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बदायूं बलात्कार कांड की खबरें अभी ठंडी भी नहीं हुई थीं कि लखनऊ में विधवा महिला की लौमहर्षक हत्याकांड ने उत्तर प्रदेश की कानून एवं व्यवस्था को बेपर्दा कर दिया। एक के बाद एक दुस्साहसिक घटनाओं से साबित होता है कि सपा सरकार का राज भले हो पर ह्यलाजह्ण चली गई है।
जबरौली स्थित मोहनलालगंज गांव में हुए महिला हत्याकांड से न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश का सिर शर्म से झुक गया है। बलसिंह खेड़ा गांव के प्राथमिक विद्यालय प्रांगण में निर्वस्त्र और खून से लथपथ मिली महिला की लाश ने सरकार के सुरक्षा दावों की भी हवा निकाल दी। यहां से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को एक कार्यक्रम में पहंुचना था। इसके लिए 48 घंटे पहले से ही चाक-चौबंद व्यवस्था का दावा किया जा रहा था। मृतका के चेहरे और शरीर पर बेरहमी से किए गए वार के दर्जनों निशान थे। हैरानी की बात यह रही कि मृतक महिला के प्रति सांत्वना भाव रखने की बजाय स्थानीय लोग शव के फोटो लेते दिखाई पड़ रहे थे। किसी ने शव को ढकने तक का प्रयास नहीं किया। लेकिन इस घटना से सरकार या प्रशासन किसी का सिर शर्म से नहीं झुका और न ही झुक ने की उम्मीद है। यहां के प्रशासनिक अमले और उसको हांकने वाले राजनेताओं के लिए यह घटना जैसे एक सामान्य घटना मात्र थी। ये लोग घटना की सच्चाई उजागर करने वाले मीडिया को ही कोस रहे थे और तर्क दे रहे थे कि घटना को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया। पुलिस को जब शर्म नहीं आई और महिला की लाश की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर होने लगीं तो कुछ ग्रामीण बुजुर्गों ने यह वास्ता दिया कि महिला की अस्मिता उसके साथ हमेशा रहती है। चाहे वह मर ही क्यों न गई हो। इसके बाद नींद से जागे पुलिस वालों ने महिला के शव को चादर से ढका। लेकिन इससे पहले सोशल मीडिया के जरिये महिला के फोटो देश-विदेश में सुर्खियां बन चुके थे। दुखद बात यह रही कि लखनऊ की गली-गली में बच्चे से लेकर बड़े तक सभी के फोन पर मृतक महिला की फोटो मजाक बनकर रह गईं क्योंकि हरेक व्यक्ति अपने-अपने तर्क देकर घटना को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगा रहा था। इस घटना से शहर और गांव की महिलाओं में इस कदर भय व्याप्त है कि वे अब घरों से बाहर जाने में स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। उनके चेहरों पर पुरुष प्रधान समाज और विशेषकर मौत के सौदागर के रूप में खुले में घूमने वाले दरिंदों का खौफ साफ झलक रहा है। ऐसे में खासकर कामकाजी महिलाओं के लिए चिंता काफी बढ़ गई है। राजनेताओं ने कुछ समय पहले ह्यएसटीएफह्ण के पुलिस महानिरीक्षक आशीष कुमार गुप्ता के उस बयान की याद ताजा कर दी जिसमें उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश में अभी प्रतिदिन 10 बलात्कार होते हैं। जनसंख्या के अनुपात से तो यह आंकड़ा प्रतिदिन 22 तक पहंुच सकता है।
इस घटनाक्रम में सच्चाई को दबाने के लिए पुलिस सभी हदों को पार कर गई। पुलिस ने इस घटना का खुलासा करने पर संवाददाता सम्मेलन को रद्द कर दूसरे दिन अपनी सफाई पेश की थी। पुलिस ने यह दावा किया था कि इस घटना में मात्र एक व्यक्ति रामसेवक यादव ही लिप्त पाया गया है। इससे परे एक राजनीतिक नेता से लखनऊ में तैनात एक क्षेत्राधिकारी ने अपना दर्द बताते हुए ये तक कहा था कि ऐसे खुलासे पर उसका पुुलिस की नौकरी से त्यागपत्र देने का मन करता है। इससे साफ पता चलता है कि इस घटना के पीछे छिपी महत्वपूर्ण सच्चाई को दबाया गया। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर पूरी व्यवस्था कठघरे में खड़ी है। यही नहीं पुलिस ने आनन-फानन में मृतका के परिजनों पर दबाव बनाकर रात 12 बजे उसके शव का अंतिम संस्कार करवा दिया था। इससे पहले पुलिस ने कहा था कि शव को 72 घंटे के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी थी, जो कि पुलिस को अंतिम संस्कार कराना पड़ा? पहले अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सुतापा सान्याल ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद कहा था कि घटना में कई लोग शामिल हैं। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रवीण कुमार ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद पहले ही दिन कहा था कि पोस्टमार्टम रपट में महिला के शरीर पर मृत्यु से पूर्व छोटी-बड़ी चोटों के 12 निशान पाए गए हैं। लेकिन संवाददाता सम्मेलन में पुलिस पूरी तरह से पलट गई।
धीरज त्रिपाठी
संसद में भी हुई चर्चा
संसद में कार्यवाही के दौरान पिछले दिनों स्वयं केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने राज्यसभा में बताया था कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 के मुकाबले वर्ष 2013 में 55 फीसदी अपराधों में वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2012 में महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या 2042 से बढ़कर वर्ष 2013 में 3050 तक पहंुच गई। उन्होंने बताया कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2013 के महिला अपराध 32546 देश में कुल अपराध का अकेले 10.5 फीसदी हैं। बढ़ते अपराधों पर काफी चिंता व्यक्त की गई है।
पोस्टमार्टम रपट पर सवाल
मृतका की पोस्टमार्टम रपट पर उठे सवालों को देखते हुए इसकी जांच के लिए समिति गठित की गई है। रपट में मृतका की दोनों किडनी सुरक्षित बताई गई हैं, जबकि उसके पिता, ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर तक सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि उसने एक किडनी अपने पति को अक्तूबर, 2011 में दी थी। उसकी उम्र भी गलत लिखी गई है। आरोपी रामसेवक यादव की पत्नी का यह दावा करना कि बेटे को जेल भेजने की धमकी देकर पुलिस ने उसके पति को इस घटना की जिम्मेदारी लेने के लिए मजबूर किया। मृतका के घरवाले सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे हैं।
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