शिवाजी और तिलक का महाराष्ट्र नेतृत्वहीन
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शिवाजी और तिलक का महाराष्ट्र नेतृत्वहीन

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Oct 4, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Oct 2014 16:09:50

वर्ष: 9 अंक: 16
24 अक्तूबर,1955
जनता की भावी आशा का एकमात्र केन्द्र-भारतीय जनसंघ

महाराष्ट्र में 18 दिन भ्रमण करने के बाद यदि मैं किसी निर्णय पर पहुंचा हूं तो वह यह कि महाराष्ट्र के निवासी यद्यपि अनेक अभावों से ग्रस्त हैं किन्तु सबसे बड़ा अभाव योग्य नेतृत्व का है। महाराष्ट्र की जनता आज नेतृत्वविहीन है। वह अपना मार्ग नहीं खोज पा रही है। अनेक छोटे-छोटे नक्षत्र अपनी टिमटिमाती ज्योति से उसका पथ आलोकित करने का प्रयत्न कर रहे हैं,किन्तु जन-मन में छाये हुए घनीभूत अंधकार को दूर करने का सामर्थ्य उनमें नहीं है। उनकी वाणी सह्याद्रि की उपत्यकाओं में एक क्षीण प्रतिध्वनि उत्पन्न करके रह जाती है,नई दिल्ली के राज-स्तम्भों पर उसका कोई प्रभाव नहीं होता।
महाराष्ट्र को छत्रपति शिवाजी और लोकमान्य तिलक की गौरव-गाथाओं की उनींदी आखों में छिपाये हुए महाराष्ट्र को आज नेता चाहिए। ऐसा नेताजी जो महाराष्ट्र की भावनाओं को,उनके सही रूप में,भारतीय जनता के सम्मुख रख सके,अपनी प्रतिभा तथा तेजस्विता से सम्पूर्ण भारत का ध्यान महाराष्ट्र की ओर आकृष्ट कर सके।
भारत के मानचित्र में महाराष्ट्र का रंग यदि आज उभरकर सबकी आंखों में भरने से असमर्थ रहा है तो उसके लिए वर्तमान घटिया नेतृत्व कुछ कम दोषी नहीं है। गांधी हत्याकाण्ड के बाद से महाराष्ट्र के पुराने नेताओं को जो दुर्भाग्य से (आज इसे दुर्भाग्य ही बना दिया गया है!)ब्राह्मण के घर में उत्पन्न हुए थे,राजनीति से निर्वासित सा कर दिया गया,किन्तु उनका स्थान लेने के लिए दूसरे व्यक्ति आगे नहीं आए। श्री भाऊ साहब हिरे अब्राह्मण हैं,किन्तु उनमें प्रशासकीय योग्यता का अभाव है। मंत्रीपद से बंधे रहने के कारण वे जन भावनाओं का सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते। शेतकारी कामगार पक्ष के संस्थापक श्री केशव राव जेधे पुन: कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। श्री मोरे पर भी डोरे डालने का प्रयत्न चल रहा है।…महाराष्ट्र में हिन्दू महासभा मृतप्राय है। उसके पुराने नेता या तो राजनीति से संन्यास ले बैठे हैं,या वृद्धावस्था से विवश हैं, पुणे में हिन्दू महासभा कुछ सक्रिय दिखाई देती है,किन्तु यह सक्रियता 'केशरी' के पृष्ठों तक ही सीमित है।
महाराष्ट्र में जनसंघ के कार्य की बढ़ती हुई प्रगति को समझने के लिए भारतीय जनसंघ के मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के महाराष्ट्र-प्रवास के वृतांत को जान लेना ही पर्याप्त होगा। अपने 12 दिन के दौरे में वाजपेयी जी जहां भी गये,जनता ने उनका हृदय से स्वागत किया और हजारों की संख्या में उनके मुख से जनसंघ के विचारों को सुना। महाराष्ट्र में प्रवेश करते ही जलगांव नगरपालिका की ओर से श्री वाजपेयी को मानपत्र भेंट किया गया। जलगांव नगरपालिका में जनसंघ के केवल 4 सदस्य हैं,किन्तु उनकी कुशलता तथा प्रामाणिकता का लोहा सभी अन्य सदस्य मानते हैं।…
महाराष्ट्र की भांति बम्बई में भी जनसंघ का कार्य प्रगति कर रहा है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने 5 दिन के निवास में प्राय 20 जनसभाओं में भाषण किये जिनमें दो सभाएं महिलाओं की थीं,और एक कपड़ा मिल मजदूरों की अन्तिम दिन चौपाटी पर जैसी विशाल सभा हुई वैसी बम्बई में काफी दिनों से नहीं हुई थी।…

अक्षय संघ-वृक्ष
विजयादशमी के पुण्य पर्व पर पाठकों की सेवा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। ध्यान रहे भारतीय जीवन में राष्ट्र-चेतना फूंकने वाले इस संगठन का जन्म विजयादशमी के पर्व पर ही हुआ था। -संपादक
विजयादशमी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ! इन दोनों का एक दूसरे से अटूट सम्बन्ध है। विजयादशमी वह पावन पर्व है जिस दिन भारत के गगन मण्डल में समस्त अराष्ट्रीय वृति-अन्धकार को चुनौती देता हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक का बाल रवि उदय
हुआ था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्म से पूर्व राष्ट्र,राष्ट्रीयता,देश सेवा आदि की अनेकानेक भ्रष्ट परिभाषाएं प्रचलित थीं। कोई भी व्यक्ति यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि भारत राष्ट्र हिन्दुओं का है। हिन्दू ही इस राष्ट्र की सच्चे राष्ट्रीय पूंजी हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्यसरसंघचालक पू.डॉ. हेडगेवार ने समाज की इस दुर्बल मनोभावना तथा विधर्मियों द्वारा किए जा रहे दूषित प्रचार तंत्र को अच्छी तरह समझा और अकेले खडे़ होकर घोषणा की 'यह राष्ट्र हिन्दुओं का है।'डाक्टर जी के इस घोष को सुनकर उनके विरोधयों के ही नहीं तो मित्रों के भी कान खड़े हो गए। जहां उनके विरोधियों ने डाक्टर जी को अराष्ट्रीय घोषित करने का असफल प्रयास किया वहां मित्रों को यह विश्वास ही न हो सका कि डॉ. हेडगेवार कभी ऐसी बात भी कह सकते हैं। किन्तु समर्थन या विरोध की चिन्ता न करते हुए डाक्टर जी संघ कार्य में जुटे रहे। उन्होंने व्यक्ति-व्यक्ति से सम्पर्क स्थापित कर,उसके जीवन को राष्ट्र-कल्याणकारी मार्ग के अनुकूल मोड़ कर ऐसे सुसंगठित दृढ़ संगठन का निर्माण कर दिया जो विपरीत परिस्थितियों के थपेड़ों के बीच भी अडिग खड़ा रह सका। संघ के लिए सर्वप्रथम परीक्षा का काल उस समय उपस्थित हुआ जिस समय 1940 में डाक्टर साहब साध्य की साधना में स्वशरीर का कण-कण जलाकर इस असार संसार से विदा हो गए।
उस समय लोगों को लगा-संघ अब नहीं चल सकेगा। किन्तु पूज्य गुरुजी के महान नेतृत्व तथा स्वयंसेवकों की निस्वार्थ ध्येय-निष्ठा ने सिद्ध करके दिखा दिया कि संघ की नींव काफी गहरी
गाड़ी गई है।
1947 में जिस समय देश का विभाजन हुआ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने विभाजन की विभीषिका से त्रस्त-ग्रस्त बान्धवों की यथाशक्ति सहायता की। यहां तक कि स्वजीवन की बाजी लगाने में भी किंचित् संकोच का अनुभव नहीं किया। जनता के हृदय में संघ के स्वयंसेवकों के प्रति अत्यन्त प्रेम,स्नेह तथा श्रद्धा का भाव निर्माण हो गया। देश के कोने-कोने में संघ का यशोगान किया जाने लगा।
किन्तु सत्ताधीशों को यह अच्छा नहीं लगा। वे सोचने लगे कि कहीं संघ उनकी सत्ता पर अधिकार न कर ले। अत: संघ पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया जाने लगा, किन्तु संघ की महान लोकप्रियता को देखकर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका।
परन्तु गांधी जी की हत्या ने सत्ताधीशों के मनसूबे पूरे करने का अवसर प्रदान किया। संघ के कार्यकर्ता कारागारों में ठंूस दिए गए,संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पूज्य गुरुजी ने भी संघ को भंग कर दिया। एक बार पुन: लगा कि संघ समाप्त हो जाएगा।
किन्तु संघ क्या समाप्त हो सका? नहीं। संसार के सबसे बड़े सत्याग्रह का आयोजन किया गया। 'पूज्य गुरुजी की जय,''संघ अमर है।'के जयघोषों से भारत का नगर-नगर कूचा-कूचा गूंज उठा। कारागार सत्याग्रही स्वयंसेवकों से भर गए। सरकार को झुकना पड़ा संघ-सूर्य विपत्तियों की श्याम घटाओं को चीर पुन: प्रकट हुआ। अपना अमरत्व उसने सिद्ध कर दिया।
समय-समय पर राष्ट्र के समक्ष उपस्थित होनेवाली अनेक समस्याओं को सुलझाने में संघ ने जो महान् योग प्रदान किया है वह भारत के इतिहास में कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।
परन्तु एक प्रश्न है कि संघ यह सब कुछ कर कैसे सका? प्रलयकारी झंझा के बीच खड़ा रह कैसे सका? इसका एक ही उत्तर है-अपने दृढ़ संगठन,अभिनव कार्य-प्रणाली और विशुद्ध विचारधारा के बल पर।…

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