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नई खिलाफत, पश्चिम एशिया पर इसका प्रभाव

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Jul 19, 2014, 12:00 am IST
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आवरण कथा संबंधित- द्वितीय सत्र

दिंनाक: 19 Jul 2014 15:28:40

विषय प्रवर्तन करते हुए श्री आलोक बंसल ने कहा कि 1920 ,में जब फैजल को बादशाह बनाया गया था तो वे सीरिया और इजिप्ट के साथ थे। कुर्द हमेशा आपस में लड़ते रहे हैं इसलिए उन्हें विद्रोही कहा जाता है। सद्दाम हुसैन के समय इरान कुर्दों का समर्थन करता था, अब इराक में जाकर सुन्नियों के साथ 17 भारतीय भी लड़ रहे हैं और बहुत ज्यादा जाने को तैयार हैं तो पश्चिम एशिया के साथ भारत की अपनी भी चिन्ता बढ़नी स्वाभाविक है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र के प्रोफेसर प्रो. गिरिजेश पंत ने कहा कि पश्चिम एशिया विश्व मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ता रहा है किन्तु इस्लामिक राज्य इसके केन्द्र में है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। अमरीका ने अरब देशों के प्राकृतिक विदोहन के लिए ही उनके आंतरिक मामलों में दखल शुरू की। आज उम्मा हो या खिलाफत हो इनकी अवधारणा में ही स्पष्ट है कि यह देशों को जोड़ने का नहीं बल्कि समुदायों को जोड़ने का अभियान है। इनमें नेतृत्व के प्रति निष्ठा का भाव नहीं है, ये तो केवल भावनाओं से खेलते हैं। अलकायदा द्वारा समर्थित खूनखराबे के ये खेल पश्चिम एशिया में खतरे की घंटी ही हैं। इसके पीछे अशिक्षा, बेरोजगारी और महंगाई जैसे कारण हैं। सऊदी अरब और ईरान अभी अमरीका की दया पर शांति के द्वीप में हैं। अमरीका के साथ रूस और भविष्य की बड़ी ताकत चीन की रुचि भी इस क्षेत्र में लगातार बढ़ती रही है।
मे.ज.(से.नि.) ध्रुव सी.कटोच ने कहा कि इस्लाम हो या कोई अन्य मत या पंथ जहां भी धर्म और शासन में संघर्ष होगा उसका परिणाम जनता को ही भुगतना पड़ेगा। इराक में प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी की सरकार में एक भी सुन्नी सदस्य नहीं है। यदि वास्तव में एक नेतृत्व सबको साथ लेकर चलता, सबकी भावनाओं का ध्यान रखता तो सुन्नी क्यों संघर्ष करते, फिर ये खलीफा और खिलाफत जैसी अवधारणाएं भी शायद ही उपस्थित होतीं।
वरिष्ठ शोधार्थी और इराक मामलों की विशेषज्ञ डा. मीना सिंह रॉय ने कहा कि इसे दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि ईरान और सऊदी अरब इस्लाम के नाम पर अपने आस-पास हो रहे इस भयंकर नरसंहार पर आंख मूंदे हुए हैं। इराक के लोगों को स्थानीय स्तर पर समर्थन की आवश्यकता है। सारी समस्या का समाधान सैन्य कार्यवाही भी नहीं हो सकती। संवाद और विचार-विमर्श से भी नए रास्ते और विकल्प खुल जाते हैं, हिंसा और अमानवीयता से किसी समाज में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता।
पूर्व नौकरशाह डा. शक्ति सिन्हा ने कहा कि विश्व में सीरिया कभी अहिंसक देश माना
जाता था, कुर्दों को भी संघर्षशील माना जाता था। अमरीका के दृष्टिकोण से तो इस क्षेत्र
में तेल के खेल को ही महत्वपूर्ण माना जाएगा, क्योंकि इराक में जितना संकट बढ़ेगा,
तेल आपूर्ति बाधित होगी और तेल का वैश्विक मूल्य बढ़ेगा।
पूर्व एडमिरल श्री शेखर सिन्हा ने कहा कि जब हम इस्लाम और ईसाइयत में तुलनात्मक दृष्टि से सुधार का पक्ष देखते हैं तो इस्लाम पीछे ही छूटता है। शिया समुदाय वास्तव में बहाबी है जो अब्दुल वहाब से जुड़ा है। 2004 में स्टीफन स्वार्ड द्वारा दो चरणों में लिखी गई पुस्तक वहाबियों में अलगाव का भाव लेकर आई है।

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