दीपावली विशेष – धन, सेहत व शांति चाहिए
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सुख समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (संध्या) में करना चाहिए। लक्ष्मी उपासना का यही मुख्य समय माना गया है। माता लक्ष्मी का पूजन पूर्वाभिमुख होकर करना चाहिए। पूजन के समय सपरिवार माता की आराधना करें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजन कभी भी नहीं करना चाहिए। दीवाली जीवन में उन्नति पाने के लिए एक अच्छा अवसर माना जाता है। दीवाली की रात को कालरात्रि माना जाता है। तंत्रशास्त्र व ज्योतिष के अनुसार इस दिन की गई पूजा बहुत अद्भुत लाभ देगी, बशर्ते पूजा सही तरीके और सही समय पर की जाए। इस दिवाली पूजा के द्वारा न केवल बुरे ग्रह शांत किए जा सकते हैं, बल्कि धन, स्वास्थ्य तथा परिवार की शांति भी प्राप्त की जा सकती है। जिस तरह के ग्रहयोग इस बार की दीवाली पर बन रहे हैं उसमें तो छोटे-छोटे उपाय करना भी बहुत लाभ दे सकता है। इस दीवाली सिद्ध की गई छोटी-छोटी वस्तुएं आपके वर्ष भर काम आएंगी। ये वस्तुएं न केवल आपको संपन्नता दिलाएंगी, वरना आपके परिवार के सभी लोगों को नजर, टोने-टोटकों, दुर्घटनाओं तथा अकाल मृत्यु से भी बचाएंगी। तो तैयार रहें इस दीवाली की रात को कुछ विशेष पूजाओं के लिये, जो करेंगी आपके पूरे परिवार का भला।
ल्ल दीवाली पर सबसे पहला भोग गणपति जी को दें, दूसरा लक्ष्मी जी को, तीसरा कुलदेवी या देवता को, चौथा इष्ट को, पांचवा पितृ को, छठा गुरु को या मंदिर को और सातवां माता-पिता को दें।
ल्ल इस दिन आम या पीपल की वंदनवार द्वार पर बांधें।
ल्ल दीवार पर स्वास्तिक का चिह्न जरूर बनाएं। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्न केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।
ल्ल लक्ष्मी पूजन की थाली में कौड़ी अवश्य रखें।
ल्ल कौड़ी को एक थाल में रखकर 'ओम् श्रीं नम:' के 1008 जप करें। इसे रात में करें। इसे तिजोरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। जिसको हीलिंग देनी हो उसके चित्र पर इसे रख देने से बहुत फायदा होता है।
ल्ल लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है।
ल्ल दीपावली के दिन पूजन में गन्ना या गन्ने के रस को अवश्य रखना चाहिए।
ल्ल दीवाली के पूजन में ज्वार अवश्य रखने चाहिए।
ल्ल घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं। लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्न कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है।
ल्ल दीवाली की रात मुख्य दरवाजे पर ग्यारह दीपक सातनाज ढेर पर जलाएं
ल्ल और वहीं पर बैठकर 108 बार इस मन्त्र का जप करें। इस मन्त्र को स्फटिक की माला से किया जाना चाहिए-
'ॐ महालक्ष्म्यै नम:, ॐ विष्णुप्रियायै नम:, ॐ श्रीं नम:'
ल्ल इसके बाद चांदी की कटोरी में दूध भरकर चंद्रमा की ओर मुंह करके दूध गमले में डाल दें।
माँ काली की आराधना-
माता काली की कृपा प्राप्ति हेतु (ये उपाय केवल उनके लिए हैं, माता जिनकी इष्ट है या जो माता की शरण में हैं) माता के चरणों में, एक पान के पत्ते पर लौंग का जोड़ा, एक इलायची, एक कर्पूर, कुछ मीठा और एक फूल रखकर, साथ में एक पानी वाले नारियल पर 5 बार कलावा लपेटकर, हाथ जोड़ प्रार्थना करके रख दें।
पूजन मुहूर्त
दीवाली पर श्री महालक्ष्मी पूजन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल में, स्थिर लग्न समय में किया जाता है। 2014 में दीवाली, 23 अक्तूबर, बृहस्पतिवार को है। इस दिन अमावस्या है, चित्रा नक्षत्र है। इस दिन विष्कुंभ योग है तथा चन्द्रमा कन्या राशि में संचार करेगा।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 18.56 से 20.13, प्रदोष काल = 17.39 से 20.13, वृषभ काल- 18.56 से 20.51
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 23.39 से 00.30 (स्थिर लग्न के बिना) महानिशीथ काल- 23.39 से 00.30 (महानिशीथकाल में मुख्यत: वेद आरम्भ, आध्यात्मिक कर्मकाण्ड, यंत्र-मंत्र सिद्धि कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं। इस अवधि में दीवाली पूजन के पश्चात घर में एक चौमुखा दीपक रात भर जलता रहना चाहिए। यह दीपक लक्ष्मी एवं सौभाग्य में वृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
ध्यान रहे
दीवाली का पर्व केवल पैसे पाने की कामना का पर्व नहीं है, वरन् सुख पाने के लिए विशेष प्रयत्न करने का भी दिन है। इस दिन आध्यात्मिक उन्नत्ति पाने का प्रयास भी करना चहिए।
दीवाली की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं, ईश्वर आपके घर में सुख शांति की वर्षा करें।
मंगलवार, 22 अक्तूबर को शाम 5.39 के बाद
पांच दिवसीय दिवाली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्ज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
-धनतेरस मूलत: भगवान धन्वंतरि का पर्व है। उन्हें विष्णु रूप माना जाता है। अत: उनकी आराधना जरूर करें और उनको धन्यवाद जरूर दें। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि सभी रोगों के लिए औषधि कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से वर्षभर धन-धान्य का अभाव नहीं रहता है।
ल्ल उनकी याद में गाय को चारा जरूर दें।
ल्ल इस दिन सिद्ध किया गया महामृत्युंजय और नारायण मंत्र घर से विपत्तियों को दूर करता है।
ल्ल साफ सफाई करने के साधन अवश्य खरीदें। ज्योतिषीय उपायों मे झाड़ू का बहुत महत्त्व है।
ल्ल इस दिन अपने पढ़ने, नौकरी और व्यापार करने के स्थान में पूजा जरूर करें और अपनी गद्दी या कुर्सी जरूर खरीदें।
ल्ल हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर घर में रखें। इसका अद्भुत परिणाम होता है। विशेषकर वे लोग जिनका पूरा परिवार बीमारियों से घिरा है वे यह जरूर करें।
ल्ल कुछ वस्तुओं का क्रय और दान अपनी क्षमतानुसार करें। इस दिन दूसरों के लिए भी कुछ जरूर लें। -अजय विद्युत
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