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आपको इस तरह के लोग गिनती के ही मिलेंगे,जिनका हर इंसान सम्मान करता है। वे भारत के कारपोरेट संसार के सम्राट की पदवी हासिल कर चुके हैं। एऩ नारायणमूर्ति प्रसिद्घ साफ्टवेयर कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॅाजी के संस्थापक और जानेमाने उद्योगपति हैं। नारायणमूर्ति आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होने के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे। उनके उन दिनों के सबसे प्रिय शिक्षक मैसूर विशवविद्यालय के कृष्णमूर्ति ने नारायणमूर्ति की प्रतिभा को पहचान कर उनकी हर तरह से मदद की। बाद में आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाने पर नारायणमूर्ति ने कृष्णमूर्ति के नाम पर एक छात्रवृत्ति प्रारंभ कर के इस कर्ज को चुकाया।
अपने पेशेवर जीवन का आरंभ नारायणमूर्ति ने पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स पुणे से किया। बाद में अपने दोस्त शशिकांत शर्मा और प्रोफेसर कृष्णय्या के साथ 1975 में पुणे में सिस्टम रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। 1981 में नारायणमूर्ति ने इन्फोसिस कम्पनी की स्थापना की।
मुम्बई के एक अपार्टमेंट में शुरू हुई इस कंपनी की प्रगति की कहानी आज दुनिया जानती है। सभी साथियों की कड़ी मेहनत रंग लाई और 1991 में इन्फोसिस पब्लिक लिमिटेड कम्पनी में परिवर्तित हुई। 1999 में कंपनी ने एक नया इतिहास रचा जब इसके शेयर अमरीकी शेयर बाजार नैस्डेक में अंकित हुए। नारायणमूर्ति 1981 से लेकर 2002 तक इस कम्पनी के मुख्य कार्यकारी निदेशक रहे। 2002 में उन्होंने इसकी कमान अपने साथी नन्दन नीलकेनी को थमा दी, लेकिन फिर भी इन्फोसिस कम्पनी के साथ वे मार्गदर्शक के दौर पर जुड़े रहे। वे 1992 से 1994 तक नास्काम के भी अध्यक्ष रहे। सन 2007 में नारायण मूर्ति को विश्व का आठवां सबसे बेहतरीन प्रबंधक चुना गया।
आज नारायणमूर्ति अनेक लोगों के आदर्श हैं। चेन्नई के एक कारोबारी पट्टाभिरमण कहते हैं कि उन्होंने जो भी कुछ कमाया है वह मूर्ति की कंपनी इंफोसिस के शेयरों की बदौलत और उन्होंने अपनी सारी कमाई इंफोसिस को ही दान कर दी है। पट्टाभिरमण और उनकी पत्नी नारायणमूर्ति को भगवान की तरह पूजते हैं और उन्होंने अपने घर में मूर्ति का फोटो भी लगा रखा है। उन्हें पद्मश्री, पद्मविभूषण और ऑफीसर ऑफ द लीजियन ऑफ ऑनर- फ्रांस सरकार के सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। इस सूची में शामिल अन्य नाम थे-बिल गेट्स, स्टीव जाब्स तथा वारेन वैफे।
एक बार उन्होंने कहा था कि उन्हें इंफोसिस से अलग कर पाना मुश्किल है। नारायणमूर्ति के ये शब्द इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि इस कंपनी से वेे किस कदर जुड़े हुए हैं। नारायण ने सिर्फ 10,000 रुपये से इंफोसिस की स्थापना की थी। दस हजार रुपये उन्हें उनकी पत्नी सुधा मूर्ति ने दिए थे। नारायणमूर्ति की बात हो और उनकी जीवनसंगिनी की चर्चा न हो। ऐसा हो नहीं सकता। सहयोग के चलते ही नारायणमूर्ति इस मुकाम पर पहुंचे।
इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा सुधा मूर्ति की जिंदगी मेहनत और मशक्कत की अद्भुत कहानी है। वह आज लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रेत हैं। एर्नेस्ट हेमिंग्वे ने किसी जगह कहा है, 'अंधेरे में रहने के बजाय एक दीया रोशन करना कहीं बेहतर है।' सुधा मूर्ति की जिंद्गी की कहानी भी इसी एक पंक्ति के ईदगिर्द सिमटी है।
सुधा मूर्ति की सफलता इस बात को भी रेखांकित करती है कि पति के विशाल व्यक्तित्व की परछाई के नीचे दबने के बजाय कोई महिला यदि चाहे तो अपना अलग व्यक्तित्व गढ़ सकती है। बतौर इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति समाज के दबे कुचले तबके के उत्थान के लिए बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि वह सुर्खियों में आने से परहेज करती हैं लेकिन समाज सेवा के प्रति उनका जज्बा खुद ब खुद उनकी महानता को बखान करता है।
सुधा मूर्ति की इन्फोसिस कंपनी की स्थापना में क्या भूमिका रही है उसे इसी बात से जाना जा सकता है कि उनकी ही बचत के दस हजार रुपये से इस कंपनी की नींव रखी गयी और नारायणमूर्ति आज भी बड़े गर्व से यह बात लोगों को अक्सर बताते हैं। सादा सी साड़ी और चेहरे पर सदा खिली रहने वाली मुस्कान सुधा मूर्ति के व्यक्तित्व में चार चांद लगाती हैं।
जिंदगी में किन चीजों ने सुधा मूर्ति को सर्वाधिक प्रभावित किया है तो इसके जवाब में वह कहती हैं जे आर डी टाटा के शब्दों और जीवन ने मुझे न केवल प्रभावित किया है बल्कि मेरी पूरी जिंदगी को एक दिशा दी है।' क्रिस्टी कॉलेज में एमबीए और एमसीए विभाग की प्रतिभाशाली प्रोफेसर सुधा अपने छात्र जीवन में बहुत योग्य छात्रों में गिनी जाती रहीं।
आप कह सकते हैं कि नारायणमूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति जैसे दंपत्तियों की देश और समाज को जरूरत है। ल्ल
शुरुआत 1975 में, पुणे में सिस्टम रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना
बड़ी छलांग
1981 में 10 हजार रु. से शुरु की इंफोसिस 1991 में पब्लिक लिमिटेड कंपनी बनी
संदेश
सादगी और मेहनत सदा रंग लाती है
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