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हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान नोबल पुरस्कार हासिल कर चुके कैलाश सत्यार्थी नेे कहा, समाज के विभाजन को लेकर हम सभी दोषी हैं। हम ही अपने बच्चों को गलत शिक्षा देते हैं। उनका मानना है कि नवजात शिशु को यह नहीं पता होता कि वह किस जाति, धर्म या संस्कृति का है। उनके मां-बाप बताते हैं कि बच्चे आप हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई हैं और आपकी भाषा यह है और आपको फलां-फलां संस्कार का पालन करना है। सत्यार्थी जी के इस वक्तव्य में यथार्थवादी सोच छिपी प्रतीत होती है। बहरहाल, उनके इस बयान को विश्व कप की तैयारी में जुटी भारतीय क्रिकेट टीम के साथ जोड़कर देखें तो सवाल उठता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के आका टीम के शानदार प्रदर्शन से भले ही खुश नजर आ रहे हों, लेकिन क्या हम विश्व कप जैसे अहम टूर्नामेंट की तैयारी की सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
रोहित शर्मा ने कोलकाता के इडेन गार्डन में श्रीलंका के खिलाफ 264 रनों की शतकीय पारी खेलकर विश्व रिकार्ड बना डाला, जबकि पांच मैचों की इसी सीरीज में कप्तान विराट कोहली, शिखर धवन, अजिंक्य रहाणे और अंबाती रायडू ने एक के बाद एक शतक ठोकते हुए श्रीलंका की हालत खस्ता कर दी। पुराकाल में जिन लंकावासियों को 52 गज का माना जाता था उन्हीं की टीम भारत के आगे बौनी नजर आई। जाहिर है, चारों ओर भारतीय टीम के गुणगान शुरू हो गए। मीडिया ने भारत को विश्व कप खिताब का प्रबल दावेदार मानना शुरू कर दिया। लेकिन भारत को अभी से ही विश्व कप का प्रबल दावेदार बता देना जल्दबाजी होगी। भारत की बल्लेबाजी हमेशा से बड़ी ताकत रही है और युवा बल्लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया, इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन रोहित शर्मा की रिकार्डतोड़ पारी सहित अन्य बल्लेबाजों के शतक भारत की बेजान या बैटिंग के अनुकूल पिचों पर निकलें हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत को अगले साल की शुरुआत में आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड के जीवंत और उछाल लेते विकेटों पर विश्व कप खिताब की रक्षा के लिए उतरना है। आस्ट्रेलियाई उपमहाद्बीप के विकेट भारत से सर्वथा भिन्न होंगे। वहां गेंदें बल्लेबाजों की नाक व कान को छूती हुई तूफानी गति से निकलती है। इसलिए भारतीय बल्लेबाजों के घरेलू धरती पर किए गए शानदार प्रदर्शन पर इतराना खुद से धोखा करने जैसा होगा।
भारतीय टीम की असली परीक्षा तो विश्व कप से पहले आस्ट्रेलिया में होने वाली त्रिकोणीय श्रृंखला में होगी। अगर उस सीरीज में भी भारतीय बल्लेबाजों की यही धांसू फर्म जारी रही तो हम जरूर विश्व कप खिताब के प्रबल दावेदार होंगे, लेकिन इतिहास गवाह है कि घरेलू विकेट पर धुआंधार प्रदर्शन करने वाले भारतीय बल्लेबाज विदेश में अक्सर धराशायी हो जाते हैं। इसलिए हमें यह मनाना चाहिए कि भारतीय युवा बल्लेबाजों का बढ़ा हुआ मनोबल आस्ट्रेलिया में भी जारी रहे और वे बेहतर प्रदर्शन करें, न कि रोहित शर्मा की विश्व रिकर्ड वाली पारी के बल पर दावा करना शुरू कर दें कि अगला विश्व कप भी भारत की झोली में आएगा। और, वैसे भी श्रीलंका के खिलाफ भारतीय बल्लेबाजों के शानदार प्रदर्शन पर इतराने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वनडे क्रिकेट में अब तक सिर्फ चार बार दोहरे शतक लगे हैं।
ये चारों दोहरे शतक भारतीय बल्लेबाजों ने घरेलू विकेट पर लगाए हैं। विदेशी धरती पर किसी बल्लेबाज का वनडे क्रिकेट में अब तक दोहरा शतक न लगा पाना साबित करता है कि जीवंत विकेटों पर रिकार्डतोड़ पारियां खेलना कतई आसान नहीं होता है। इस लिहाज से भारतीय विकेटों पर आप चाहे जितने भी रिकार्ड बना डालें, आस्ट्रेलियाई धरती पर होने वाले विश्व कप की तैयारी पुख्ता नहीं मानी जाएगी। भारत में बल्लेबाजों के अनुकूल विकेट बनाने को लेकर खेल प्रशासकों से लेकर भारतीय कप्तानों की विशेष आसक्ति रही है, यह सच किसी से छुपा हुआ नहीं है। नागपुर या मोहाली के तेज विकेटों को देखकर कभी पूर्व कप्तान सौरव गांगुली पिच क्यूरेटर से भिड़ जाते थे तो कोलकाता या कानपुर के विकेट को लेकर महेंद्र सिंह धोनी की पिच क्यूरेटर से नोकझोंक हो चुकी है। इसी तरह मुंबई और दिल्ली के टनिंर्ग विकेट को लेकर विदेशी कप्तान कई बार अपनी हताशा जाहिर कर चुके हैं। ये वाकिये दर्शाते हैं कि भारतीय विकेट भारतीय बल्लेबाजों को रास आते हैं, विदेशियों को नहीं।
यही कारण है कि विदेशी विकेट उनके बल्लेबाजों को रास आते हैं, भारतीयों को नहीं। चूंकि हमें अगला विश्व कप आस्ट्रेलिया में खेलना है इसलिए उसकी तैयारी की असली परीक्षा अभी बाकी है। – प्रवीण सिन्हा
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