह तीन प्रसंगों से स्पष्ट प्रतीत होता है। एक यह कि उन्होंने पूरी वैदिक-रीति से नेहरू जी का यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न कराया था। नेहरू के जनेऊ पहने चित्र उनके प्रारम्भिक जीवन की चित्रावली में उपलब्ध हैं। दूसरा प्रसंग कमला कौल से नेहरू जी के विवाह से सम्बन्धित है। कमला कौल यद्यपि नेहरू से अवस्था में काफी छोटी थीं; परन्तु उनकी जन्म-कुण्डली जब पं़ मोतीलाल ने विचरवायी, तो उससे उन्हें पता चला कि इस कन्या से जिस युवक का विवाह होगा, वह अति उच्च राजपद पर अधिष्ठित होगा। फलत: पं़ मोतीलाल नेहरू ने कमला कौल से जवाहरलाल का विवाह हठपूर्वक करवाया था। कमला कौल की जन्म-कुण्डली के फलादेश के अनुसार ही विवाहोपरान्त कालान्तर में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने और 1946 से लेकर मृत्युपर्यन्त प्रधानमन्त्री रहे। नेहरू पर विधिपूर्वक संस्कार सम्पन्न कराये गये। संस्कारों का ही यह परोक्ष प्रभाव था कि बाहर से वह ज्योतिष (फलित ज्योतिष) का विरोध करते थे; पर अन्दर से कहीं न कहीं वह उस पर विश्वास रखते थे। तीसरा प्रभाव उन पर तब परिलक्षित हुआ, जब इन्दिरा के प्रथम पुत्र का जन्म हुआ, तो उन्होंने डॉ़ सम्पूर्णानन्द को जन्म-समय आदि का पूरा विवरण देते हुए पत्र लिखा कि काशी में एक से बढ़कर एक ज्योतिष-शास्त्र के ज्ञाता हैं, आप इस बालक की जन्म-कुण्डली किसी श्रेष्ठ ज्योतिषी से बनवाकर भिजवा दें। डॉ़ सम्पूर्णानन्द की फलित-ज्योतिष पर पूर्ण आस्था थी। उन्होंने नेहरू के पत्र को सुरक्षित रख लिया और इन्दिरा के प्रथम पुत्र, जिनका नाम विद्वानों से पूछकर नेहरू ने राजीव रत्न नाम संस्कार करवाकर रखा। यह नाम कमला नेहरू और जवाहरलाल नेहरू के पर्यायवाची समन्वय (राजीव= कमल+जवाहर = रत्न) के रूप में नेहरू को सर्वाधिक पसन्द आया था।
परन्तु जब नेहरू ने राजीव गान्धी के इस जन्म-प्रसंग के बाद सार्वजनिक मंच से ज्योतिष को पाखण्ड कहकर उसकी निन्दा की, तो डॉ़ सम्पूर्णानन्द को अच्छा नहीं लगा और प्रतिवादस्वरूप नेहरू के उस पत्र को समाचारपत्रों में प्रकाशित करा दिया। बिना एक भी शब्द बोले नेहरू के दोहरे व्यक्तित्व को उन्होंने उजागर कर दिया और परिणाम यह हुआ कि आगे नेहरू ने ज्योतिष के बारे में फिर कभी एक भी शब्द नहीं बोला। डॉ़ सम्पूर्णानन्द और नेहरू जी ने शालीनता और मर्यादा का इस प्रकार पालन किया। आज सभी पार्टियों के राजनेताओं के 'मुखारविन्द' से विरोधी पक्ष के राजनेताओं के प्रति जैसे 'फूल झड़ते हैं, उनसे उनकी कलई स्वत: खुल जाती है कि इनके 'संस्कार' कैसे हैं! अब ऐसे में श्रीमती सोनिया गान्धी से सीधे प्रश्न किया जाना चाहिए कि राजीव गांधी की वह जन्म-कुण्डली यदि उन्होंने फाड़कर न फेंक दी हो या अपने कैथोलिक कट्टरपने में जला न डाली हो, तो काशी के किसी ज्योतिर्विद् से पढ़वाकर देख लें कि उसमें उल्लिखित फलादेश राजीव गांधी के जीवन के घटना-क्रम पर कितना पड़ा या नहीं पड़ा? कांग्रेस बड़बोले नेताओं को तो पता ही होना चाहिए कि इन्दिरा की जन्म-कुण्डली में जिस शनि के उच्च भाव में होने के कारण ही वे इतनी ऊंचाइयों पर पहुंचीं और उसी शनि के अनुसार वे मृत्यु को प्राप्त हुई थीं।
जो वामपन्थी (या सेकुलरवादी) हिन्दू धर्म, संस्कृति, परम्परा आदि को पाखण्ड,अन्ध-विश्वास या अवैज्ञानिक कहते घूम रहे हैं, उन्हें कौन बताये कि महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन पर जिन जर्मन वैज्ञानिकों ने शोध कर परमाणु-बम बनाने का सफल उपक्रम किया, वे क्या अन्धविश्वासी, पाखण्डी या पोंगापन्थी थे? जब अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति टुमैन ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर मात्र एक-एक अणु बम गिरवाया, तो उनके विस्फोट से उपजे महाप्रकाश को देखकर उन बमों के निर्माता ओपेन हावर को भगवान् कृष्ण के उस विराट् रूप की ही याद आयी थी कि वह रूप कैसा रहा होगा! इन सेकुलरवादियों और वामपन्थियों को कौन याद दिलाये कि 1957 में जब केरल में ई़ एम़ ए स़ नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में देश में विपक्ष (कम्युनिस्ट) की प्रथम सरकार बनी, तो उनकी पार्टी के एक विधायक ने अपनी कन्या का विवाह तब तक उस युवक से करना स्वीकार नहीं किया था, जब तक उसने वर-कन्या की जन्मकुण्डली नहीं मिलवा ली। यह भी उल्लेखनीय है कि वर के पिता केरल में जनसंघ में एक गणमान्य नेता थे, जिनकी पृष्ठभूमि रा. स्व. संघ की थी।
ज्योतिष से सम्बन्धित ऐसा ही एक और प्रसंग तब लखनऊ से प्रकाशित कांग्रेसी विचारधारा के 'सब साथ' के सम्पादक हयातुल्ला अन्सारी अस्वस्थ चल रहे थे, उनकी पत्नी, जो एक बहुत ही शालीन शिष्ट महिला थीं, ने इन पंक्तियों के लेखक से अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा था कि मुझे अन्सारी साहब की जन्मकुण्डली (जायचा) विचरवानी है। आपकी जानकारी में अच्छा नजूमी (ज्योतिषी) हो, तो बतायें और जब उन्हें लखनऊ के तत्कालीन प्रसिद्घ ज्योतिषी के़ डी. जोशी का नाम बताया गया, तो उन्होंने अपने पति की स्वास्थ्य कामना हेतु उनकी जन्मकुण्डली विचरवायी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि अन्सारी दम्पति जैसे प्रबुद्घ मुसलमान तक ज्योतिष पर विश्वास करते रहे हैं, तो क्या वे अन्धविश्वासी थे या विज्ञान से अपरिचित थे? आज भी ज्योतिष के गणित पक्ष के आधार पर जो कालगणना की जाती है, उसका ही यह चमत्कार है कि हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष विजय पथ पर अग्रसर होते हुए राकेट, मिसाइल बनाकर चन्द्रयान और मंगलयान जैसे अभियानों को अपने प्रथम प्रयास में ही सफल बनाने मंे प्रभावी सिद्ध हुए हैं। तरस आता है उन 'बुद्घि के महासागरों' सेकुलरवादियों पर, जो वर्र्तमान केन्द्र सरकार की एक महिला मन्त्री के एक ज्योतिषी के पास जाकर भविष्य जानने को लेकर हर मंच पर हंगामा कर रहे हैं। उन्हें कौन बताये कि कुएं के मेंढकों जैसी उनकी बुद्धि पूरे विश्व में कितनी उपहास्यास्पद बन रही है। उन्हें ये भी कौन बताये कि जड़ों से कटे वृक्ष बहुत दिनों तक हरे नहीं रह पाते हैं।
-आनन्द मिश्र 'अभय'
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