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देश के रत्न -पर्यावरण की रक्षा और जनसुविधा का साधक

by
Jul 19, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Jul 2014 16:39:02

11वीं कक्षा में पढ़ने वाले टेनिथ आदित्या ने प्रदूषण के दौर में पर्यावरण संरक्षण की पहल की है। टेनिथ देश-विदेश में अनेक पुरस्कार पाने की महारत हासिल कर ली है। दो विश्व कीर्तिमान, दो अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार, एक अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार, 7 राष्ट्रीय पुरस्कार और 8 राज्य पुरस्कार पाने वाला यह छात्र बहुआयामी प्रतिभाओं का धनी है और एनआईएफ द्वारा आयोजित 'इगनाइट' प्रतियोगिता में पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे कलाम से भी पुरस्कृत हो चुका है। टेनिथ ने अभी एक साल तक केले के पत्ते को हरा रखने का कीर्तिमान स्थापित किया है क्योंकि आमतौर पर केले का पत्ता तीन दिन में सूख जाता है। टेनिथ द्वारा तैयार किया गया रासायनिक केले के पत्ते पर डालने के बाद उसे एक वर्ष तक हरा रखेगा और साथ ही उसका रासायनिक असर बर्तन पर नहीं पडे़गा। इससे उन्होंने केले के पत्ते से प्लेट, कप और गिलास तैयार किए हैं, जो कि वाटरप्रूफ हैं और उन्हें दोबारा साफ कर रखा भी जा सकता है। इस तकनीक से न केवल प्लास्टिक के उपयोग में कमी आएगी, बल्कि प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है, खासकर सरकार द्वारा प्लास्टिक पर पाबंदी की अपील में यह योजना कारगर सिद्ध हो सकती है। यही नहीं इस केले के पत्ते से बनी प्लेट या कप को यदि पशु भोजन के रूप में खा भी जाए तो उससे उनके स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़ेगा। उनका दावा है कि इसके प्रयोग से बाजार में उपलब्ध 60 फीसदी प्लास्टिक से तैयार रोजमर्रा के सामान पर रोक लगाई जा सकती है। उनकी इस खोज को भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय से भी स्वीकृति मिल चुकी है। उन्होंने कई प्लग लगाने वाला मल्टी एक्सटेंशन बोर्ड भी तैयार किया है जिसमें एक समय में 17 प्लग लगाए जा सकते हैं। इसमें किसी भी तरह का प्लग जैसे कि टू पिन, थ्री पिन और पावर प्लग का भी इस्तेमाल हो सकेगा। इसमें होल (छेद) नहीं हैं, बल्कि एक प्लेट है जिसमें कैसा भी प्लग आसानी से फिट हो जाता है। विदेशों में तैयार होने वाले प्लग भी इसमें आसानी से लग सकते हैं, वरना हमारे देश में प्रयोग में लाए जाने वाले प्लग और विदेशी प्लग में अंतर होता है। ये दोनों तकनीक तैयार करने वाले टेनिथ को इंडोनेशिया में 'यंग साइंटिस्ट अवार्ड' से भी पुरस्कृत किया जाएगा। ल्ल

किसानों को 'खाद' भी मदद का 'हाथ' भी
गुरमेल सिंह धौंसी 55 वर्ष (पदमपुर तहसील, जिला श्रीगंगानगर , राजस्थान)
इनसे जब शैक्षणिक योग्यता के बारे में पूछा गया तो बहुत ही साधारण तरीके से बोले कि 'मैं तो पौने छ: दर्जे की कक्षा तक पढ़ा हूं यानी छठी फेल हूूं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि मात्र पांचवी कक्षा पास गुरमेल सिंह ने 'कम्पोस्ट मेकर' और 'ट्री प्रूनर' तैयार किया है। इनके सहयोग से किसानों को सस्ती खाद के साथ-साथ बड़ी सरलता से पेड़ों की छंटाई में भी सहयोग मिलेगा।
कम्पोस्ट मेकर तैयार करने से पहले इन्होंने केंचुए को घर में रखकर उस पर शोध किया। इन्होंने पाया कि रात और अंधेरे में रखने पर केंचुआ जीवित रहता था, जबकि धूप में रखते ही मर जाता था। इनका मत है कि केंचुए से खाद बनने में काफी समय लगता है। उसके लिए गोबर की भी काफी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। इसे ध्यान में रखकर इन्होंने कम्पोस्ट मेकर तैयार किया। ऐसा पुराना सामान जो कि जल सकता है उसे काम में लाया गया, जैसे कि खेतों में सूखी घास, भूसा आदि में गोबर आदि मिलाकर खाद बनानी शुरू कर दी। इनके मुताबिक कम्पोस्ट मेकर एक दिन में एक टन से भी ज्यादा खाद तैयार कर सकता है। इस मशीन पर सबसे पहले डेढ़ लाख रुपये की लागत आई थी, जो कि बढ़कर अब 3.70 लाख पहंुच चुकी है। ये अपने उपकरण पेटेन्ट भी करवा चुके हैं। अभी तक ये 28-30 मशीनें भी तैयार कर बेच चुके हैं। इसके अलावा गुरमेल सिंह ने 'ट्री प्रूनर' तैयार किया है। इसे ट्रैक्टर में के्रन के रूप में इस्तेमाल किया गया है। क्रेन की तरह ट्री प्रूनर को हवा में उठाकर 12 फुट ऊंचाई और 20 फुट चौड़ाई तक पेड़ों की कटाई-छंटाई की जा सकती है। यह मशीन एक घंटे में मात्र 3.5 लीटर ईंधन में करीब 200 पेड़ों की छंटाई कर सकती है। जिन पेड़ों पर चढ़ना माली या किसानों के लिए संभव नहीं हो पाता था। अभी तक गुरमेल ऐसी 30 मशीनें तैयार कर चुके हैं और उन्हें हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बेच चुके हैं। इसकी कीमत अभी सवा पांच लाख रुपये रखी है। ल्ल

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