पड़ताल - जमीन की तलाश में कायदा-आईएस की टकराहट
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पड़ताल – जमीन की तलाश में कायदा-आईएस की टकराहट

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Sep 13, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 13 Sep 2014 14:38:48

लंबे समय तक भारत के लोग ये सोच कर खुद की पीठ थपथपाते रहे थे कि भारत में पंथनिरपेक्ष और खुले वातावरण ने भारत के मुसलमानों को वैश्विक आतंकी गुटों से जुड़ने से रोका हुआ है। लेकिन उस आईएसआईएल के सामने आने के बाद वह सब बदल गया, जो अब खुद को आईएस कहती है। मोसुल कब्जाने और खलीफा की मुनादी के साथ ही इस्लाम के अंदर सैद्धांतिक सहमति पाने की कोशिश के बाद इसमें बदलाव आया है। स्वयंभू खलीफा के नाम, ओहदे और पैगम्बर के परिवार से होने के दावे ने दुनिया भर से बड़ी तादाद में मुस्लिम युवाओं को आईएस की तरफ खींचा है। बोको हराम जैसे आतंकी गुट और तहरीके तालिबान पाकिस्तान के कई तत्व अल कायदा से छिटक कर खलीफा के पाले में आ चुके हैं। साफ दिखता है कि पैसे और हथियारों के लिहाज से आईएस अल कायदा को पीछे छोड़ रही है और सैन्य तथा वैचारिक लिहाज से दुनिया के एक बड़े जिहादी गुट के तौर पर स्थापित होने की कोशिश में है।
यह भी सुनने में आया है कि कई भारतीय युवक आईएस के पाले में जाकर लड़ रहे हैं। कल्याण का आरिफ मजीद मोसुल में मारा जा चुका है। हैदराबाद के कोलकाता से पकड़े ऐसे ही चार कट्टर युवकों से पता चला है कि एक लड़की सहित और 15 लड़के आईएस से जुड़ना चाहते थे। इस गुट ने इंटरनेट पर उर्दू, हिन्दी और तमिल में भड़काऊ वीडियो बनाकर डाले हैं। मुस्लिम युवकों के दिमाग में जहर रोपा जा रहा है। इस नए बदलाव ने उस दुष्प्रचारित मान्यता को तार तार कर दिया कि भारत के मुसलमान वैश्विक जिहाद से एकदम अलग हैं। इन्हीं सब बातों के चलते अल कायदा को भारत को लेकर अपनी रणनीति पर फिर से सोचने को मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि इसके अपने ही पड़ोस में इसकी जमीन खिसकती जा रही थी। नतीजतन, भारत के मुसलमानों को लक्ष्य करके अल कायदा के सरगना जवाहिरी ने गुट की दक्षिण एशियाई इकाई, कायदात अल जिहाद शुरू करने की मुनादी कर दी। उसने कहा कि इस इकाई की स्थापना 'जिहाद के झण्डे को ऊंचा करने और उपमहाद्वीप में इस्लामी राज लौटाने' की गरज से की गई है, जो दुश्मन काफिरों के कब्जाने और बांटने से पहले मुस्लिम भूमि थी।' अल कायदा का ये कदम सिर्फ मुस्लिम युवकों को आईएस से अलग खींचने के लिए ही नहीं है बल्कि अपनी वैचारिक मान्यता को सही साबित करवाने के लिए भी है। उनकी मान्यता है कि खुरासान में आखिरी लड़ाई में फतह के बाद गजवा ए हिन्द यानी भारत के लिए जंग लड़ी जाएगी।
दुनियाभर के तकरीबन सारे जिहादी गुट इस मान्यता को सर आंखों पर बैठाते हैं और उसके लिए मरने को तैयार हैं। ये बात दिमाग में ऐसी धंसी हुई है कि बगदादी ने शुरू मंे खुद को खुरासान का खलीफा घोषित किया था, हालांकि उसके कब्जे वाला इलाका उसके आस-पास भी नहीं था। दक्षिण एशियाई इकाई की शुरुआत की मुनादी करके अल कायदा अपनी 'भविष्यवाणी' पूरी करने के लिहाज से एक कदम आगे बढ़ा है। यह न केवल इस्लामी किताबों में वर्णित खुरासान इलाके में मौजूद है बल्कि दक्षिण एशियाई इकाई में इसने 'गजवा-ए-हिन्द' के नाम से अगले चरण की जमीन भी तैयार कर ली है। अल कायदा जानता है कि आईएस को मिल रहे समर्थन का ज्यादातर हिस्सा इस बात से आकर्षित होकर उससे जुड़ा है कि उसकी नजरों में इसके पास ज्यादा सैद्धांतिक मान्यता है।
खलीफा न केवल एक इस्लामी विचार है, बल्कि ज्यादातर इस्लामी विद्वान मानते हैं कि कुरैश कबीले का कोई एक आदमी उम्मा का नेता हो सकता है। बगदादी पैगम्बर के वंश से होने का दावा करता है और इसलिए कुरैश है जबकि दूसरी ओर मुल्ला उमर अरबी तक नहीं है। आईएस के पास ज्यादा इलाका और ज्यादा हथियार हैं, ज्यादा लड़ाके हैं इसलिए कई लोगों का मानना है कि अल कायदा के मुकाबले उसकी जिहादी ताकत ज्यादा है, जबकि अल कायदा भी जिहाद के लिए जरूरी संसाधन और लड़ाके होने का दावा करता है। भारत में इकाई शुरू करने की अल कायदा की कोशिश सैद्धांतिक लिहाज से उसकी कमजोरी के अहसास को दूर करने और साथ ही अपने मकसद के लिए नये लड़ाके भरती करने के लिए है।
भारत के नजरिए से, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि जवाहिरी ने बर्मा, बंगलादेश, असम, गुजरात, कश्मीर के मुसलमानों को 'बचाने' के लिए इसका गठन करने का जिक्र किया है और इस तरह उन-उन जगहों पर मुसलमानों में असंतोष की संभावनाओं को कुरेदने की इच्छा की तरफ इशारा किया है। ये वे स्थान हैं जहां कट्टर इस्लामवादियों के खिलाफ साम्प्रदायिक तनाव देखने में आया था। इस क्षेत्र की कुल मुस्लिम आबादी दुनिया में सबसे बड़ी है, इण्डोनेशिया की मुस्लिम आबादी से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा।
अल कायदा जानता है कि अगर उसने यह इलाका आईएस के हाथों गंवा दिया तो इस्लामी जगत में इसका नेतृत्व धुंधलके में खो जाएगा। इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने की गरज से ये बड़ी होशियारी से मुस्लिम युवकों पर असर डालने वाला दुष्प्रचार फैला रहा है क्योंकि यह जानता कि आईएस से जुड़ने वाले ज्यादातर युवक पढ़े-लिखे और अच्छे खासे परिवारों से हैं।
भारत में पहले ही आईएसआई से जुड़े कई उग्रवादी गुट उपज आए हैं और वे भी गढ़ी गई कहानियों से मुस्लिम युवकों के दिमागों में जहर रोपने की कोशिश कर रहे हैं। जवाहिरी का वीडियो उसी दिशा में की गयी कोशिश था और इसलिए उसने अपने अरबी भाषण का कुछ हिस्सा उर्दू में बोला। उसने यह भी कहा कि भारतीय इकाई मुजाहिदीन गुटों को जोड़ने की अल कायदा की दो साल से ज्यादा की कोशिशों का नतीजा है। इससे भी बढ़कर, भारत के नजरिए से आईएसआई के नजदीकी पाकिस्तानी उग्रवादी आसीम उमर को दक्षिण एशियाई इकाई का सरगना घोषित करना खतरनाक है। गौर करने की बात है कि भारत इस संकट का सामना कैसे करता है। भारत के लोग सुरक्षा को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं रहते और सुरक्षा जांचों को अक्सर अपनी आजादी में खलल मानते हैं। अल कायदा और आईएस के गुटों की दिमागों में जहर रोपने की धमकी को एक आम कानून और व्यवस्था की समस्या नहीं मानना चाहिए। इसका मुकाबला केवल सोच समझकर तैयार की रणनीति से ही किया जा सकता है। -आलोक बंसल
लेखक इंडिया फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड स्ट्रेटेजी के निदेशक हैं।

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