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बात सिर्फ यूरेनियम यलो केक की नहीं। बात टोनी एबट को गले लगाने की भी नहीं। बात पश्चिम में कदम बढ़ाने से पहले अपने पूरब के पड़ोसी म्यांमार का दरवाजा खटखटाने की है, फिजी के भारतवंशियों की सुध लेने की है। बात सही विषय को सही तरीके से रखने और दिल जीत लेने की है। अगर कहा जाए कि भारतीय प्रधानमंत्री ने त्रिदेशीय दौरे से भारतीयों-भारतवंशियों का दिल जीत लिया तो गलत नहीं होगा। यह मौका नरेंद्र मोदी से पहले के प्रधानमंत्रियों के पास भी था, आगे भी ऐसे अवसर रहेंगे लेकिन मुद्दा यह है कि काम करके किसने दिखाया! यही वह फर्क है जिसने लोगों को अभिभूत कर दिया।
ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला अखबार 'द ऑस्ट्रेलियन' लिखता है कि 'मोदी बुखार' लोगों के सिर ऐसा चढ़ा कि लोग देश में मौजूद अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल और रूसी राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमिर पुतिन तक को भूल गए।'
भारत में सेकुलर बिरादरी और वामपंथी ब्रिगेड के पेट में उठती मरोड़ को छोड़ दिया जाए तो यह विश्व को नजर आने वाला खरा सच है। कैमरों की चमक, वैश्विक नेताओं की गर्मजोशी, सोशल मीडिया का ग्राफ, हर चीज इस बात की पुष्टि करती है। लोग भारतीय प्रधानमंत्री से अभिभूत हैं। 'सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड' उन्हें संसद को 'रॉक स्टेज' में बदल देने वाला 'स्टार' कहता है।
नरेंद्र मोदी की अगुआई में यह विश्व राजनीति के ऐसे अध्याय का सूत्रपात है जब चीजें भारत के लिए एक के बाद एक, सही बैठ रही हैं। पर्दे के पीछे से खुद या रिश्तेदारों को आगे करने की बजाय हर मौके पर भारत के मन की, मुनाफे की बात रखने की राजनीति भारत के लिए सुखदाई है।
इस वैश्विक लहर को देख मन में प्रश्न उठता है – भारत में नरेंद्र मोदी के ताजा-ताजा मुरीद हुए लोग स्वयं अपने लिए कैसी पहचान चाहते हैं? कल्पना करना कठिन नहीं-भले मोदी जैसी नहीं बित्ता भर ही सही मगर सत्ता की हनक, ग्लैमर की चमक, ताकत की धमक… या शायद ऐसा ही कुछ! अगर यह कल्पना सही है तो यही वह फर्क है जब राहें अलग हो जाती हैं।
व्यक्ति को ताकने के उतावलेपन में लोग एक बात भूल जाते हैं। व्यक्तित्व में झांकना। इस 'रॉक स्टार' चमक के पीछे हाड़तोड़ मेहनत है! यह पसीना ही है जो नक्षत्र सा चमक रहा है। फ्लैश लाइटों की चकाचौंध और एक झलक के लिए उतावले लोगों की ओर हाथ लहराकर मोदी आगे बढ़ जाते हैं। मंच और माहौल उनसे 'मुद्दा' नहीं छीन सकते यह उनका व्यक्तित्व है, पहचान है।
अथक परिश्रम की पाठशाला…संकल्प और संगठन शक्ति के सबक। खुद को खोकर सबका होना, इस सब से गुजरोे तो ऐसी पहचान मिलती है। बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह समय चुनौतियों भरा है और चुनौतियां बाहर से ज्यादा घर में हैं। लंबे कुर्ते और चौड़ी मुस्कान अचानक उन जगहों पर आम हो गई हैं जहां आमतौर पर सन्नाटे में काम में जुटे लोग दिखते थे।
इसके साथ ही आम हो गया है व्यक्तिपूजा की चाशनी बिछाने का खेल। मोदित्व, मोदीमय, मोदीफाइड.. ऐसे तमाम शब्द उछालते अनेक लोग अचानक राष्ट्रचिंतन में मग्न दिखने लगे हैं। ऐसे लोग जो अब तक जाने किन कंदराओं में थे और अचानक दीपावली पूजन के लिए रामनाम जपते हुए 'अयोध्या' पधार रहे हैं। …चाशनी को जगह दी तो चींटियां निश्चित ही आएंगी। लेकिन, चूंकि भारत के लिए यह अच्छा समय है इसलिए अयोध्या की सतर्कता चौकस है। पसीने का मोल क्या है? संगठन का स्थान क्या है? रॉक स्टार के नवांकुरित प्रशंसकों को यह पहाड़ से प्रश्न मथ रहे हैं।
बहरहाल, विदेश में भारत का मान बढ़ाने के लिए सरकार को बधाई!
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