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बारह खंभा से काम नहीं चलेगा

by
Aug 11, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Aug 2014 10:59:51

 शीर्षक बहुत लंबा हो जाता इसलिए अधूरा ही छोड़ दिया है। असल में पूरा शीर्षक है बारह खम्भा से काम नहीं चलेगा- आवश्यकता है हजारों खम्भों की। पूरा शीर्षक तो बता दिया,ये भी बता दूं कि दक्षिण के परम पावन तीर्थ रामेश्वरम द्वीप को रमनाद अर्थात रामनाथपुरम में भारतभूमि से जोड़ने वाला पौराणिक रामसेतु है। उसी के प्रवेशद्वार पर स्थित श्री रामनाथस्वामी के भव्य मंदिर में सहस्र स्तंभों से सुसज्जित एक गलियारा है,जो प्राचीन दक्षिण भारतीय वास्तुकला की सबसे महत्वपूर्ण और दर्शनीय विरासतों में से एक है। आज का व्यंग्य बाण वहीं से छूट रहा है।
वास्तुकला के सौन्दर्य की दृष्टि से उन हजार खम्भों का महत्व समझाने की चीज नहीं है। उसे देखकर कोई भी उसके सौन्दर्य से अभिभूत हो जाएगा। पर बिना किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए यदि कह सकूं तो कहूंगा कि खम्भे होते ही हैं बड़े काम की चीज। उन हजार खम्भों का निर्माण कराते हुए तत्कालीन सम्राट परोपकार और जनहित की उदात्त भावनाओं से प्रेरित हुए होंगे। दु:ख से कातर और अपमान से आहत उन लोगों के हित में बनवाये होंगे वे खम्भे, जिन्हें अपमान का प्रतिकार करने का केवल एक ही तरीका मालूम हो। हां वही, खिसियानी बिल्ली वाला तरीका । वह जब चतुर,चपल चूहे को पकड़ नहीं पाती है तब किसी खम्भे की तलाश में निकल पड़ती है। मिल जाता है तो खम्भे को नोचकर अपनी खिसियाहट मिटाती है। तभी तो कहते हैं खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। सम्यक दूरदृष्टि रखने वाले सम्राट ने जब हताश-निराश लोगों को खिसियानी बिल्ली की तर्ज पर अपनी भड़ास निदार्ेष लोगों पर निकालते हुए देखा होगा तो उसने इन हजार खम्भों का निर्माण कराया होगा। राज्यभर में मुनादी करायी होगी निराशा और अपमान से हताश होकर दुखी होने की अब कोई आवश्यकता नहीं रही। अपना गुस्सा उतारने के लिए हर नागरिक को सुनहरा सुअवसर आयें, अपना माथा दीवार से टकरायें और खम्भों को नोचें। एक साथ एक हजार तक पीडि़त व्यक्तियों को अपना इलाज करने की अभूतपूर्व सुविधा। महाराज ने ये सुविधा पाषाण के सशक्त खम्भों के रूप में प्रदान की है ताकि प्रजा की अनगिनत आगामी पीढि़यों के लिए स्थायी प्रबंध हो जाए। फिर हताश, निराश, अपमानित लोग सैकड़ों की संख्या में आते होंगे और उन खम्भों को नोचकर,उनसे अपना सर टकरा कर,अपनी पीड़ा से निजात पाकर हर्ष विव्हल होकर जाते होंगे।
मैं प्रधान मंत्री मोदी जी से अपील करता हूं कि देश के हर उस शहर में जहां संवेदनशील लोग अपना गुस्सा बिलकुल असम्बद्घ लोगों पर निकाल रहे हो ऐसे ही खम्भे बनवा दें। मुम्बई जैसे महानगर में और कश्मीर घाटी के श्रीनगर जैसे शहरों में तो कम से कम हजार खम्भों वाला गलियारा बनवाना पडे़गा। अन्य शहरों में जहां जैसी आवश्यकता हो उसी अनुपात में इससे कम खम्भे भी बनवाये जा सकते हैं । अब मुम्बई पर ही दृष्टिपात करिए। चौबीस जुलाई को पाकिस्तान के कुछ शहरों और लन्दन से प्रकाशित होने वाले 'रोजनामा नई बात' अखबार में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के रहनुमाओं ने आवाज दी कि गाजा पट्टी में इजराइल द्वारा हो रहे हमलों का प्रतिशोध लेने के लिए मुजाहिदीनों को एकजुट हो जाना चाहिए और अगले ही दिन अर्थात पच्चीस जुलाई को मुम्बई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया जी को मुजाहिदीन का सन्देश मिल गया कि मुम्बई मे इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए भयंकर बम विस्फोट किये जायेंगे। मारिया जी को ये सूचना भी दे दी गयी कि 1993 में तो किसी तरह से अनगिनत निदार्ेष मुम्बईवासी बच गए पर इस बार ऐसी चूक नहीं होगी। उधर कश्मीर घाटी के मुजाहिदीन कैसे पकिस्तान पीपुल्स पार्टी के इस जोशीले आह्वान से अछूते रह जाते। तो फिर इजराइल द्वारा गाजापट्टी पर हमलों का बदला श्रीनगर में बसों को फूंककर,भारतीय जनसंपत्ति को तोड़-फोड़कर और श्रीनगर के नागरिकों की दिनचर्या में हर संभव खलल डालकर किया गया। ऐसे मौकों पर खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचकर अपना गुस्सा उतारती साफ नजर आई। सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान बचाने के लिए सार्वजनिक खम्भे बनवा दिए जाएं जिनको हर खिसियानी बिल्ली जब चाहे नोच सके तो कितना अच्छा हो। बारहखम्भा रोड पर इतने कम खम्भे होने का परिणाम है कि दिल्ली में जिन खिसियाने बिल्लों को खम्भा नोच कर काम चला लेना चाहिए था,वे आत्मकथा लिख डालते हैं। उससे चिढ़कर जिस बिल्ली का लिखने पढ़ने में हाथ तंग है वह भी आत्मकथा लिखने की धमकी देती है। चुनावों में जिनका सूपड़ा साफ हो गया या राजगद्दी पाकर भी जो उससे नीचे फिसल गए वे सभी बिल्ले, बिल्ली खम्भा नोचते फिर रहे हैं। नींद से उठकर अचानक सभापति के आसन के सामने आकर बासी कढ़ी में उबाल का प्रदर्शन करने वाले सांसदों के लिए संसद भवन के बाहर वाले खम्भों को संसद भवन के अन्दर लगा देना चाहिए ताकि वे बिना सदन की कार्यवाही में बाधा डाले जी भर कर खम्भा नोच सकें। वैसे तो राजधानी में बारह क्या, बारह सौ खम्भे भी कम पड़ेंगे लेकिन इसमें संदेह नहीं कि खुंदक निकालने के लिए खम्भे अच्छी दवा साबित होंगे। जितने बनें उतना ही अच्छा। अंग्रेजी में कहते हैं- न द मोर द मेरियर।

-अरुणेन्द्र नाथ वर्मा

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